न्यायिक सक्रियता judicial activism : SARKARI LIBRARY

 न्यायिक सक्रियता (Judicial activism)

  • न्यायिक सक्रियता की अवधारणा अमेरिका में पैदा हुई और विकसित हुई। 
  • न्यायिक सक्रियता शब्द पहली बार 1947 में आर्थर शेल्सिंगर जूनियर (Arthur Schlesinger Jr.), एक अमेरिकी इतिहासकार द्वारा प्रयुक्त हुई। 
  • ऑर्थर स्लेसिंगर जूनियर ने जनवरी 1947 में फॉर्च्यून पत्रिका में प्रकाशित ‘द सुप्रीम कोर्ट: 1947’ शीर्षक लेख में पहली बार न्यायिक सक्रियता” (Judicial Activism) शब्द का प्रयोग किया था।
  •  भारत में न्यायिक सक्रियता का सिद्धांत 1970 के दशक के मध्य में आया। 
  • न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर, न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती, न्यायमूर्ति ओ. चिन्नप्पा रेड्डी तथा न्यायमूर्ति डी.ए. देसाई ने देश में न्यायिक सक्रियता की नींव रखी।

न्यायिक सक्रियता का अर्थ 

  • नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए तथा समाज में न्याय को बढ़ावा देने के लिए न्यायपालिका द्वारा आगे बढ़कर भूमिका लेने से है। 
  • न्यायपालिका द्वारा सरकार के अन्य दो अंगों (विधायिका एवं कार्यपालिका) को अपने संवैधानिक दायित्वों के पालन के लिए बाध्य करना। 
  • न्यायिक सक्रियता को ‘न्यायिक गतिशीलता’ भी कहते ह। 
  • यह ‘न्यायिक संयम’ के बिल्कुल विपरीत है जिसका मतलब है न्यायपालिका द्वारा आत्म-नियंत्रण बनाए रखना।

Q.”न्यायिक सक्रियतावाद को न्यायिक जोखिमवाद नहीं होना चाहिए” यह किसने कहा था ? JPSC 2021

ANS-न्यायमूर्ति ए एस आनंद

  • भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.एस. आनंद ने एक सार्वजनिक व्याख्यान में कहा कि न्यायिक सक्रियता ‘न्यायिक दुस्साहस’ (Judicial Adventurism) न बन जाए, इसके लिये आवश्यक है कि न्यायाधीश अपने न्यायिक कार्यों के निर्वहन में सतर्कता व आत्म-अनुशासन का पालन करें। न्यायिक सक्रियता का सबसे बड़ा दुष्परिणाम इसकी अप्रत्याशितता है। यदि न्यायाधीश आत्म-संयम का अभ्यास नहीं करेंगे तो प्रत्येक न्यायाधीश स्वयं में ही एक कानून बन जाएंगे और वे अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं पर निर्देश जारी करने लगेंगे, जिससे अराजकता पैदा होगी।
  • कानूनविद् एन.आर. माधव मेनन इसे ”सजग सक्रियतावाद” कहते हैं. 

भारत के उच्चतम न्यायालय की न्यायिक सक्रियता के कारण अनुच्छेद 21 से कई अधिकारों की उत्पत्ति हुई है। 

अनुच्छेद 21 -जीने का अधिकार 

  • अनुच्छेद 21 –जीने का अधिकार  में शामिल ‘जीवन’ (Life) शब्द की व्याख्या केवल जीवित रहने या जैविक अस्तित्व तक सीमित रूप से करने की बजाय गरिमापूर्ण मानव जीवन के रूप में की।
  • सोने के अधिकार (Right to Sleep) को अनुच्छेद 21 का अंग बताया। 
  • अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार में आजीविका का अधिकार भी शामिल है।
  • भोजन के अधिकार को जीवन के अधिकार के अंग के रूप में चिह्नित किया गया (कपिला हिंगोरानी बनाम भारत संघ  मामले में)
  • सुरक्षित पेयजल का अधिकार मूल अधिकारों में से एक है जो जीवन के अधिकार में शामिल है।

 

  • निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) का अधिकार, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा देखभाल का अधिकार, जलकुंडों, तालाब, जंगल आदि का संरक्षण (जो गुणवत्तापूर्ण जीवन सुनिश्चित करते हैं), पारिवारिक पेंशन का अधिकार, विधिक सहायता व विधिक परामर्शदाता पाने का अधिकार, यौन उत्पीड़न के विरुद्ध सुरक्षा का अधिकार, दुर्घटनाओं के मामले में चिकित्सा सहायता का अधिकार, एकांत कारावास के विरुद्ध सुरक्षा का अधिकार, हथकड़ी और ज़ंजीर से बंदी बनाए जाने के विरुद्ध सुरक्षा का अधिकार, त्वरित सुनवाई का अधिकार, पुलिस अत्याचार, यातना और हिरासत में हिंसा के विरुद्ध सुरक्षा का अधिकार, कारावास नियमों के अनुरूप साक्षात्कार देने और आगंतुकों से मिल सकने का अधिकार, न्यूनतम मजदूरी का अधिकार आदि को अनुच्छेद 21 में अभिव्यक्त ‘जीवन के अधिकार’ में शामिल करने का निर्णय लिया गया।

 

  • ‘निजता के अधिकार’ (Right to Privacy) को अनुच्छेद 21 में शामिल माना गया। (आर. राजगोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य ) -न्यायालय ने कहा कि किसी नागरिक को अन्य विषयों के साथ स्वयं की, परिवार की, विवाह, संतानोत्पत्ति, मातृत्व, गर्भधारण, शिक्षा आदि के संबंध में निजता की रक्षा का अधिकार प्राप्त है।

 

  • मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार शामिल है। मानवीय गरिमा के लिये बुनियादी आवश्यकताओं का पूरा होना सबसे महत्त्वपूर्ण है। जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं में पर्याप्त पोषण, वस्त्र, आवास, पढाई-लिखाई एवं विभिन्न तरीकों से स्वयं को अभिव्यक्त करने की सुविधा, निर्बाध विचरण और लोगों के साथ घुलने-मिलने की स्वतंत्रता भी शामिल है।

न्यायिक संयम (Judicial Restraint)

  • न्यायिक संयम न्यायिक व्याख्या का एक सिद्धांत है जो न्यायाधीशों को स्वयं अपनी शक्तियों के प्रयोग को सीमित करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
  • यह ज़ोर देता है कि जब तक विधियाँ स्पष्ट रूप से असंवैधानिक न हों, न्यायाधीशों को उन्हें निरस्त करने से बचना चाहिये।
  • न्यायिक संयम रखने वाले न्यायाधीश पूर्व के न्यायाधीशों द्वारा स्थापित उदाहरणों और उनके निर्णयों का सम्मान करते हैं।