सरदारी आंदोलन (1858-1895)
Sardari Aandolan
JHARKHAND GK
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अलग-अलग उद्देश्यों के आधार पर इस आंदोलन के तीन चरण
प्रथम चरण भूमि आंदोलन के रूप में (1858-81 ई)
द्वितीय चरण पुनर्स्थापना आंदोलन के रूप में (1881-90 ई.)
तीसरा चरण राजनैतिक आंदोलन के रूप में (1890-95 ई.)
'मुल्की व मिल्की (मातृभूमि व जमीन) का आंदोलन'
आंदोलन कोल सरदारों ने किया था
उराँव व मुण्डा जनजाति का समर्थन मिला
प्रथम चरण (1858-81 ई.)
भूमि आंदोलन
उद्देश्य - हड़पी गयी भूमि को वापस लेना
आंदोलन शुरू - छोटानागपुर खास से
प्रमुख केन्द्र - दोइसा, खुखरा, सोनपुर और वसिया
परिणाम
सरकार द्वारा भुईहरी (उराँवों की जमीन) काश्त का सर्वेक्षण
सर्वेक्षण का नेतृत्व - लाल लोकनाथ
छोटानागपुर टेन्यूर्स एक्ट 1869 ई. लागू (भूमि की पुनः वापसी हेतु)
भुईहरी भूमि (उराँवों की जमीन)
मंझियस भूमि (जमींदारों की भूमि)
बंदोबस्ती का प्रावधान नहीं
राजहंस (राजाओं की जमीन)
कोड़कर (सदानों की जमीन)
खूंटकट्टी (मुण्डाओं की जमीन)
द्वितीय चरण (1881-90 ई.)
पुनर्स्थापना आंदोलन
पारंपरिक मूल्यों को फिर से स्थापित करना
तृतीय चरण ( 1890-95 ई.)
स्वरूप - राजनैतिक
बाद में सरदारी आंदोलन का विलय बिरसा आंदोलन में हो गया।