झारखण्ड का मुण्डा राज
छोटानागपुर खास का नाग वंश
झारखण्ड का मुण्डा राज
झारखण्ड की जनजातियों में सर्वप्रथम राज्य निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ - मुण्डाओं ने
झारखण्ड में राज्य निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने का श्रेय - रिता मुण्डा/ऋषा मुण्डा
मुण्डाओं का प्रथम शासक - सुतिया पाहन
सुतिया पाहन के नाम पर झारखण्ड का नाम सुतिया नागखण्ड पड़ा।
सुतिया नागखण्ड राज्य में गढ़ों की संख्या - सात
सुतिया नागखण्ड राज्य में परगना की संख्या - 21
सात गढ़ों के नाम इस प्रकार हैं:
1. पालुनगढ़-पलामू
2. हजारीबाग-हजारीबाग
3. मानगढ़-मानभूम
4. सिंहगढ़ - सिंहभूम
5. सुरगुमगढ़ - सुरगुजा
6. लोहागढ़- लोहरदगा
7. केसलगढ़-केसलगढ़
सुतिया नागखण्ड राज्य का अंतिम राजा - मदरा मुण्डा
छोटानागपुर खास का नाग वंश
मुण्डा राज के बाद नाग वंश द्वारा अपना राज्य स्थापित किया गया।
नाग वंश के प्रमुख शासक
फणी मुकुट राय
मुकुट राय
मदन राय
प्रताप राय
भीम कर्ण ( 1095-1184 ई.)
शिवदास कर्ण
प्रताप कर्ण (1451-1469 ई.)
छत्र कर्ण (1469-1496 ई.)
विराट कर्ण
रामशाह ( 1690-1715 ई.)
यदुनाथ शाह ( 1715-24 ई.)
शिवनाथ शाह (1724-33 ई.)
उदयनाथ शाह (1733-40 ई.)
श्यामसुंदर शाह (1740-45 ई.)
फणी मुकुट राय
नागवंशी राज्य की स्थापना - 64 ई. में (10वीं सदी ई. में - जे. रीड के अनुसार )
नागवंशी राज्य का संस्थापक - फणी मुकुट राय
नागवंशी राज्य का प्रथम राजधानी - सुतियाम्बे
नाग वंश का 'आदि पुरूष' - फणी मुकुट राय को
फणी मुकुट राय का राज्य 66 परगना में विभाजित था।
फणी मुकुट राय ने सुतियाम्बे में एक सूर्य मंदिर का निर्माण कराया।
फणी मुकुट राय ने अपने राज्य में गैर-आदिवासियों को भी आश्रय दिया
दीवान - भवराय श्रीवास्तव (गैर-आदिवासि )
फणी मुकुट राय की हत्या - बाघदेव सिंह ने
प्रताप राय
प्रताप राय के शासनकाल में पलामू किला का निर्माण कराया गया था।
प्रताप राय ने अपनी राजधानी सुतियाम्बे से चुटिया को बनाया
भीम कर्ण ( 1095-1184 ई.)
कर्ण की उपाधि धारण करनेवाला प्रथम नागवंशी शासक - भीम कर्ण
बरवा की लड़ाई
भीम कर्ण एवं सरगुजा के हैहयवंशी रक्सेल राजा- के बीच
रक्सेल राजा पराजित हुआ था ।
भीम कर्ण ने बरवा तथा टोरी (वर्तमान लातेहार जिले में स्थित) पर कब्जा कर लिया।
भीम कर्ण को वासुदेव की एक मूर्ति भी प्राप्त हुयी।
इस लड़ाई में विजय के बाद नागवंशियों का राज्य गढ़वाल राज्य की सीमा तक विस्तारित हो गया।
भीम कर्ण ने भीम सागर का निर्माण कराया।
भीम कर्ण ने 1122 ई. में अपनी राजधानी चुटिया से खुखरा स्थानांतरित कर दी।
शिवदास कर्ण
हापामुनि मंदिर,घाघरा,गुमला की स्थापना - 1401 ई. में ,शिवदास कर्ण ने
शिवदास कर्ण ने मंदिर में सियानाथ देव से भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करवाई।
सियानाथ देव एक मराठा ब्राह्मण थे।
प्रताप कर्ण (1451-1469 ई.)
सल्तनत काल के लोदी वंश के समकालीन नागवंशी राजा
प्रताप कर्ण, छत्र कर्ण एवं विराट कर्ण
इसके समय नागवंशी राज्य घटवार राजाओं के विद्रोह से त्रस्त था।
इसके समय तमाड़ के राजा ने नागवंशी राज्य पर आक्रमण कर प्रताप कर्ण को किले में बंदी बना दिया।
प्रताप कर्ण को इस बंदी से मुक्ति खैरागढ़ के खरवार राजा बाघदेव की सहायता से मिली ।
बाघदेव ने तमाड़ के राजा को पराजित किया
बाघदेव को कर्णपुरा का क्षेत्र पुरस्कार के रूप में मिला।
छत्र कर्ण (1469-1496 ई.)
लोदी वंश के समकालीन राजा
छत्र कर्ण के काल में विष्णु की मूर्ति कोराम्बे में स्थापित की गयी।
इसी मूर्ति से प्रभावित होकर चैतन्य महाप्रभु मथुरा जाते समय 16वीं सदी के आरंभ में पंचपरगना क्षेत्र में रूके थे।
इन्होनें चैतन्य चरितामृत में झारखण्ड का वर्णन किया है।
चैतन्य महाप्रभु ने संथाल परगना के कई गांवों में ठाकुरबाड़ी की स्थापना की थी।
चैतन्य महाप्रभु ने झारखण्ड में वैष्णव मत का प्रचार-प्रसार किया।
रामशाह ( 1690-1715 ई.)
मुगल शासक बहादुर शाह प्रथम के समकालीन
यदुनाथ शाह ( 1715-24 ई.)
यह राम शाह के बाद नागवंशी शासक बना।
यदुनाथ शाह फरूर्खशियर के समकालीन
बिहार के मुगल सूबेदार सरबुलंद खाँ ने 1717 ई. में यदुनाथ शाह पर आक्रमण कर दिया
यदुनाथ शाह पर मालगुजारी तय - 1 लाख रूपये
यदुनाथ शाह ने अपनी राजधानी दोइसा से पालकोट स्थानांतरित कर दी।
1719-22 ई. तक टोरी परगना पर पलामू के चेरो राजा रणजीत राय का कब्जा रहा।
शिवनाथ शाह (1724-33 ई.)
यदुनाथ शाह का उत्तराधिकारी
बिहार के सूबेदार फखरूद्दौला ने छोटानागपुर पर आक्रमण - 1730 ई. में किया।
शिवनाथ शाह ने फखरूद्दौला को 12,000 रूपये मालगुजारी देना स्वीकार किया।
उदयनाथ शाह (1733-40 ई.)
शिवनाथ शाह का उत्तराधिकारी
इसके समय बिहार का मुगल सूबेदार अलीवर्दी खाँ वार्षिक मालगुजारी वसूलता था।
टेकारी के जमींदार सुंदर सिंह से
रामगढ़ के शासक विष्णु सिंह से
नागवंशी शासक उदयनाथ शाह, रामगढ़ के शासक विष्णु सिंह के माध्यम से ही अलीवर्दी खाँ को मालगुजारी का भुगतान करता था।
श्यामसुंदर शाह (1740-45 ई.)
उदयनाथ शाह का उत्तराधिकारी
इसके शासनकाल में बंगाल पर आक्रमण करने हेतु मराठों द्वारा झारखण्ड का प्रयोग
1742 ई. में भास्कर राव पंडित ने बंगाल पर आक्रमण
1743 ई. में मराठा रघुजी भोंसले ने भी बंगाल पर आक्रमण
अलीवर्दी खां ने मराठा पेशवा - बालाजी राव को शिकायत की।
इस शिकायत पर पेशवा बालाजी राव राजमहल के वामनागाँव होते हुए बंगाल पहुंचा
जिसकी खबर पाकर रघुजी भोंसले मानभूम (धनबाद) होकर वापस अपने राज्य लौट गया।
मराठों द्वारा बार-बार बंगाल पर आक्रमण हेतु झारखण्ड का प्रयोग करने से झारखण्ड से मुगलों का प्रभाव समाप्त हो गया
मराठों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
झारखण्ड क्षेत्र पर रघुजी भोंसले का प्रभाव स्थापित
31 अगस्त, 1743 को पेशवा बालाजी राव व रघुजी भोंसले के बीच हुए एक समझौते के अनुसार
नागवंशी शासक से सम्बंधित अन्य तथ्य
1498 ई. में संध्या के राजा द्वारा नागवंशी राज्य पर आक्रमण
नागवंशी राजा ने खैरागढ़ के राजा लक्ष्मीनिधि कर्ण की सहायता ली ।
शरणनाथ शाह के समय जमींदारी प्रथा का उन्मूलन कर दिया गया था।
ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव
बड़कागढ़ के ठाकुर महाराज रामशाह के चौथे पुत्र थे।
इन्होनें अपनी राजधानी डोयसागढ़ से स्वर्णरेखा नदी के नजदीक सतरंजी में स्थापित की थी।
1691 ई. में राँची में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण - ऐनीनाथ शाहदेव ने
हटिया बाजार को बसाया था।
ठाकुर ऐनीनाथ शाह की पाँच पत्नियाँ तथा 21 पुत्र थे (उल्लेख -नागवंशावली में )
नागवंशी शासक मणिनाथ शाह
इसने सिल्ली, बुंडू, तमाड़, बरवा आदि के स्थानीय जमींदारों का दमन किया ।