सरहुल
- यह जनजातियो का सबसे बड़ा पर्व है।
- अन्य नाम:
- यह प्रकृति से संबंधित त्योहार है।
- पर्व का आयोजन – यह चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ,बसंत के मौसम में
- इस पर्व में साल के वृक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- यह फूलों का त्योहार है।
- यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है
- पहला दिन – मछली के अभिषेक किए हुए जल को घर में छिड़का जाता है।
- दूसरा दिन – उपवास रखा जाता है तथा गांव का पुजारी गांव के हर घर की छत पर साल के फूल रखता है।
- तीसरा दिन
- चौथा दिन
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सरहुल फूल का विसर्जन स्थान – गिड़िवा
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अकाल की भविष्यवाणी
- इस पर्व के दौरान गाँव का पुजारी मिट्टी के तीन पात्र लेता है |
- जिनमे पानी भरा होता । अगले दिन सुबह वह मिट्टी के तीनों पात्रों को देखता है।
- पानी का स्तर घट गया है – अकाल की भविष्यवाणी
- पानी का स्तर सामान्य रहता है – उत्तम वर्षा का संकेत
- सरहुल की पूजा के दौरान ग्रामीणों द्वारा सरना (पूजा स्थल) को घेरा जाता है।
मण्डा
- इसमें महादेव (शिव) की पूजा होती है।
- पर्व का आयोजन – बैशाख माह के अक्षय तृतीया को आरंभ
- भगता – उपवास रखने वाले पुरूष-व्रती को
- सोखताइन – महिला-व्रती को
- झारखण्ड में महादेव (शिव) की यह सबसे कठोर पूजा है।
- धुवांसी – भोगताओं को रात में आग के ऊपर उल्टा लटकाकर झूलने की प्रथा
- फूल-खुंदी – भोगताओं को आग के अंगारों पर चलने की प्रथा
करमा
- यह प्रकृति संबंधी त्योहार है।
- त्योहार का संदेश – कर्म की जीवन में प्रधानता
- भाई के जीवन की कामना हेतु बहन द्वारा उपवास रखा जाता है।
- यह भाई-बहन के प्रेम का पर्व है।
- पर्व का आयोजन – भाद्रपद (भादो) माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को
- त्योहार का नृत्य के मैदान (अखड़ा) – करम वृक्ष की दो डालियाँ गाड़ दी जाती है
- पाहन द्वारा लोगों को करमा कथा (करमा एवं धरमा नामक भाईयों की कथा) सुनायी जाती है।
- मुण्डा जनजाति में करमा की दो श्रेणियाँ हैं:
- राज करमा – घर आंगन में की जाने वाली पारिवारिक पूजा
- देश करमा – अखरा में की जाने वाली सामूहिक पूजा
- मुण्डाओं में मान्यता है कि इस पर्व के दौरान करम गोसाई से मांगी गयी हर मन्नत पूरी होती है।
- मुण्डा जनजाति की कुंआरी लड़कियाँ इस पर्व में सात प्रकार के अनाजों की ‘जावा’ उगाने की प्रथा का पालन करती हैं।
सोहराई
- पर्व का आयोजन – दीपावली के दूसरे दिन ,पौष माह में ,फसल कट जाने के बाद
- इस पर्व में मवेशियों(जानवर) की पूजा की जाती है।
- यह झारखण्ड में संथाल जनजाति का सबसे बड़ा पर्व है।
- यह पर्व पांच दिनों तक चलता है
- पहला दिन
- ‘गोड टाण्डी’ (बथान) में जाहेर एरा का आह्वान किया जाता है
- रात में युवक-युवतियाँ गो पूजन करते हैं।
- दूसरा दिन
- गोहाल पूजा की जाती है
- गाय/पशु के सींग पर तेल व सिंदूर लगाकर उसके गले में फूलों की माला पहनायी जाती है।
- तीसरा दिन
- पशुओं को धान की बाली एवं मालाओं से सजाकर खूटा जाता है जिसे ‘सण्टाऊ’ कहा जाता है।
- चौथा दिन
- युवक व युवतियाँ गांव से चावल, दाल, नमक व मसाला आदि मांगकर जमा करते हैं।
- पांचवा दिन
- गांव से एकत्रित चावल, दाल आदि से खिचड़ी बनाया जाता है जिसे गांव के लोग साथ में खाते हैं।
धान बुनी
- इस समय धान बुआई का प्रारंभ होता है।
बहुरा
- इसे राइज बहरलक के नाम से भी जाना जाता है।
- पर्व का आयोजन – भादो माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन
- यह अच्छी वर्षा तथा संतान प्राप्ति हेतु महिलाओं द्वारा मनाया जाता है।
कदलेटा
- पर्व का आयोजन – भादो माह में करमा से पहले
- मेढ़क भूत को शांत करने के लिए मनाया जाता है।
- इसमें अखरा में साल, भेलवा तथा केन्दु की डालियां रखकर पूजा की जाती है तथा पूजा के बाद लोग इस डाल को अपने खेतों में गाड़ते हैं ताकि फसल को रोगमुक्त रखा जा सके।
टुसू
- सूर्य पूजा से संबंधित त्योहार
- पर्व का आयोजन – मकर सक्रांति के दिन
- यह पर्व टुसू नाम की कन्या की स्मृति में मनाया जाता है।
- इस अवसर पर पंचपरगना में टुसू मेला लगता है।
- इस पर्व के दौरान लड़कियों द्वारा रंगीन कागज से लकड़ी या बांस के एक फ्रेम को सजाया जाता है तथा इसे किसी नदी में बहा दिया जाता है।
फगुआ
- पर्व का आयोजन – फागुन पूर्णिमा को
- यह होली के समरूप त्योहार है।
- इस पर्व के दौरान आदिवासी लोग पाहन के साथ मिलकर सेमल अथवा अरण्डी की डाली गाड़कर संवत् जलाते हैं तथा मुर्गे की बलि देते हैं।
- जबकि गैर-आदिवासी लोग संवत् जलाते समय बलि नहीं देते हैं।
- इस पर्व के दूसरे दिन धुरखेल मनाया जाता है।
मुर्गा लड़ाई
- इसे पुरातन सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- इस खेल में लोग सट्टा लगाते हैं।
आषाढ़ी पूजा
- पर्व का आयोजन – आषाढ़ माह में
- इस पर्व से गाँव में चेचक जैसी बीमारी का प्रकोप नहीं होता है।
रोग खेदना
- यह पर्व रोगों को गाँव से बाहर निकालने हेतु मनाया जाता है।
नवाखानी
- पर्व का आयोजन – करमा पर्व के बाद
- नवाखानी का तात्पर्य है – ‘नया अन्न ग्रहण करना।’
सूर्याही पूजा
- पर्व का आयोजन – अगहन माह में
- इस पर्व को किसी टांड़ (एक प्रकार का ऊँचा स्थान) पर मनाया जाता है।
- केवल पुरूष भाग लेते हैं।
जितिया
माँ द्वारा पुत्र के दीर्घायु जीवन तथा समृद्धि के लिए
चाण्डी पर्व
- उराँव जनजाति द्वारा मनाया जाता है।
- पर्व का आयोजन – माघ पूर्णिमा के दिन
- इस पर्व में महिलाएँ भाग नहीं लेती हैं
- जिस परिवार में कोई महिला गर्भवती हो उस परिवार का पुरूष भी इस पर्व में भाग नहीं लेता है।
देव उठान
- पर्व का आयोजन – कार्तिक शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी के दिन
- देवों को जागृत किया जाता है।
- इसके बाद ही विवाह हेतु कन्या अथवा वर देखने की प्रथा आरंभ की जाती है।
भाई भीख
- बारह वर्ष में एक बार मनाया जाता है।
- इस पर्व में बहन अपने भाई के घर से भिक्षा मांगकर अनाज लाती है
- एक निश्चित दिन निमंत्रण देकर उसे अपने घर पर भोजन कराती है।
बुरू पर्व
- मुण्डा जनजाति द्वारा मनाया जाता है।
- पर्व का मुख्य उद्देश्य
- वन्य जीवों तथा मानव का तालमेल स्थापित करना तथा
- प्राकृतिक प्रकोपों से समाज की रक्षा हेतु कामना करना
छठ
- छठ पर्व वर्ष में दो बार मार्च और नवंबर में मनाया जाता है।
- इस पर्व के दौरान सूर्य भगवान की पूजा करते है।
- अस्त होते हुए सूर्य को प्रसन्न करने हेतु मनाया जाता है।
- प्रसाद / मिठाई (व्यंजन) – ‘ठेकुआ‘ का वितरण
बंदना
- पर्व का आयोजन – कार्तिक अमावस्या के दौरान
- पर्व की शुरूआत – ओहिरा गीत के साथ
- पालतू जानवरों से संबंधित है।
रोहिन / रोहिणी
- झारखण्ड राज्य में कैलेंडर वर्ष का प्रथम त्योहार
- बीज बोने के त्योहार के रूप में
- बीज बोने की शुरूआत की जाती है।
- इस त्योहार के दौरान किसी प्रकार का नृत्य प्रदर्शन या लोकगीत गायन नहीं किया जाता है।
हेरो पर्व
- हेरो शब्द का अर्थ – छींटना या बुआई करना
- पर्व का आयोजन – माघे व बाहा पर्व के बाद , हो जनजाति द्वारा
- कोल्हान क्षेत्र में
- खेतों में बोये गए बीज की सुरक्षा हेतु
जावा पर्व
- पर्व का आयोजन – भादो माह में
- अविवाहित आदिवासी युवतियों में प्रजनन क्षमता में वृद्धि तथा अच्छे वर हेतु मनाया जाता है।
भगता पर्व
- मनाने का अवसर – बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु के मध्य
- यह पर्व तमाड़ क्षेत्र में प्रचलित है।
- इस पर्व को ‘बुढ़ा बाबा के पूजा‘ के रूप में मनाया जाता है।
सेंदरा पर्व
- सेंदरा उराँव जनजाति से संबंधित है।
- सेंदरा का शाब्दिक अर्थ ‘शिकार‘ होता है।
- मुक्का सेंदरा – उराँव जनजाति में महिलाओं द्वारा शिकार खेलने की प्रथा
- सू सेंदरा – वैशाख में
- फागु सेंदरा – फागुन में
- जेठ शिकार – वर्षा ऋतु के प्रारंभ होने पर
जनी शिकार
- इस पर्व के दौरान महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से पुरूषों का वेश धारण करके परंपरागत हथियार से जानवरों का शिकार किया जाता है।
- यह भारत में केवल झारखण्ड राज्य में ही मनाया जाता है।
- यह पर्व 12 वर्षों के अंतराल पर मनाया जाता है।
देशाऊली
- यह 12 वर्ष में एक बार मनाया जाने वाला उत्सव है।
- इस त्योहार में मरांग बुरू देवता को काड़ा (भैंसा) की बलि दी जाती है ।
माघे पर्व
- मनाने का अवसर – माघ माह में मनाया जाता है।
- इस पर्व के साथ ही कृषि वर्ष का अंत होता है तथा नया कृषि वर्ष प्रारंभ होता है।
- यह कृषि श्रमिकों (धांगर) की विदाई का पर्व है।
सावनी पूजा
- मनाने का अवसर – श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को