सामान्य परिचय (General Introduction)
- भारतीय भूगर्भिक संरचना को विकास पैंजिया के अंगारालैंड (लॉरेंशिया) तथा गोंडवानालैंड के विभाजन से प्रारंभ होता है।
- समय के विभिन्न कालखंडों में गोंडवानालैंड के विभाजन तथा उसके एक भाग के उत्तर में प्रवाह के कारण भारतीय भूगर्भिक संरचना का विकास हुआ।
- भारतीय भूगर्भिक संरचना को ऐतिहासिक कालक्रम के अनुरूप विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।
- यहाँ प्री-कैब्रियनआर्कियन संरचना से लेकर धारवाड़, कुडप्पा, विध्यन तथा टर्शियरीयुगीन विभिन्न भू-स्थलाकृतियों का विकास हुआ।
- यहाँ की प्री-कैंब्रियन युगीन स्थलाकृतियों में जहाँ अरावली पर्वत, छोटानागपुर पठारी क्षेत्र, विंध्यन श्रेणी आदि प्रमुख हैं; वहीं टर्शियरीयुगीन हिमालय पर्वत का विकास भारत के उत्तरी सीमांत क्षेत्र में विभिन्न उपकालखंडों में हुआ है।
भारत के भूगर्भिक संरचनाओं का समय मापक्रम
पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास को मुख्यतः निम्न कालखंडों में विभाजित किया गया है- महाकल्प (Era), कल्प (Period), युग (Epoch)
- नोटः भारत का भूगर्भिक इतिहास अपने आप में विशिष्ट है, क्योंकि यहाँ प्राचीनतम जीवाश्म रहित आग्नेय और कायांतरित चट्टानों से लेकर नवीन जीवाश्म युक्त अवसादी चट्टानों से निर्मित संरचना का विकास हुआ है।
- एक ओर प्रायद्वीपीय भारत जो प्राचीनतम स्थलखंड पैंजिया का भाग है, में आर्कियन काल की प्राचीनतम चट्टानें पाई जाती हैं, तो वहीं दूसरी ओर मैदानी भागों में चतुर्थक काल की नवीनतम चट्टानें पाई जाती हैं।
आर्कियन (Archean)
- सर्वप्रथम गर्म गलित पदार्थों के शीतलीकरण (लावा, मैग्मा के रूपांतरण से) के द्वारा ‘आर्कियन’ संरचना का विकास हुआ, जो ग्रेनाइट और नीस चट्टान से निर्मित प्राचीनतम संरचना है।
- आर्कियन संरचना का विकास आधारभूत चट्टान के रूप में होने के कारण प्रायद्वीपीय पठार के अधिकांश क्षेत्रों में यह नीचे की परतों में चले गए हैं। केवल दक्षिणी पर्वतीय क्षेत्र, बुंदेलखंड के पठार और अरावली पर्वतीय क्षेत्र में यह सतह पर नजर आते हैं। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र की जड़ों में भी आर्कियन संरचना मिलती है।
- आर्कियन क्रम की चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाए जाते हैं।
- आर्कियन क्रम की चट्टानें मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, छोटानागपुर का पठार, मेघालय का पठार, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान और बुंदेलखंड में पाई जाती हैं।
- आग्नेय चट्टान से निर्मित संरचना होने के कारण आर्कियन चट्टानें धात्विक व अधात्विक खनिज संसाधनों के भंडार की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण संरचना है, लेकिन जटिल संरचना होने के साथ गहराई में नीचे की परतों में चले जाने के कारण आर्थिक दृष्टि से इनका दोहन अत्यंत कठिन है।
- प्री-कैंब्रियन काल में अरावली पहाड़ियों का निर्माण मोड़दार पर्वतों के रूप में हुआ था। यह विश्व के सबसे प्राचीन वलित पर्वत है।
धारवाड़ (Dhariwar)
- आर्कियन संरचना में भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन और अपरदन के द्वारा प्राप्त अवसादों के निक्षेपण से ‘धारवाड़‘ संरचना का विकास हुआ, जो जीवाश्म रहित कांयांतरित अवसादी चट्टानी संरचना है। ये सबसे प्राचीन अवसादी चट्टानें हैं।
- धारवाड़ संरचना का सर्वाधिक विकास कर्नाटक के धारवाड़ क्षेत्र में हुआ है। इसके अतिरिक्त अरावली पर्वतीय क्षेत्र, छोटानागपुर पठारी क्षेत्र और मेघालय के शिलॉन्ग रेंज में भी इसका विकास हुआ है।
- भारत में धारवाड़ क्रम की चट्टानें हिमालय की लद्दाख, जास्कर, गढ़वाल व कुमाऊँ श्रेणी में भी पाई जाती हैं।
- धात्विक और अधात्विक खनिज संसाधनों के भंडार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के साथ अवसादी चट्टानों से निर्मित संरचना होने के कारण आर्थिक दृष्टि से इनका दोहन भी आसान है।
- भारत के धात्विक खनिज संसाधन सबसे अधिक धारवाड़ संरचना में ही पाये जाते हैं। इनमें लौह अयस्क, मैंगनीज़, सोना, चांदी,डोलोमाइट, अभ्रक, तांबा आदि प्रमुख हैं।
कुडप्पा (Cuddapah)
- आर्कियन और धारवाड़ संरचना में अपरदन और भौतिक-रासायनिक परिवर्तन से प्राप्त अवसादों के निक्षेपण के द्वारा ‘कुडप्पा’ संरचना का विकास हुआ, जिसमें चूना पत्थर का सर्वाधिक भंडार है। इनमें भी जीवाश्म का अभाव पाया जाता है।
- ‘कुडप्पा संरचना’ का सर्वाधिक विकास आंध्र प्रदेश के ‘कुडप्पा क्षेत्र’ में हुआ है। इसके अतिरिक्त तमिलनाडु के शेवराय, जेवादी पर्वतीय क्षेत्रों, कृष्णा घाटी, पापघानी व चेयार घाटी, अरावली पर्वतीय क्षेत्र एवं छोटानागपुर के पठारी क्षेत्रों में भी इस संरचना का विकास हुआ है।
- धारवाड़ चट्टानों की अपेक्षा कुडप्पा चट्टानें आर्थिक दृष्टि से कम महत्त्वपूर्ण हैं। इन चट्टानों से लोहा, मैंगनीज़, तांबा, निकेल व रंगीन पत्थर प्राप्त किया जाता है।
- ये संरचना बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, एस्बेस्टस और संगमरमर की चट्टानों के लिये प्रसिद्ध हैं।
कुछ विशेष तथ्य
- भारत में पेट्रोलियम पदार्थ पाये जाते हैं- टर्शियरी क्रम की अवसादी चट्टानों में।
- गोंडवाना क्रम की चट्टानें प्रसिद्ध हैं- कोयले के लिये।
- धारवाड़ क्रम की चट्टानें प्रसिद्ध हैं- धात्विक खनिजों के लिये।
- दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ- क्रिटैशियस काल में।
- पृथ्वी पर सबसे व्यापक हिमयुग आया प्लस्टोसीन काल में– गुंज, मिंडेल, रिस, बुर्म।
- अंगारालैंड तथा गोंडवानालैंड के मध्य अवस्थित –टेथिस सागर।
- विंध्यन क्रम की चट्टानों का निर्माण हुआ है- जलनिक्षेपों द्वारा
- देश की वर्तमान स्थलाकृति सुनिश्चित हुई- प्लीस्टोसीन युग में।
विध्यन (Vindhyan)
- कुडप्पा संरचना के अवसादीकरण एवं निक्षेपीकरण से ‘विंध्यन संरचना’ का विकास हुआ।
- ये चट्टानें पूर्व में बिहार के सासाराम व रोहतास क्षेत्र से लेकर पश्चिम में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ क्षेत्र तक तथा उत्तर में आगरा से लेकर दक्षिण में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद तक फैली हुई हैं।
- विध्यन संरचना भी अवसादी चट्टान से निर्मित संरचना है, जिसमें कहीं-कहीं जीवाश्म के भी प्रमाण मिलते हैं।
- विंध्यन संरचना, लाल बलुआ पत्थर और चूना पत्थर चट्टान से निर्मित एक ऐसी संरचना है, जिसमें धात्विक खनिज संसाधनों का अभाव रहता है। भवन निर्माण के पदार्थों के भंडार की दृष्टि से इसका आर्थिक महत्त्व अधिक है।
- साँची का स्तूप, दिल्ली का लाल किला, सिकंदरा में अकबर का मकबरा तथा फतेहपुर सीकरी इत्यादि के स्थापत्य इन्हीं पत्थरों से बने हैं। पन्ना तथा गोलकुंडा की प्रसिद्ध हीरा की खानें विंध्यन क्रम की संरचना में ही पाई जाती हैं।
पैल्योजोइक (Paleozoic)
- गोंडवाना (Gondwana)
- पैल्योजोइक युग में कैंब्रियन से लेकर डेवोनियन युग तक का समय प्रायद्वीपीय भारत में संरचनात्मक विकास के दृष्टिकोण से विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं है, लेकिन इसी समय ‘कार्बोनिफेरस-पर्मियन’ युग में प्रायद्वीपीय भारत में गोंडवाना संरचना का विकास हुआ।
- इस युग में भू-संचलन क्रिया के द्वारा धंसाव की प्रक्रिया से संरचनात्मक बेसिन का निर्माण हुआ, जिसमें अवसादों के निक्षेपण के द्वारा जीवाश्म युक्त अवसादी चट्टान के रूप में ‘गोंडवाना संरचना’ का विकास हुआ। यह ‘बिटुमिनस कोयला’ के भंडार की दृष्टि से भारत की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संरचना है।
- ‘गोंडवाना संरचना’ का संबंध दामोदर, महानदी, गोदावरी, सोन और नर्मदा नदी बेसिन से है, इसलिये प्रायद्वीपीय पठार का पूर्वी क्षेत्र ‘कोयला भंडार’ की दृष्टि से सर्वाधिक संपन्न क्षेत्र है। यहाँ दामोदर नदी बेसिन में गोंडवाना संरचना का सर्वाधिक विकास हुआ है।
मेसोजोइक (Mesozoic)
दक्कन ट्रैप (Deccan Trap)
- मेसोजोइक कल्प के क्रिटैशियस युग में शांत-दरारी प्रकार की ज्वालामुखी प्रक्रिया के द्वारा बेसाल्ट चट्टान से निर्मित संरचना के रूप में ‘दक्कन ट्रैप’ क्षेत्र का निर्माण हुआ है।
- इसके अतिरिक्त इस संरचना का विकास गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप, कर्नाटक के बंगलूरू-मैसूर पठार, तमिलनाडु के कोयंबटूर-मदुरई पठार, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना के पठार और छोटानागपुर के राजमहल पर्वतीय क्षेत्र में भी मिलता है।
- यहाँ पर बेसाल्टी चट्टानों के अपरदन एवं अपक्षयन से काली मृदा का सर्वाधिक विकास हुआ है।
- दक्कन ट्रैप भारत के खनिज संसाधनों से सम्पन्न क्षेत्रों में से एक है।
सेनोजोइक (Cenozoic)
- सेनोजोइक का अर्थ है ‘नवीन जीवन‘। इस काल के दो उपकाल हैं
- सेनोजोइक महाकल्प के टर्शियरी युग में भारतीय और यूरेशियन प्लेट की टक्कर से उत्पन्न संपीडन बल के द्वारा वलन की प्रक्रिया से हिमालय पर्वत की उत्पत्ति हुई है।
- इस प्रक्रिया के तहत सबसे पहले पैलियोसीन और इयोसीन काल के मध्य में टेथिस सागर का संकुचन हुआ, जिससे अंततः ITSZ (Indus Tsangpo Suture Zone) का निर्माण हुआ।
- ओलिगोसीन काल में वलन की प्रक्रिया से वृहद् हिमालय की उत्पत्ति हुई, जबकि ओलिगोसीन के अंत में MCT (Main Central Thrust) संरचना का विकास हुआ।
- मायोसीन काल में ‘लघु/मध्य हिमालय’ की उत्पत्ति हुई, जबकि इसके अंत में MBF (Main Boundry Fault) का विकास हुआ।
- प्लायोसीन के समय ‘शिवालिक हिमालय’ की उत्पत्ति हुई, जो हिमालय की नवीनतम पर्वत शृंखलाओं में से एक है। प्लायोसीन के अंत तक HFF (Himalayan Frontal Fault) संरचना का विकास हुआ। यह एक ऐसी संरचना है, जहाँ से भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट के नीचे क्षेपण हो रहा है।
- प्लीस्टोसीन हिमयुग के बाद हिमालय पर्वतीय क्षेत्र से निकलने वाली नदियों के द्वारा लाए गए अवसादों के निक्षेपण से और जलोढ़ से निर्मित संरचना के रूप में भारत के उत्तरी मैदान की उत्पत्ति हुई। इसी समय समुद्र जल स्तर में होने वाले परिवर्तन के कारण तटीय मैदानों में भी जलोढ़ से निर्मित संरचना का विकास हुआ।
- सेनोजोइक के चतुर्थ उपमहाकल्प के अभिनव एवं अत्यंत नूतन युग में ही विशाल मैदान के बांगर एवं खादर रूप का विकास हुआ। झेलम, नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियों की वेदिकाओं का भी निर्माण इसी काल में हुआ।