- वायुमंडल विभिन्न प्रकार की गैसों का असमांगी मिश्रण (heterogeneous mixture) है।
- वायुमंडल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी से संबद्ध रहता है।
- वायुमंडल सौर विकिरण (solar radiation) की लघु तरंगों (short waves) के लिये पारदर्शी (transparent) जबकि पार्थिव विकिरण (terrestrial radiation) की दीर्घ तरंगों (long waves) के लिये अपारदर्शी (Opaque) का कार्य करता है।
- वायुमंडल पृथ्वी पर जीवन योग्य औसत तापमान (15°C) बनाए रखता है।
- वायुमंडल में उपस्थित ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी सौर्थिक विकिरण तरंगों का अवशोषण करती है तथा धरातल को अत्यधिक गर्म होने से बचाती है।
- वायुमंडल पृथ्वी के ‘ऊष्मा बजट’ को संतुलित करता है।
- पृथ्वी की सभी मौसमी एवं जलवायविक प्रक्रिया वायुमंडल के द्वारा नियंत्रित, प्रभावित एवं संचालित होती है।
वायुमंडल का संघटन (Composition of the Atmosphere)
वायुमंडल का निर्माण तीन आधारभूत तत्त्वों से मिलकर हुआ है
- गैस
- जलवाष्प
- एयरोसॉल
गैस
पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से दो प्रकार की गैसें पाई जाती हैं
- 1.स्थायी प्रकार की गैसें
- अनुपात वायुमंडल में स्थायी हैं
- नाइट्रोजन, ऑक्सीजन तथा आर्गन
- 2.अस्थायी प्रकृति की गैसें
- अनुपात वायुमंडल में परिवर्तनशील हैं
- जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, ओज़ोन, हाइड्रोजन, हीलियम, जेनॉन, मीथेन इत्यादि
- प्रमुख हरितगृह गैसें(greenhouse gases) – कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, धरातलीय ओज़ोन, जलवाष्प एवं मीथेन
- ओज़ोन परिवर्तनीय गैसें(ozone convertible gases) – जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड
- वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा 0 – 4 प्रतिशत होती है।
नाइट्रोजन (N)
- वायुमंडल में सर्वाधिक मात्रा में (78%) नाइट्रोजन पाई जाती है।
- नाइट्रोजन का मुख्य कार्य ऑक्सीजन को मंद करके दहन को नियंत्रित करना है।
- नाइट्रोजन से ‘प्रोटीन’ (एमिनो एसिड) का निर्माण होता है ।
- वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण – लेग्यूमिनस पौधे तथा शैवाल आदि करती हैं।
वायुमंडल में नाइट्रोजन के प्रकार
- N2O – नाइट्रस ऑक्साइड्स
- NO- नाइट्रिक ऑक्साइड्स
- N2- आणविक नाइट्रोजन
- NO2– नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
- NH3– अमोनिया
- NH – एमिनो
- HNO2– नाइट्रस अम्ल
ऑक्सीजन (O2 )
- मात्रा – 21 प्रतिशत
- ऑक्सीजन का निर्माण हरे पेड़-पौधों के द्वारा प्रकाश संश्लेषण क्रिया तथा खनिज ऑक्साइडों के अपचयन (Reduction) से होता है।
- पृथ्वी पर ‘दहन’ (Combustion) की क्रिया ऑक्सीजन के बिना असंभव है।
आर्गन (Ar)
- वायुमंडल में अक्रिय गैसों (inert gases) की सर्वाधिक मात्रा -‘आर्गन’
- वायुमंडलीय गैसों में आर्गन की मात्रा 0.93 प्रतिशत है।
- यह एक भारी प्रवृत्ति की गैस है, जिस कारण यह वायुमंडल की निचली परत में पाई जाती है।
अक्रिय गैसें(inert gases)
- ये आवर्त सारणी के शून्य वर्ग के तत्त्व हैं।
- शून्य वर्ग के तत्त्व रासायनिक दृष्टि से निष्क्रिय(inactive) होते हैं।
- हीलियम (He), निऑन (Ne), आर्गन (Ar), क्रिप्टान (Kr), जेनान (Xe) तथा रेडॉन (Rn) अक्रिय गस है।
- रेडॉन को छोड़कर अन्य सभी गैसें वायुमंडल में पाई जाती हैं।
- इनका उपयोग विद्युत बल्बों के निर्माण में किया जाता है।
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2 )
- कुल मात्रा – 0.038 प्रतिशत
- यह एक भारी गैस है ।
- यह प्रकाश संश्लेषण के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण गैस है।
- यह सौर्यिक विकिरण के लिये पारदर्शी होती है, परंतु पृथ्वी के बहिर्गामी पार्थिव विकिरण के लिये अपारदर्शी अर्थात् अवरोधक का कार्य करती है।
- अतः वायुमंडल में CO2 की मात्रा में जैसे-जैसे वृद्धि होगी वैसे-वैसे पृथ्वी के तापमान में भी वृद्धि होगी।
- वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को नियंत्रित करने के लिये सम्मेलन
- ‘क्योटो प्रोटोकॉल’ (1997)
- पेरिस जलवायु सम्मेलन (2015)
ओज़ोन (O3 )
- ओज़ोन गैस ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं (O3 ) से मिलकर बनी है।
- यह तीखी गंध वाली अस्थायी गैस है, जिसका निर्माण ऊपरी वायुमंडल में होता है।
- ओज़ोन समतापमंडल व क्षोभमंडल में पाई जाती है।
- इसका संकेंद्रण 10 से 50 किमी. के मध्य होता है।
- समतापमंडल की निचली परत में यह सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर पृथ्वी की सतह पर पहुंचने से रोकती है।
- भूमध्य रेखीय वायुमंडलीय क्षेत्र से ध्रुवीय वायुमंडलीय क्षेत्र की ओर जाने पर ओजोन परत की मोटाई में कमी आती है।
- ओजोन परत क्षरण का कारण
- जेट वायुयानों से निकलने वाले ‘नाइट्रस ऑक्साइड’
- एयरकंडीशनर, रेफ्रिजरेटर से निकलने वाले ‘क्लोरो फ्लोरो कार्बन’ (CFC) गैस
- इसके क्षरण से चर्म कैंसर, आनुवंशिक विकार हो सकता है।
- ओजोन छिद्र की खोज
- 1984 में
- जोसफ फारमैन, बी. गार्डिनर तथा जे. शंकलीन द्वारा
- अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर
- ओज़ोन क्षरण को रोकने के लिये प्रयास
- ‘मॉण्ट्रियल प्रोटोकॉल’ (1987)
- ‘किगाली समझौते’ (2016)
- 16 सितंबर – ‘विश्व ओज़ोन दिवस’
- वायुमंडल में ओज़ोन परत की मोटाई ‘डॉब्सन’ में मापी जाती है।
जलवाष्य (Water Vapour)
- जलवाष्प पानी की गैसीय अवस्था है।
- यह कार्बन डाइऑक्साइड की तरह हरितगृह प्रभाव वाली गैस है।
- यह पृथ्वी के लिये ‘कंबल’ का कार्य करती है तथा पृथ्वी को न तो अधिक गर्म और न ही अधिक ठण्डा होने देती है।
- यह समस्त ‘मौसमी परिघटनाओं’ के लिये उत्तरदायी गैस है।
- जलवाष्प के कारण ही ओस, कोहरा, बादल आदि बनते हैं और वृष्टि (वर्षा) होती है।
- इंद्रधनुष तथा प्रभामंडल (Halo) जैसे आकाशीय दृश्य भी जलवाष्प के कारण ही दिखाई देते हैं।
- वायुमंडल में जलवाष्प का संतुलन ‘जल चक्र’ के माध्यम से होता है।
एयरोसॉल (Aerosols)
- वायुमंडल में निलंबित कणकीय पदार्थ तथा तरल बूंदों के सम्मिलित रूप को ‘एयरोसॉल’ कहा जाता है। इसके अंतर्गत, धूलकण, राख, कालिख, परागकण, नमक, जैविक पदार्थ (बैक्टीरिया) इत्यादि आते हैं।
- यह एक परिवर्तनशील प्रकृति का तत्त्व है, जिसकी मात्रा विभिन्न कारणों से घटती-बढ़ती रहती है।
- इसकी मात्रा वायुमंडल में नीचे से ऊपर की ओर जाने पर घटती जाती है।
- ऊपरी वायुमंडल में एयरोसॉल की उपस्थिति मुख्यतः उल्काओं के विघटन, ज्वालामुखी उद्भेदन तथा प्रचंड आंधियों इत्यादि के फलस्वरूप होती है।
- इसके कारण ही सूर्य से आने वाले प्रकाश का ‘वर्णात्मक प्रकीर्णन’ होता है, जिससे कई प्रकार के नयनाभिराम (Picturesque) आकाशीय रंगों का आविर्भाव होता है।
- एयरोसॉल अथवा धूलकण आर्द्रताग्राही नाभिक की तरह कार्य करते हैं, जिसके चारों ओर जलवाष्प संघनित होकर बादलों का निर्माण करते हैं। जब वायुमंडल में उपस्थित एयरोसॉल का संपर्क सल्फर डाइऑक्साइड (SO2 ) जैसी गैसों से हो जाता है तो ‘धूम कोहरे’ (Smog) का निर्माण होता है।
वायुमंडल की संरचना (Structure of Atmosphere)
- वैज्ञानिक उपकरणों (रेडियोसॉण्डे, रविसॉण्डे, रडार, उपग्रह, रॉकेट, सेंसर आदि) की सहायता से वायुमंडल की ऊँचाई का 16 से 29 हज़ार किमी. तक का अध्ययन किया गया है
- ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ वायुमंडल का घनत्व घटता जाता है।
- वायुमंडल की परतीय संरचनाओं की विशेषताओं के आधार पर इसको दो भागों में विभाजित किया गया है
- 1. तापीय विशेषता के आधार पर
- 2. रासायनिक विशेषता के आधार पर
तापीय विशेषता के आधार पर वर्गीकरण
- क्षोभमंडल (Troposphere)
- समताप मंडल (stratosphere )
- मध्यं मंडल (mesosphere)
- तापमंडल (thermosphere)
- आयन मंडल (Ionosphere )
- बहिर्मंडल (Exosphere)
क्षोभमंडल (Troposphere)
- वायुमंडल की सबसे निचली परत को ‘संवहन मंडल’, ‘परिवर्तन मंडल’ अथवा ‘क्षोभमंडल’ की संज्ञा दी जाती है। इसको ‘विक्षोभ मंडल’ भी कहा जाता है।
- इस परत का ‘ट्रोपोस्फीयर’ के रूप में नामकरण ‘टीजरेंस डी बोर्ट’ ने किया था।
- इसकी औसत ऊँचाई सतह से लगभग 13 किमी. है। यह ध्रुवों के निकट 8 किमी. तथा विषुवत् वृत्त पर 18 किमी. तक की ऊँचाई तक विस्तृत है।
- क्षोभमंडल की मोटाई विषुवत् वृत्त पर सबसे अधिक है, क्योंकि तेज़ वायु प्रवाह के कारण ताप का अधिक ऊँचाई तक संवहन होता है। क्षोभमंडल पारिस्थितिकी मौसम एवं जलवायु की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मौसम संबंधी सभी घटनाएँ यथा वाष्पीकरण, संघनन, वर्षण, कोहरा, बादल, ओस, पाला, हिम वर्षा, ओलावृष्टि, जलवर्षा, बादलों की गरज, तड़ितझंझा, चक्रवात इत्यादि इसी में घटित होते हैं।
- वायमंडल के समस्त गैसीय द्रव्यमान का लगभग 75 प्रतिशत क्षोभमंडल में ही केंद्रित है।
- क्षोभमंडल में बढ़ती ऊँचाई के साथ प्रति 1,000 मीटर पर 6.5° सेल्सियस की दर से या प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर वायुमंडल का तापमान 1° सेल्सियस की दर से घटता जाता है। तापमान में गिरावट की इस दर को ‘सामान्य पतन या ह्रास दर’ (Normal Lapse Rate) कहते हैं।
- ऊँचाई के साथ तापमान में यह कमी गैसों के घनत्व, वायुदाब एवं कणकीय पदार्थों की कमी के कारण होती है।
- क्षोभमंडल को दो मंडलों में विभाजित किया जाता है- निचली परत और ऊपरी परत।
- निचली परत को ‘घर्षण परत’ कहते हैं, जिसकी ऊँचाई 1 से 3 किमी. तक होती है। इसको घर्षण परत कहने का मुख्य कारण धरातलीय सतह द्वारा हवाओं की दिशा एवं गति में अवरोध उत्पन्न करना है।
- निचले क्षोभमंडल में ‘तापीय प्रतिलोमन) की परिघटना घटित होती है।
- ऊपरी परत धरातलीय घर्षण से अधिक प्रभावित नहीं होती है। यह द्वितीयक वायुमंडलीय संचरण, यथा-चक्रवात, प्रति-चक्रवात जैसे कारकों द्वारा प्रभावित होती हैं।
- क्षोभमंडल में ही ‘जेट स्ट्रीम’ धाराएँ प्रवाहित होती हैं।
- ग्रीष्मकाल में क्षोभमंडल की ऊँचाई बढ़ जाती है तथा शीतकाल में घट जाती है। क्षोभमंडल में आर्द्रताग्राही नाभिकों की उपस्थिति के कारण बादलों का निर्माण होता है।
- क्षोभमंडल, संचालन तथा संवहन विधियों द्वारा गर्म और ठंडा होता है।
- क्षोभमंडल, समतापमंडल से ‘क्षोभ सीमा’ (Tropopause) द्वारा अलग होता है।
- भूमध्य रेखा के ऊपर क्षोभसीमा का तापमान –80°C तथा ध्रुवों के ऊपर तापमान -45°C होता है।
समताप मंडल (Stratosphere)
- क्षोभमंडल के ऊपर वाली परत को ‘समताप मंडल’ कहा जाता है। इस परत की खोज ‘टीजरेंस डी बोर्ट’ द्वारा की गई।
- समताप मंडल के तापमान में वृद्धि इस मंडल में मौजूद ओज़ोन गैस द्वारा सौर्यिक पराबैंगनी विकिरण तरंगों के अवशोषण तथा विरल घनत्व वाली हवा के कारण होती है।
- इसकी ऊपरी सीमा को ‘समताप सीमा’ (स्ट्रैटोपॉज) कहते हैं। अर्थात् स्ट्रैटोपॉज इसे मध्यमंडल से अलग करती है।
- धरातल से समताप मंडल की ऊँचाई लगभग 50 किमी. है।
- इस मंडल में किसी भी प्रकार की मौसमीय परिघटनाएँ घटित नहीं होती तथा यहाँ वायु क्षैतिज दिशा में चलती है। इन्हीं दशाओं के कारण वायुयान उड़ानों के लिये समताप मंडल की निचली सीमा आदर्श मानी जाती है।
- कभी-कभी प्रबल संवहन धाराएँ क्षोभसीमा को तोड़कर इस स्तर में थोड़ी जलवाष्प ला देती हैं। यही कारण है कि कभी-कभी कुछ विशेष प्रकार के बर्फ से निर्मित बादल समताप मंडल में दिखाई पड़ जाते हैं, जिन्हें ‘सिरस बादल’ अथवा ‘मदर ऑफ पर्ल क्लाउड’ अथवा ‘नैक्रियस क्लाउड’ (Nacreous clouds) भी कहते हैं।
- समताप मंडल में अत्यधिक ओजोन गैस वाली निचली परत को ‘ओज़ोन मंडल’ (Ozonosphere) की संज्ञा दी जाती है, जो 15 से 35 किमी. तक विस्तृत है।
मध्यमंडल (Mesosphere)
- मध्यमंडल का विस्तार सागर तल से 50 से 80 किमी. की ऊँचाई तक समताप मंडल के ठीक ऊपर पाया जाता है।
- इस संस्तर में भी क्षोभमंडल की तरह ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में कमी होने लगती है।
- मध्यमंडल की निचली सीमा, अर्थात् समताप सीमा के पश्चात् तापमान में अंततः कमी आने लगती है।
- मध्यमंडल की ऊपरी सीमा अर्थात् 80 किमी. की ऊँचाई पर तापमान लगभग -100°C तक, हो जाता है। इस न्यूनतम तापमान की सीमा को ‘मेसोपॉज’ (Mesopause) कहते हैं, जो आयनमंडल को मध्यमंडल से अलग करती है। इसके ऊपर जाने पर तापमान में पुनः वृद्धि होती है, जोकि ‘तापीय प्रतिलोमन’ की स्थिति को दर्शाता है, क्योंकि इसके नीचे कम तापमान तथा ऊपर अधिक तापमान रहता है।
- इस मंडल में गर्मियों के दिनों में ध्रुवों के ऊपर ‘नॉक्टीलुसेंट बादलों’ अथवा ‘निशादीप्त बादलों’ का निर्माण होता है। इन बादलों का निर्माण उल्कापिंड के धूलकणों तथा संवहनीय प्रक्रिया द्वारा ऊपर लाई गई आर्द्रता के सहयोग से संघनन (Condensation) द्वारा होता है।
तापमंडल (Thermosphere)
- मध्य सीमा से ठीक ऊपर स्थित वायुमंडल के भाग को ‘तापमंडल’ कहते हैं, जिसमें बढ़ती ऊँचाई के साथ तापमान में तीव्रगति से वृद्धि होती है और कम वायुमंडलीय घनत्व के कारण वायुदाब न्यूनतम होता है।
- तापमंडल की विशिष्टताओं के आधार पर इसे दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है
- आयनमंडल (Ionosphere)
- आयतन मंडल अथवा बहिर्मंडल (Exosphere)
आयनमंडल (Ionosphere)
- मध्यमंडल के ऊपर पाया जाता है।
- विस्तार – समुद्र तल से 80 से 640 किमी. के मध्य ( विस्तार – 400 किमी. तक)
- आयनमंडल में आयनों अर्थात् विद्युत आवेशित कणों की प्रधानता है
- आयनमंडल रेडियो तरंगों को पृथ्वी पर परावर्तित करके ‘संचार व्यवस्था’ को संभव बनाता है।
- इस मंडल में ऊँचाई के साथ-साथ कई परतों का विकास होता है:
- D, E, F तथा G परतें
D परत
- विस्तार – 80 से 99 किमी. के मध्य
- यह परत न्यून आवृत्ति वाली तरंगों का परावर्तन करती है
- यह परत उच्च एवं मध्यम आवृत्ति वाली रेडियो तरंगों को अवशोषित कर लेती है।
- यह परत सौर्यिक विकिरण से संबंधित है, इसलिये सूर्यास्त के साथ ही लुप्त हो जाती है।
E परत
- इस परत को ‘केनली हेवीसाइड परत’ भी कहा जाता है।
- विस्तार – 99 से 150 किमी. के मध्य
- यह परत मध्यम एवं उच्च आवृत्ति वाले रेडियो तरंगों का परावर्तन करती है।
- यह परत भी सूर्यास्त के साथ विलुप्त हो जाती है।
F परत
- दो उप-परत – F1, परत तथा F2, परत।
- इसको ‘एप्लीटन परत’ भी कहा जाता है।
- विस्तार – 150 से 380 किमी. के मध्य
- यह परत मध्यम तथा उच्च आवृत्ति वाली रेडियो तरंगों को पृथ्वी की ओर परावर्तित कर देती है।
G परत
- विस्तार– 400 किमी. से ऊपर
- यह लगभग 400 से 640 किमी. के मध्य उपस्थित रहती है।
आयतनमंडल अथवा बहिर्मंडल (Exosphere)
- वायुमंडल का सबसे ऊपरी भाग
- यहाँ पर वायु का घनत्व अत्यंत कम हो जाता है, जिसके कारण यह निहारिका जैसा प्रतीत होता है।
- तापमान लगभग 5,000°C से भी ऊपर हो जाता है, लेकिन इसको महसूस नहीं किया जा सकता है।
- आयन मंडल के ऊपर वाले वायुमंडल को ‘बाह्य वायुमंडल’ भी कहा जाता है, इसके अंतर्गत आयतनमंडल एवं चुंबकमंडल को सम्मिलित किया जाता है।
- इस मंडल में ‘वान अलेन रेडिएशन बेल्ट’ (Van Allen Radiation Belt) की उपस्थिति होती है, जिसमें पृथ्वी के ‘मैग्नेटिक फील्ड‘ द्वारा पकड़े गए आवेशित कण पाये जाते हैं।
- इस मंडल में अरोरा ऑस्ट्रालिस व अरोरा बोरियालिस जैसी परिघटनाएँ घटित होती हैं जो एक प्रकार की सौर्यिक तूफान से निष्कासित इलेक्ट्रॉन तरंग होती हैं।
- आयतनमंडल के पश्चात् वायुमंडल सुदूर अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है।
- आयतनमंडल में संचार उपग्रह रखे जाते है
रासायनिक विशेषता के आधार पर वर्गीकरण
- सममंडल
- विषममंडल
सममंडल (Homosphere)
- विस्तार – निचले वायुमंडल ,सागर तल ऊँचाई 90 किमी. तक
- सममंडल को तीन भागों में बाँटा जाता है
- क्षोभमंडल
- समतापमंडल
- मध्यमंडल
विषम मंडल (Heterosphere)
- विस्तार – सममंडल से लगभग 10,000 किमी. तक
- इस मंडल की विभिन्न परतों के मध्य उनके रासायनिक तथा भौतिक गुणों में अंतर पाया जाता है।
- इसमें चार परतें पाई जाती हैं
- आणविक नाइट्रोजन परत (90–200 किमी.)
- नाइट्रोजन अणुओं की प्रधानता होती है।
- आणविक ऑक्सीजन परत (200–1100 किमी)
- आक्सीजन अणुओं की प्रधानता होती है।
- हीलियम परत (1100–3500 किमी)
- हीलियम के अणुओं की प्रधानता होती है।
- आणविक हाइड्रोजन परत (3500 वायुमंडल की ऊपरी सीमा)
- हाइड्रोजन अणुओं की प्रधानता होती है।
- आणविक नाइट्रोजन परत (90–200 किमी.)
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
- पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन विमुक्त करते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं।
- समतापमंडल के निचले भाग में सभी ऊँचाइयों पर तापमान समान रहता है और उसमें किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं होता है।
- इसमें ओजोन परत द्वारा पराबैंगनी किरणों के अवशोषण के कारण तापमान में वृद्धि होती है।
- बहिर्मंडल की वायु में हाइड्रोजन तथा हीलियम गैसों की प्रधानता है।
- आयनमंडल में उपस्थित आयनिक कण पृथ्वी को उल्काओं(meteors) से सुरक्षित रखती है।
- ‘ध्रुवीय ज्योति’ का संबंध आयनमंडल से है।