पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Origin and Development of Earth : SARKARI LIBRARY

पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास (Origin and evolution of earth)

आरंभिक विचारधारा (Early Ideology) 

पृथ्वी एवं जगत् की उत्पत्ति संबंधी आरंभिक विचारधाराओं में यूनानी/ग्रीक दार्शनिकों एवं विद्वानों का योगदान रहा है, जो निम्नलिखित हैं

थेल्स 

  •  ‘थेल्स’ के एकतत्त्ववाद सिद्धांत के अनुसार,
  •  ‘जल’ से ही सभी वस्तुओं की उत्पत्ति होती है और अंततः इसी में सभी वस्तुएँ विलीन हो जाती हैं।

 एनेक्जीमेनीज 

  • इन्होंने जगत् की उत्पत्ति का मूल कारण ‘वायु’ को माना है। 
  • इन्होंने ‘बहुतत्त्ववाद’ का समर्थन किया। 

पाइथागोरस 

  • इसने किसी एक पदार्थ को संसार की उत्पत्ति का कारण न मानकर उसके स्वरूप (पदार्थ का) को इसका कारण माना। 

हेराक्लीटस 

  • इन्होंने जगत् की उत्पत्ति का मूल कारण ‘अग्नि’ को माना है।
  • अग्नि से जल और पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है। 

वर्तमान/आधुनिक विचारधारा (Modern Ideology)

वर्तमान समय में ग्रहों की उत्पत्ति संबंधी विचारधाराओं को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है. 

  • 1. अद्वैतवादी संकल्पना (Monistic Theory) 
  • 2. द्वैतवादी संकल्पना (Dualistic Theory)

अद्वैतवादी संकल्पना (Monistic Theory)

  • इस विचारधारा के समर्थकों का मानना है कि 
    • ग्रहों (पृथ्वी और अन्य) की उत्पत्ति एक ही वस्तु/पिंड से हुई है। 
    • अद्वैतवादी संकल्पना को ‘पैतृक परिकल्पना’ (Parental Hypothesis) भी कहा जाता है। 
  • इस समस्या (जिसमें सौरमंडल की उत्पत्ति एक ही तारे से हुई है) को सुलझाने के लिये अनेक विद्वानों ने अपने विचार विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किये। 
    • इस दिशा में सर्वप्रथम 1749 में ‘कॉम्टे द बफ़न’ (Comte de Buffon) (फ्रांसीसी वैज्ञानिक) ने तार्किक विचार रख वैज्ञानिक पहल की शुरुआत की, जो अब-तक जारी है।
    • इनके अनुसार एक धूमकेतु के सूर्य से टकराने से उत्पन्न मलबों से ग्रहों की उत्पत्ति हुई है। 
  • अद्वैतवादी विचारधारा के समर्थकों में कांट एवं लाप्लास का सिद्धांत अधिक महत्त्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध है। इनकी प्रमुख संकल्पनाएँ निम्न हैं
    • कांट की वायव्य राशि परिकल्पना 
    • लाप्लास की निहारिका परिकल्पना 

कांट की वायव्य राशि परिकल्पना (Gaseous Mass Theory of Kant) 

  •  इसका प्रतिपादन कांट (जर्मन दार्शनिक) ने 1755 में न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियमों के आधार पर किया था। 
  • इस सिद्धांत के अनुसार, 
    • ब्रह्मांड में दैव निर्मित पदार्थों के छोटे-छोटे कण उपस्थित थे जो अत्यंत कठोर, शीतल एवं गतिहीन थे। 
    • गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ये कण एक-दूसरे से टकराने लगे, जिसके परिणामस्वरूप ऊष्मा एवं भ्रमण गति की उत्पत्ति हुई। 
  • छोटे-छोटे कण मिलकर बड़े पिंडों में तथा बड़े-बड़े पिंड मिलकर विशाल पिंडों में परिवर्तित होने लगे। अंततः विशाल गैसीय पिंड (निहारिका) की उत्पत्ति हुई।
  • निहारिका की अत्यधिक घूर्णन गति के कारण ऊष्मा में वृद्धि हुयी , जिसके कारण अपकेंद्रीय बल (Centrifugal Force), अभिकेंद्रीय बल (Centripetal Force) से अधिक हो गया। 
  • इस तप्त एवं घूमते हुए निहारिका से गोल आकार के अनेक छल्ले (Rings) निकला जो शीतल होकर ग्रहों में परिवर्तित हो गए। 
  • इस प्रकार कांट के अनुसार, पृथ्वी की उत्पत्ति अपकेंद्रीय बल (Centrifugal Force) द्वारा निहारिका से अलग हुए छल्ले के पदार्थों के एक स्थान पर गाँठ के रूप में जमकर ठोस होने से हुई। 
  • मौलिक निहारिका का जो भाग अवशिष्ट रह गया, वह सूर्य के रूप में परिवर्तित हो गया। कालांतर में उपर्युक्त प्रक्रिया की पुनरावृत्ति के कारण ग्रहों से उनके उपग्रहों का निर्माण हुआ। 

लाप्लास की निहारिका परिकल्पना  (Nebular Hypothesis of Laplace) 

  • फ्रांसीसी विद्वान लाप्लास ने निहारिका परिकल्पना का वर्णन 1796 में अपनी पुस्तक ‘Exposition du systeme du monde’ (The System of the World) में किया। 
  • लाप्लास ने कांट की परिकल्पना की कमियों को दूर करके अपना संशोधित विचार व्यक्त किया था। 
  • लाप्लास के मतानुसार, 
    • अतीत में ब्रह्मांड में एक गतिशील एवं तप्त महापिंड था जो मंद गति से घूर्णन कर रहा था। 
    • इस गर्म तथा मंद गति से घूमते हुए गैस के बादल को ‘निहारिका’ (नेबुला) कहा गया। 
    • इसी के आधार पर इस परिकल्पना का नाम ‘निहारिका परिकल्पना’ रखा गया। 
  • समय बीतने के साथ-साथ निहारिका की गति के कारण विकिरण तथा ऊष्मा का ह्रास होने से इसका बाहरी भाग शीतल होने लगा। इस प्रकार निहारिका में निरंतर शीतलन के कारण संकुचन होने से उसके आकार और आयतन में कमी आने लगी। आयतन में कमी के कारण निहारिका की गति में निरंतर वृद्धि होने लगी।
  • घूर्णन गति में वृद्धि से अपकेंद्रीय बल(centrifugal force) में वृद्धि हुई। जब अपकेंद्रीय बल गुरुत्वाकर्षण बल से अधिक हो गया तब निहारिका से एक छल्ला अलग हुआ और कई छल्लों में खंडित हो गया। वे छल्ले ठंडे होकर ग्रह और उपग्रह बन गए तथा निहारिका का शेष भाग हमारा सूर्य है। 
  • बाद में फ्रांसीसी विद्वान रॉस ने लाप्लास की परिकल्पना में संशोधन किया। 
    • रॉस के मतानुसार, निहारिका से कई पतले छल्ले अलग-अलग समय में अलग हो गए तथा प्रत्येक छल्ला घनीभूत होकर ग्रह बन गया। इसी क्रम में लगातार गतिशीलता के कारण समस्त ग्रहों की उत्पत्ति हुई।

द्वैतवादी संकल्पना (Dualistic Concept) 

  • इस विचारधारा के समर्थकों का मानना है कि 
    • ग्रहों की उत्पत्ति दो पदार्थों/पिंडों/तारों के संयोग/संपर्क से हुई है। 
    • इसलिये इस संकल्पना को ‘bi-parental concept’ के नाम से भी जाना जाता है। 

चैंबरलिन तथा मोल्टन की ग्रहाणु  परिकल्पना (Planetesimal Hypothesis of Chamberlin and Moulton) 

  • ग्रहाणु परिकल्पना का प्रतिपादन ‘चैंबरलिन तथा मोल्टन’ ने 1905 (अन्य स्रोतों में 1900) में किया था। 
  • इसके अनुसार 
    • ग्रहों का निर्माण दो विशाल तारों, सूर्य एवं उसके एक सहायक तारे से हुआ है। 
  • उनके अनुसार, जब सहायक तारा सूर्य के पास से गुज़रा तो उसके आकर्षण बल के कारण सूर्य की सतह से असंख्य छोटे-छोटे कण बाहर आकर अलग हो गए जिन्हें ‘ग्रहाणु’ कहा गया। 
  • यह तारा जब सूर्य से दूर चला गया तो सूर्य की सतह से बाहर निकले हुए ये पदार्थ सूर्य के चारों तरफ घूमने लगे और यही धीरे-धीरे संघनित(condensed) होकर ग्रहों के रूप में परिवर्तित हो गए।

जेम्स जींस व जेफरी की ज्चारीय परिकल्पना (Jeans-Jeffreys Tidal Hypothesis) 

  • ज्वारीय परिकल्पना का प्रतिपादन 1919 में ‘जेम्स जींस’ ने किया। 
  • ‘जेफ़री’ ने 1929 में जींस की विचारधारा को संशोधित किया था। 
  • इस परिकल्पना के अनुसार, 
    • ग्रहों का निर्माण सूर्य एवं तारे के संयोग से हुआ है। 
  • सूर्य के निकट एक तारे के आने से सूर्य में ज्वारीय उद्भेदन(tidal eruption) के कारण एक फिलामेंट (तंतु) रूपी संरचना का निर्माण हुआ, जो बाद में टूटकर सूर्य का चक्कर लगाने लगा और ठंडा होकर कई टुकड़ों में विभक्त हो गया। अंततः इसी फिलामेंट से ही विभिन्न ग्रहों की उत्पत्ति हुई। 
  • जेफ़री ने ‘ज्वारीय परिकल्पना’ का संशोधित रूप प्रस्तुत किया। इनके अनुसार, दो तारों (सूर्य तथा पास आता तारा) के अलावा एक और तारा था, जिसे उन्होंने सूर्य का साथी तारा बताया। जेफ़री के मतानुसार आगे बढ़ता हुआ तारा, सूर्य के इसी साथी तारे से टकराकर कई भागों में बिखर गया जिससे ग्रहों का निर्माण हुआ।

रसेल की द्वैतारक परिकल्पना (Binary Star Hypothesis of Russell) 

  • द्वैतारक परिकल्पना का प्रतिपादन अमेरिकी खगोल विज्ञानी ‘एच. एन. रसेल‘ ने किया था। 
  • इस परिकल्पना के अनुसार,
    • आदिकाल में सूर्य के अतिरिक्त दो और तारे थे जिसमें से एक साथी तारा सूर्य की परिक्रमा कर रहा था। 
  • कुछ समय पश्चात् साथी तारा एक विशालकाय दूसरे तारे के संपर्क में आया जो इसकी तरफ आ रहा था किंतु उसकी परिक्रमा की दिशा साथी तारे के विपरीत थी। जब ये तारे नज़दीक आने लगे तो इनमें आकर्षण बल बढ़ने लगा।
  • विशालकाय तारे के ज्वारीय बल और गुरुत्वाकर्षण बल की अधिकता के कारण साथी तारे से कुछ पदार्थ विशालकाय तारे की ओर आकर्षित होकर उसी की दिशा में चक्कर लगाने लगे। 
  • इसी पदार्थ से आगे चलकर ग्रहों का निर्माण हुआ। इन ग्रहों में आपसी आकर्षण बल के कारण ग्रहों से निकले पदार्थों से उपग्रहों का निर्माण हुआ होगा।

फ्रेड होयल तथा लिटिलटन की अभिनव तारा परिकल्पना 

  • ‘फ्रेड होयल एवं लिटिलटन’ ने मिलकर 1939 में ‘अभिनव तारा रकल्पना’ का प्रतिपादन किया। 
  • इस परिकल्पना के अनुसार, ग्रहों की उत्पत्ति तीन तारों से हुई है। 
  • ग्रहों का निर्माण सूर्य के साथी तारे के विस्फोट से हुआ है। साथी तारे के विस्फोट से बिखरे धूलकण एवं गैसें, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने लगे और अंततः संगठित होकर ग्रहों का निर्माण किया। 

ऑटो श्मिड की अंतरतारक धूल परिकल्पना  (Interstellar Dust Hypothesis of Otto Schmidt) 

  • अंतरतारक धल परिकल्पना रूसी वैज्ञानिक ‘ऑटो श्मिड’ द्वारा 1943 में प्रस्तुत की गई थी। 
  • इस परिकल्पना के अनुसार, जब सूर्य आकाशगंगा के पास से गुजर रहा था तो सूर्य के आकर्षण बल से कुछ गैसीय बादल सहित धूल के कण भी आकर्षित होकर सूर्य के चारों तरफ परिक्रमा करने लगे।
  •  प्रारंभ में गैस और धूल के कण अव्यवस्थित रूप में सूर्य का अलग-अलग चक्कर लगा रहे थे। गैस कम होने की वजह से अधिक अव्यवस्थित थी, जबकि धूल के कण संख्या में अधिक होने के कारण कम अव्यवस्थित थे। 
  • परिणामस्वरूप धूल के कण घनीभूत(condensed) होकर चपटी तस्तरी(flat plate) के रूप में बदल गए। अधिक संघनन(compaction) से कई चरणों में गुजरने के बाद ग्रहों तथा उपग्रहों का निर्माण हुआ होगा।

लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर (Large Hadron Collider )

  • यह दुनिया का सबसे शक्तिशाली कण त्वरक (Particle Accelerator) है, जिसका उद्देश्य ब्रह्मांड की उत्पत्ति का पता लगाना है। 
  • इसे 10 सितंबर, 2008 को पहली बार शुरू किया गया था। 
  • यह प्रयोग स्विट्ज़रलैंड- फ्रांस की सीमा पर जेनेवा के पास लगभग 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में किया गया, जिसे यूरोपीय भौतिक विज्ञान प्रयोगशाला (CERN) द्वारा संचालित किया जा रहा है। 
  • इस सुरंग में लगी पाइप के अंदर दो उच्च ऊर्जा एवं गति वाले किरण-पुंजों (Beams) को विपरीत दिशाओं से प्रवाहित किया गया जिसकी गति प्रकाश के समान थी। इन किरण-पुंजों के आपसी टक्कर से अल्पांश समय के लिये वह स्थिति उत्पन्न हुई जो 13.7 अरब वर्ष पूर्व ब्रह्मांड की उत्पत्ति के समय ‘बिग बैंग’ के कारण उत्पन्न हुई थी।
  • European Organization for Nuclear Research, known as CERN

गुरुत्वीय तरंगों(Gravitational waves) से बिग बैंग सिद्धांत की पुष्टि

  • गुरुत्वीय तरंगें समस्त ब्रह्मांड में गमन करने वाली लहरें हैं। 
  • इनके अस्तित्व का पूर्वानुमान अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा 1916 में ‘सापेक्षता के सिद्धांत’ के प्रतिपादन में किया गया था। 
  • ये तरंगें प्रकाशीय तरंगों से भिन्न हैं। ये तरंगें किसी परमाणु से भी लाख गुना छोटी होती हैं।
  • माना जाता है कि ब्रह्मांड में करीब 1.3 अरब वर्ष पूर्व दो ब्लैक होलों में जोरदार टक्करों के कारण एक विशाल गुरुत्वाकर्षण तरंग पैदा हुई थी जो 14 सितंबर, 2015 को प्रथम बार पृथ्वी पर पहुंची (दूसरी बार 11 फरवरी, 2016 को पहुँची)। 
  • इस नई खोज़ में खगोलविदों ने अत्याधुनिक एवं बेहद संवेदनशील लेज़र इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जरवेटरी (LIGO)का इस्तेमाल किया 
  • इन तरंगों से आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत, बिग बैंग सिद्धांत एवं ब्रह्मांडीय विस्तार की पुष्टि हुई है। 
  • LIGO -Laser Interferometer Gravitational-Wave Observatory 
  • लीगो-इंडिया (Ligo-India) 
  • लीगो-इंडिया (Ligo-India) की वेधशाला ‘हिंगोली जिले’ (महाराष्ट्र) में स्थापित की जाएगी  और यह भारत की पहली वेधशाला होगी। 

नोट: 

  • वर्ष 2017 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार गुरुत्वीय तरंगों के अवलोकन(observe) के लिये तीन वैज्ञानिकों-रेनर विस (Rainer Weiss), बैरी।सी. बैरिश (Barry C. Barish) और किप एस. थॉर्न (Kip S. Thorne) को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया। 

स्थलमंडल, जलमंडल एवं वायुमंडल  ( Lithosphere, Hydrosphere and Atmosphere) 

  • शैलों(rocks) से निर्मित पृथ्वी के भू-भाग को ‘स्थलमंडल‘ कहते हैं। 
  • पृथ्वी पर जल वाले भाग को ‘जलमंडल‘ कहते हैं 
  • पृथ्वी के चारों ओर पाये जाने वाले गैसों के आवरण को ‘वायुमंडल‘ कहते हैं। 
  • तीनों मंडलों के मिलने से निर्मित मंडल को ‘जैवमंडल‘ कहते हैं, जिस पर पृथ्वी के सभी जीवों का जीवन निर्भर है।
  • जैवमंडल = स्थलमंडल  + वायुमंडल + जलमंडल 
  • biosphere = lithosphere + atmosphere + hydrosphere

स्थलमंडल ( Lithosphere) 

  • पृथ्वी के तीन परत है , 
    • भूपर्पटी(crust)
    • मेंटल (Mantel ) 
    • क्रोड (core)
  • पृथ्वी की ऊपरी परत को ‘स्थलमंडल’ की संज्ञा दी जाती है। 
  • यह क्रस्ट (भू-पर्पटी) व ऊपरी मेंटल से मिलकर निक्षेपण द्वारा निर्मित मैदान होती है।
  • स्थलमंडल पृथ्वी का सबसे कठोर भाग होता है। इसे दो भागों महासागरीय स्थलमंडल तथा महाद्वीपीय स्थलमंडल में वर्गीकृत किया जाता है। 
  • महासागरीय क्रस्ट ,महाद्वीपीय क्रस्ट से अधिक घनत्व का है जबकि महाद्वीपीय क्रस्ट महासागरीय क्रस्ट से अधिक मोटा है लेकिन इसका घनत्व महासागरीय क्रस्ट की अपेक्षा कम है। 
  • स्थलस्वरूपों का निर्माण पृथ्वी के आंतरिक एवं बाह्य बलों के पारस्परिक प्रभावों के कारण होता है। 
  • धरातल पर पाये जाने वाले तीन प्रमुख स्थलस्वरूप- पर्वत, पठार और मैदान हैं।
  • नोट: पृथ्वी के ऊपरी भाग से आंतरिक भाग तक पदार्थ का घनत्व बढ़ता जाता है।

पर्वत (Mountain) 

  • ऐसे भूखंड जो निकट स्थलाकृतियों से काफी ऊँचे (कम-से-कम 500 मीटर) होते हैं तथा जिनका आधार चौडाशीर्ष नुकीला एवं जो लंबी श्रृंखलाओं व पहाड़ी समूहों के रूप में अवस्थित होते हैं, उन्हें ‘पर्वत’ की संज्ञा दी जाती है, जैसे- हिमालय, एंडीज़, रॉकी आदि। 
  • निर्माण प्रक्रिया के आधार पर पर्वत चार प्रकार के होते हैं, जिनका वर्गीकरण निम्नलिखित है

वलित पर्वत’ या ‘मोडदार पर्वत (Fold Mountain) 

  • अभिसरण प्लेट सीमांत पर प्लेटों की टक्कर के फलस्वरूप अधिक संपीडन बल से वलन की प्रक्रिया द्वारा निर्मित स्थलाकृति को ‘वलित पर्वत’ या ‘मोडदार पर्वत’ की संज्ञा दी जाती है। 
  • हिमालय, रॉकीज, एंडीज़ शृंखला वलित पर्वत के उदाहरण हैं। 
  • विश्व की सबसे ऊँची चोटियाँ इन्हीं नवीन मोड़दार पर्वतों में पाई जाती हैं। 
fold Mountain
fold Mountain

 

ब्लॉक पर्वत (Block Mountain)

  • दो भ्रंश घाटियों के मध्य अवस्थित शीर्ष स्थलखंड को ब्लॉक पर्वत’ कहते हैं। 
  • स्थलखंड के दोनों किनारों पर तनावमूलक बल(tensional force) के कारण अवतलन(subsidence) की प्रक्रिया से भ्रंश घाटियों का निर्माण होता है। 
  •  पाकिस्तान की साल्ट रेंज व भारत की सतपुडा पर्वत श्रेणी आदि ब्लॉक पर्वत के उदाहरण हैं। कैलिफोर्निया का ‘सिएरा नेवादा’ पर्वत विश्व का सबसे अधिक विस्तृत ब्लॉक पर्वत है। 
Block Mountain
Block Mountain

 

ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountain) 

  • ज्वालामुखी उद्गार से निकले पदार्थों के जमाव से निर्मित शंकु या पर्वतनुमा स्थलाकृति को ‘ज्वालामुखी पर्वत’ की संज्ञा दी जाती है। 
  • अमेरिका का माउंट रेनियर, जापान का माउंट फ्यूजीयामा व तंजानिया का माउंट किलिमंजारो आदि इसके उदाहरण हैं। 

अवशिष्ट पर्वत (Residual Mountain) 

  • ऐसे पर्वत जिनका अपरदन की क्रियाओं द्वारा अधिकांश भाग अपरदित हो चुका है और वर्तमान में सिर्फ अवशेष रूप में अवस्थित हों, उन्हें ‘अवशिष्ट पर्वत’ की संज्ञा दी जाती है। 
  • भारत में अरावली, सतपुड़ा, विंध्यन तथा अमेरिका की अप्लेशियन पर्वत श्रेणी आदि अवशिष्ट पर्वत के उदाहरण हैं।

पठार (Plateau) 

  • ये पृथ्वी पर द्वितीयक क्रम के उच्चावच हैं। 
  • आस-पास की भू-सतह से ऊँचे (सामान्यतः सागर तल से 300 मीटर से 1000 मीटर) उठे भाग, जिनके शिखर सपाट मेजनुमा(flat table-shaped)आधार अत्यधिक चौड़े तथा ढाल मंद(slopes are slow) होते हैं, उन्हें ‘पठार’ की संज्ञा दी जाती है। 
  • जैसे- दक्कन का पठार, तिब्बत का पठार, कोलंबिया का पठार आदि इसके उदाहरण हैं। 

भौगोलिक स्थिति एवं संरचना के आधार पर पठारों का वर्गीकरण

  • भौगोलिक स्थिति एवं संरचना के आधार पर पठारों को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
    • अंतरापर्वतीय पठार (Intermontane Plateau)
    • गिरिपदीय पठार (Piedmont Plateau) 
    • महाद्वीपीय पठार(Continental Plateau)

 

अंतरापर्वतीय पठार (Intermontane Plateau)

  • चारों ओर से ऊँची पर्वत श्रेणियों से घिरे पठारों को ‘अंतरापर्वतीय पठार’ कहते हैं, जैसे- तिब्बत का पठार, बोलिविया का पठार आदि। 
Intermontane Plateau
Intermontane Plateau

         

गिरिपदीय पठार (Piedmont Plateau) 

  • पर्वत की तलहटी में स्थित पठार, जिनके दूसरी ओर समुद्र या मैदान हो, ‘गिरिपदीय पठार’ कहलाते हैं, जैसे- पेटागोनिया का पठार (दक्षिण अमेरिका), पीडमॉण्ट पठार (उत्तर अमेरिका) आदि। 

Piedmont Plateau
Piedmont Plateau

 

महाद्वीपीय पठार(Continental Plateau)

  • धरातल के विस्तृत भू-भाग के ऊपर उठने से बने पठार ‘महाद्वीपीय पठार’ कहलाते हैं। इन पठारों को ‘शील्ड’ भी कहते हैं, जैसे- भारत का प्रायद्वीपीय पठार, कनाडियन शील्ड आदि।

   

Continental Plateau
Continental Plateau

 

विश्व के प्रमख पठार व उनकी अवस्थिति पठार

पठार

अवस्थिति

तिब्बत का पठार

मध्य एशिया 

मंगोलिया का पठार

उत्तरी मध्य चीन तथा मंगोलिया

भारतीय प्रायद्वीपीय पठार 

भारत का दक्षिणी प्रायद्वीपीय भाग

ग्रेट बेसिन पठार

संयुक्त राज्य अमेरिका

तुर्की या अनातोलिया का पठार 

तुर्की

युन्नान का पठार

म्याँमार, चीन, वियतनाम, लाओस

ऑस्ट्रेलिया का पठार

ऑस्ट्रेलिया

कोलंबिया पठार

संयुक्त राज्य अमेरिका

कोलोरैडो पठार

संयुक्त राज्य अमेरिका

ग्रीनलैंड पठार

ग्रीनलैंड

यूकॉन या अलास्का का पठार

अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका)

अबीसीनिया या इथियोपिया का पठार

पूर्वी अफ्रीकी राज्यों- इथियोपिया एवं सोमालिया में विस्तृत

मेसेटा का पठार

स्पेन का आइबेरियन प्रायद्वीप

 

मैदान (Plain)

  • यह सामान्यतः समतल भू-भाग होता है। 
  • इनकी ऊँचाई समद्री तल से लगभग 150 मी. होती है। 
  • अधिकतर मैदानों का निर्माण नदियों द्वारा अपरदित पदार्थों (कंकड़, पत्थर, बालू आदि) के जमाव द्वारा होता है, जैसे- ह्वांगहो का मैदान, गंगा का मैदान, सिंधु का मैदान आदि। 

बनावट के आधार पर मैदानों का वर्गीकरण 

  • बनावट के आधार पर मैदानों को तीन प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं
    1. संरचनात्मक मैदान 
    2. अपरदन द्वारा निर्मित मैदान
    3. निक्षेपणात्मक मैदान 

संरचनात्मक मैदान (Structural Plains)

  • महाद्वीपीय निमग्न तट के उत्थान(uplift) अथवा भूमि के नीचे धंसने(subsidence) के कारण बने मैदान को ‘संरचनात्मक मैदान’ कहते हैं। 

अपरदन द्वारा निर्मित मैदान (Erosional Plains) 

  • पर्वत और पठारों के लंबे समय तक अपरदन से बने मैदान ‘अपरदन जनित मैदान’ कहलाते हैं। 

निक्षेपणात्मक मैदान (Depositional Plains) 

  • अपरदन के कारकों (नदी, पवन, हिमानी आदि) के द्वारा प्रवाहित कर लाए गए पदार्थों के निक्षेपण से निर्मित मैदान को ‘निक्षेपणात्मक मैदान’ कहते हैं, 
  • जैसे- गंगा का मैदान (जलोढ़ मृदा से निक्षेपण द्वारा निर्मित मैदान), लोएस मैदान (पवन द्वारा निर्मित) आदि।

समप्राय भूमि (Peneplain) 

  • नदियों के द्वारा पर्वतों के अपरदन के फलस्वरूप निक्षेपण(deposit) द्वारा समतल भूमि के रूप में निर्मित मैदान को ‘समप्राय भूमि’ या ‘पेनीप्लेन’ कहते हैं। 
  • इन क्षेत्रों में पाई जाने वाली कठोर शैलों को ‘मोनेडनॉक/Monadnock‘ कहते हैं।

मरुस्थल (Desert) 

  • मरुस्थल स्थलखंड के शुष्क व अर्द्धशुष्क(dry and semi-arid) भाग हैं। 
  • मरुस्थल मुख्यतः उपोष्ण उच्च वायुदाब(subtropical high pressure) वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं, जहाँ प्रतिचक्रवातीय(anticyclonic) दशाएँ व तापीय प्रतिलोमन(thermal inversion) की स्थिति बनती है। 
  • मरुस्थलीय क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा वाष्पीकरण की दर से अत्यंत कम होती है। 
  • उष्ण मरुस्थल के निर्माण के लिये कुछ विशेष स्थितियाँ. जैसे- 
    • हवाआ का अवरोहण(उच्च से निम्न स्तर) 
    • प्रतिचक्रवाती दशाएँ, 
    • ठंडी जलधाराओं का प्रभाव
    • तापीय प्रतिलोमन(thermal inversion) की स्थिति 
    • आद्रता युक्त व्यापारिक पवनों का अभाव इत्यादि उत्तरदायी माने जाते हैं। 

विश्व के प्रमुख मरुस्थल व उनकी अवस्थिति

मरुस्थल 

अवस्थिति

सहारा

उत्तरी अफ्रीका

गिब्सन, ग्रेट विक्टोरिया, ग्रेट सैंडी

ऑस्ट्रेलिया

गोबी

मंगोलियाचीन

कालाहारी

बोत्सवाना, नामीबिया, दक्षिण अफ्रीका

अटाकामा

उत्तरी चिली व दक्षिणी पेरू

तकला मकान

चीन

दस्त-ए-लुट

पूर्वी ईरान

दस्त-ए-कबीर

उत्तर-पूर्वी ईरान

पेटागोनिया

अर्जेंटीना

थार

भारत और पाकिस्तान

  • पृथ्वी की सतह का वर्गीकरण
  • महाद्वीपपृथ्वी के बड़े स्थलीय भू-भाग को ‘महाद्वीप’ कहते हैं। 
  • महासागरीय बेसिन- पृथ्वी पर बड़े जलाशयों को ‘महासागरीय बेसिन’ कहते हैं।

 

महाद्वीप (Continent)

  • पृथ्वी पर 7 महाद्वीप पाये जाते हैं, जिनका क्षेत्रफल की दृष्टि से (घटते क्रम) क्रम है- 

1. एशिया

2. अफ्रीका

3. उत्तर अमेरिका

4. दक्षिण अमेरिका

5. अंटार्कटिका

6. यूरोप

7. ऑस्ट्रेलिया

 

जलमंडल 

  • महासागरों, नदियों, झीलों, हिमनदियों, मृदा एवं वायुमंडल में तरल, ‘ ठोस तथा गैस की अवस्था में उपस्थित समस्त जल को ‘जलमंडल’ कहा जाता है। 
  • धरातल का लगभग दो-तिहाई से भी अधिक भाग जल से ढंका है। अर्थात् 70.8 प्रतिशत भाग जल तथा 29.2 प्रतिशत भाग स्थल है। जलमंडल में महासागर, झील, नदियाँ, भूमिगत जल, हिमनदियाँ आदि सभी सम्मिलित होते हैं। 
  • जलमंडल में महासागर सबसे बड़े जलखंड हैं। जल का लगभग 97 प्रतिशत भाग महासागरों में पाया जाता है, जो लवणीय होने के कारण पीने योग्य नहीं होता है। शेष 3 प्रतिशत का अधिकांश भाग हिमचादरों, हिमनदियों एवं भूमिगत जल के रूप में पाया जाता है। 

महासागर (Ocean) 

  • विशाल जलाशय, जो महाद्वीपों के द्वारा एक-दूसरे से अलग हैं तथा जो जलमंडल के मुख्य भाग हैं, को ‘महासागर’ कहते हैं। 
  • विश्व में पाँच प्रमुख महासागर, आकार के घटते क्रमानुसार निम्नलिखित हैं- 

क्षेत्रफल

km2

Volume

(%

क्षेत्रफल

(%)

1. प्रशांत महासागर

(Pacific Ocean) 

168,723,000

50.1%

46.6 %

2.अटलांटिक महासागर 

(Atlantic Ocean)

85,133,000

23.3

23.5%

3. हिंद महासागर 

(Indian Ocean)

70,560,000

19.8

19.5%

4. दक्षिण महासागर  

(Southern Ocean)

21,960,000

5.4

6.1%

5. आर्कटिक महासागर 

(Arctic Ocean)

15,558,000

1.4

4.3%

coastline(km)

deepest point

1. प्रशांत महासागर

(Pacific Ocean) 

135,663 

Mariana Trench

11,034 meters

2.अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean)

111,866

S-shape.

Puerto Rico Trench

Milwaukee Deep(8,380)

1912 में टाइटैनिक का डूबना

3. हिंद महासागर 

(Indian Ocean)

66,526

4. दक्षिण महासागर  (Southern Ocean)

17,968

5. आर्कटिक महासागर (Arctic Ocean)

45,389

  • Sourcs-https://www.worldatlas.com/articles/the-oceans-of-the-world-by-size.html
  • the world’s second-longest trench—the Java Trench

largest island in the world.

Greenland

2,166,086 sq km

New Guinea

821,400 sq km

Borneo

748,168 sq km

Madagascar 

587,295 sq km

Baffin

507,451 sq km

 

 

जैवमंडल (Biosphere) 

  • एक ऐसा सीमित क्षेत्र, जहाँ भूमि, जल एवं वायु एक-दूसरे के संपर्क में आकर जीवों के लिये अनुकूल दशाएँ प्रदान करते हैं, ‘जैवमंडल’ कहलाता है। मनुष्य सहित सभी प्राणी, जीवित रहने के लिये जीवमंडल में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
  • जैवमंडल = वायुमंडल +जलमंडल + स्थलमंडल
  • यह वायुमंडल में ऊर्ध्वाधर(vertically) रूप से लगभग 15 किमी ऊपर तक विस्तृत है। क्षैतिज रूप से जैवमंडल लगभग समस्त पृथ्वी को घेरे हुए है। 

जैवमंडल के घटक (Components of Biosphere)

  • जैवमंडल के तीन मूल घटक हैं
    • अजैविक घटक (Abiotic Components)
    • जैविक घटक (Biotic Components) 
    • ऊर्जा घटक (Energy Components)

अजैविक(Abiotic Components) 

  • इन घटकों में वे सभी अजैविक तत्त्व(निर्जीव ) सम्मिलित होते हैं, जो सभी जीवित जीवों के लिये आवश्यक होते हैं, जैसे- स्थलमंडल, वायुमंडल और जलमंडल। सामान्यतः इनको वायु, जल एवं मृदा से संबोधित किया जाता है। 

जैविक घटक (Biotic Components) 

  • पौधे, जीव-जंतु और सूक्ष्म जीव, पर्यावरण के तीन प्रमुख जैविक घटक हैं।

ऊर्जा घटक (Energy Components)

  • यह जैवमंडल का तीसरा घटक है। यह घटक जीवन के लिये आवश्यक है। 
  • जैवमंडल में ‘सूर्य’, ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है।

भूगर्भिक समय मापक्रम एवं उसकी विशेषताएँ

  • वर्तमान समय में पृथ्वी के भूगर्भिक संरचना के विकास क्रम के काल को विभिन्न कालों में बाँटा गया है।  
    • इयॉन (EONS)
    • महाकल्प (ERA) 
    • कल्प (PERIOD)
    • युग (EPOCH) 

महाकल्प 

(Era)

कल्प

(Period)

युग

(Epoch) 

जीवन/मुख्य घटनाएँ

(Life/Major Events) 

13.7 अरब वर्ष पहले – 5 अरब वर्ष 

गैसीय पिंड 

ब्रह्माण्ड की उत्पति 

सूर्य की उत्पति

Pre-Cambrian 

5 अरब वर्ष – 57 करोड़ वर्ष 

महाद्वीप व् महासागरों का निर्माण 

नील हरित शैवाल एककोशिकीय जीव 

कई जोड़ो वाले जीव 

Paleozoic

पुराजीव

57 करोड़ वर्ष -24.5 करोड़ वर्ष 

Cambrian 

स्थल पर जीवन नहीं 

जल में बिना रीढ़ की हड्डी वाले जिव 

Ordovician 

पहली मछली 

Silurian 

स्थल पर जीवन-पौधे 

Devonian 

स्थल व जल पर रहने वाले जिव 

Carboniferous

(गोंडवाना संरचना का विकास )

पहले रेंगने वाले जीव 

रीढ़ की हड्डी वाले जिव

Permian

(गोंडवाना संरचना का विकास ) 

रेंगने वाले जीवो की अधिकता 

Mesozoic

24.5 करोड़ वर्ष – 6.5 करोड़ वर्ष 

Triassic

मेढक व समुद्री कछुआ 

Jurassic

डायनासोर का युग 

Cretaceous

डायनासोर का विलुप्त

दक्कन का पठार का निर्माण  

Cenozoic 

नवजीवन 

6.5 करोड़ वर्ष – आज तक 

Tertiary

तृतीयक  

(हिमालय की उत्पति )

Paleocene 

पुरानतन 

छोटे स्तनपायी – चूहे 

Eocene 

आदिनूतन 

खरगोश 

Oligocene 

अधिनूतन 

मनुष्य से मिलता वनमानुष 

Miocene 

अल्पनूतन 

वनमानुष ,फूल वाले पेड़ 

Pliocene 

अतिनूतन 

आरंभिक मनुष्य के पूर्वज 

Quaternary 

चतुर्थ 

(उत्तरी मैदान कानिर्माण )

Pleistocene

अत्यंत नूतन 

आदिमानव 

Homosapiens 

Holocene 

अभिनव 

आधुनिक मानव 

 

 

प्री-कैंब्रियन महाकल्प (Precambrian Era) 

  • इस महाकल्प में निर्मित प्राचीनतम पर्वत को ‘आर्कियन पर्वत’ कहते हैं। 
  • ताप और दाब के कारण इस यग की चटटानों में सर्वाधिक रूपांतरण हुआ है। इस महाकल्प की चट्टानों में ‘ग्रेनाइट एवं नीस’ की प्रधानता है, जिसमें सोना एवं लोहा पाया जाता है। 
  • भारत में इसी समय अरावली पर्वत तथा धारवाड़ क्रम की चट्टानों का भी निर्माण हुआ। इसी समय ‘कनाडियन या लॉरेंशियन शील्ड’ का निर्माण हुआ। 
  • इस महाकल्प में समुद्रों में रीढविहीन (एक कोशिकीय) जीवों का उद्भव हो गया था 
  • शैलों में जीवाश्मों का पूर्णतः अभाव था। 
  • स्थल भाग जीव रहित था। 

 

पेलियोजोइक (पुराजीव) महाकल्प

Paleozoic

पुराजीव

57 करोड़ वर्ष -24.5 करोड़ वर्ष 

Cambrian 

57 करोड़ वर्ष – 50.5 करोड़ वर्ष पर्व

Ordovician 

50.5 करोड़ वर्ष – 43.8 करोड़ वर्ष पर्व

Silurian 

43.8 करोड़ वर्ष – 40.8 करोड़ वर्ष पर्व

Devonian 

40.8 करोड़ वर्ष – 36 करोड़ वर्ष पर्व

Carboniferous

(गोंडवाना संरचना का विकास )

36 करोड़ वर्ष – 28.6 करोड़ वर्ष पर्व

Permian

(गोंडवाना संरचना का विकास ) 

28.6 करोड़ वर्ष – 24.5 करोड़ वर्ष पर्व

 

 

कैंब्रियन कल्प (Cambrian Period) 

ऑर्डोविशियन कल्प (Ordovician Period) 

  • इस कल्प में समुद्र का विस्तार हुआ। 
  • इस समय पर्वत निर्माण शुरू हो गया। 
  • इस समय भी वनस्पतियों का विस्तार केवल सागरों तक सीमित रहा। 

सिलुरियन कल्प (Silurian Period) 

  • इस कल्प की पर्वत निर्माण प्रक्रिया को ‘कैलेडोनियन हलचल’ के अंतर्गत माना जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उत्तर अमेरिका के अप्लेशियन, स्कॉटलैंड एवं स्कैंडिनेविया के पर्वतों का निर्माण हुआ।
  • सागर में रीढ़ वाले जीवों की किस्मों में विस्तार तथा विकास हुआ। वनस्पतियों के प्रकारों में भी विकास हुआ। 
  • ‘प्रवाल जीवों’ का सर्वप्रथम बड़े पैमाने पर विस्तार मिलता है। 
  • इसी समय स्थल पर पहली बार वनस्पति का उदय हुआ, लेकिन ये वनस्पति पत्ती विहीन थी। 
  • इस प्रकार की वनस्पतियों के अवशेष ऑस्ट्रेलिया में पाये गए हैं। 

डिवोनियन कल्प (Devonian Period)

  • सागर में रीढ़ वाले जीवों का तथा मत्स्य का विकास तीव्र गति से हो रहा था। 
  • यह कल्प मछलियों के लिये अधिक अनुकूल था। अतः शार्क जैसी विशाल मछलियों का उदय हुआ, जिनकी लंबाई 20 फीट तक था इसलिये इस काल को ‘मत्स्य युग’ कहते हैं। 
  • इसी समय उभयचर जीवों (जल व थल दोनों में रहने वाले जीव) का भी उदय हुआ। 
  • ज़मीन पर जंगलों की मात्रा बढ़ने लगी तथा फ़र्न (मुलायम पत्ती वाली वनस्पति) जैसी वनस्पति का विस्तार हुआ। 

कार्बोनीफेरस कल्प (Carboniferous Period) 

  • इस कल्प में पर्वत निर्माण प्रक्रिया ‘अमेरिकन हलचल’ से संबद्ध मानी जाती है। 
  • इस कल्प में लगभग 100 फीट ऊँचे पेड़ों का विकास हुआ, इसलिये इसे ‘बड़े वृक्षों का काल’ भी कहते हैं। । इसी समय बने भ्रंशों में पेड़ों के दब जाने से ‘गोंडवाना’ चट्टानों/ संरचना का उदय हुआ, जिसके कारण इसमें कोयले के व्यापक निक्षेप मिलते हैं। इसी के कारण इसे ‘कार्बोनीफेरस कल्प’ या ‘कोयला युग’ (Coal Age) कहते हैं। 
  • इस काल में स्थल पर बड़े-बड़े रेंगने वाले जीवों का उदय हुआ, इसलिये इसे ‘रेंगने वाले जीवों का काल’ भी कहते हैं। 

पर्मियन कल्प (Permian Period) 

  • यह पेलियोजोइक महाकल्प का अंतिम कल्प (Period) था। 
  • इस समय ‘ब्लैक फॉरेस्ट’ व ‘वॉस्जेस’ जैसे भ्रंशोत्थ पर्वतों (ब्लॉक पर्वत) का निर्माण हुआ। भूपटल में भ्रंशन की क्रिया के कारण आंतरिक झीलों का विकास हुआ। इन झीलों में वाष्पीकरण के कारण वैश्विक स्तर पर पोटाश निक्षेपों की रचना हुई। 
  • तिएनशान, अल्ताई एवं अप्लेशियन जैसे पर्वत इसी काल में निर्मित हुए हैं।
  • पर्णपाती वनों का विकास हुआ। 

Mesozoic

24.5 करोड़ वर्ष – 6.5 करोड़ वर्ष 

Triassic

24.5  करोड़ वर्ष – 20.8 करोड़ वर्ष पर्व

Jurassic

20.8  करोड़ वर्ष – 14.4 करोड़ वर्ष पर्व

Cretaceous

14.4  करोड़ वर्ष – 6.5 करोड़ वर्ष पर्व

 

ट्रायेसिक कल्प (Triassic Period) 

  • यह मेसोजोइक महाकल्प का पहला कल्प था। 
  • सागर में माँसाहारी मत्स्य तुल्य सरीसृप का जन्म हुआ तथा लॉब्स्टर (केकड़ा के समान) किस्म की मछलियों का जन्म हुआ। 
  • इस काल में मेंढक व कछुआ की उत्पत्ति हुई थी। 

जुरैसिक कल्प (Jurassic Period) 

  • चूना पत्थर का जमाव इस युग की मुख्य विशेषता थी, जो मुख्यतः फ्राँस, दक्षिणी जर्मनी एवं स्विट्ज़रलैंड में पाई जाती थी।
  •  इस काल में स्थलचर, जलचर तथा नभचर जीवों का विकास हो  गया था। इसी समय ‘डायनासोर’ का भी विकास हुआ था। 
  • इसी काल में सर्वप्रथम पुष्प वाले पादपों अर्थात् आवृतबीजी (Angiosperms) पौधों का विकास प्रारंभ हुआ। 
  • प्रथम उड़ने वाले पक्षी (आर्कियोप्टेरिक्स/Archaeopteryx/Urvogel) का उद्भव इसी कल्प में हुआ। 

क्रिटेशियस कल्प (Cretaceous Period) 

  • इस समय ‘रॉकी एवं एंडीज़’ पर्वत श्रेणियों का निर्माण भी प्रारंभ हुआ। 
  • इसी कल्प में ज्वालामुखी लावा के दरारी उद्भेदन से ‘दक्कन ट्रैप’ व ‘काली मृदा’ का भारत में निर्माण हुआ। 
  • इस कल्प में डायनासोर लगभग विलुप्त हो गए थे। 

Cenozoic 

नवजीवन 

6.5 करोड़ वर्ष – 20  lakh वर्ष पर्व तक 

Tertiary

तृतीयक  

(हिमालय की उत्पति )

Paleocene 

पुरानूतन 

6.5 करोड़ वर्ष –  5.8 करोड़ वर्ष पर्व

Eocene 

आदिनूतन 

5.8 करोड़ वर्ष –  3.7 करोड़ वर्ष पर्व

Oligocene 

अधिनूतन 

3.7 करोड़ वर्ष –  2.4 करोड़ वर्ष पर्व

Miocene 

अल्पनूतन 

2.4 करोड़ वर्ष –  50 lakh वर्ष पर्व

Pliocene 

अतिनूतन 

50 lakh वर्ष पर्व – 20  lakh वर्ष पर्व

 

पेलिओसीन युग (Paleocene Epoch) 

  • सिनोजोइक महाकल्प के ‘टर्शियरी कल्प’ का यह पहला युग था। 
  • मानव सदृश बंदरों एवं छोटे स्तनपायी चूहे आदि का विकास हुआ। 

इओसीन युग (Eocene Epoch) 

  • यूरोप महाद्वीप के ज़्यादातर भागों के नीचे दब जाने के कारण सागर का विस्तार हुआ। 
  • इस काल में ज्वालामुखी उद्गार के कारण ही स्थल पर रेंगने वाले जीव प्रायः विलुप्तप्राय हो गए तथा प्राचीन बंदर, गिब्बन (म्यांमार में), हाथी, घोड़ा, गैंडा, सूअर आदि के पूर्वजों का उदय हुआ। 
  • ‘वृहद् हिमालय’ की उत्पत्ति भी मुख्यतः इसी काल में हुई है। 

ओलिगोसीन युग (Oligocene Epoch) 

  • अमेरिका तथा यूरोप में क्रमशः भूसंचलन के कारण रॉकी तथा अल्प्स पर्वत का निर्माण प्रारंभ हुआ। 
  • इसी काल में पूँछविहीन बंदर का उदय हुआ, जो मानव के पूर्वज थे।

मायोसीन युग (Miocene Epoch) 

  • यह ‘लघु/मध्य हिमालय’ की उत्पत्ति का मुख्य काल है। 
  • इस युग में उत्तर अमेरिका तथा यूरोप में पतझड़ वाले वृक्षों का उद्भव हुआ। 
  • उत्तर अमेरिका के प्रेयरी मैदानों में घासों का विकास हुआ। 
  • इस युग स्थलीय भागों पर पूँछविहीन बंदर तथा हाथियों का स्थानांतरण अफ्रीका से यूरोप तथा एशिया में हुआ। 
  • इस युग में पेंग्विन (Penguin) का उद्भव अंटार्कटिका में हुआ। 

प्लायोसीन युग (Pliocene Epoch) 

  • सिनोजोइक महाकल्प के ‘टर्शियरी कल्प’ का यह अंतिम युग था। 
  • इस काल में समुद्रों के अवसादीकरण से विस्तृत तटीय मैदानों का निर्माण हुआ। 
  • आरंभिक मानव की उत्पति हुई। 
  •  ‘शिवालिक’ की उत्पत्ति भी इसी काल में हुई। 
  • काला सागर, उत्तरी सागर, कैस्पियन सागर, अरब सागर की उत्पत्ति हुई। 

Cenozoic 

नवजीवन 

6.5 करोड़ वर्ष – आज तक 

Quaternary 

चतुर्थ 

(उत्तरी मैदान का निर्माण )

Pleistocene

अत्यंत नूतन 

20  lakh वर्ष पर्व – 10000 वर्ष पर्व

Holocene 

अभिनव 

10000 वर्ष – 0

 

प्लीस्टोसीन युग/अत्यंत नूतन (Pleistocene Epoch) 

  • सिनोजोइक महाकल्प के क्वाटरनरी कल्प का यह पहला युग है। 
  • महान हिमयुग का संबंध इसी युग से है। 
  • इस युग में तापमान बहुत कम हो गया था, जिसके कारण पृथ्वी पर (यूरोप में) क्रमशः ‘चार हिम युग’ देखे गए, जो निम्नलिखित हैं- 
    • गुंज़ (Gunz)
    • मिंडेल (Mindel)
    • रिस (Riss) 
    • वुर्म (Wurm) 
  • हिमयुगों से अनेक भू-दृश्य निर्मित हुए। जैसे –उत्तर अमेरिका की वृहद् झीलें तथा नॉर्वे, स्वीडन, स्विट्जरलैंड तथा उत्तरी इटली में झीलों का विकास हुआ। नॉर्वे में फियॉर्ड तट का विकास हिमचादर की समाप्ति के कारण हुआ। 
  • स्थलमंडल पर बंदर सदृश मानव (आदिमानव) का विकास हुआ। 

 

होलोसीन युग (Holocene Epoch) 

  • उत्तरी अफ्रीका तथा मध्य एशिया में शुष्कता की अधिकता के कारण उष्ण एवं शुष्क रेगिस्तानों का विकास हुआ।
  • होलोसीन वर्तमान विश्व के उदय का काल है, जो अब तक जारी है। 
  • इस युग में पूर्ण विकसित मानव का विकास हो चुका था। 
  • मानव ने पशुपालन तथा कृषि कार्य भी प्रारंभ किया। 
  • तकनीक पर आधारित विकास कार्य मानव ने इसी चरण में आरंभ किया। 

 

पर्वतीय समय मापक्रम 

  • पर्वतों की उत्पत्ति के समय के आधार पर वर्गीकरण निम्न प्रकार है

युग/काल

निर्मित पर्वतों का उपनाम 

निर्मित प्राचीनतम पर्वतों

प्री-कैब्रियन (Precambrian)

आर्कियन पर्वत

  • जीवाश्मों का पूर्णतः अभाव
  • लॉरेंशियन
  • अलगोमन 
  • किलार्नियन

पैल्योजोइक 

(Paleozoic)

कैलेडोनियन पर्वत

  • उत्तर अमेरिका के अप्लेशियन पर्वत
  • भारत के अरावली,सतपुड़ा व महादेव पर्वत 

मेसोजोइक (Mesozoic)

हर्सीनियन पर्वत

  • यूरोप का हार्ज, ब्लैक फॉरेस्ट, यूराल पर्वत 
  • एशिया के अल्टई, तियानशान तथा खिगेन पर्वत

सेनाजोइक (Cenozoic)

अल्पाइन पर्वत

  • उत्तर अमेरिका के रॉकी
  • दक्षिण अमेरिका के एंडीज़ 
  • एशिया का हिमालय पर्वत

 

अन्य प्रमुख तथ्य 

  • पृथ्वी की आयु निर्धारित करने में ‘यूरेनियम डेटिंग विधि’ का प्रयोग किया जाता है। 
  •  धरती पर मौजूद प्रत्येक जीव में कार्बन उपस्थित है। 
  • जीवों/कार्बनिक पदार्थों की आयु निर्धारित करने मेंकार्बन डेटिंग विधि’ का प्रयोग किया जाता है।