प्रांतीय चुनाव तथा मंत्रिमंडलों का गठन (1937 )
- 1936 में लखनऊ और फैज़पुर में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए कॉन्ग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में सभी गुट चुनाव में हिस्सा लेने के लिये तैयार हो गए।
- जनवरी-फरवरी 1937 में हुए प्रांतीय विधानमंडलों के चुनाव में अपने प्रतिद्वंद्वी दलों का सफाया करते हुए कॉन्ग्रेस ने 11 प्रांतों में से 5 प्रांतों में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया।
- कॉन्ग्रेस बंबई, असम तथा उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी।
- केवल बंगाल, पंजाब तथा सिंध में ही कॉन्ग्रेस बहमत से वंचित रह गई।
- जुलाई 1937 में कॉन्ग्रेस ने मद्रास, संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत, बिहार, बबई तथा उड़ीसा में अपनी सरकारें गठित की, बाद में पश्चिमोत्तर प्रांत और असम में भी कॉन्ग्रेस ने मंत्रिमंडल बनाए। इस तरह कुल 8 प्रांतों में कॉन्ग्रेस ने अपनी सरकार बनायी।
- पंजाब में मुस्लिम लीग और यूनियनिस्ट पार्टी ने संयुक्त सरकार का गठन किया। बंगाल में कृषक प्रजा पार्टी तथा मुस्लिम लीग ने संयुक्त सरकार का गठन किया।
- 1937 के चुनाव में कॉन्ग्रेस ने कुल आठ राज्यों में अपनी सरकारें बनाईं।
- प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिये एक केंद्रीय नियंत्रण परिषद् का गठन किया गया, जिसे संसदीय उपसमिति का नाम दिया गया। इसके सदस्य- सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम प आज़ाद और डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे।
- इस समय प्रांत प्रमुखों को प्रधानमंत्री कहा जाता था।
- कॉन्ग्रेस सरकार ने अपने 28 माह के संक्षिप्त शासनकाल में यह प्रमाणित कर दिया कि वह केवल जनसंघर्षों के लिये ही जनता का नेतत्व नहीं कर सकती बल्कि उनके हित में राजसत्ता का भी प्रयोग कर सकती है।
- इसी समय कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस ने 1938 में राष्ट्रीय योजना समिति नियुक्त की।
- इसके माध्यम से कॉन्ग्रेसी सरकारों ने योजना के विकास में हाथ बँटाने के प्रयास किये।
कॉन्ग्रेस का त्रिपुरी संकट (1939)
- 1938 में हरिपुरा कॉन्ग्रेस के वार्षिक अधिवेशन के लिये सुभाष चंद्र बोस को कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।
- 1939 के त्रिपुरी कॉन्ग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस दुसरी बार अध्यक्ष पद के उम्मीदवार बने। वे गांधीजी के पास उम्मीदवार पट्टाभिसीता रमैय्या को परास्त कर दूसरी बार अध्यक्ष चुन लिये गए। इस हार को गांधीजी ने अपनी व्यक्तिगत हार बताया।
- चुनाव के बाद अधिवेशन में पारित प्रस्ताव द्वारा अध्यक्ष को गांधीजी की इच्छानुसार कार्य समिति के सदस्य नियुक्त करने को कहा गया, लेकिन गांधीजी ने सलाह देने से इनकार कर दिया।
- इस स्थिति में अंततः सुभाष चंद्र बोस ने अप्रैल 1939 में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद को कॉन्ग्रेस अधिवेशन का अध्यक्ष बनाया गया।
- कॉन्ग्रेस से पृथक् होकर 1939 में सुभाष चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की।
अगस्त प्रस्ताव (8 अगस्त, 1940)
- कॉन्ग्रेस के मंत्रिमंडलों से त्यागपत्र के बाद कॉन्ग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मार्च 1940 में रामगढ (तत्कालीन बिहार) में आयोजित किया गया। इसमें ब्रिटिश सरकार के समक्ष यह प्रस्ताव रखा गया कि केंद्र में अंतरिम सरकार गठित की जाए।
- लॉर्ड लिनलिथगो ने द्वितीय विश्व युद्ध में कॉन्ग्रेस का सहयोग प्राप्त करने के लिये उनके समक्ष एक प्रस्ताव रखा, जिसे ‘अगस्त प्रस्ताव’ का नाम दिया गया, जिसमें अंतरिम सरकार के गठन करने की मांग को खारिज कर दिया गया। अगस्त प्रस्ताव में अधोलिखित प्रावधान सम्मिलित थे
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- युद्ध के बाद एक प्रतिनिधिमूलक संविधान निर्मात्री संस्था का गठन किया जाएगा।
- एक युद्ध सलाहकार परिषद् की स्थापना की जाएगी।
- वायसराय कार्यकारिणी परिषद् का विस्तार (भारतीयों की संख्या बढ़ा दी जाएगी) किया जाएगा।
कॉन्ग्रेस के द्वारा अगस्त प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया तथा पाकिस्तान की मांग स्पष्ट रूप से स्वीकार न किये जाने के कारण मुस्लिम लीग ने भी प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की मांग
- मुहम्मद इकबाल को प्रायः मुसलमानों के लिये पृथक् राष्ट्र के विचार का प्रवर्तक माना जाता है।
- इकबाल ने 1930 में मुस्लिमलीग के इलाहाबाद अधिवेशन में ‘द्विराष्ट्र’ के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
- 1933-35 के बीच कैंब्रिज(इंग्लैंड) में पढ़ने वाले चौधरी रहमत अली नामक एक मुस्लिम छात्र ने ‘पाकिस्तान’ शब्द को गढ़ा।
- इनके परिकल्पित पाकिस्तान में पंजाब, अफगान प्रांत, कश्मीर, सिंध तथा बलूचिस्तान को शामिल होना था।
- इस प्रस्ताव की रूपरेखा तैयार करने में फज़लूल हक तथा सिकंदर हयात खाँ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई
- 23 मार्च, 1940 को मुस्लिम लीग का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में संपन्न हुआ। इस अधिवेशन में पाकिस्तान का प्रस्ताव पारित किया गया। इस अधिवेशन की अध्यक्षता मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी।
- पृथक् पाकिस्तान की मांग को पहली बार आंशिक मान्यता 1942 में क्रिप्स प्रस्तावों में मिली। प्रस्तावों में व्यवस्था थी कि ब्रिटिश भारत का कोई राज्य यदि भारतीय गणराज्य से अलग होना चाहे तो उसे आज़ादी मिलेगी।
- 23 मार्च, 1943 को मुस्लिम लीग लीग द्वारा ‘पाकिस्तान दिवस‘ मनाया गया।
- मुस्लिम लीग, ने 29 जून, 1946 को कैबिनेट मिशन योजना ( 1946) को अस्वीकार कर दिया तथा 16 अगस्त को ‘सीधी कार्यवाही दिवस‘ की घोषणा की।
- 1947 में मुस्लिम बहुल प्रांत पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत तथा पूर्वी बंगाल को मिलाकर एक नया राष्ट्रीय स्वतंत्र पाकिस्तान का गठन किया गया
- 14 Aug 1947 को पाकिस्तान बना।
- पाकिस्तान की राजधानी का क्रम
- कराची(1947)—–रावलपिंडी(अस्थायी)—– इस्लामाबाद(1968 )
- 14 अगस्त, 1947 को मुहमद अली जिन्ना पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल बने और लियाकत अली खान प्रथम प्रधानमंत्री बने
व्यक्तिगत सत्याग्रह (17 अक्तूबर, 1940)
कॉन्ग्रेस ने अगस्त प्रस्ताव के विरोध तथा युद्ध में अपने को अलग सिद्ध करने के लिये व्यक्तिगत सत्याग्रह आरंभ किया। यह विचारधारा गांधीजी की थी।
- इस सत्याग्रह का मुख्य उद्देश्य यह था कि द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय जनता ब्रिटिश सरकार के साथ नहीं है।
- व्यक्तिगत सत्याग्रह पवनार आश्रम (महाराष्ट्र) से प्रारंभ किया।
- 17 अक्तूबर, 1940 को विनोवा भावे पहले सत्याग्रही बने। दूसरे सत्याग्रही जवाहरलाल नेहरू थे।
- दो चरण में चलने वाले व्यक्तिगत सत्याग्रह का दूसरा चरण जनवरी 1941 में शुरू किया गया।
- इस सत्याग्रह में लगभग 25000 सत्याग्रही जेल गए, जिसमें कॉन्ग्रेस के कई वरिष्ठ नेता व विधानमंडल के सदस्य भी शामिल थे। .
- इस आंदोलन को ‘दिल्ली चलो आंदोलन’ भी कहा जाता है।
क्रिप्स प्रस्ताव (मार्च 1942)
जापान की लगातार बढ़ती हुई शक्ति से उसके प्रतिद्वंद्वी राष्ट्र परेशान हो गए। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया व चीन आदि देश ब्रिटेन पर भारत को स्वतंत्र करने के लिये दबाव डाल रहे थे। परिणामस्वरूप चर्चिल ने 11 मार्च, 1942 को क्रिप्स मिशन की घोषणा की और 23 मार्च, 1942 को क्रिप्स मिशन (एकल प्रतिनिधि) भारत पहुंचा।
क्रिप्स प्रस्ताव की मुख्य विशेषताएँ अधोलिखित थीं
- क्रिप्स ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटिश नीति का उद्देश्य है, जितनी जल्द संभव हो सके, भारत में स्वशासन की स्थापना अर्थात् युद्ध के बाद भारत को ‘डोमिनियन स्टेटस‘ दिया जाएगा।
- युद्ध के बाद एक ऐसे भारतीय संघ के निर्माण का प्रयत्न किया जाएगा जिसे पूर्ण उपनिवेश का दर्जा प्राप्त होगा और उसे राष्ट्रकुल से अलग होने का अधिकार भी होगा।
- युद्ध के बाद एक संविधान निर्मात्री सभा का गठन किया जाएगा जिसमें ब्रिटिश प्रांतों के चुने हुये प्रतिनिधि तथा देशी रियासतों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
- संविधान सभा द्वारा निर्मित किये गए संविधान को सरकार दो शर्तों पर ही लागू कर सकेगी
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- जो प्रांत इससे सहमत नहीं होंगे वे इसे अस्वीकार कर पूर्ववत् स्थिति में रह सकते हैं या फिर वे पूर्णतया स्वतंत्र रहना चाहते हैं तब भी ब्रिटिश सरकार को कोई आपत्ति नहीं है। पाकिस्तान की मांग के लिये इस व्यवस्था के तहत गुंजाइश बनाई गई।
- भारतीय संविधान सभा तथा ब्रिटिश सरकार के मध्य अल्पसंख्यकों के हितों (यथा-सुरक्षा, आश्वासन, प्रतिनिधित्व, व विकास आदि) को लेकर एक समझौता होगा।
- युद्ध के दौरान ब्रिटिश वायसराय की एक नई कार्यकारी परिषद् का गठन किया जाएगा, जिसमें भारतीय जनता के प्रमुख वर्गों के प्रतिनिधि शामिल होंगे, लेकिन रक्षा मंत्रालय ब्रिटिश नेतृत्व के पास होगा।
- अंततः क्रिप्स की भारतीय नेताओं से बातचीत असफल हो गई क्योंकि इसमें पूर्ण स्वाधीनता की जगह डोमिनियन स्टेटस, संविधान सभा में रियासतों के शासकों द्वारा नामांकित लोगों की मौजूदगी तथा भारत के संभावित विभाजन पर कड़ी आपत्ति थी।
- कॉन्ग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों ने क्रिप्स प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया। कॉन्ग्रेस द्वारा कहा गया कि केवल भविष्य के वादों से संतुष्टि नहीं मिलेगी, हमें तो वास्तविक स्वतंत्रता से संतुष्टि प्राप्त होगी।
- महात्मा गांधी ने क्रिप्स प्रस्तावों को ‘उत्तर दिनांकित चेक’ (Post Dated Cheque) तथा ‘ऐसे बैंक का नाम जो टूट रहा है’ कहा।
- जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि जब मैंने इन प्रस्तावों को पढ़ा तो बुरी तरह मायूस हुआ।
- मुस्लिम लीग ने इन प्रस्तावों की आलोचना इसलिये की क्योंकि इसमें पृथक् निर्वाचक मंडल और सांप्रदायिक आधार पर देश के विभाजन की मांग नहीं मानी गई।
भारत छोड़ो आंदोलन (अगस्त 1942)
- भारत छोड़ो आंदोलन या अगस्त क्रांति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरता और लड़ाकूपन की अद्वितीय मिसाल है जिसने ब्रिटिश शासन की नींव हिलाकर रख दी।
- क्रिप्स मिशन के वापस लौटने के उपरांत, गांधीजी ने एक प्रस्ताव तैयार किया, जिसमें अंग्रेज़ों से तुरंत भारत छोड़ने तथा जापानी आक्रमण होने पर भारतीयों से अहिंसक असहयोग का आह्वान किया गया था।
- गांधीजी ने कॉन्ग्रेस को चुनौती देते हुए कहा कि अगर संघर्ष के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया गया तो “मैं देश की बालू से ही कॉन्ग्रेस से भी बड़ा आंदोलन खड़ा कर दूंगा।”
- फलतः कॉन्ग्रेस कार्यसमिति ने 14 जुलाई, 1942 को वर्धा में अपनी बैठक बुलाई। इसमें संघर्ष के निर्णय को स्वीकृति दे दी गई।
- अगले महीने अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस समिति की बैठक ग्वालिया टैंक (बंबई) में हुई जहाँ इस प्रस्ताव का अनुमोदन कर दिया गया।
अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस कमेटी की बैठक ग्वालिया टैंक, बंबई (8 अगस्त, 1942)
इस बैठक में ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पारित किया गया तथा निम्नलिखित घोषणाएँ की गईं
- भारत में ब्रिटिश शासन को तुरंत समाप्त किया जाए।
- घोषणा की गई कि स्वतंत्र भारत सभी प्रकार की फासीवादी एव साम्राज्यवादी शक्तियों से अपनी रक्षा स्वयं करेगा।
- अंग्रेज़ों की वापसी के पश्चात् कुछ समय के लिये अस्थायी सरकार की स्थापना की जाएगी।
- ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असहयोग का समर्थन किया गया।
- गांधीजी को भारत छोड़ो आंदोलन का नेता घोषित किया गया।
विभिन्न वर्गों को गांधीजी द्वारा निर्देश
इन निर्देशों की घोषणा ग्वालिया टैंक में ही कर दी गई थी
- सरकारी सेवक नौकरी न छोड़ें। परंतु, कॉन्ग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा की घोषणा कर दें।
- सैनिक अपने देशवासियों पर गोली चलाने से इनकार कर दें।
- छात्र पढ़ाई तभी छोड़े, जब आज़ादी हासिल होने तक अपने इस निर्णय पर अटल रह सकें। यदि कोई ज़मींदार सरकार विरोधी हो तो कृषक पारस्परिक हित के आधार पर तय किया गया लगान अदा करते रहें। किंतु, यदि कोई ज़मींदार सरकार समर्थक हो तो उसे लगान अदा करना बंद कर दें।
- राजा-महाराजा जनता को सहयोग करें तथा अपनी प्रजा की संप्रभुता स्वीकार करें।
- देशी रियासतों के लोग शासकों का सहयोग तभी करें जब वे सरकार विरोधी हो तथा सभी स्वयं को राष्ट्र का एक अंग घोषित करें।
इसी अवसर पर गांधीजी ने लोगों से कहा था, “एक छोटा सा मंत्र मैं आपको देता हूँ जिसे आप अपने हृदय में अंकित कर सकते हैं और प्रत्येक साँस में व्यक्त कर सकते हैं; यह मंत्र है- करो या मरो। अर्थात्, या तो हम भारत को आजाद कराएंगे या इस प्रयास में अपनी जान दे देंगे, अपनी गुलामी का स्थायित्व देखने के लिये ज़िन्दा नहीं रहेंगे।”
आंदोलन का प्रसार
- भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान (9 अगस्त, 1942) गांधीजी तथा कॉन्ग्रेस के मुख्य नेताओं को ‘आपरेशन ज़ीरो आवर‘ के तहत गिरफ्तार कर लिया गया।
- गांधीजी को गिरफ्तार कर आगा खाँ पैलेस में रखा गया।
- सरोजिनी नायडू तथा कस्तूरबा गांधी को भी गिरफ्तार कर आगा खाँ पैलेस में रखा गया।
- कॉन्ग्रेस को गैर कानूनी घोषित कर उसकी सारी संपत्ति को जब्त कर लिया गया। साथ ही, कॉन्ग्रेस कार्यकारिणी के अन्य सदस्यों को गिरफ्तार कर अहमदनगर जेल में रखा गया।
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पटना (बाँकीपुर जेल) में नज़रबंद कर दिया गया।
- जय प्रकाश नारायण को गिरफ्तार कर हज़ारीबाग सेंट्रल जेल में रखा गया, जो बाद में जेल की दीवार फांदकर फरार हो गए तथा ‘आज़ाद दस्ता’ (भूमिगत कार्रवाई) नामक दल का गठन किया एवं भूमिगत होकर आंदोलन चलाते रहे।
- ‘करो या मरो’ का नारा समूचे राष्ट्र में गूंज उठा, वरिष्ठ नेताओं की गिरफ्तारी के बाद जनता का आक्रोश बढ़ गया। जगह-जगह हिंसक कार्रवाइयाँ की जाने लगीं। अहमदाबाद, मद्रास, बंगलौर, सहारनपुर, आदि में मजदूरों की हड़तालों से कारखाने बंद हो गए, संचार साधनों को नष्ट कर दिया गया, रेलवे लाइन उखाड़ दी गईं, बिजली के तार काट दिये गए, पुलिस स्टेशन, रेलवे स्टेशन, डाकखाने, सरकारी इमारतों में आग लगा दी गईं।
- 1942 के आंदोलन का सबसे ज़्यादा प्रभाव बंगाल, बिहार, संयुक्त प्रांत, मद्रास और बंबई में था, लेकिन इसकी भागीदारी समूचे भारत में देखी गई।
- सितंबर 1942 के बाद बढ़ते हुये ब्रिटिश दमन के विरुद्ध यह आंदोलन भूमिगत हो गया। गिरफ्तारी से बचे नेता, जैसे- जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, अरुणा आसफ अली आदि ने भूमिगत रहते हुये आंदोलन का नेतृत्व किया और कॉन्ग्रेस की रणनीतिक कार्रवाइयों और महत्त्वपूर्ण सूचनाओं आदि का रेडियो र प्रसारण के द्वारा संचालन किया।
- भूमिगत नेता जिसमें सुचेता कृपलानी, ऊषा मेहता, छोटू भाई पुराणिक, बीजू पटनायक, आर.पी. गोयनका भी शामिल थे, जो बम गोला बारूद जैसी सामग्री एकत्र कर गुप्त संगठनों में बाँटते थे।
- ध्यातव्य हो, रेडियो प्रसारण का कार्य सर्वप्रथम ऊषा मेहता ने प्रारंभ किया।
- आंदोलन के प्रति दमनात्मक कार्रवाई के विरुद्ध गांधीजी ने आगा खाँ पैलेस में 21 दिन (फरवरी 1943) के उपवास की घोषणा कर दी।
- उपवास शुरू करते ही देश-विदेश से उन्हें रिहा करने की मांग तीव्र हो गई। राजभक्त एम.एस. एनी, एन.आर. सरकार और एच.पी. मोदी ने वायसराय की कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया।
- 7 मार्च, 1943 को गांधीजी ने अपनी भूख हड़ताल वापस ले ली।
- उनके खराब स्वास्थ्य के कारण सरकार ने 6 मई, 1944 को उन्हें कैद से रिहा कर दिया।
- ध्यातव्य है कि गांधीजी के जेल से रिहा होने के पूर्व ही उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी व निजी सचिव महादेव देसाई की मृत्यु हो चुकी थी।
नोटः आमरण अनशन के कारण आगा खाँ पैलेस में कैद गांधीजी के स्वास्थ्य में जब तेज़ी से गिरावट आ रही थी तो चिकित्सकों के परामर्श पर ब्रिटिश सरकार द्वारा विचार किया गया था कि यदि गांधीजी मर जाते हैं, तो बंबई सरकार, प्रांतीय सरकारों के पास ‘रुबिकॉन’ कूट शब्द भेज देगी।
समानांतर सरकार की स्थापना
- समानांतर सरकार का गठन
- बलिया में चित्तू पांडे के नेतृत्व में
- सतारा में वाई.वी. चह्वान तथा नाना पाटिल के नेतृत्व में
- यह सरकारें क्रमशः 1944 व 1945 तक चली।
- सतारा की समानांतर सरकार सबसे लंबे समय तक अस्तित्व में रही।
- तामलुक जातीय (राष्ट्रीय) सरकार की स्थापना
- बंगाल के मेदिनीपुर जिले में तामलुक नामक स्थान पर
- यहाँ की सरकार ने सशस्त्र विद्युतवाहिनी का गठन किया।
- इसका अस्तित्व सितंबर 1944 तक रहा।
- इसके अलावा उडीसा के तलचर में भी कुछ समय तक समानांतर सरकार चली।
- औंध रियासत के राजा ने (जिसके राज्य का संविधान गांधीजी द्वारा तैयार किया गया था) इस सब में काफी मदद की।
आंदोलन में आम-जन की भागीदारी
- युवकः मुख्य रूप से स्कूल एवं कॉलेज के छात्रों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
- महिलाएँ: स्कूल, कॉलेज की छात्राओं ने आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभायी। सुचेता कृपलानी, अरुणा आसफ अली तथा ऊषा मेहता के नाम इनमें प्रमुख हैं।
- किसानः पूरे आंदोलन में इनकी सक्रिय भागीदारी रही। बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, केरल तथा संयुक्त प्रांत किसानों की गतिविधियों के मुख्य केंद्र थे।
- सरकारी अधिकारी: विशेष रूप से प्रशासन एवं पुलिस के निचले तबके से संबद्ध अधिकारियों ने आंदोलन में सहयोग दिया, फलतः इस तबके के सरकारी अधिकारियों से सरकार का विश्वास समाप्त हो गया।
- कम्युनिस्टः यद्यपि इनका निर्णय आंदोलन का बहिष्कार करना था, कन, फिर भी स्थानीय स्तर पर सैकड़ों कम्युनिस्टों ने आंदोलन में भाग लिया।
- देशी रियासतें: इनका सहयोग सामान्य था।
- मुस्लिमः इस आंदोलन में मुसलमानों का योगदान संदेहास्पद था, फिर भी मुस्लिम लीग के कुछ सदस्यों ने भूमिगत नेताओं को अपने घरों में पनाह दी।
आंदोलन पर प्रतिक्रिया
- मुस्लिम लीग का जिन्ना गुट, आंदोलन का इसलिये विरोधी था क्योंकि इनका विश्वास था कि अंग्रेजों के जाने के बाद यहाँ जंगल राज उत्पन्न हो जाएगा।
- 23 मार्च, 1943 को मुस्लिम लीग ने ‘पाकिस्तान दिवस’ मनाने का आह्ववान किया।
- मुस्लिम लीग ने दिसंबर 1943 में कराची में हुए अधिवेशन में ‘विभाजन करो और छोड़ो (Divide and Quit)’ का नारा दिया।
- अति उदारवादी नेता तेज बहादुर सप्रू ने भारत छोड़ो आंदोलन को अविचारित तथा असामयिक माना।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर ने आंदोलन के बारे में कहा कि “कानून व व्यवस्था को कमजोर करना पागलपन है जब दुश्मन हमारी सीमा पर हैं।”
आज़ाद हिंद फौज व सुभाष चंद्र बोस
- जनवरी 1941 में सुभाष चंद्र बोस अचानक गायब हो गए।
- आज़ाद हिंद फौज का विचार सबसे पहले मोहन सिंह के मन में आया
- मोहन सिंह ब्रिटेन की भारतीय सेना के अधिकारी थे।
- 1 सितंबर, 1942 को आज़ाद हिंद फौज की पहली डिवीज़न का गठन किया गया।
- 2 जुलाई, 1943 को सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर पहुंचे।
- इन्हें आज़ाद हिंद फौज का सर्वोच्च सेनापति घोषित किया गया।
- 21 अक्तूबर, 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार की स्थापना की।
- इस सरकार ने मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
- सुभाष चंद्र बोस ने रानी झाँसी रेजिमेंट के नाम से एक महिला रेजिमेंट भी बनाई।
- आज़ाद हिंद फौज के तीन अन्य ब्रिगेडों के नाम
- सुभाष ब्रिगेड
- नेहरू ब्रिगेड
- गांधी ब्रिगेड
- सुभाष चंद्र बोस का नारा
- ‘दिल्ली चलो’
- ‘तुम मुझे खून दो, मैं तम्हें आज़ादी दूंगा‘
- 6 जुलाई, 1944 को सुभाष चंद्र बोस ने रेडियो पर बोलते हुए गांधीजी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया
- “भारत की स्वाधीनता का आखिरी यद्ध शुरू हो चुका है। ! भारत की मुक्ति के इस पवित्र युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ चाहते हैं।”
- जापान की सेना द्वारा अंडमान और निकोबार द्वीप को सुभाष चंद्र बोस की सरकार को सौंप दिया गया।
- अंडमान का नाम – ‘शहीद द्वीप‘ रखा गया।
- निकोबार का नाम – ‘स्वराज द्वीप’ रखा गया।
- अप्रैल 1944 में भारतीय राष्ट्रीय सेना का झंडा ,मोइरांग (मणिपुर) में फहराया गया।
- 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार हुआ
- आज़ाद हिंद फौज के सिपाहियों को भी जापानी सेना के साथ आत्मसमर्पण करना पड़ा।
- सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर से जापान की ओर भागे।
- संभवतः वह ताइपेई हवाई अड्डे पर एक विमान दुर्घटना में 18 अगस्त, 1945 को मारे गए।
लाल किला मुकदमा (1945)
- 1945 में आज़ाद हिंद फौज के सिपाहियों पर मुकदमा चलाने का निर्णय लिया।
- ‘आज़ाद हिंद फौज राहत तथा जाँच समिति’ का गठन : कॉन्ग्रेस ने आई.एन.ए. के सिपाहियों को बचाने के लिये किया।
- बचाव पक्ष के वकीलों में भूलाभाई देसाई प्रमुख थे
- उनके सहयोग हेतु तेज बहादुर सपू, काटजू तथा जवाहरलाल नेहरू ने भी अदालत में बहस की।
- आजाद हिंद फौज के सिपाही सरदार गुरुबख्श सिंह, श्री प्रेम सहगल व शाहनवाज़ पर मुकदमा चलाया गया।
- यद्यपि कोर्ट मार्शल ने उन्हें दोषी पाया
- परंतु वायसराय लॉर्ड वेवेल ने उनका दंड क्षमा कर दिया।
सी.आर. फॉर्मूला या राजाजी फॉर्मूला, 1944
- राजगोपालाचारी – मद्रास के नेता थे, कॉन्ग्रेस और मुस्लिम लीग के मध्य समझौते के पूर्ण पक्षधर थे।
- 1944 में गांधीजी की स्वीकृति से उन्होंने कॉन्ग्रेस तथा मुस्लिम लीग के समझौते की योजना प्रस्तुत की, जो इस प्रकार है
- मुस्लिम लीग, भारतीय स्वतंत्रता की मांग का समर्थन करे।
- प्रांतों में अस्थायी सरकारों की स्थापना के कार्य में मुस्लिम लीग कॉन्ग्रेस की सहायता करे। युद्ध समाप्ति के पश्चात् एक कमीशन उत्तर-पूर्वी तथा उत्तर-पश्चिमी भारत में उन क्षेत्रों को निर्धारित कर, जहाँ मुस्लिम स्पष्ट बहमत में है। उस क्षेत्र में जनमत सर्वेक्षण कराया जाए तथा उसके आधार पर तय किया जाएगा कि वह भारत में रहना चाहते हैं या नहीं।
- देश के विभाजन की स्थिति में आवश्यक विषयों यथा- प्रतिरक्षा, वाणिज्य, संचार तथा आवागमन इत्यादि के संबंध में दोनों के मध्य संयुक्त समझौता किया जाए।
- इस योजना को पूरी तरह तभी लागू किया जाए जब अंग्रेज़ पूर्णरूपेण सत्ता हस्तांतरित कर दें।
- नोट: जिन्ना ने इस फॉर्मूले को यह कह कर अस्वीकृत कर दिया कि “उन्हें दीमक लगा सड़ा-गला पाकिस्तान नहीं चाहिये।”
वेवेल योजना तथा शिमला सम्मेलन (1945)
- अक्तूबर 1943 में लिनलिथगो की जगह लॉर्ड वेवेल भारत के वायसराय बनकर आये। इस समय भारत की स्थिति अत्यधिक तनावपूर्ण थी।
- 14 जून, 1945 को वेवेल द्वारा ‘वेवेल योजना’ प्रस्तुत की गई जिसके प्रावधान अधोलिखित थे
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- केंद्र में एक नई कार्यकारी परिषद् का गठन हो जिसमें वायसराय तथा कमांडर इन चीफ के अलावा शेष सदस्य भारतीय हों।
- कार्यकारी परिषद् एक अंतरिम व्यवस्था थी जिससे तब तक देश का शासन चलाना था जब तक नए स्थायी संविधान पर आम सहमति नहीं हो जाती है।
- वेवेल प्रस्ताव पर विचार-विमर्श हेतु जून 1945 में शिमला सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें 21 भारतीय राजनीतिक नेताओं ने हिस्सा लिया। कॉन्ग्रेस की तरफ से मौलाना अबुल कलाम आज़ाद तथा मुस्लिम लीग की तरफ से जिन्ना ने प्रतिनिधित्व किया।
- सम्मेलन में जिन्ना द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव कि वायसराय की कार्यकारिणी के सभी मुस्लिम सदस्य लीग से ही लिये जाएँ क्योंकि मुस्लिम लीग ही सभी मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था है, यह सम्मेलन की असफलता का प्रमुख कारण बना।
नोट: गांधीजी ने सम्मेलन में भाग नहीं लिया, लेकिन वे शिमला में उपस्थित रहे।
शाही नौसेना विद्रोह (18-23 फरवरी, 1946)
- रॉयल इंडियन नेवी के विद्रोह की शुरुआत 18 फरवरी को हुई, जब बंबई में नौसैनिक जहाज़ ‘एच.एम.आई.एस. तलवार‘ के 1100 नाविकों ने नस्लवादी भेदभाव और खराब भोजन के प्रतिवाद में हड़ताल कर दी।
- सैनिकों की मांग यह भी थी कि नाविक बी.सी. दत्त को (जिसे जहाज़ की दीवारों पर भारत छोड़ो लिखने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया) रिहा किया जाए।
- नौसेना के इस विद्रोह को बंबई, कराची के नाविकों का पूरा सहयोग मिला। इस नौसेना विद्रोह में इंकलाब-जिंदाबाद, जय-हिंद, हिंदू-मुस्लिम एक हो, ब्रिटिश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, आज़ाद हिंद फौज के कैदियों को रिहा करो, आदि नारे लगाये गए।
- इस विद्रोह के समर्थन में बंबई में एक अभूतपूर्व हड़ताल का आयोजन किया गया। इसमें बड़ी संख्या मजदूरों ने हिस्सा लिया। उनके प्रदर्शनों में तीन झंडे एक साथ चलते थे- कॉन्ग्रेस का तिरंगा, लीग का हरा झंडा और बीच में कम्युनिस्ट पार्टी का लाल झंडा।
- इस देशव्यापी विस्फोट की स्थिति में वल्लभभाई पटेल ने हस्तक्षेप किया। पटेल व जिन्ना ने उन्हें आत्मसमर्पण की सलाह दी।
- विद्रोहियों ने आत्मसमर्पण करते हुए कहा कि, “हम भारत के सामने आत्मसमर्पण कर रहे हैं, ब्रिटेन के सामने नहीं।”
कैबिनेट मिशन (1946)
- फरवरी 1946 में लेबर पार्टी के नवनिर्वाचित नेता एटली ने भारतीय नेताओं से अनौपचारिक स्तर पर बातचीत करने के लिये एक संसदीय दल (कैबिनेट मिशन) को भारत भेजने का निर्णय लिया।
- 24 मार्च, 1946 को कैबिनेट मिशन भारत आया।
- कैबिनेट मिशन के सदस्यों में शामिल थे-
- सर स्टैफोर्ड क्रिप्स
- ए.वी. अलेक्जेंडर
- पेथिक लॉरेंस।
- भारत में कैबिनेट मिशन की घोषणा करते हुए पेथिक लॉरेंस ने कहा कि “इसका उद्देश्य भारत के लिये संविधान तैयार करने के लिये शीघ्र ही एक कार्यप्रणाली तैयार करना तथा अंतरिम सरकार हेतु आवश्यक प्रबंधन करना है।” कैबिनेट मिशन के प्रमुख प्रावधान अधोलिखित थे- .
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- कैबिनेट मिशन ने पृथक् पाकिस्तान की मांग को अस्वीकृत कर दिया।
- ब्रिटिश भारत तथा देशी राज्यों को मिलाकर एक अखिल भारतीय संघ का निर्माण होना चाहिए। जो रक्षा, विदेशी मामले तथा संचार साधनों की देखभाल करे तथा इसके लिए आवश्यक कर लगाए।
- संघ की कार्यपालिका एवं विधानमंडल में ब्रिटिश भारत .तथा रियासतों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। किसी महत्त्वपूर्ण सांप्रदायिक मुद्दे पर यह आवश्यक हो कि विधानमंडल में दोनों मुख्य संप्रदायों (हिंदू व मुस्लिम) के विधायक (प्रतिनिधि) अलग-अलग मत देकर उसका समर्थन करें।
- केंद्रीय विषयों को छोड़कर शेष सभी मामलों में प्रांतों को पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त होगी तथा अवशिष्ट शक्तियाँ (Residual Power) उन्हीं में निहित होंगी।
- प्रांतों को ग्रुप या समूह या गुट बनाने का पूरा अधिकार होगा, साथ ही इन गुट या समूहों के क्या-क्या अधिकार होंगे इसका निर्धारण वे स्वयं करेंगे। समूह ‘क’ में हिंदू बहुमत वाले छः प्रांत (मद्रास, बंबई, मध्य प्रांत, संयुक्त प्रांत, बिहार और उड़ीसा) निहित किए गए। समूह ‘ख’ में मुस्लिम बहुमत वाले तीन प्रांत (पंजाब, सिंध तथा उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र) रखे गए। बंगाल तथा आसाम को समूह ‘ग’ में रखा गया। मुख्य आयुक्त (चीफ कमीश्नरी) के प्रांत, दिल्ली, अजमेर-मारवाड़ और कुर्ग को समूह ‘क’ में तथा बलूचिस्तान को समूह ‘ख’ में रखा गया।
- संविधान सभा के गठन के संबंध में कैबिनेट मिशन ने वयस्क मताधिकार पर आधारित निर्वाचन व्यवस्था को ख़ारिज करते हुए प्रति 10 लाख जनसंख्या पर एक सदस्य के अप्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था को स्वीकार किया।
- कैबिनेट मिशन ने एक अंतरिम सरकार के गठन का भी सुझाव दिया।
संविधान सभा का चुनाव (1946)
- जुलाई 1946 में कैबिनेट मिशन के तहत चुनाव हुए।
- 296 सीटों में से भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस को 208 सीटें, मुस्लिम लीग को 73 सीटें एवं 15 सीटें अन्य छोटे समूहों को प्राप्त हुईं।
- मुस्लिम लीग, ने 29 जून, 1946 को कैबिनेट मिशन योजना को अस्वीकार कर दिया
- 16 अगस्त को ‘सीधी कार्यवाही दिवस’ की घोषणा की।
- प्रतिक्रियास्वरूप हिंदू बहुसंख्यक प्रांत बिहार के मुसलमानों पर अत्याचार हुआ। इसके प्रतिकार के रूप में नोआखली और टिप्पड़ाह में हिंदुओं पर अत्याचार हुए। गांधीजी शांति व्यवस्था बहाल करने के लिये नोआखाली गए। तर गांधीजी के विवेक और साहस को देखकर ही माउंटबेटन ने उन्हें ‘वन मैन बाउंड्री फोर्स’ की उपाधि प्रदान की।
- संविधान सभा के चुनाव के पश्चात् 9 दिसंबर, 1946 को दिल्ली में पहली बैठक हुई।
- सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थाई अध्यक्ष चुना गया
- 11 दिसंबर की दूसरी बैठक में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष बनाया गया।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
- इस तरह 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में भारतीय संविधान बनकर तैयार हुआ।
- संविधान सभा कई समितियों में विभक्त की गई थी।
अंतरिम सरकार का गठन- अगस्त 1946 में
कॉन्ग्रेस द्वारा वायसराय के नवीनतम प्रस्तावों को स्वीकार कर लेने के बाद अगस्त 1946 में वेवेल ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को अंतरिम सरकार के गठन के लिये निमंत्रण दिया।
- अंतरिम सरकार के सदस्यों में पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई र पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आसफ अली, राजगोपालाचारी, डॉ. जॉन मथाई, सरदार बलदेव सिंह, जगजीवन राम, सी.एच. भाभा इत्यादि शामिल थे।
- पं. नेहरू ने 2 सितंबर, 1946 को 12 सदस्यीय मंत्रिमंडल के साथ अपने पद की शपथ ली, मंत्रिमंडल में 3 मुस्लिम सदस्य थे जो मुस्लिम लीग के सदस्य नहीं थे।
- लीग अपने 5 मनोनीत सदस्यों के साथ सरकार में प्रवेश कर सके, इसके लिये द्वार खुला रखा गया।
- अक्तूबर 1946 में अंतरिम सरकार में लीग के पाँच प्रतिनिधि शामिल हो गए।
- मुस्लिम लीग का अंतरिम सरकार में शामिल होना सहयोगी नहीं बल्कि, पाकिस्तान की मांग की लड़ाई को आगे बढ़ाने का स्वार्थ निहित था।
- नवंबर 1946 में वायसराय ने संविधान सभा की पहली बैठक हेतु निर्वाचित प्रतिनिधियों को निमंत्रण भेजा।
- 9 दिसंबर, 1946 को दिल्ली में संविधान सभा की पहली बैठक हुई, जिसका मुस्लिम लीग ने बहिष्कार किया।
- बहिष्कार को देखते हुये ब्रिटिश सरकार ने निर्णय लिया कि संविधान सभा के निर्णय मुस्लिम बहुल राज्यों में लागू नहीं होंगे।
एटली की घोषणां (20 फरवरी, 1947)
- ब्रिटेन में श्रमिक दल के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने 20 फरवरी, . 1947 को हाउस ऑफ कॉमन्स में घोषणा की कि वे जून 1948 से पहले भारतीयों को सत्ता सौंप देंगे।
- एटली ने लॉर्ड वेवेल के स्थान पर लॉर्ड माउंटबेटन को वायसराय नियुक्त किया।
लॉर्ड माउंटबेटन योजना (3 जून योजना)
- 24/22 मार्च, 1947 को भारत के अंतिम वायसराय के रूप में लॉर्ड माउंटबेटन भारत आए जिनका एकमात्र उद्देश्य था, अतिशीघ्र भारत को पूर्ण स्वतंत्रता देना। लगभग 2 माह की बातचीत के उपरांत माउंटबेटन इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि विभाजन ही एकमात्र विकल्प है।
- अत: 20 फरवरी, 1947 को एटली के वक्तव्य के दायरे में भारत विभाजन की एक योजना तैयार की।
- कॉन्ग्रेस की ओर से विवशता की स्थिति में पं. नेहरू एवं सरदार पटेल ने विभाजन योजना को स्वीकार लिया, परंतु गांधीजी अंत तक विभाजन का कड़ा विरोध करते रहे।
- गांधीजी के शब्दों में “यदि सारा भारत भी आग की लपटों में घिर जाए, फिर भी पाकिस्तान नहीं बन सकेगा। यदि कॉन्ग्रेस विभाजन चाहती है तो वह मेरे मृत शरीर पर ही होगा क्योंकि जब तक मैं जीवित हूँ भारत को विभाजित नहीं होने दूंगा।” लेकिन मुस्लिम लीग द्वारा अंतरिम सरकार के काल में पैदा हई परेशानियों से थककर वल्लभभाई पटेल ने कहा कि “जिन्ना विभाजन चाहते हैं या नहीं, अब हम स्वयं विभाजन चाहते हैं।”
- अंतत: 3 जून को माउंटबेटन ने भारत के विभाजन के साथ सत्ता हस्तांतरण की एक योजना प्रस्तुत की, जिसे माउंटबेटन योजना के अलावा ‘3 जून योजना’ भी कहा जाता है।
- योजना के मुख्य बिंदु
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- पंजाब और बंगाल में हिंदू-मुसलमान बहुसंख्यक जिलों के प्रांतीय विधानसभा के सदस्यों की अलग बैठक बुलायी जाए उनके प्रतिनिधियों को यह निश्चय करना था कि प्रांत का विभाजन हो अथवा नहीं।
- विभाजन होने की दशा में दो डोमिनियनों तथा दो संविधान सभाओं का निर्माण किया जाएगा।
- उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत तथा असम के सिलहट जिले में, है जनमत संग्रह द्वारा यह पता लगाया जाएगा कि वे भारत के किस भाग के साथ रहना चाहते हैं।
- विभाजन के गतिरोध को दूर करने के लिये एक सीमा आयोग का गठन किया जाएगा।
- योजना में कॉन्ग्रेस की भारत की एकता की मांग को अधिक से अधिक पूरा करने की कोशिश की गई, जैसे खान अब्दुल गफ्फार खाँ (सीमांत गांधी) ने विभाजन पर आक्रोश व्यक्त किया और कहा कि “कॉन्ग्रेस नेतृत्व ने उसके आंदोलन को भेड़ियों के आगे फेंक दिया।”
- अंत में नेहरू, पंत, कृपलानी और गांधीजी ने भी विभाजन स्वीकार कर लिया।
बाल्कन प्लान/डिक्री बर्ड प्लान/इस्मा योजना
- माउंटबेटन ने भारत की आज़ादी के लिये डिक्री बर्ड प्लान तैयार किया। यह योजना सर हेस्टिंग्स, सर जॉर्ज एबेल एवं लॉर्ड माउंटबेटन की एक समिति द्वारा तैयार की गई थी। यह योजना दिल्ली में प्रांतीय गवर्नरों की असेंबली के सम्मुख हेस्टिग्स इस्मा द्वारा प्रस्तुत की गई, इसलिये इसे (इस्मा योजना) भी कहा जाता है।
- इस योजना का विवरण माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू के सामने रखा था, जिसे उन्होंने तुरंत अस्वीकार कर दिया और बताया कि यह योजना भारत के ‘बाल्कनीकरण’ को आमंत्रित करेगी और संघर्ष एवं हिंसा को भड़काएगी।
- अतः इस योजना को बाल्कन प्लान भी कहा जाता है।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947
- माउंटबेटन योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद ने 18 जुलाई, 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 पारित किया।
- इस अधिनियम के द्वारा ही 3 जून को माउंटबेटन योजना को स्वीकृति दी गई।
- अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ-
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- 15 अगस्त, 1947 से भारत को, ‘भारत ‘और ‘पाकिस्तान’ नामक दो भागों में बाँट दिया जाएगा।
- प्रत्येक अधिराज्य में एक गवर्नर जनरल होगा जिसकी नियुक्ति इंग्लैंड का सम्राट करेगा।
- नए संविधान का निर्माण होने तक दोनों राज्यों का प्रशासन भारत शासन अधिनियम, 1935 के अनुसार चलाया जाएगा।
- इसने भारतीय रियासतों को यह स्वतंत्रता दी कि वे चाहें तो भारत डोमिनियन या पाकिस्तान डोमिनियन के साथ मिल सकती हैं या स्वतंत्र रह सकती हैं।
नोट:
- लॉर्ड माउंटबेटन को स्वतंत्र भारत का प्रथम ब्रिटिश गवर्नर जनरल बनाया गया और नेहरू जी को प्रधानमंत्री
- 14 अगस्त, 1947 को जिन्ना पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल बने।
देशी रियासतों का आज़ादी में योगदान तथा विलय
- भारत शासन अधिनियम, 1935 द्वारा सांविधानिक रूप से देशी रियासतों को ब्रिटिश इंडिया से जोड़ने की योजना बनाई गई थी।
- इस अधिनियम के तहत देशी रियासतों को मिलाकर एक संघीय स्वरूप प्रदान करना था।
- वर्ष 1938-39 में देशी रियासतों में नई चेतना का विकास हुआ और बड़ी संख्या में प्रजामंडलों का गठन हुआ।
- जयपुर, कश्मीर, राजकोट, पटियाला, हैदराबाद, मैसूर, ट्रावणकोर और उड़ीसा रियासतों में व्यापक स्तर पर संघर्ष हुए।
इन व्यापक संघर्षों को शेख अब्दुल्ला, यू.एन. ढेबर, जमनालाल बजाज, जय नारायण व्यास आदि ने नेतृत्व प्रदान किया।
- द्वितीय विश्व युद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों में ब्रिटिश इंडिया और देशी रियासतों में कॉन्ग्रेस ने कोई भेद नहीं किया और अब रियासतें भी भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में सम्मिलित हो गईं।
- 1939 में लुधियाना में राज्यपाल कॉन्फ्रेंस हुई जिसका अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को बनाया गया। अब ब्रिटिश इंडिया तथा देशी रियासतों के आंदोलन एक-दूसरे से जुड़ गए।
- द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद देशी रियासतों के एकीकरण की समस्या उठ खड़ी हुई जिसे सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा बड़ी समझदारी और सूझबूझ से सुलझाया गया।
- अधिकांश-रियासतों ने कूटनीतिक प्रयासों, सैन्य बल तथा जनआंदोलन के खौफ से भारत में विलय का निर्णय लिया तो वही कुछ रियासतों ने विलय दस्तावेज़ (इंस्ट्रमेंट ऑफ ऐक्सेशन) पर हस्ताक्षर कर दिये।
- 15 अगस्त, 1947 तक कमोबेश सभी रियासतें भारतीय संघ में शामिल हो गईं। कुछ रियासतें, जैसे- जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर ने अपनी स्वाधीनता को बनाये रखने का प्रयास किया।
जूनागढ़
- जूनागढ़, सौराष्ट्र(Gujrat ) के तट पर एक छोटी सी रियासत थी.
- यहाँ के नवाब ने 15 अगस्त, 1947 को अपने राज्य का विलय पाकिस्तान के साथ घोषित कर दिया।
- हिंदू जनता ने भारत में विलय के लिये जनांदोलन छेड़ दिया।
- दीवान शहनवाज़ भुट्टो ने भारत सरकार को हस्तक्षेप के लिये आमंत्रित किया।
- फरवरी 1948 में रियासत में एक जनमत संग्रह सी जूनागढ़ रियासत का भारत में विलय हो गया।
हैदराबाद
- यह भारत की सबसे बड़ी रियासत थी।
- नवंबर 1947 में हैदराबाद की जनता ने निज़ाम के विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया, जिससे भारतीय सेना ऑपरेशन पोलो’ या ‘कैटरपिलर’ के तहत हैदराबाद में 13 सितंबर, 1948 को प्रवेश कर गई।
- निज़ाम ने आत्मसमर्पण कर दिया।
- नवंबर 1948 में भारतीय संघ में विलय को निज़ाम ने स्वीकार कर लिया।
जम्मू-कश्मीर
- यहाँ का शासक हिंदू तथा अधिकांश जनता मुस्लिम थी।
- शासक हरि सिंह किसी एक देश में विलय होने के बजाय स्वतंत्र रहना चाहते थे, लेकिन
- नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता शेख अब्दुल्ला भारत में कश्मीर का विलय चाहते थे
- जबकि भारत चाहता था कि कश्मीरी जनता जनमत संग्रह द्वारा इसका निर्णय ले।
- 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तानी पठान कबाइलियों ने कश्मीर में घुसपैठ कर दी।
- 26 अक्टूबर1947 में कश्मीर को बचाने के लिये राजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय’ नामक विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये
- रियासत का प्रमुख – शेख अब्दुल्ला को
- भारत सरकार 30 दिसंबर, 1947 को माउंटबेटन की सलाह पर कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में भेजने के लिये तैयार हो गई जिसमें पाकिस्तान द्वारा अतिक्रमण किये गए क्षेत्रों को खाली करवाने का आग्रह किया गया था।
- 1951 में संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें पाक अधिकृत कश्मीर (POK) से पाकिस्तान की सेनाओं को वापस हटा लिये जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र की देख-रेख में एक जनमत संग्रह का प्रावधान था।
यूरोपीय बस्तियों का एकीकरण
फ्रांसीसी बस्तियाँ
- फ्रांस के अधिकार क्षेत्र – चंद्रनगर, पॉण्डिचेरी, कराईकल, माहे आदि
- 1 नवंबर 1954 को इन चारों क्षेत्रों का नियंत्रण भारत को प्राप्त हुआ।
- 1956 में भारत तथा फ्राँस के मध्य विलय संबंधी संधि हुई
- 1962 में इस संधि को फ्रांसीसी संसद द्वारा अनुमोदित किये जाने पर, भारत को इन क्षेत्रों का वैधानिक अधिकार भी प्राप्त हो गया।
पुर्तगाली बस्तियाँ
- गोवा, दमन और दीव तथा दादरा और नागर हवेली को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया।
- 1987 में गोवा को एक स्वतंत्र राज्य बना दिया गया।