विदेश नीति foreign policy : SARKARI LIBRARY

विदेश नीति (foreign policy )

  • भारत की विदेश नीति भारत के राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देने के लिए विश्व के अन्य राज्यों के साथ भारत के संबंधों का नियमन करती है। 

भारतीय विदेश नीति के सिद्धांत

विश्व शांति को बढ़ावा देना 

  • भारतीय विदेश नीति का उद्देश्य, अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा को बढ़ावा देना है।
  • संविधान का अनुच्छेद 51 (राज्य के नीति निदेशक) भारतीय राज्य को अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा व शांति बनाए रखने का निर्देश देता है। 
  • राष्ट्र के आर्थिक विकास को बढावा देने के लिए शांति आवश्यक है। 

गैर-उपनिवेशवाद

  • औपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद, साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा कमजोर राष्ट्रों के शोषण को बढ़ावा देता है और अंतर्राष्ट्रीय शांति को प्रभावित करता है। 

गैर-नस्लवाद 

  • नस्लवाद (लोगों के बीच नस्ल के आधार पर विभेद) औपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद की तरह, श्वेतों द्वारा अश्वेतों का शोषण, सामाजिक असमानता तथा विश्व शांति के बढ़ावे में एक बाधा है। 
  • भारत ने जिम्बाबवे (पूर्व में रोडेशिया) तथा नामीबिया की श्वेत शासन से मुक्ति संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। 

गुटनिरपेक्षता 

  • भारत जब स्वतंत्र हुआ, उस समय विश्व दो भागों में विभाजित था, अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीपति भाग तथा भूतपूर्व यू.एस.एस.आर. के नेतृत्व में साम्यवादी भाग
  • ‘शांति युद्ध’ की इस परिस्थिति में भारत ने किसी भी ओर जाने से इनकार कर दिया तथा गुट निरपेक्षता की नीति को अपनाया। 
    • (i) भारत किसी भी समूह में शामिल देश अथवा किसी भी देश के साथ सैन्य सहयोग नहीं करेगा। 
    • (ii) भारतीय विदेश नीति की एक स्वतंत्र दिशा होगी 
    • (iii) भारत सभी देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने का प्रयास करेगा।

5. पंचशील 

  • पंचशील अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिए आचरण के पांच सिद्धांतों को लागू करता है। 
  • यह 1954 में जवाहरलाल नेहरू तथा चाउ-एनलाई, चीन के राष्ट्र प्रमुख के मध्य तिब्बत के संबंध में भारत-चीन संधि की उद्देश्यिका में शामिल हैं। 
  • ये पांच सिद्धांत हैं: 
    • (i) एक दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और प्रभुसत्ता के लिए परस्पर सम्मान; 
    • (ii) गैर-आक्रमण 
    • (iii) एक दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल न देना;
    • (iv) समानता व परस्पर लाभ, और; 
    • (v) शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व।
    • पंचशील तथा गुटनिरपेक्षता, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की कल्पना व प्रयोगों में भारत की महान देन है। 

राष्ट्रमंडल से संबंध 

  • 1949 में, भारत ने राष्ट्रमंडल देशों में अपनी पूर्ण सदस्यता जारी रखने की घोषणा की और ब्रिटिश ताज को राष्ट्रमंडल प्रमुख के रूप में स्वीकार किया। 

Commonwealth Heads of Government Meeting (CHOGM) द्विवार्षिक शिखर बैठक

निःशस्त्रीकरण 

  • भारत की विदेश नीति हथियारों की दौड़ की विरोधी तथा निरस्त्रीकरण की हिमायती है। यह पारंपरिक व नाभिकीय दो प्रकार के हथियारों से संबंधित है। 
  • इसका उद्देश्य शक्तिशाली समूहों के मध्य तनाव कम या समाप्त कर, विश्व शांति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देना है और हथियारों के उत्पादन पर होने वाले अनुपयोगी खर्च को रोककर आर्थिक विकास में गतिशीलता लाना है। 
  • सन 1968 में नि:शस्त्रीकरण संधि तथा 1996 में सी.टी.बी.टी. हस्ताक्षर न करके भारत ने अपने नाभिकीय विकल्प खुल रखे

परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty)

  • एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जो वर्ष 1968 में अस्तित्व में आई। 
  • इसके तीन उद्देश्य हैं- 
    • परमाणु अप्रसार 
    • निरस्त्रीकरण  
    • परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग। 

Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty (व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि)

  • Signed: 10 September 1996
  • विश्व परमाणु उद्योग स्थिति रिपोर्ट (World Nuclear Industry Status Report) 2017 से पता चलता है कि परमाणु रिएक्टरों की संख्या के मामले में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है।

भारत का गुजराल सिद्धांत 

  • गुजराल सिद्धांत भारत की विदेश नीति का एक मील का पत्थर है। 
  • इसका प्रतिपादन 1996 में तत्कालिक देवगौड़ा सरकार के विदेश मंत्री आई.के. गुजराल ने किया था।
  • यह सिद्धांत इस बात की वकालत करता है कि भारत दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा देश होने के नाते अपने छोटे पड़ोसियों को एकतरफा रियायतें दे। 
  • यह भारत में अपने पड़ोसियों के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों को सबसे अधिक महत्व देता है।
  • यह सिद्धांत वास्तव में भारत के अपने निकटतम पड़ोसियों के साथ वैदेशिक संबंधों को स्थापित करने के लिए एक पाँच सूत्री पथ मानचित्र (रोड मैप) है। 
  • ये पाँच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं: – 
    • 1. बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल तथा श्रीलंका जैसे पड़ोसियों के साथ भारत को पारस्परिकता की अपेक्षा  नहीं करके इन्हें नेक नियति से वह सब कुछ प्रदान करना चाहिए जो कि भारत कर सकता है। 
    • 2.किसी भी दक्षिण एशियाई देश को क्षेत्र के किसी अन्य देश में हितों के खिलाफ अपनी भूमि का उपयोग नहीं करने देना चाहिए।
    • 3. किसी भी देश को दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नही करना चाहिए। 
    • 4. सभी दक्षिण एशियाई देशों को एक-दूसरे की क्षेत्रीय शंतिपूर्ण द्विपक्षीय वार्ताओं के माध्यम से हल करना चाहिए। 
    • 5. सभी दक्षिण देशों को अपने विवाद शांतिपूर्ण द्विपक्षीय वार्ताओं के माध्यम से हल करना चाहिए। 
  • गुजराल ने स्वयं स्पष्ट किया था, “गुजराल सिद्धांत के पीछे तर्क यह था कि हमें उत्तर एवं पश्चिम से चूँकि दो मैत्रीपूर्ण पड़ोसियों का सामना करना था। अतः हमें अन्य निकटतम पड़ोसियों के साथ पूर्ण शांति’ की स्थिति सुनिश्चित करनी थी।”

भारत का परमाणु सिद्धांत 

  • भारत ने 2003 में अपना परमाणु सिद्धांत अंगीकार किया। 

भारत की मध्य एशिया को जोड़ो नीति 

  • भारत ने ‘मध्य एशिया को जोड़ों’ नीति की शुरुआत 2012 में  की। 
  • इस नीति का उद्देश्य मध्य एशिया के देशों के साथ भारत के सम्बन्धों का विस्तार तथा सुदृढीकरण हैं इन देशों में शामिल हैं-कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा उज्बेकिस्तान

भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ 

  • 2014 में मोदी सरकार द्वारा घोषित ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’,  ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’  का ही उन्नत रूप है।
  • ‘लुक ईस्ट’ (पूरब की ओर देखो) की शुरुआत 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव ने की थी। 
  • यह विभिन्न स्तरों पर  एशिया-प्रशांत क्षेत्र के साथ आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने हेतु एक राजनयिक पहल है।
  • इस पॉलिसी के तहत द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय स्तरों पर कनेक्टिविटी, व्यापार, संस्कृति, रक्षा और लोगों-से-लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ गहन और निरंतर संपर्क को बढ़ावा दिया जाता है।