18वीं शताब्दी में स्थापित नवीन स्वायत्त राज्य

18वीं शताब्दी के स्वतंत्र नवीन राज्य एवं उनके संस्थापक

स्वतंत्र राज्य

संस्थापक

केरल (त्रावणकोर) 

मार्तंड वर्मा 

कर्नाटक

सआदत उल्ला खाँ

मैसूर

हैदर अली,

हैदराबाद

निजाम-उल-मुल्क (चिनकिलिच खाँ)

मराठा 

बंगाल

मुर्शिद कुली खाँ

अवध

सआदत खाँ (बुरहान-उल-मुल्क)

रुहेलखंड 

अली मुहम्मद खाँ

पंजाब

भरतपुर के जाट राज्य

चूरामन (चूणामन) एवं बदन सिंह

 

हैदराबाद

  •  हैदराबाद के स्वतंत्र राज्य (आसफजाही वंश) का संस्थापक निज़ाम उल-मुल्क (चिनकिलिच खाँ) था। 
  • निजाम-उल-मुल्क, दक्कन में नियुक्त मुगलसूबेदार था। 
  • 1724 में उसने स्वतंत्र राज्य हैदराबाद की स्थापना की। 
  • 1724 में सकूरखेड़ा के युद्ध में निजाम-उल-मुल्क ने मुगल सूबेदार मुबारिज खाँ को पराजित किया। मुगल बादशाह मुहमद शाह  ने निज़ाम-उल-मुल्क को ‘दक्कन का वायसराय’ नियुक्त कर दिया और उसे आसफजाह की उपाधि प्रदान की। 
  •  उसने एक हिंदू पूरनचंद को अपना दीवान नियुक्त किया। 
  • निज़ाम-उल-मुल्क ने दक्कन में जागीरदारी प्रथा को अपनाया । 
  • 1748 में निज़ाम-उल-मुल्क की मृत्यु के बाद अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों की कूटनीति का शिकार बना।

 

कर्नाटक 

  • कर्नाटक के नायब मुगल सूबेदार को कर्नाटक का नवाब कहा जाता था। 
  • सआदतउल्ला खाँ नेकर्नाटककी स्थापना की।  ‘अर्काट को अपनी राजधानी बनाया।

आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष 

प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-1748)

द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-1754)

तृतीय कर्नाटक युद्ध (1758–1763) 

 

  • अंततः कर्नाटक के नवाब मुहम्मद अली और उनके उत्तराधिकारी पर ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेजली ने षड्यंत्रात्मक पत्राचार का आरोप लगाकर राजगद्दी का अधिकार छीन लिया।

 

बंगाल 

 

बंगाल के नवाब

मुर्शिद कुली खाँ

1717-1727 ई.

शुजाउद्दीन

1727-1739 ई

सरफ़राज खाँ 

1739-1740 ई.

अलीवर्दी खाँ

1740-1756 ई.

सिराजुद्दौला

1756-1757 ई. 

मीर जाफ़र

1757-1760 ई.

मीर कासिम

1760-1763 ई.

मीर जाफ़र (दूसरी बार)

1763-1765 ई.

नज्मुद्दौला 

1765-1766 ई

शैफ-उद्-दौला

1766-1770 ई.

 

  • स्वतंत्र बंगाल राज्य की स्थापना मुर्शिद कुली खाँ ने किया । 
  • फर्रुखसियर ने मुर्शिद कुली खाँ को 1717 में बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया, जिसने आगे चलकर स्वतंत्र बंगाल राज्य की नींव रखी। 
  • मुर्शिद कुली खाँ के शासन के दौरान केवल तीन विद्रोह हुए। 
    • पहला विद्रोह सीताराम राय, उदय नारायण और गुलाम मुहम्मद ने किया,
    • दूसरा शुजात खाँ ने 
    • तीसरा विद्रोह नजात खाँ का था। 
  • मुर्शिद कुली खाँ ने बंगाल की राजधानी ढाका के स्थान पर ‘मुर्शिदाबाद‘ को बनाया। 
  • उसने जागीर भूमि के एक बड़े हिस्से को ‘खालसा भूमि’ (प्रत्यक्ष रूप से बादशाह के नियंत्रण में रहने वाली भूमि) में बदल दिया 
  • ठेके पर भू-राजस्व वसूली की नई प्रणाली ‘इजारेदारी व्यवस्था’ की शुरुआत की। 
  • मुर्शिद कुली खाँ ने गरीब किसानों को ‘तकावी ऋण‘ प्रदान किया। 
  • 1727 में मुर्शिद कुली खाँ की मृत्यु के बाद उसका दामाद शुजाउद्दीन बंगाल का नवाब बना। 
  • शुजाउद्दीन के बाद उसका बेटा सरफराज खाँ (1739) बंगाल का नवाब बना। 
  • 1740 में बिहार के सूबेदार अलीवर्दी खाँ ने सरफराज खा को गिरिया (घेिरिया) के युद्ध में हराकर बंगाल के नवाब बना । इसने मुगल सम्राट का 2 करोड़ रुपये नज़राना देकर नवाब की स्वीकृति प्राप्त की। 
  • मराठों के हमलों से दबाव में आकर अलीवर्दी खाँ ने रघुजी से 1751 में मराठों से संधि की।
  • अलीवर्दी खाँ ने अंग्रेज़ों तथा फ्राँसीसियों को क्रमशः कलकत्ता और चंद्रनगर के किलेबंदी की अनुमति नहीं दी। 
  • अलीवर्दी खाँ ने यूरोपीयों को मधुमक्खियों की उपमा दी थी कि “यदि उन्हें न छेड़ा जाये तो वे शहद देंगी, किंतु छेड़ा जाये तो काट-काट कर मार डालेंगी।” 
  • 1756 में अलीवर्दी खाँ की मृत्यु के बाद उसका दौहित्र (पुत्री का पुत्र) सिराजुद्दौला नवाब बना।
  •  सिराजुद्दौला की मौसी घसीटी बेगम व पूर्णिया का नवाब शौकत जंग, सेनानायक मीर जाफ़र सिराजुद्दौला के प्रबल विरोधी थे। इन सभी ने सिराजुद्दौला के विरुद्ध प्लासी के युद्ध में अंग्रेज़ी सेना का साथ दिया। 
  • हॉलवेल के अनुसार सिराजुद्दौला के समय 20 जून, 1756 में ‘ब्लैक होल की घटना‘ हुई।, “नवाब ने एक छोटी सी कोठरी में 146 अंग्रेजों को बंद कर दिया, जिसमें से महज़ 23 अंग्रेज़ ही जिंदा बच पाए।” 
  • प्लासी के युद्ध -1757  
  • मीर जाफ़र को इतिहासकारों ने ‘क्लाइव के गीदड़’ की पदवी दी। 
  • बंगाल नवाब मीर कासिम (1760-63) ने बंगाल की राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थानांतरित की। 
  • मुंगेर में तोप व बंदूक का कारखाना स्थापित किया और सेना का पुनर्गठन किया। 

 

बक्सर के युद्ध –  22 अक्तूबर, 1764 को 

  • बंगाल के पूर्व नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना का अंग्रेज़ी सेना (नेतृत्व-हेक्टर मुनरो) से सामना हुआ। इसमें अंग्रेज़ों की विजय हुई। 
  • इलाहाबाद की संधि (1765) के द्वारा अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्रदान कर दी गई।

 

अवध 

 

  • सआदत खाँ

(1722 -1739)

  • सफदरजंग

(1739 -1754)

  • शुजाउद्दौला

(1754 -1775 )

  • आसफुद्दौला 

(1775-1797)

  • अंतिम नवाब वाजिद अली शाह

(1847-1856)

 

  • अवध का संस्थापक सआदत खाँ (बुरहान-उल-मुल्क) को माना जाता है। 
  •  सआदत खाँ ने भी 1723 में नया राजस्व बंदोबस्त (रेवेन्यू सेटलमेंट) लागू किया। 
  •  मुगल सम्राट मुहम्मद शाह से सआदत खाँ ने 7 हज़ार का मनसब और ‘बुरहान-उल-मुल्क‘ की उपाधि प्राप्त की थी। 
  • 1739 में मुगल सम्राट मुहम्मद शाह ने नादिर शाह से लड़ने के लिये सआदत खाँ को दिल्ली बुलाया। 
  • 1739 में सआदत खाँ की मृत्यु के बाद उसका भतीजा तथा दामाद सफदरजंग (अबुल मंसूर खाँ) अवध का नवाब बना। । 
  • सफदरजंग के समय अवध में लखनवी तहज़ीब विकसित हुई। 
  • सफदरजंग 1748 में मुगल बादशाह मुहम्मद शाह से वज़ीर का पद प्राप्त किया। इसी कारण सफदरजंग को ‘नवाब वज़ीर‘ के नाम से भी जाना जाता है। इसके साथ ही उसे इलाहाबाद का प्रांत भी दे दिया गया। 
  • 1754 में अवध में सफदरजंग मृत्यु हो गई, तत्पश्चात् उसका पुत्र – शुजाउद्दौला शासक बना, जिसने मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय (अली गौहर) को शरण दी। 
  • 1761 में लड़े गए पानीपत के तृतीय युद्ध में शुजाउद्दौला ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया। 
  • अंग्रेजों के विरुद्ध बक्सर के युद्ध (1764) में शुजाउद्दौला ने बंगाल के अपदस्थ नवाब मीर कासिम का साथ दिया। 
  • शुजाउद्दौला की मृत्यु के पश्चात् अवध का अगला नवाब आसफुद्दौला (1775-1797) हुआ। इसने अपनी राजधानी फैज़ाबाद से लखनऊ स्थानांतरित कर ली। लखनऊ में इसने एक ‘बड़ा इमामबाड़ा‘ बनवाया। 
  • अवध का अंतिम नवाब वाजिद अली शाह (1847-1856) था। 
  • इसी के कार्यकाल में लॉर्ड डलहौजी ने आउट्रम की रिपोर्ट (सरकारी रिपोर्ट) के आधार पर अवध पर कुप्रशासन का आरोप लगाकर 1856 में इसे अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया। 

 

मैसूर 

  • तालीकोटा के युद्ध(1565 ) के पश्चात् विजयनगर साम्राज्य का पतन के बाद मैसूर एक प्रमुख राज्य था। 
  • इस समय मैसूर पर वाड्यार वंश का शासन था। इस वंश का अंतिम शासक चिक्का कृष्णराज नाममात्र का शासक था। शासन की वास्तविक बागडोर दो मंत्रियों-नंजराज और देवराज के हाथों में थी। 
  • हैदर अली का जन्म 1721 में मैसूर के कोलार जिले में हुआ था। 
  • 1755 में डिंडीगुल’ के फौजदार के रूप में हैदर अली ने फ्रांसीसियों की सहायता से एक शस्त्रागार की स्थापना की। 
  • 1761 में हैदर अली ने नंजराज को हटाकर, यहाँ की सत्ता हथिया ली । 
  • हैदर की मृत्यु के बाद मैसूर की गद्दी पर टीपू सुल्तान बैठा था। 

 

केरल 

  • केरल में 4 प्रमुख राज्य थे- कालीकट, चिरक्कल, कोचीन तथा त्रावणकोर। 
  • त्रावणकोर राज्य की स्थापना राजा मार्तड वर्मा ने की  । 
  • उसने डचों को हराया (1741-Battle of Colachel) । 
  • मार्तड वर्मा का उत्तराधिकारी कार्तिक तिरुनल राम वर्मा हुआ। 
  • 18वीं शताब्दी में इस क्षेत्र में ‘मलयालम साहित्य’ का काफी विकास हुआ। 
  • इस काल में त्रावणकोर राज्य की राजधानी त्रिवेंद्रम (तिरुवनंतपुरम) संस्कृत के विद्वानों का प्रमुख केंद्र थी।

 

जाट 

  • भरतपुर के जाट राज्य की स्थापना चूरामन (चूणामन) एवं बदन सिंह द्वारा की गई थी। 
  • जाट नेता सूरजमल को ‘जाटों का अफलातून’ (प्लेटो) कहा जाता है।
  • 1763 में सूरजमल की मृत्यु के बाद जाट राज्य का पतन हो गया।

 

रुहेलखंड,UP 

  • रुहेलखंड की स्थापना अली मुहम्मद खाँ द्वारा की गई। 
  • इसकी पहली राजधानी आँवला (बरेली) थी तथा बाद में रामपुर इसकी राजधानी बनी। 
  • रुहेलों का अवध, दिल्ली और जाटों से लगातार संघर्ष होता रहा। 
  • रुहेलों के नेता हाफिज़ रहमत खाँ ने बाहरी आक्रमणों से रक्षा के लिये अवध के नवाब वज़ीर से संधि की और बदले में 40 लाख रुपये देने की बात की गई। 
  • 1773 में रुहेलखंड पर मराठों के आक्रमण के समय अवध के नवाब वजीर ने अंग्रेज़ी सेना की मदद से उन्हें भगा दिया और संधि के अनुसार रुहेलों से धनराशि मांगी। 
  • रुहेल नेता हाफिज़ रहमत खाँ द्वारा धनराशि न देने पर अवध ने अंग्रेजों के साथ मिलकर रुहेलों पर आक्रमण किया। 
  • मीरांपुरकटरा के युद्ध (अप्रैल 1774) में हाफिज़ रहमत खाँ मारा गया। 
  • रामपुर का इलाका छोड़कर समस्त क्षेत्र अवध के नवाब शुजाउद्दौला को दे दिया गया। 
  • हाफिज़ रहमत खाँ के बाद उसका पुत्र फैजुल्ला खाँ को रामपुर का शासक बना। 

 

पंजाब

  • मुगल काल में पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर थी।

सिखों के 10 गुरु 

सिख गुरु

संबंधित तथ्य

1. गुरु नानक

(1469-1539 

  • सिख धर्म के संस्थापक

2. गुरु अंगद 

(1539-1552)

3.गुरु अमरदास

(1552-1574)

  • लंगर प्रथा को स्थायी बनाया, 
  • मंझी प्रथा का विस्तार
  •  सती प्रथा का विरोध

4.गुरु रामदास

(1574-1581)

  • अकबर के समकालीन
  • अमृतसर शहर बसाया

5.गुरु अर्जुन देव

 ( 1581-1606

  • आदिग्रंथ का संकलन, 
  • तरनतारन तथा/करतारपुर नामक शहर बसाया, 
  • जहाँगीर द्वारा इनकी हत्या कराई गई

6.गुरु हरगोबिंद

(1606-1645)

  • अमृतसर नगर में अकाल तख्त की स्थापना
  • सिखों को लड़ाकू कौम में बदला, 
  • कश्मीर में कीरतपुरा नगर बसाया 

7.गुरु हर राय

(1645-1661)

  • दारा शिकोह से अच्छे संबंध, 
  • शांत एवं एकांत जीवन व्यतीत किया 

8.गुरु हरकिशन

(1661-1664)

9.गुरु तेगबहादुर 

(1664-1675)

  • आनंदपुर साहिब की स्थापना,
  • हिंदू धर्म के प्रबल समर्थक, 
  • औरंगज़ेब द्वारा हत्या 

10.गुरु गोबिंद सिंह

(1675-1708)

  • खालसा पंथ की स्थापना, 
  • सिखों में ‘पाहुल प्रथा’ की शुरुआत, 
  • औरंगजेब से निरंतर संघर्ष, 
  • सिखों 1675-1108 के अंतिम गुरु, 
  • जफ़रनामा (फारसी) की रचना

 

  • सिखों के दसवें एवं अंतिम गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु के सिद्धांत को खत्म कर ‘खालसा पंथ’ की स्थापना की, जिसके कारण सिखों को केश, कंघा, कृपाण, कड़ा, कच्छा (पाँच ककार या पाँच कक्के) धारण करना होता है। 
  • गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु के पश्चात् गुरु की परंपरा समाप्त हो गई

बंदा बहादुर

  • इसके बाद बंदा बहादुर ने सिखों का नेतृत्व संभाला। 
  • बंदा बहादुर जिनके बचपन का नाम ‘लक्ष्मणदेव‘ था। बंदा बहादुर को लोग  ‘सच्चा  बादशाह‘ कहते थे  । 
  • 1716 में फर्रुखसियर ने बंदा बहादुर की उसके पुत्र समेत हत्या करवा दी। 

फैजलपुर के कपूर सिंह

  • फैजलपुर के कपूर सिंह के नेतृत्व में पुनः पंजाब के सिख कृषकों ‘दल खालसा’ के रूप में अस्तित्व में आये । 
  • कपूर सिंह की मृत्यु के बाद इसका नेतृत्व ‘जस्सा सिंह अहलूवालिया‘ ने संभाला। 

जस्सा सिंह अहलूवालिया

  • जस्सा सिंह के नेतृत्व में ही सिख 12 स्वतंत्र मिसलों में संगठित हुए । 
  • 1753 में ‘दल खालसा’ ने बाहरी आक्रमणों से रक्षा के लिये ‘राखी प्रथा’ आरंभ की। 
  •  ‘सुरक्षा के बदले  प्रत्येक गाँव से उपज का 1/5 भाग लिया जाता था। 
  • रणजीत सिंह  ‘सुकरचकिया मिसल‘ से थे । इन्हे ‘शेर-ए-पजांब कहा जाता हैं। 

 

मराठा 

 

मराठा पेशवा की सूची

बालाजी विश्वनाथ

(1713-20 ई.). 

बाजीराव प्रथम 

(1720-40 ई.) 

बालाजी बाजीराव

(1740-61  ई.)

माधव राव 

(1761- 72 ई.)

नारायण राव 

(1772-73 ई.)

रघुनाथ राव 

1773

माधव नारायण राव

(1774-95 ई.)

बाजीराव द्वितीय 

(1795-1851 ई.)

नाना  साहब (धोंधू पंत )

(1851- 58ई.)

 

बाजीराव प्रथम (1720-40)

  • इसके बाद उसका पुत्र बाजीराव प्रथम पेशवा बना।  
  • शिवाजी के पश्चात् गुरिल्ला युद्ध पद्धति का सबसे बड़ा प्रतिपादक था। 
  • इसने पुर्तगालियों से सालसेट एवं बसीन पर कब्जा कर लिया।
  • बाजीराव प्रथम ने मुगलों के लिए कहा कि, “हमें जर्जर वृक्ष के तने पर प्रहार करना चाहिये, शाखाएँ तो अपने आप गिर जाएंगी।” 
  • अंतत: 1740 में इसकी मृत्यु हो गई। 
  • बाजीराव की मृत्यु तक मराठों ने मालवा, गुजरात और बुंदेलखंड के हिस्सों पर अधिकार कर लिया था। 

बालाजी बाजीराव(1740-61)

पानीपत के तृतीय युद्ध 

  • 1757 में मुगलों द्वारा मराठों के सहयोग से अहमदशाह अब्दाली के प्रतिनिधि नजीवुद्दौला को मीर बख्शी के पद से तथा पंजाब में अब्दाली के पुत्र राजकुमार तैमूर को अपदस्थ करने के कारण पानीपत के तृतीय युद्ध हुआ । 
  • 14 जनवरी, 1761 में हुए पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठा सेना का नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ ने किया। 
  • मंराठों की तोप टुकड़ी का प्रमुख इब्राहिम गार्दी था। 
  • पानीपत के तृतीय युद्ध में अहमदशाह अब्दाली ने सदाशिव राव भाऊ के नेतृत्व वाले मराठों को परास्त किया। 
  • पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ और विश्वास राव दोनों मारे गए और पेशवा को इसकी सूचना इस रूप में दी गई- “युद्ध में दो मोती विलीन हो गए ।” 
  • पराजय को बालाजी बाजीराव सहन नहीं कर सका और 1761 में उसकी मृत्यु हो गई। 
  • पानीपत के तृतीय युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी वर्णन काशीराज पंडित ने किया। 

 

माधव राव (1761-72)

  • माधव राव (1761-72) 17 वर्ष की उम्र में पेशवा बना। 
  • 1771 में मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय को दिल्ली की गद्दी पर पुनः बैठाया । 
  • मुगल बादशाह अब मराठों का पेंशनभोगी बन गया। 
  • 1772 में माधव राव का क्षय रोग से निधन हो गया। 
  • ग्रांट डफ के अनुसार- “पानीपत का युद्ध मराठा साम्राज्य के लिये इतना हानिकारक सिद्ध नहीं हुआ, जितना कि इस श्रेष्ठ शासक का असामयिक देहांत हानिकारक रहा।” 
  • उसकी मृत्यु के बाद पुणे में बालाजी बाजीराव के छोटे भाई रघुनाथ राव और माधवराव के छोटे भाई नारायण राव के मध्य सत्ता के लिये संघर्ष आरंभ हो गया। 

नारायण राव (1772-73)

माधव नारायण राव(1774-96)

  • माधव नारायण राव को ‘बारा भाई परिषद्’ ने संरक्षण प्रदान किया। इस परिषद् में नाना फड़नवीस प्रमुख थे। 
  • इसी के कालं में प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782) हुआ। 
  • इस समय उत्तर के मराठा शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली महादजी सिंधिया थे। उसने आगरा के पास शस्त्र निर्माण के कारखाने स्थापित किये। 
  • महादजी की सलाह पर ही मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय ने पेशवा को ‘नायब-ए-गुनायब’ बनाया। 
  • माधव नारायण राव ने 1796 में  आत्महत्या कर ली। 
  • इसी बीच अनेक मराठा सरदारों ने अर्द्ध-स्वतंत्र राज्य बना लिये, जिसमें प्रमुख थे- 
    • बड़ौदा के गायकवाड़ 
    • इंदौर के होल्कर 
    • नागपुर के भोंसले 
    • ग्वालियर के सिंधिया 

बाजीराव द्वितीय(1796-1818)

  • माधव राव नारायण के पश्चात् रघुनाथ राव का पुत्र बाजीराव द्वितीय पेशवा बना। 
  • 1802 में बाजीराव द्वितीय से अंग्रेज़ों ने ‘बसीन की संधि’ की। इस संधि के कारण पेशवा कंपनी के प्रभुत्व में आ गया। 
  • बाजीराव द्वितीय के समय द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1805) हुआ। 
  • द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध में अंग्रेजों की विजय हुई। 
  • तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1816-1819) में भी मराठा हार गए। इसके बाद पेशवा का पद हमेशा के लिये समाप्त हो गया। बाजीराव द्वितीय को अंग्रेज़ों ने वार्षिक पेंशन देकर कानपुर के निकट बिठूर भेज दिया। 
  • 1851 में बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने उसके पुत्र नाना साहब (धोंधू पंत) को पेंशन देने से इनकार कर दिया। 
  • नाना साहब ने 1857 के विद्रोह में भाग लिया। अंग्रेजों द्वारा दमन प्रक्रिया आरंभ होने पर वह नेपाल भाग गया।