भारतीय साहित्य (Indian literature)

 

भारतीय साहित्य

संस्कृत साहित्य 

वैदिक साहित्य 

  • वेद 
  • उपनिषद 
  • वेदांग 
  • सूत्र साहित्य 
  • व्याकरण साहित्य 
  • महाकाव्य 
  • पुराण 

लौकिक साहित्य 

  • काव्य साहित्य
  • गद्य साहित्य

नाट्य ग्रन्थ 

पाली एवं प्राकृत साहित्य

द्रविड़ साहित्य 

  • तमिल साहित्य 
  • तेलुगु साहित्य 
  • कन्नड़ साहित्य 
  • मलयालम साहित्य

मध्यकालीन साहित्य 

  • भक्तिकाल की कवित्री 
  • मध्यकालीन हिंदी साहित्य का विकास 
  • मध्यकालीन उर्दू साहित्य का विकास

आधुनिक भारतीय साहित्य 

राष्ट्रीय पुनरजागरण एवं सुधारवाद से संबंधित साहित्य

भारतीय स्वच्छंदतावाद 

गांधीवाद का भारतीय साहित्य पर प्रभाव 

प्रगतिशील साहित्य 

आधुनिक रंगशाला का निर्माण 

स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय साहित्य परिदृश्य 

  • दलित साहित्य 
  • नारीवादी साहित्य 
  • पैराणिकता का प्रयोग

 

  • संस्कृत अधिकांश भारतीय भाषाओं की जननी मानी जाती है। 
  • पाणिनी कृत ‘अष्टाध्यायी’संस्कृत भाषा का प्राचीनतम ग्रंथ है। 
  • वैदिक साहित्य के सबसे प्राचीनतम ग्रंथ वेद हैं। 
  • वेदों की संख्या–  4 
    • प्रथम वेद –  ऋग्वेद में 10 मंडल एवं 1028 सूक्त हैं। 
      • ऋग्वेद मंत्रों को उच्चारित करने वाले पुरोहित को होतृ कहा जाता था। 
    • दूसरा  वेद –  यजुर्वेद में धार्मिक कर्मकांडों /मंत्रों की चर्चा की गई है। 
      • यजुर्वेद मंत्रों को उच्चारित करने वाले पुरोहित-  ‘अध्वर्यु’ 
      • यजुर्वेद गद्य एवं पद्य दोनों में रचा गया है। 
    • तीसरा  वेद – सामवेद 
      • ऋग्वैदिक मंत्रों के संगीतमय उच्चारण करने की विधि का वर्णन है। 
      • इसे भारतीय संगीत का जनक भी कहा जाता है। 
    • चौथा एवं अंतिम वेद –  ‘अथर्ववेद’
      •  मनुष्य के दैनिक जीवन से संबंधित विषयों की चर्चा की गई है। 
      • इसमें 99 रोगों के उपचार की विधि का वर्णन किया गया है। 
      • अथर्ववेद मंत्रों को उच्चारित करने वाले पुरोहित –  ‘ब्रह्मा’ 
  • इन चारों वेदों के पश्चात् ब्राह्मण ग्रंथों की रचना हई। 
  • आरण्यकों में दार्शनिक एवं रहस्यात्मक विषयों की चर्चा की गई है। 
  • उपनिषद् आरण्यकों के पूरक एवं भारतीय दर्शन का प्रमुख स्रोत हैं। 
  • उपनिषदों की कुल संख्या –  108
    • प्रामाणिक तौर पर 12 उपनिषद् ही हैं। 
    • इनमें ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य आदि प्रमुख हैं। 
  • वेदांगों की कुल संख्या-  6 है
    • शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष। 
  •  वैदिक साहित्य को अक्षुण्ण बनाए रखने के उद्देश्य से सूत्र साहित्य की रचना की गई। 
  • पाणिनी द्वारा लिखित अष्टाध्यायी(संस्कृत भाषा) में लगभग 4 हज़ार सूत्र हैं । 
  • पतंजलि ने पाणिनी के ‘अष्टाध्यायी’पर  ‘महाभाष्य’ नामक टीका लिखा  । 
  • पुराणों की कुल संख्या – 18 है। 
    • प्रमुख पुराण – ब्रह्म, भागवत, पद्म, विष्णु, वायु, अग्नि, मत्स्य तथा गरुड़ पुराण
    • सबसे प्राचीन पुराणों में मत्स्य एवं वायु पुराण को माना गया है। 
  • संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान अमर सिंह ने पुराणों के 5 विषय बताए हैं
    • 1.सर्ग, 2.प्रतिसर्ग, 3.वंश, 4.मन्वंतर एवं 5.वंशानुचरित। 
  • विष्णु पुराण सेमौर्य वंश  की जानकारी मिलती है। 
  • मत्स्य पुराण से सातवाहन एवं शुंग वंश  की जानकारी मिलती है। 
  • वायु पुराण सेगुप्त वंश की जानकारी मिलती है। 

 

लेखक 

रचना 

सम्बंधित तथ्य 

कालिदास

रघुवंशम्

कुमारसंभवम्

अभिज्ञानशाकुंतलम्

 विक्रमोर्वशीयम 

मालविकाग्निमित्रम्

‘अभिज्ञानशाकुंतलम्’ में राजा दुष्यंत तथा शकुंतला का सजीव चित्रण किया गया है।

 ‘विक्रमोर्वशीयम्’ में राजा पुरुरवा एवं उर्वशी के प्रेम तथा विवाह की चर्चा

‘मालविकाग्निमित्रम्’ में मालवदेश की राजकुमारी मालविका तथा विदिशा के राजा अग्निमित्र के प्रेम विवाह का वर्णन 

कल्हण

राजतरंगिणी

कश्मीर के इतिहास के संबंध में जानकारी

भरतमुनि

नाट्यशास्त्र

संस्कृत भाषा का सबसे पुराना एवं प्रामाणिक ग्रंथ

भास

स्वप्नवासवदत्ता नाटक

वत्स राजा उदयन एवं कोसल की राजकुमारी वासवदत्ता के प्रेम का वर्णन

अश्वघोष

कुषाण काल के प्रसिद्ध कवि

सारिपुत्र प्रकरण नाटक 

बौद्ध धर्म से संबंधित

शूद्रक

गुप्तकालीन लेखक

मृच्छकटिकम् नाटक

वसंतसेना एवं ब्राह्मण व्यापारी चारुदत्त के प्रेम का वर्णन

हर्षवर्द्धन

पुष्यभूति वंश के शासक

रत्नावली नाटक

नागानंद  नाटक

प्रियदर्शिका नाटक

भवभूति

मालतीमाधव 

महावीर चरित् 

उत्तररामचरितम्

महावीरचरित एवं उत्तररामचरितम् की कथावस्तु रामायण से ली गई है।

विशाखदत्त

‘मुद्राराक्षस’ 

‘देवीचंद्रगुप्तम्’ 

‘मुद्राराक्षस’ नंद दरबार एवं चाणक्य के षड्यंत्र से संबंधित

देवीचंद्रगुप्तम्’ चंद्रगुप्त द्वितीय द्वारा शकों को पराजित करने से संबंधित है।

भट्ट नारायण

‘वेणीसंहार’

राजशेखर

‘कर्पूरमंजरी’, ‘विद्धशालभंजिका’ 

‘बाल रामायण’ 

कृष्णमिश्र

‘प्रबोध चंद्रोदय’

आर्यभट्ट

‘आर्यभट्टीयम्’

गुप्तकालीन विद्वान

वराहमिहिर

‘पंचसिद्धांतिका’ 

गुप्तकालीन विद्वान

वाग्भट्ट

‘अष्टांग हृदय’

(चिकित्सा शास्त्र पुस्तक)

नागसेन

मिलिन्दपण्हो

नागसेन एवं यवन शासक मिनांडर की चर्चा

नायाधम्मकहा

महावीर की शिक्षाओं का संग्रह

शिलप्पादिकारम्

इलंगोआदिगल

मदुरै नगर का सुंदर चित्रण किया गया है।

तमिल जनता के राष्ट्रीय काव्य का दर्जा प्राप्त है।

मणिमेखलै

सीतलै सतनार

माधवी से उत्पन्न मणिमेखलै तथा राजकुमार उदयन के प्रेम संबंधों की चर्चा

जीवक चिंतामणि

तिरुतक्कदेवर

इस महाकाव्य का नायक जैन मतानुयायी है।

जीवक चिंतामणि को ‘विवाह ग्रंथ’ के रूप में भी जाना जाता है।

तिरुक्कुरल

‘तमिल वेद’ के नाम से भी जाना जाता है। 

हाल

गाथासप्तशती

नाचणा सोमना

बुक्का प्रथम के राजकवि

‘उत्तर हरिवंशम्’

कृष्णदेव राय

अमुक्तमाल्यदा

अल्लासानी पेड्डाना

कृष्णदेव राय के राजदरबार में

मनुचरितम्’ तेलुगू ग्रंथ

पेड्डाना को ‘आंध्र कविता का पितामह’ कहा जाता है। 

तेनाली रामकृष्ण

‘पांडुरंग महात्म्यम’ 

तेलुगू ग्रंथ

राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष प्रथम

कविराज मार्ग

कन्नड़ भाषा में

अनदइया

‘मदन विजय’ 

‘कब्बिगार काव’

कन्नड़ भाषा

होन्नमा

हादिबदेय धर्म

कन्नड़

 

  • वैदिक काल के बाद संस्कृत के स्थान पर भारतीयों द्वारा बोली जाने वाली सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा –  पालि एवं प्राकृत 
  • बुद्ध ने अपने धर्म-प्रचार के लिये पालि भाषा को माध्यम बनाया। 
  • प्राचीनतम बौद्ध साहित्य त्रिपिटक की रचना पालि भाषा में की गई है। 
    • विनयपिटक – बौद्ध भिक्षुओं के दैनिक जीवन से संबंधित नियम
    • सुत्तपिटक – धर्म एवं नैतिकता से जुड़े प्रश्न एवं बुद्ध के प्रवचन 
    • अभिधम्म पिटक -नीतिशास्त्र एवं मनोविज्ञान से जुड़े प्रश्नों की चर्चा 
  • जातक कथाएँबुद्ध के पूर्वजन्म से संबंधित हैं। 
  • बौद्धों की गीता के नाम से प्रसिद्ध पुस्तक ‘धम्मपद’ का संबंध सुत्तपिटक से है। 

 

  • जैन तीर्थंकरों ने प्राकृत भाषा को अपने धर्मप्रचार का माध्यम बनाया। 
  • प्रारंभिक जैन साहित्य की रचना मागधी एवं अर्द्धमागधी प्राकृत में की गई है। 
  • जैनियों के धार्मिक साहित्य – ‘आगम’ 
    • जैन आगमों में 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6 छेद सूत्र, 4 मूल सूत्र की गणना की जाती है। 

 

  • द्रविड़ साहित्य में मुख्य रूप से 4 भाषाओं में लिखित साहित्य को शामिल किया जाता है। ये भाषाएँ हैं
    • तमिल भाषा
    • तेलुगू  भाषा
    • कन्नड़ भाषा
    • मलयालम भाषा
  • संगम साहित्य तमिल भाषा में लिखी गई पहली रचना है। 
    • संगम साहित्य से दक्षिण भारत के चोल, चेर एवं पांड्य राज्यों की जानकारी प्राप्त होती है।
    • संगम साहित्य को दो भागों में विभक्त किया जाता है
      • आगम् –  प्रेम संबंधी रचनाएँ
      • पुरम् – युद्ध विषयक रचनाएँ 
  • तमिल भाषा में रचे गए तीन महाकाव्य हैं
    • शिलप्पादिकारम्
    • मणिमेखलै 
    • जीवक चिंतामणि 
  • तेलुगू भाषा के कुछ शब्द सर्वप्रथम पहली सदी में हाल द्वारा रचित ‘गाथासप्तशती’ में मिलते हैं। 
  • तेलुगू भाषा को जनभाषा के रूप में लोकप्रिय बनाने का कार्य तेलुगू कवि नन्नाया द्वारा किया गया। 
  • तेलुगू साहित्य का स्वर्णकाल – विजयनगर साम्राज्य
  • विजयनगर शासक बुक्का प्रथम ने तेलुगू भाषा एवं साहित्य की पर्याप्त उन्नति के लिये तेलुगू कवियों को भूमि दान में दी। 
  • 10वीं शताब्दी के कन्नड़ भाषा के पंपा, पोन्न एवं रन्न को ‘रत्नत्रयी’ के नाम से जाना जाता है। 

 

  • आधुनिक मलयालम का पिता‘-  थुनचातु एझुथच्चन
  • मलयालम का जनकविकुंजन नांबियार

 

भक्तिकाव्य

  • प्रेम से परिपूर्ण काव्य है जिसमें भक्त अपने ईश्वर के प्रति प्रेम को पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका, नौकर-मालिक, माता-पिता व संतान के बीच के प्रेम के रूप में अभिव्यक्त करता है। 
  •  भक्ति साहित्य मूल रूप से संयोजनों का काव्य है अर्थात् सांसारिक जीवन जी रहे व्यक्तियों का ईश्वर के साथ तादात्म्य स्थापित करने का प्रयास। 

 

  • संस्कृत के संदर्भ में कबीर का कहना है कि- ‘संस्कृत एक स्थिर कूप के जल के समान है जबकि भाषा बहते पानी की तरह होनी चाहिये।’

 

  • 13वीं सदी में संत ज्ञानेश्वर मराठी भाषा के प्रसिद्ध कवि हुए 
  •  नरसी मेहता ने गुजराती भाषा में भक्तिपरक पदों की रचना की
  •  गुजराती कवि भालण ने रामायण, महाभारत तथा भागवत पुराण की पुरानी इतिवृत्तियों को लेकर अनेक काव्यों की रचना की। 
  • मध्ययुगीन गुजराती साहित्य के विकास में स्वामी नारायण संप्रदाय का उल्लेखनीय योगदान था। 
  • मध्यकाल में बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध कवि चंडीदास माने जाते हैं। 

 

बांग्ला लेखक 

रचना 

सम्बंधित तथ्य 

वृंदावन दास

चैतन्य भागवत

लोचनदास

चैतन्य मंगल

बंकिमचंद्र चटर्जी

दुर्गेश नंदिनी 

आनंदमठ

 

कबीर

  • कबीर एक प्रसिद्ध समाज सुधारक थे। 
  • उन्होंने अपनी रचनाओं में वर्णव्यवस्था का कठोर शब्दों में खंडन किया है। 

 

सूरदास

  • मध्यकाल में सूरदास कृष्णभक्ति धारा के प्रसिद्ध कवि हुए। 
  • रचना ‘सूरसागर’ 

 

मीराबाई 

 

  • मध्यकाल में पंजाबी भाषा के प्रमुख कवियों में सुल्तान शाहबाहु, शाह हुसैन एवं बुल्लेशाह का नाम उल्लेखनीय है। 
  • मध्यकाल के दौरान प्रसिद्ध असमी कवि शंकरदेव ने वैष्णव मत का प्रचार करने के लिये नाटकों एवं कीर्तन का प्रयोग किया। 
  • मध्यकाल में कश्मीर की प्रसिद्ध कवयित्रियों में लल्लेश्वरी एवं हब्बा खातून का नाम उल्लेखनीय है। उन्होंने अनेक सूक्तियों की रचना की जो आत्मिक अनुभव की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं।
  • तमिल भाषा की प्रसिद्ध कवयित्री – ओवैयर 
  • कन्नड़ भाषा की प्रसिद्ध कवयित्री – अक्का महादेवी 
  • पंजाबी भाषा में रचित प्रेम गाथाओं में वारिस शाह का ‘हीर-रांझा’ तथा कवि पिल्लू का मिर्जा साहिबान प्रमुख हैं। 

 

साहित्य का आधुनिक युग 

  • शुरुआत 1857 की क्रांति के आस-पास हुई। 
  • ब्रिटिश नागरिक विलियम केरी द्वारा बंगाल के सेरामपुर में मुद्रणालय स्थापित 
  • इस काल में बांग्ला भाषा के रंगलाल, उर्दू भाषा के मिर्ज़ा ग़ालिब तथा हिंदी भाषा के भारतेंदु हरिश्चंद्र प्रसिद्ध कवि हुए। 
  • भारतेंदु हरिश्चंद्र ने पत्रकारिता के क्षेत्र में ‘कविवचनसुधा‘ एवं ‘हरिश्चंद्र मैगज़ीन‘ की शुरुआत की। 
  • रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित कविताओं का संग्रह‘गीतांजलि’ को 1913 ई. में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया। 
  • हिंदी भाषा में स्वच्छंदतावादी कविता के युग को छायावाद, कन्नड़ भाषा में ‘नवोदय युग’ तथा ओडिया भाषा में ‘सबुज युग‘ कहा गया।
  • इस काल के गांधीवादी रचनाकारों का नाम
    •  हिंदी व उर्दू भाषा के प्रेमचंद
    •  मराठी भाषा के वी.एस. खांडेकर 
    • बांग्ला भाषा के ताराशंकर बंधोपाध्याय 
  • 1936 ई. में भारत में ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ की स्थापना हुई। 
  • हिंदी कविता का प्रगतिशील आंदोलन (1936–43 ई. के बीच) 
    • जिसे ‘प्रगतिवाद‘ के नाम से जाना गया। 
  • बांग्ला भाषा के माणिक बंधोपाध्याय मार्क्सवादी विचारधारा के प्रसिद्ध साहित्यकार हुए। 
  • मलयाली कथा साहित्य लेखक – वैक्कम मोहम्मद बशीर, एस.के. पोटेक्काट एवं शिवशंकर पिल्लै । 
  • मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित उर्दू के प्रमुख कवियों में जोश मलीहाबादी एवं फैज़ अहमद फैज़ प्रमुख हैं। 
  • 1850 ई. के आस-पास पारसी रंगशाला ने भारतीय पौराणिक इतिहास एवं दंतकथाओं पर आधारित नाटकों का मंचन आरंभ किया। 
  • हिंदी के प्रमुख नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कुल 17 नाटकों की रचना की। 
  • आद्य रंगाचार्य को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन  1972 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये कर्नाटक से थे।