नोटः द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की तीसरी रिपोर्ट में आपदा प्रबंधन (Disaster Management) को संकट प्रबंधन (Crisis Management) के नाम से भी दर्शाया गया है।
प्राकृतिक आपदाएँ (Natural Disasters)
भूकंप (Earthquake)
- भूकंप पृथ्वी के धरातल पर होने वाली आकस्मिक हलचल है
- भूकंप के कारण
- पृथ्वी के साम्यावस्था में असंतुलन(imbalance in the earth’s equilibrium
- भूगर्भिक संचलन (geologic movement)
- ज्वालामुखी विस्फोट (volcanic eruptions)
- मानव जनित कारण (man-made causes)
भारत में भूकंपीय क्षेत्र/जोन
- नवीन वलित पर्वतमाला हिमालय क्षेत्र
भारतीय मानक ब्यूरो ने भारत को 4 भूकंपीय क्षेत्रों (Seismic Zones) में बाँटा है।
1.V (अत्यधिक जोखिम क्षेत्र)
- भूकंपीय तीव्रता– IX (या अधिक)
- कुल क्षेत्र का प्रतिशत – 12%
- प्रमुख क्षेत्र
2.IV (अधिक जोखिम क्षेत्र)
- भूकंपीय तीव्रता – VIII
- कुल क्षेत्र का प्रतिशत – 18%
- प्रमुख क्षेत्र –
- जम्मू-कश्मीर व हिमाचल प्रदेश के शेष भाग
- दिल्ली
- सिक्किम
- उत्तर प्रदेश, बिहार व पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग
- गुजरात, राजस्थान व महाराष्ट्र के कुछ भाग
3.III (मध्यम जोखिम क्षेत्र)
- भूकंपीय तीव्रता– VII
- कुल क्षेत्र का प्रतिशत– 27%
- प्रमुख क्षेत्र –
- केरल, गोवा व लक्षद्वीप
- उत्तर प्रदेश, गुजरात व पश्चिम बंगाल का शेष भाग
- पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु व कर्नाटक के कुछ भाग
4. II (निम्न जोखिम क्षेत्र)
- भूकंपीय तीव्रता– VI (या कम)
- कुल क्षेत्र का प्रतिशत– 43%
- प्रमुख क्षेत्र –
- देश के शेष अन्य क्षेत्र
प्रायद्वीपीय भारत में भूकंप का प्रमुख कारण
- हिंद महासागर के नितल में 5 सेमी. की दर से प्रसरण,
- भारतीय प्लेट का उत्तर की ओर निरंतर गतिशील होना
- प्रभाव
- भूगर्भिक दरारों का सक्रिय होना
- दो भ्रंशों का निर्माण
- पूर्व से पश्चिम दिशा में अहमदाबाद से भुज के मध्य
- उत्तर-दक्षिण दिशा में
- इन्हीं दो भ्रंशों के क्रियाशील होने के कारण गुजरात के भुज तथा उसके आस-पास के क्षेत्रों में भूकंप आते हैं।
- महाराष्ट्र में कोयना-भीमा भ्रंश है जो पूर्व में निष्क्रिय था, लेकिन कोयना बांध के निर्माण के कारण उत्पन्न जल दबाव से सक्रिय हो गया
- परिणाम – लातूर भूकंपीय त्रासदी (30 सितम्बर 1993)
- भारत की प्रथम भूकंपीय चेतावनी प्रणाली की स्थापना देहरादून (उत्तराखंड) में जुलाई 2015 में की गई।
भूस्खलन (Landslide)
- भूस्खलन का प्रमुख कारण (प्राकृतिक एवं मानव जनित दोनों)
- पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण
- पत्थर का खिसकना
- मिट्टी का बहाव
- पहाड़ियों का टूटना
भारत में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र
- हिमालय पर्वतीय क्षेत्र (उत्तरी-पूर्वी राज्यों समेत)
- पश्चिमी घाट
- पूर्वी घाट
- नीलगिरी के अधिक वर्षा वाले क्षेत्र
- अंडमान-निकोबार द्वीप समूह आदि।
ज्वालामुखी(Volcano)
- ज्वालामुखी एक प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत पृथ्वी की आंतरिक भाग में उपस्थित गर्म गालित मैग्मा पृथ्वी की परतों को तोड़ते हुए पृथ्वी की सतह पर तरल लावा (ठोस, द्रव, गैस का समिलित रूप) के रूप में उद्गारित होता है।
- इसे ‘प्रकृति का सुरक्षा वाल्ब’ भी कहा जाता है।
नोटः
- ज्वालामुखी से कई स्थल रूपों का निर्माण होता है अतः पृथ्वी पर परिवर्तन लाने वाले बलों में इसे ‘रचनात्मक बल’ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- दूसरी ओर, इससे पारितंत्र और जान-माल को नुकसान होता है अतः ‘प्राकृतिक आपदा’ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
भारत में ज्वालामुखीय क्षेत्र
- भारत की मुख्य भूमि पर प्रमुखतया कुछ मृत एवं प्रसुप्त ज्वालामुखी स्थित हैं।
- बैरन द्वीप – अंडमान द्वीप (एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी)
- नारकोंडम – अंडमान द्वीप
- बारांतग – अंडमान द्वीप
- दक्कन ट्रैप – महाराष्ट्र
- धिनोधर पहाड़ी – गुजरात
- धोसी पहाड़ी – हरियाणा व उत्तरी राजस्थान सीमा पर
बाढ़ (Flood)
- बाढ़ दो प्रकार की हो सकती है
- (i) प्राकृतिक बाढ़
- (ii) मानवकृत बाढ़
भारत के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र
- भारत का लगभग 12.5% क्षेत्र – भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के अनुसार
- भारत के बाढ़ प्रवण क्षेत्रों को प्रमुखतया तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
- गंगा बेसिन
- ब्रह्मपुत्र एवं बराक बेसिन
- मध्य भारत एवं प्रायद्वीपीय भारत की नदियों के बेसिन
गंगा बेसिन
- इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल सर्वाधिक प्रभावित राज्य हैं।
- उत्तर प्रदेश में बाढ़ का प्रमुख कारण – गंगा, शारदा, राप्ती, गंडक, घाघरा आदि नदियाँ
- हरियाणा व दिल्ली के क्षेत्र – यमुना नदी
- बिहार में बाढ़ का कारण – कोसी (बिहार का शोक), बागमती, गंडक, कमला नदियाँ
- भारत का सबसे अधिक बाढ़ ग्रस्त राज्यबिहार है
- पश्चिम बंगाल– महानंदा, भागीरथी, दामोदर, अजय आदि नदियाँ
ब्रह्मपुत्र एवं बराक बेसिन
- ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियों के द्वारा, बराक नदी,तीस्ता एवं तोरसा नदियाँ बाढ़ग्रस्त होते हैं।
मध्य भारत एवं प्रायद्वीपीय भारत की नदियों के बेसिन
- नर्मदा, तापी,गोदावरी, कृष्णा ,महानदी, वैतरणी व ब्राह्मणी नदियाँ बाढ़ लाती हैं।
- डेल्टाई प्रदेशों में चक्रवातीय तूफान के कारण भी बाढ़ आती है।
राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम
- स्वतंत्रता के पश्चात् 1954 में आई भीषण बाढ़ के उपरांत 1954 में ही ‘राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम’ लागू किया गया।
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत तात्कालिक, अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक योजनाओं पर ध्यान दिया गया।
- 1976 में ‘राष्ट्रीय बाढ़ आयोग’ की स्थापना की गई।
सुनामी (Tsunami)
- सुनामी महासागर में पैदा होने वाली ऊँची लहरें हैं।
- यह महासागरीय तल पर होने वाली भूकंप, ज्वालामुखी आदि के कारण पैदा होती हैं।
- भारत में 2007 से भारतीय सुनामी अग्रिम चेतावनी केंद्र (ITEWC-The Indian Tsunami Early Warning Centre ) कार्य कर रहा है, जो वर्तमान में राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS- Indian National Centre for Ocean Information Services ), हैदराबाद के अंतर्गत है
- 26 दिसंबर, 2004 को आई सुनामी
- उत्पन्न – सुमात्रा (इण्डोनेशिया) ,8.9 रिक्टर के भूकंप
- प्रभावित – अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, तमिलनाडु(नागपट्टिनम ज़िला), पुदुच्चेरी, केरल एवं आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र
- यूरेशियाई प्लेट एवं इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट के अभिसरण की सीमा पर स्थित जावा ट्रेंच बेहद भूकंप संवेदनशील क्षेत्र है।
सुनामी चेतावनी प्रणाली (TWS)
- स्थापना – 1998 में
- प्रशांत महासागरीय तटीय देशों को सुनामी से सुरक्षा प्रदान करने हेतु
- सुनामी चेतावनी प्रणाली केंद्र- अलास्का, हवाई द्वीप तथा जापान में स्थापित
सूखा (Drought )
- सूखा सामान्यतः जल की कमी की स्थिति है
- सूखा के कारण
- अपर्याप्त वर्षा
- अत्यधिक वाष्पीकरण
- भूजल का अत्यधिक दोहन आदि
- कृषि सूखा
- मृदा में नमी की कमी के कारण फसलें मुरझा जाती हैं, जिसे ‘कृषि सूखा‘ कहा जाता है,
- इसे ‘भूमि-आर्द्रता सूखा’ भी कहते हैं।
- जिस क्षेत्र के कल बोए गए क्षेत्र का 30 प्रतिशत से अधिक भाग सिंचित है, तो उस क्षेत्र को इसमें वर्गीकृत नहीं किया जाता।
- सूखे के प्रकार
-
- अत्यधिक सूखा प्रवण क्षेत्र
- अधिक सूखा प्रवण क्षेत्र
- मध्यम सूखा प्रवण क्षेत्र
अत्यधिक सूखा प्रवण क्षेत्र
अधिक सूखा प्रवण क्षेत्र
- राजस्थान का पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश का ज्यादातर हिस्सा, पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया प्रदेश, महाराष्ट्र का पूर्वी भाग, तेलंगाना का अधिकतर भाग, कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु का उत्तरी भाग, झारखंड का दक्षिणी भाग व ओडिशा का आंतरिक भाग।
मध्यम सूखा प्रवण क्षेत्र
- राजस्थान का उत्तरी हिस्सा, हरियाणा के कुछ क्षेत्र, उत्तर प्रदेश का दक्षिणी क्षेत्र, गुजरात का कच्छ के अतिरिक्त शेष क्षेत्र, महाराष्ट्र व झारखंड के कुछ भाग, तमिलनाडु में कोयंबटूर का पठारी भाग व कर्नाटक का आंतरिक भाग।
सूखा/अनावृष्टि प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (Drought Prone Area Programme)
- सूखे की समस्या को हल करने के लिये यह कार्यक्रम 1973-74 में प्रारंभ किया गया।
- इसके अंतर्गत
- भूमि सुधार
- जल संसाधनों का प्रबंधन एवं संरक्षण,
- मृदा एवं मृदा की आर्द्रता का संरक्षण,
- वृक्षारोपण, सामाजिक वानिकी, चारागाहों एवं भेड़ पालन का विकास,
- तालाबों, नदियों, नहरों से गाद निष्कासन इत्यादि
मरुस्थल विकास कार्यक्रम (Desert Development Programme)
- मरुस्थल के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिये 1977-78 में मरुभूमि विकास कार्यक्रम (DDP) प्रारंभ किया गया।
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत
- उष्ण मरुस्थलीय क्षेत्रों के विकास पर खर्चधनराशि
- केंद्र एवं राज्य सरकार 75 : 25 के अनुपात में वहन करती है,
- शीत मरुस्थल के विकास पर खर्च होने वाली धनराशि
- केंद्र सरकार वहन करती है।
- उष्ण मरुस्थलीय क्षेत्रों के विकास पर खर्चधनराशि
- उद्देश्य
- मरुस्थलों के प्रसार को रोकना तथा मरुस्थलीय इलाकों की उत्पादकता में वृद्धि करना।
चक्रवात (Cyclone)
- चक्रवात निम्न वायु दाब के केंद्र होते है।
भारत में उष्णकटिबंधीय चक्रवात प्रभावित क्षेत्र
- उष्णकटिबंधीय चक्रवात 30° उत्तर से 30° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य(भूमध्यरेखीय 5° उत्तर से 5° दक्षिणी अक्षांश को छोड़कर) उत्पन्न होते हैं।
- प्रायद्वीपीय भारत (तटीय क्षेत्रों)इन अक्षांशों के अंतर्गत शामिल है।
- मानसून के दौरान चक्रवात 10° से 15° उत्तरी अक्षांश में विकसित होते हैं
- बंगाल की खाड़ी में पैदा होने वाले अधिकतर चक्रवात अक्तूबर-नवंबर माह में 16° से 21° उत्तरी अक्षांश के मध्य विकसित होते हैं
- ये चक्रवात आंध्र प्रदेश, ओडिशा एवं पश्चिम बंगाल के संपूर्ण तटीय क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं।
-
सामान्यतया बंगाल की खाड़ी की तुलना में अरब सागर में चक्रवातीय स्थितियाँ काफी कम पैदा होती हैं।
बादल का फटना/ बादल प्रस्फुटन (Cloudburst)
- किसी क्षेत्र विशेष में कुछ किलोमीटर के दायरे में अचानक से हुई मूसलाधार वर्षा को बादल का फटना या ‘बादल प्रस्फुटन’ कहते हैं।
- सामान्यतया वर्षा की मात्रा – 100 मिलीमीटर प्रति घंटा या इससे अधिक
- बादल का फटना सामान्यतया पर्वतीय क्षेत्रों में घटित होती हैं
- जैसे-जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश आदि
मानव जनित आपदाएँ (Man-made Disasters)
- अप्रैल 1986 में यूक्रेन के चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना
- जापान में मार्च 2011 में फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना
- भारत के भोपाल में दिसंबर 1984 में यूनियन कार्बाइड संयंत्र से ‘मिथाइल आइसोसायनेट’ गैस का निष्कासन,
- खाड़ी युद्ध के दौरान कुवैत के तेल के कुओं में आग
- प्रमुख मानवजनित आपदाएँ
- तेल एवं रसायनों का समुद्री सतह पर फैलाव
- बांध टूटना
- युद्ध
- आतंकवादी हमले
- जलवायु परिवर्तन
आपदाओं से बचाव एवं प्रबंधन के प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय प्रयास
- (1990-1999) – संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण के लिये ‘अंतर्राष्ट्रीय दशक’ घोषित
- 1994 मेंयोकोहामा (जापान) में आपदा न्यूनीकरण हेतु ‘पहला विश्व सम्मेलन’
- United Nations Office for Disaster Risk Reduction
- Headquarters: Geneva, Switzerland
- Founded: 22 December 1999
- Abbreviation: UNDRR (formerly UNISDR)
- 2002 में जोहांसबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) में हुए ‘सतत् विकास सम्मेलन’
- 2005 में जापान के कोबे (ह्यूगो) में आपदा न्यूनीकरण पर दूसरा विश्व सम्मेलन
- 2005-2015 – ‘ह्यूगो रणनीति फ्रेमवर्क’ जारी
- 2012 में रियो (ब्राज़ील) सम्मेलन
- 2015 मेंजापान के सेंडाई प्रांत में आपदा न्यूनीकरण पर तीसरा विश्व सम्मेलन
- 2015-2030 – ‘सेंडाई फ्रेमवर्क’ जारी
- 13 अक्तूबर – ‘आपदा न्यूनीकरण दिवस’
- शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1989 में की गई थी।
- ‘संयुक्त राष्ट्र सासाकावा अवार्ड’
- व्यक्ति या संस्था को – आपदा न्यूनीकरण संबंधी प्रयास किया हो।
- स्थापना – 1986 में
- ‘निप्पोन फाउंडेशन’ के संस्थापक व अध्यक्ष ‘रिओइची सासाकावा’ द्वारा
आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन के राष्ट्रीय प्रयास
- ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (NDMA-National Disaster Management Authority)
- गठन – सितंबर 2005 में (कार्यकारी आदेश से)
- दिसंबर 2005 में ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम‘ पारित किया गया।
- राष्ट्रीय स्तर पर – राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
- राज्य स्तर पर – राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA)
- जिला स्तर पर – जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA)
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA-National Disaster Management Authority)
- गृह मंत्रालय की देख-रेख में
- 6 सदस्यीय प्राधिकरण
- अध्यक्ष – प्रधानमंत्री
- ‘राष्ट्रीय कार्यकारी समिति'(‘National Executive Committee’)
- NDMA की सहायता करने हेतु
- अध्यक्ष – गृह सचिव
- राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA)
- अध्यक्ष – मुख्यमंत्री
- जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA)
- अध्यक्ष – ज़िला मजिस्ट्रेट
- उपाध्यक्ष – जिला परिषद् का प्रमुख
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF-National Disaster Response Force)
- गठन – वर्ष 2006 में (NDM अधिनियम, 2005 के तहत)
- वर्तमान में इसकी 12 बटालियनों को मंजूरी दी जा चुकी है
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति’
- वर्ष 2009 में NDMA द्वारा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति’ का निर्माण किया गया।
- वर्ष 2016 में आपदा प्रबंधन पर नई राष्ट्रीय नीति लागू की गई।
- आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय संस्थान (NIDM-National Institute of Disaster Management)
- National Centre for Disaster Management (NCDM) in 1995
- स्थापना – 2006 में
- अध्यक्ष – केंद्रीय गृह मंत्री
- HQ- Rohini, Delhi
- उड़ीसा में सर्वाधिक प्राकृतिक आपदाएं आती है