भारत में ब्रिटिश शक्ति का विस्तार Expansion of British power in India : SARKARI LIBRARY

 भारत में ब्रिटिश शक्ति का विस्तार

बाद के गवर्नर जनरलों ने उसे अंतिम शक्ल प्रदान की। 

  • ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने प्रभुत्व बनाये रखने हेतु तीन प्रमुख नीतियाँ अपनाई, जो निम्न हैं- 
    • 1. लॉर्ड क्लाइव की द्वैध शासन की नीति 
    • 2. वेलेजली की सहायक संधि की नीति 
    • 3. लॉर्ड डलहौजी की व्यपगत सिद्धांत की नीति

लॉर्ड क्लाइव का द्वैध शासन 

  • दीवान और सूबेदार मुगलकालीन प्रशासन के दो प्रमुख अधिकारी होते थे। 
  • दीवानी से अभिप्राय भूमिकर वसूल करना और भूमि कर संबंधी दीवानी मुकदमों का निर्णय करना होता था, 
  • जबकि सूबेदारी/निज़ामत का अभिप्राय आंतरिक सुरक्षा, शांति तथा सुव्यवस्था, न्याय-व्यवस्था और फौजदारी मुकदमों का निर्णय करना आदि होता था। 
  • कंपनी दीवानी और निज़ामत के कार्यों का निष्पादन भारतीय ‘अधिकारियों के माध्यम से करती थी। 
  • दीवानी कार्य के लिये कंपनी ने बंगाल में रज़ा खाँ, बिहार में शिताबराय तथा उड़ीसा में रायदुर्लभ को दीवान नियुक्त किया। 
  • नवाब के अधिकारी और कर्मचारी प्रशासन में दीवानी कार्यों को छोड़कर शेष समस्त कार्य पहले की तरह करते रहे। 
  • इस प्रकार बंगाल में एक ही समय में दो प्रकार की शासन व्यवस्थाएँ चलने लगीं। यह एक ऐसी व्यवस्था थी, जिसमें अधिकार एवं उत्तरदायित्व दोनों को अलग कर दिया गया।
  • इस प्रकार, ब्रिटिश कंपनी, बंगाल की वास्तविक शासक थी। हालाँकि बंगाल का शासक नवाब ही था और प्रशासन का उत्तरदायित्व भी उसी के हाथों में था, किंतु नवाब के समस्त अधिकार छीन लिये गए। वह अब स्वतंत्र शासक नहीं था
  •  बंगाल में लॉर्ड क्लाइव द्वारा लागू इस व्यवस्था को ही ‘द्वैध शासन व्यवस्था‘ कहते हैं। 
  • द्वैध शासन की आलोचना करते हुए पर्सिवल स्पीयर ने इसे “खुली और निर्लज्जतापूर्ण लूटपाट का युग” बताया। 
  • 1772 में वारेन हेस्टिंग्स ने द्वैध शासन समाप्त कर दिया।

लॉर्ड वेलेजली की सहायक संधि

  • लॉर्ड वेलेजली 1798 में भारत का गवर्नर जनरल बनकर आया। 
  • सहायक संधि का सामान्य अर्थ होता है- दो या दो से अधिक शक्तियों के बीच अपनी सुरक्षा हेतु श्रेष्ठ शक्ति से आपसी समझौता। 
  • लॉर्ड वेलेजली ने सहायक संधि की नीति का अनुसरण किया। 
  •  फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले ने सर्वप्रथम सहायक संधि प्रणाली का प्रयोग करते हुए भारतीय नरेशों को सहायता देने और बदले में उनसे धन लेने की शुरुआत की थी
  • अंग्रेजों ने प्रथम सहायक संधि 1765 में अवध के नवाब से ही कर ली थी जब उनकी सुरक्षा के बदले धन वसूला किंतु इसकी वास्तविक शुरुआत 1798 से होती है। 
  • सहायक संधि को स्वीकार करने वाले राज्य थे-

हैदराबाद (1798 व 1800) 

मैसूर (1799)

तंजौर (अक्तूबर 1799)

अवध (नवंबर 1801) 

पेशवा (दिसंबर 1802)

बरार के भोंसले (दिसंबर 1803) 

सिंधिया (फरवरी 1804)

जोधपुर, जयपुर, मच्छेरी, बूंदी तथा भरतपुर। 

नोट: इंदौर के होल्करों ने सहायक संधि स्वीकार नहीं की थी। 

सहायक संधि की विशेषता 

  • कंपनी की अनुमति के बिना अपने राज्य में शत्रु-राज्य के व्यक्ति को शरण या नौकरी नहीं देगी। 
  • कंपनी की अनुमति के बिना किसी अन्य राज्य से युद्ध, संधि या मैत्री नहीं कर सकेगी। 
  • देशी रियासतों की रक्षा के लिये कंपनी वहाँ अपनी सेना रखेगी जिसका खर्च उस रियासत को ही उठाना पड़ेगा। नकद धनराशि या कुछ क्षेत्र सेना के खर्च के लिये कंपनी को सौंपना पडेगा। 
  • देशी रियासतें शासन-प्रबंधन के लिये अपने दरबार में रेजिडेंट रखेंगी। 
  • भारतीय नरेशों के आंतरिक शासन में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा
  • कंपनी राज्यों की आंतरिक एवं बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा करेगी।

लॉर्ड डलहौजी की व्यपगत सिद्धांत की नीति// विलय का सिद्धांत (डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स) 

व्यपगत सिद्धांत (हड़प नीति) का अभिप्राय

  • लॉर्ड डलहौजी ने साम्राज्य विस्तार के लिये विलय का सिद्धांत (डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स) का सहारा लिया।
  •  इस सिद्धांत के अनुसार अगर किसी ब्रिटिश सुरक्षा प्राप्त राज्य का शासक बिना स्वाभाविक उत्तराधिकारी के मर जाए तो उसका राज्य उसके दत्तक पुत्र (गोद लिया हुआ पुत्र) को नहीं सौंपा जाएगा। 
  • उसने उत्तराधिकारी गोद लेने की प्रथा पर पाबंदी लगाई तथा संतानहीन शासकों के राज्यों को अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिलाने का प्रयत्न किया। 
  • डलहौजी ने भारतीय राज्यों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया

1. प्रथम श्रेणी 

  • जो कभी भी ब्रिटिश शासक के अधीन नहीं रहीं, न ही वे कर देती थीं। 
  • ऐसी रियासतों पर गोद लेने से कोई हस्तक्षेप नहीं था। 

2. द्वितीय श्रेणी 

  • जो मुगल सम्राट अथवा पेशवा के अधीन थीं और उन्हें कर देती थीं, परंतु अब वे अंग्रेजों की अधीन थीं। 
  • वे उत्तराधिकारी गोद लेने के पहले सरकार की सहमति प्राप्त करें। 

3. तृतीय श्रेणी 

  • वे राज्य जिनके निर्माण में ब्रिटिश सरकार का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष योगदान था 
  • ऐसे राज्यों के शासकों के उत्तराधिकारी गोद लेने पर पूर्णतः पाबंदी थी।

हड़प नीति के आधार पर ब्रिटिश साम्राज्य में विलीन राज्य 

  • सतारा (1848): हड़प नीति का पहला शिकार सतारा था। 
  • जैतपुर (1849),बुंदेलखंड
  • संबलपुर (1849),उड़ीसा  
  • बघाट (1850), 
  • उदयपर (1852) 
  • झाँसी (1853) 
  • नागपुर (1854) 
  • करोली ,1855(बोर्ड ऑफ कंट्रोल ने मान्यता नहीं दी)
  • अवध ,1856(आउट्रम की रिपोर्ट के आधार पर,कुप्रशासन के आधार पर)

देशी रियासतों के प्रति ब्रिटिश नीति

  • ब्रिटिश शासन की रियासतों के प्रति कोई स्थायी नीति नहीं थी। 
  • विलियम ली वार्नर ने अपनी पुस्तक ‘द नेटिव स्टेट्स ऑफ इंडिया’ (The Native States of India) में रियासतों के प्रति ब्रिटिश नीति को तीन चरणों में वर्गीकृत किया है

घेरे की नीति (Ring of Fence) 1765-1813 

  • कंपनी ने राज्यों के प्रति अहस्तक्षेप की नीति का अनुपालन किया।
  •  कंपनी का उद्देश्य अपने जीते हुए प्रदेशों के पास ‘बफर स्टेट’ की स्थापना करना था। 

उदाहरणस्वरूप, जीते हुए प्रदेशों को सुरक्षित रखने के लिये किसी अन्य राज्य के साथ संधि कर उसे ‘बफर स्टेट’ बनाया गया। 

  • इस काल में कंपनी ने अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिये अहस्तक्षेप की नीति का पालन किया, किंतु आवश्यकता पड़ने पर उसका उल्लंघन भी किया। 

अधीनस्थ पृथक्करण की नीति, 1813-1858 

  • इस काल में ‘ब्रिटिशं औद्योगिक नीति’ के तहत ‘मुक्त व्यापार की नीति’ को अपनाया गया, जिसके लिये राज्यों को अधीन बनाए जाने व उन पर प्रत्यक्ष नियंत्रण की आवश्यकता थी। 

अधीनस्थ संघ की नीति, 1858-1935 

  • सन् 1857 के विद्रोह से अंग्रेजों ने समझा कि यह विद्रोह विलय एवं रियासतों के प्रति अलगाव की नीति का परिणाम था। 
  • अत: अंग्रेजों ने एक ऐसी नीति का अनुसरण किया जिसमें स्थानीय शासकों की वफ़ादारी एवं सहयोग प्राप्त किया जा सके। 
  • महारानी विक्टोरिया की घोषणा के माध्यम से विलय की नीति का त्याग किया गया 
  • देशी नरेशों को गोद लेने का अधिकार वापस  दिया गया।
  • अब कुप्रशासन के लिये शासकों को दंड दिया जाए या हटा दिया जाए. लेकिन राज्यों का विलय न किया जाए।
  • सन् 1876 में देशी रियासतों पर ब्रिटिश सर्वोच्चता को वैधानिक रूप दे दिया गया तथा लॉर्ड लिटन ने महारानी विक्टोरिया को ‘भारत की साम्राज्ञी’ घोषित किया। इस तरह से भारतीय रियासतें अंग्रेज़ों के अधीन हो गईं। 

समान संघ की नीति. 1935-1947 

  • इस समय तक भारतीय राष्ट्रीय भावनाओं को नियंत्रित करने के लिये अस्त्र के रूप में संवैधानिक सुधारों को लक्ष्य बनाया गया।