Data Representation : SARKARI LIBRARY

 

1. संख्या पद्धति (Number System)

  • किसी भी संख्या को निरूपित करने के लिए एक विशेष संख्या पद्धति का प्रयोग किया जाता है। 

  • प्रत्येक संख्या को संख्या पद्धति में प्रयोग किए जाने वाले अंक या अंको के समूह से दर्शाया जाता है। 

  • प्रत्येक संख्या पद्धति का एक निश्चित आधार (Base) होता है जो उस संख्या पद्धति में प्रयोग किए जाने वाले मूल अंकों (Basic Digits) की संख्या के बराबर होता है। 

  • किसी संख्या में प्रत्येक अंक का मान उसके संख्यात्मक मान (Face Value) तथा स्थानीय मान (Position Value) पर निर्भर करता है। 

आधार (Base) : 

  • किसी संख्या को निरूपित करने के लिए प्रयोग की जाने वाली मूल अंकों (Basic Digits) की कुल संख्या उस संख्या पद्धति का आधार कहलाती है। 

उदाहरण 

दशमलव संख्या पद्धति(0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 तथा 9)

  • मूल अंकों संख्या – 10  (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 तथा 9) 

  • आधार  – 10 

  • संख्या के आधार को दर्शाने का तरीका –  589(10)

द्विआधारी संख्या पद्धति (Binary Number System) 

  • मूल अंकों संख्या – 2  (0 तथा 1) 

  • आधार  – 2 

  • संख्या के आधार को दर्शाने का तरीका – 101(2)

आक्टल संख्या पद्धति (Octal Nuber System) 

  • मूल अंकों संख्या – 8  (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, तथा 7) 

  • आधार  – 8 

  • संख्या के आधार को दर्शाने का तरीका – 275(8)

हेक्साडेसिमल संख्या पद्धति (Hexadecimal Number System) 

  • मूल अंकों संख्या – 16  (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, A, B, C, D ,E,F) 

  • आधार  – 16

  • संख्या के आधार को दर्शाने का तरीका – 1A5(16)

संख्यात्मक मान (Face Value) : 

  • किसी संख्या में किसी अंक का संख्यात्मक मान उस संख्या की स्थिति पर निर्भर करता है। 

  • संख्या में अंकों की स्थिति को दायीं से बायीं ओर गिना जाता है। 

    • इकाई पर स्थित अंक का संख्यात्मक मान =  ‘0’ 

    • दहाई के अंक का संख्यात्मक मान =  ‘1’, 

    • सैकड़े के अंक का संख्यात्मक मान =  ‘2’ 

    • हजार के अंक का संख्यात्मक मान =  ‘3’ 

स्थानीय मान (Position Value) : 

  • किसी संख्या में किसी Digit  का स्थानीय मान संख्या के आधार (Base) तथा उसके संख्यात्मक मान (Face Value) पर निर्भर करता है। 

  • किसी सख्या का स्थानीय मान संख्या के आधार पर संख्यात्मक मान के घात के बराबर होता है।

स्थानीय मान = (आधार) संख्यात्मक मान 

Position Value = (Base) Face Value

उदाहरण 

दशमलव संख्या पद्धति

  • आधार  – 10 

  • संख्या  –  589(10)    

संख्या

5

8

9

Face Value

2

1

0

Position Value

102 = 100

101 = 10

100 = 1

संख्या का कुल मान = 5×102 + 8×101 + 9×100 

                            = 5×100 + 8×10 + 9×1  = 589(10)

  • किसी संख्या का मान प्रत्येक अंक के संख्यात्मक मान तथा स्थानीय मान के गुणनफल का योग होता है। 

2. कम्प्यूटर में प्रयुक्त होने वाली संख्या पद्धति

  • मनुष्य गणना के लिए दशमलव आधारी संख्या पद्धति (Decimal number system) का प्रयोग करता है जिसमें 0 से 9 तक (कुल 10) अंकों का प्रयोग किया जाता है। 

  • अन्य सभी अंक इन्हीं अंकों से मिलकर बनते हैं। 

  • कम्प्यूटर दशमलव आधारी संख्या पद्धति का प्रयोग नहीं करता है। 

  • कम्प्यूटर में प्रयोग होने वाली संख्या पद्धतियां हैं

(a) द्विआधारी संख्या पद्धति (Binary number system) 

(b) आक्टल संख्या पद्धति (Octal number system) 

(c) हेक्साडेसिमल संख्या पद्धति(Hexadecimal number)

number system

Base 

कुल अंक

Highest Digit

Binary

2

0, 1

1

Octal

8

0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7

7

Decimal

10

0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 ,9

9

Hexadecimal 

16

0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 

A, B, C, D ,E,F 

F

3. द्विआधारी संख्या पद्धति (Binary number System)

  • कम्प्यूटर केवल दो ही परिस्थितियों को जान सकता है। 

0

OFF

परिपथ में धारा प्रवाहित नहीं

1

ON

परिपथ में धारा प्रवाहित 

  • कम्प्यूटर केवल (Binary number system) की पहचान कर सकता है।

  • इसी कारण कम्प्यूटर में गणना करने या मेमोरी में स्टोर करने से पहले डाटा या निर्देश को बाइनरी फार्म (0 या 1/ऑफ या ऑन) में बदलना पड़ता है।

  • बाइनरी संख्या पद्धति में इन दो अंकों 0 और 1 को बाइनरी डिजिट (Binary Digit) या संक्षेप में बिट (Bit) कहते हैं। 

  • संख्या पद्धति में किसी भी संख्या का मान उसके स्थानीय मान पर निर्भर करता है।

number system

स्थानीय मान

Base 

सैकड़ा

दहाई

इकाई

Binary

2

22 = 4

21 = 2

20 = 1

Octal

8

82 = 64

81 = 8

80 = 1

Decimal

10

102 = 100

101 = 10

100 = 1

Hexadecimal 

16

162 = 256

161 = 16

160 = 1

दशमलव  के बाद की संख्या का  स्थानीय मान 

number system

स्थानीय मान

Base 

-1

-2

-3

Binary

2

2-1 = 1/2

2-2 = 1/4

2-3 

Octal

8

8-1 = 1/8

8-2 = 1/64

8-3 

Decimal

10

10-1 = 1/10

10-2 = 1/100

10-3 

Hexadecimal 

16

16-1 = 1/16

16-2 = 1/256

16-3 

3. बाइनरी अंकगणित (Binary Arithmatic)

  • Decimalnumber system  को किसी अन्य संख्या पद्धति में बदलने के लिए ‘भाग शेष विधि’ (Division Remainder Method) का प्रयोग किया जाता है। 

बाइनरी मेमोरी (Binary Memory)

बिट (Bit) : 

  • यह कम्प्यूटर मेमोरी का सबसे छोटा भाग है। 

  • यह बाइनरी डिजिट (Binary digit) का संक्षिप्त रूप है।

  •  इसे 0 या 1 (आफ या ऑन) में व्यक्त किया जाता है। 

  • कम्प्यूटर में प्रत्यक डाटा, अनुदेशों तथा परिणामों को बाइनरी डिजिट या बिट में  निरूपित और स्टोर किया जाता है। 

  • बिट मेमोरी को प्रदर्शित करने वाली सबसे छोटी इकाई है।

  • एक बाइट में आठ बिट होते हैं। 

  • किसी बिट का मान 0 या  1 हो सकता है।

  • इस तरह एक बाइट से 28 = 256 कैरेक्टर ( 0 से लेकर 255) तक संख्याएं निरूपित किये जा सकते हैं।

निबल (Nibble) : 

  • चार बिट के समूह को निबल कहा जाता है। यह आधे बाइट के बराबर होता है।

बाइट (Byte) : 

  • आठ बिट या दो निबल के समूह को एक बाइट कहा जाता है। 

  • कम्प्यूटर मेमोरी में किसी अक्षर या कैरेक्टर को दर्शाने के लिए कम से कम आठ बिट अर्थात एक बाइट की जरूरत पडती है। 

  • एक खाली स्थान (Space)  भी 1 बाइट जगह घेरता है। 

  • कम्प्यूटर मेमोरी को बाइट में ही मापा जाता है। 

  • बाइट मेमोरी की वह सबसे छोटी इकाई है जिसे कम्प्यूटर समझ सकता है और प्रोसेस कर सकता है तथा जिसके द्वारा किसी अंक, अक्षर या चिह्न को निरूपित किया जा सकता है। 

  • एक बाइट (8 बिट) द्वारा कुल 256 (28=256) अलग-अलग कैरेक्टर निरूपित किए जा सकते हैं। 

शब्द की लम्बाई (Word Length) : 

  • कम्प्यूटर शब्द की लंबाई बिट (Bit) में मापी जाती है। 

  • यह एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर में भिन्न हो सकती है जबकि किसी एक कम्प्यूटर के लिए यह निश्चित होती है। 

  • कम्प्यूटर शब्द की लम्बाई कम्प्यूटर के हार्डवेयर पर निर्भर करता है। 

  • विभिन्न प्रकार के कम्प्यूटर में शब्द की लंबाई 1 बिट से 64 बिट तक हो सकती है। 

  • सुपर कम्प्यूटर में शब्द लंबाई का परास 64 बिट होता है। 

कम्प्यूटर मेमोरी की माप

  • 1 निबल = 4 बिट

  • 1 बाइट = 8 बिट = 2 निबल

  • 1 किलोबाइट (KB) =  210 बाइट= 1024 बाइट 

  • 1 मेगाबाइट (MB) = 1024 किलोबाइट 

  • 1 गीगा बाइट(GB) =  1024 मेगाबाइट 

  • 1 टेराबाइट (TB) = 1024 गीगा बाइंट

  • 1 पेटाबाइट (PB) = 1024 टेराबाइट 

  • 1 एक्साबाइट (EB) = 1024 पेटाबाइट

  • 1 जेट्टाबाइट (ZB) = 1024 एक्सा बाइट

  • 1 योट्टाबाइट (YB) = 1024 जेट्टा बाइट

कम्प्यूटर कोड (Computer Codes) 

  • कम्प्यूटर में डाटा अक्षरों (Alphabets), विशेष चिह्नों (Special Characters) तथा अंकों (Numeric) में हो सकता है। अतः इन्हें अल्फान्युमेरिक डाटा (Alphanumeric Data) कहा जाता है। 

  • डाटा में प्रत्येक अक्षर, चिह्न या अंक को एक विशेष कोड द्वारा व्यक्त किया जाता है।

बाइनरी कोडेड डेसिमल (BCD- Binary Coded Decimal) : 

  • इसमें संपूर्ण डेसिमल संख्या को बाइनरी में बदलने की तुल्यांक से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। 

  • इसे 4-बिट बीसीडी कोड (4 Bit BCD Code) कहा जाता है।

  • BOOLEAN ALGEBRA का आविष्कार ब्रिटेन के गणितज्ञ जार्ज बूले (George Boole) ने किया। इन्हीं के नाम पर इसे बुलियन अलजेबरा कहा गया।

आस्की (ASCII-American Standard Code for Information Interchange) : 

  • आस्की (ASCII) एक लोकप्रिय कोडिंग सिस्टम है जिसका प्रारंभ आन्सी (ANSI-American National Standards Institute) द्वारा 1963 में किया गया। 

  • इसमें  प्रत्येक कैरेक्टर के लिए 8 बिट कोड और तीव्र निरूपण के लिए हेक्साडेसिमल संख्या पद्धति का प्रयोग किया गया। 

  • कम्प्यूटर के कीबोर्ड में प्रयुक्त प्रत्येक कैरेक्टर के लिए एक विशेष आस्की कोड निर्धारित किया गया है। 

  • आस्की कोड में प्रत्येक कैरेक्टर 8 बिट का होता है, अतः इससे कुल 256 कैरेक्टर या 0 से 255 तक संख्याएं निरुपित की जा सकती है। 

यूनीकोड (Unicode- Universal Code)

  • यूनीकोड विश्व की सभी भाषाओं में प्रयुक्त अक्षरों, अंकों तथा चिह्नों के लिए एक विशेष कोड निर्धारित करता है। 

  • यूनीकोड में प्रयुक्त पहले 256 कैरेक्टर का निरूपण आस्की कोड के समान ही है। 

  • इसमें प्रत्येक कैरेक्टर को 32 बिट में निरूपित किया जाता है। 

  • यूनीकोड में तीन प्रकार की व्यवस्था प्रयोग में लायी जाती है

(i) यूटीएफ-8 (UTF-8- Unicode Transformation Format-8)

  • यूटीएफ-8 फार्मेट में समस्त यूनीकोड अक्षरों को एक, दो, तीन या चार बाइट के कोड में बदला जाता है। 

(ii) यूटीएफ-16 (UTF-16)

  • इस फार्मेट में यूनीकोड अक्षरों को एक या दो शब्दों (1 शब्द = 16 बिट) के कोड में बदला जाता है। 

  • अतः इसे Word Oriented Format भी कहते हैं

(iii) यूटीएफ-32 (UTF-32) 

  • इस कोड में समस्त अक्षरों को दो शब्दों (Words) यानी 32 बिट के यूनीकोड में बदला जाता है।

क्या आप जानते हैं? Microsoft Word प्रोग्राम में Insert Symbol कमांड का प्रयोग कर किसी Symbol या Character के लिए प्रयुक्त

Unicode देख सकते हैं। 

बुलियन अलजेबरा (Boolean Algebra)

  • बाइनरी संख्या पद्धति में प्रयोग किये जाने वाले गणित, जिसमें केवल दो चर (Variable) , 0 और 1 का प्रयोग किया जाता है, बुलियन अलजेबरा कहलाता है। 

  • इसका उपयोग कम्प्यूटर में प्रयुक्त लॉजिक सर्किट (Logic Circuit) को सरल बनाने के लिए किया जाता है।

लॉजिक गेट (Logic Gate) : 

  • यह एक इलेक्ट्रानिक परिपथ (Circuit) है जो एक या अधिक इनपुट लेकर मानक आउटपुट देता है। 

  • कम्प्यूटर में सभी परिपथ का निर्माण लॉजिक गेट से ही किया जाता है। 

  • कम्प्यूटर में स्थित बाइनरी डाटा को लॉजिक गेट की सहायता से ही प्रोसेस किया जाता है। 

  • किसी लॉजिक गेट का Truth Table यह बताता है कि इनपुट की विभिन्न संभावनाओं के लिए लॉजिक गेट का आउटपुट क्या होगा। 

  • प्रत्येक लॉजिक गेट को एक विशेष चिह्न (Symbol) द्वारा दर्शाया जाता है। 

AND, OR तथा NOT गेट Basic Logic Gate हैं। 

अन्य लॉजिक गेट हैं— NAND, NOR, XOR, XNOR

और गेट (OR Gate) : 

  • OR गेट का प्रयोग बुलियन जोड़ (+) के लिए किया जाता है। 

  • इसे लॉजिकल एडिसन (Logical Addition) कहते हैं जिसे ‘+’ चिह्न या ‘OR’ ऑपरेटर द्वारा निरूपित किया जाता है। 

  • इसमें कोई भी इनपुट 1 होने पर आउटपुट 1 हाता है। 

  • आउटपुट 0 तभी होता है जब सभी इनपुट 0 हों। 

  • यह समानान्तर में जुड़े दो या अधिक स्विच की तरह है। कोई भी स्विन ऑन (1) होने पर आउटपुट सिग्नल प्राप्त होगा।

                    0 veojKEXf51SPcs EjcMGEoKrBfaD5KXdvJMpO6wShzmqDvzRGeqFCHUTseDwBBcUciv9I pAYk

INPUT

INPUT

OUTPUT

A

B

Z = (A+B)

0

0

0

0

1

1

1

0

1

1

1

1

  • NAND तथा NOR गेट यूनीवर्सल बिल्डिंग ब्लॉक (Universal Building Block) कहलाते हैं क्योंकि ये किसी भी प्रकार के कम्प्यूटर परिपथ के निर्माण में सक्षम हैं।

एण्ड गेट (AND Gate) : 

  • एण्ड गेट का प्रयोग बुलियन गुणा (.) के लिए किया जाता है। 

  • इसमें आउटपुट 1 तभी होता है जब सभी इनपुट 1 हो। 

  • किसी भी इनपुट के शून्य होने पर आउटपुट 0 होता है। 

  • इसे सीरीज में लगे दो या अधिक स्विच की तरह समझा जा सकता है। 

  • इसे लॉजिकल गुणा (Logical Multiplication) कहा जाता है। 

  • इसे निरूपित करने के लिए * चिह्न या ‘AND’ ऑपरेटर का प्रयोग किया जाता है।

                   mYozQU2lP2rk7JHmOE6VkZLrh3siEbp 8Kyh6pdf8wfre DZEckk9o1hHXVcTBvEpVAFCK c9dugwzG7eAO4uslwROkyNb5JtvlX

A

B

C = (A.B)

0

0

0

0

1

0

1

0

0

1

1

1

नॉट गेट (NOT Gate) : 

  • यह इनपुट के विपरीत आउटपुट देता है। 

  • इनपुट 1 होने पर आउटपुट 0 तथा इनपुट 0 होने पर आउटपुट 1 होता है। 

  • इसे इनर्वटर (Inverter) या काम्प्लीमेंट (Complement) आपरेशन भी कहते हैं। 

  • इसे निरूपित करने के लिए ‘-‘ चिह्न या ‘NOT’ ऑपरेटर का प्रयोग किया जाता है।

VCo4Pgw87d3NtQZ5gSADorPLlVPuW7LKtOnilFTBUF75Pxa2B4VOXwt ZZsKsa3po40rl gIbjz 71oXm 8nJ0N7F2uCOOQndravoaInD0cpc2xNVbW dVaU3pfdD1BszS4d5 fv

INPUT

OUTPUT

A

A

0

1

1

0

नैन्ड गेट (NAND Gate) : 

  • यह एक पूरक एंड गेट (Complementary AND Gate) है जो AND गेट के विपरीत परिणाम देता है। 

  • यह AND गेट के साथ जुड़े NOT गेट (AND+NOT) की तरह कार्य करता है। 

  • इसमें किसी भी इनपुट के शून्य होने पर आउटपुट 1 होता है। 

  • आउटपुट शून्य तभी होता है जब सभी इनपुट 1 हो। 

  • NAND ऑपरेशन को ‘↑’ चिह्न द्वारा दर्शाते हैं। 

                       bVo90 ZS9AVdeUCjn1lOlII 1CreaooZu35cUJZzfXvNPdKC2YJl0Dr24gqKojjZSz3rau3smbLuWV5 tQxxmpNNnqVOaVT1ttxn7m6FJeibr5ueg1qPtj

A

B

(A.B)

AND

C = (A.B)

NOT

0

0

0

1

0

1

0

1

1

0

0

1

1

1

1

0

नॉर गेट (NOR Gate) : 

  • यह पूरक और गेट (Complementary OR Gate) है जो OR गेट के विपरीत परिणाम देता है। 

  • यह OR गेट से जुड़े NOT गेट (OR + NOT) गेट की तरह कार्य करता है। 

  • इसमें आउटपुट  1 तभी होता है जब सभी इनपुट 0 हो। 

  • किसी भी इनपुट के 1 होने पर आउटपुट 0 होता है। 

  • NOR ऑपरेशन को ‘1’ चिह्न द्वारा दर्शाते हैं।

                        3gnzUiu8lGuuojKtpBsfjXVm5SorCun T9ierMtsgUssCPLRLQmB42 7gUkkMFCGP3DQ2fXi5JUhUdbPcYo6lSW91gQgAGtGy5xg7WvGTgf8AVtvEG4M6O2AY4pZBMqbJeh owEL

A

B

A+B

OR

C = (A.B)

     NOT

0

0

0

1

0

1

1

0

1

0

1

0

1

1

1

0