राष्ट्रपति

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राष्ट्रपति संविधान में : 

  • संविधान के भाग V के अनुच्छेद 52 से 78 तक में संघ की कार्यपालिका का वर्णन है। 
  • संघ की कार्यपालिका में  शामिल होते हैं।
    • राष्ट्रपति
    • उप-राष्ट्रपति
    • प्रधानमंत्री 
    • मंत्रिमंडल 
    • महान्यायवादी 
  • राष्ट्रपति, भारत का राज्य प्रमुख होता है। वह भारत का प्रथम नागरिक है। 

 

राष्ट्रपति का निर्वाचन 

  • राष्ट्रपति का निर्वाचन जनता प्रत्यक्ष रूप से नहीं करती बल्कि एक निर्वाचन मंडल के सदस्यों द्वारा उसका निर्वाचन किया जाता है। 
  •  निर्वाचन मंडल में निम्न लोग शामिल होते हैं:

1. संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य 

2. राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्य 

3. केंद्रशासित प्रदेशों दिल्लीपुडुचेरी विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य। 

  • जब कोई सभा विघटित हो गई हो तो उसके सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान नहीं कर सकते। 
  • संविधान में यह प्रावधान है कि राष्ट्रपति के निर्वाचन में विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व समान रूप से हो, साथ ही राज्यों तथा संघ के मध्य भी समानता हो। 
  • राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार एकल संक्रमणीय मत और गुप्त मतदान द्वारा होता है। 
  • राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित सभी विवादों की जांच व फैसले उच्चतम न्यायालय में होते हैं तथा उसका फैसला अंतिम होता है।
  • राष्ट्रपति के चुनाव को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि निर्वाचक मंडल अपूर्ण है (निर्वाचक मंडल के किसी सदस्य का पद रिक्त होने पर)। 
  • यदि उच्चतम न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति की राष्ट्रपति के रूप में नियुक्ति को अवैध घोषित किया जाता है
    • तो उच्चतम न्यायालय की घोषणा से पूर्व उसके द्वारा किए गए कार्य अवैध नहीं माने जाएंगे तथा प्रभावी बने रहेंगे।

राष्ट्रपति के पद हेतु अर्हताएं 

  • वह भारत का नागरिक हो। 
  • वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो। 
  • वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है।
  • वह संघ सरकार में अथवा किसी राज्य सरकार में अथवा किसी स्थानीय प्राधिकरण में अथवा किसी सार्वजनिक प्राधिकरण में लाभ के पद पर न हो। 
    • एक वर्तमान राष्ट्रपति अथवा उप-राष्ट्रपति किसी राज्य का राज्यपाल और संघ अथवा राज्य का मंत्री किसी लाभ के पद पर नहीं माना जाता। 

 

  • राष्ट्रपति के चुनाव के लिए नामांकन के लिए उम्मीदवार के कम से कम 50 प्रस्तावक50 अनुमोदक होने चाहिये। 
    • प्रत्येक उम्मीदवार भारतीय रिजर्व बैंक में 15000 रु. जमानत राशि के रूप में जमा करेगा। 
    • यदि उम्मीदवार कुल डाले गए मतों का 1/6 भाग प्राप्त करने में असमर्थ रहता है तो यह राशि जब्त हो जाती है। 

 

राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान 

  • राष्ट्रपति को पद की शपथ उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा दिलाई जाती है।

 

राष्ट्रपति के पद के लिए शर्ते

 

  • वह संसद के किसी भी सदन अथवा राज्य विधायिका का सदस्य नहीं होना चाहिए। 
    • यदि कोई ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होता है तो उसे पद ग्रहण करने से पूर्व उस सदन से त्यागपत्र देना होगा। 
  • वह कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
  • उसे संसद द्वारा निर्धारित उप-लब्धियों, भत्ते व विशेषाधिकार प्राप्त होंगे।
  • उसकी उप-लब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कि कम नहीं किए जाएंगे।

 

राष्ट्रपति का वेतन संसद द्वारा निर्धारित

महत्वपूर्ण अधिकारियों का मासिक वेतन

राष्ट्रपति

5 lakh

उपराष्ट्रपति

4 lakh

लोकसभा अध्यक्ष

4 lakh

राज्यपाल

3.5 lakh

सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश

2,80,000

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश

2,50,000

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश

2,50,000

उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश

2,25,000

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक

2,50,000

मुख्य चुनाव आयुक्त

2,50,000

महान्यायवादी

2,50,000

राष्ट्रपति को अनेक विशेषाधिकार भी प्राप्त हैं। 

  • उसे अपने आधिकारिक कार्यों में किसी भी विधिक जिम्मेदारियों से उन्मुक्ति होती है। 
  • अपने कार्यकाल के दौरान उसे किसी भी आपराधिक कार्यवाही से उन्मुक्ति होती है, यहां तक कि व्यक्तिगत कृत्य से भी। 
    • वह गिरफ्तार नहीं किया जा सकता 
    • जेल नहीं भेजा जा सकता है 
    • हालांकि दो महीने के नोटिस देने के बाद उसके कार्यकाल में उस पर उसके निजी कृत्यों के लिए अभियोग चलाया जा सकता है।

 

पदावधि, महाभियोग व पदरिक्तता 

राष्ट्रपति की पदावधि 

  • राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्ष तक होती है। 
  • वह अपना त्यागपत्र उप-राष्ट्रपति को दे सकता है। 
  • उसे कार्यकाल पूरा होने के पूर्व महाभियोग चलाकर भी हटाया जा सकता है। 
  • जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले राष्ट्रपति अपने पांच वर्ष के कार्यकाल के उप-रांत भी पद पर बना रह सकता है। 
  • वह इस पद पर पुनःनिर्वाचित हो सकता है। 
  • वह कितनी ही बार पुनः निर्वाचित हो सकता है। 

 

राष्ट्रपति पर महाभियोग 

  • राष्ट्रपति पर ‘संविधान का उल्लंघन करने पर’ महाभियोग चलाकर उसे पद से हटाया जा सकता है। 
  • संविधान ने ‘संविधान का उल्लंघन’ वाक्य को परिभाषित नहीं किया है। 
  • महाभियोग के आरोप संसद के किसी भी सदन में प्रारंभ किए जा सकते हैं। 
    • इन आरोपों पर सदन के एक-चौथाई सदस्यों (जिस सदन ने आरोप लगाए गए हैं) के हस्ताक्षर होने चाहिये और राष्ट्रपति को 14 दिन पूर्व नोटिस देना चाहिए। 
    • महाभियोग का प्रस्ताव दो-तिहाई बहुमत से पारित होने के पश्चात यह दूसरे सदन में भेजा जाता है, जिसे इन आरोपों की जांच करनी चाहिए । 
    • राष्ट्रपति को इसमें उपस्थित होने तथा अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार होगा। 
    • यदि दूसरा सदन इन आरोपों को सही पाता है और महाभियोग प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत से पारित करता है तो राष्ट्रपति को प्रस्ताव पारित होने की तिथि से उसके पद से हटाना होगा।
  • इस प्रकार महाभियोग संसद की एक अर्द्ध-न्यायिक प्रक्रिया  है। इस संदर्भ में दो बातें ध्यान देने योग्य हैं
    • संसद के दोनों सदनों के नामांकित सदस्य जिन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं लिया था, इस महाभियोग में भाग ले सकते हैं। 
    • राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य तथा दिल्ली व पुदुचेरी केंद्रशासित राज्य विधानसभाओं के सदस्य इस महाभियोग प्रस्ताव में भाग नहीं लेते हैं, जिन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लिया था।

राष्ट्रपति के पद की रिक्तता

राष्ट्रपति का पद निम्न प्रकार से रिक्त हो सकता है:

1. पांच वर्षीय कार्यकाल समाप्त होने पर 

2. उसके त्यागपत्र देने पर 

3. महाभियोग प्रक्रिया द्वारा उसे पद से हटाने पर 

4. उसकी मृत्यु पर

5. निर्वाचन अवैध घोषित हो। 

 

  • यदि पद रिक्त होने का कारण उसके कार्यकाल का समाप्त होना हो तो उस पद को भरने हेतु उसके कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व नया चुनाव कराना चाहिए। 
    • यदि नए राष्ट्रपति के चुनाव में किसी कारण कोई देरी हो तो, वर्तमान राष्ट्रपति अपने पद पर बना रहेगा (पांच वर्ष उप-रांत भी) जब तक कि उसका उत्तराधिकारी कार्यभार ग्रहण न कर ले। 

 

  • यदि उसका पद उसकी मृत्यु, त्यागपत्र, निष्कासन अथवा अन्यथा किसी कारण से रिक्त होता है तो नए राष्ट्रपति का चुनाव पद रिक्त होने की तिथि से छह महीने के भीतर कराना चाहिए। 
    • उप-राष्ट्रपति, नए राष्ट्रपति के निर्वाचित होने तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा। 
    • इसके अतिरिक्त यदि वर्तमान राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य कारणों से अपने पद पर कार्य करने में असमर्थ हो तो 
      • उपराष्ट्रपति उसके पुनः पद ग्रहण करने तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा।
    • यदि उप-राष्ट्रपति का पद रिक्त हो, तो भारत का मुख्य न्यायाधीश (अथवा उसका भी पद रिक्त होने पर उच्चतम न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश) कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा 

 

  • जब कोई व्यक्ति, जैसे-उप-राष्ट्रपति, भारत का मुख्य न्यायाधीश अथवा उच्चतम न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश, कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है 
    • तो उसे राष्ट्रपति की समस्त शक्तियां प्राप्त होती हैं 
    • वह संसद द्वारा निर्धारित सभी उपलब्धियां, भत्ते व विशेषाधिकार भी प्राप्त करता है।

 

राष्ट्रपति की शक्तियां व कर्तव्य 

राष्ट्रपति द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियां व किए जाने वाले कार्य निम्नलिखित हैं:

1. कार्यकारी शक्तियां 

2. विधायी शक्तियां 

3. वित्तीय शक्तियां 

4. न्यायिक शक्तियां 

5. कूटनीतिक शक्तियां 

6. सैन्य शक्तियां

7. आपातकालीन शक्तियां 

 

कार्यकारी शक्तियां 

राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियां व कार्य हैं:

  • भारत सरकार के सभी शासन संबंधी कार्य राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते हैं।
  • वह नियम बना सकता है ताकि उसके नाम पर दिए जाने वाले आदेश और अन्य अनुदेश वैध हों। 
  • वह ऐसे नियम बना सकता है जिससे केंद्र सरकार सहज रूप से कार्य कर सके तथा मंत्रियों को उक्त कार्य सहजता से वितरत हो सकें। 
  • वह प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है, तथा वे उसकी प्रसादपर्यंत कार्य करते हैं। 
  • वह महान्यायवादी की नियुक्ति करता है तथा उसके वेतन आदि निर्धारित करता है। महान्यायवादी, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद पर कार्य करता है।
  • वह नियुक्ति करता है। 
    • भारत के महानियंत्रक व महालेखा परीक्षक
    • महान्यायवादी
    • मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों
    • संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों 
    • राज्य के राज्यपालों 
    • वित्त आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों 
  • वह केंद्र के प्रशासनिक कार्यों और विधायिका के प्रस्तावों से संबंधित जानकारी की मांग प्रधानमंत्री से कर सकता हैं। 
  • राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से किसी ऐसे निर्णय का प्रतिवेदन भेजने के लिये कह सकता है, जो किसी मंत्री द्वारा लिया गया हो, किंतु पूरी मंत्रिपरिषद ने इसका अनुमोदन नहीं किया हो। 
  • वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए एक आयोग की नियुक्ति कर सकता हैं। 
  • वह केंद्र-राज्य तथा विभिन्न राज्यों के मध्य सहयोग के लिए एक अंतर्राज्यीय परिषद की नियुक्ति कर सकता है। 
  • वह स्वयं द्वारा नियुक्त प्रशासकों के द्वारा केंद्रशासित राज्यों का प्रशासन सीधे संभालता है। 
  • वह किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर सकता है। उसे अनुसूचित क्षेत्रों तथा जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन की शक्तियां प्राप्त हैं। 

 

विधायी शक्तियां 

राष्ट्रपति भारतीय संसद का एक अंग है तथा उसे निम्नलिखित विधायी शक्तियां प्राप्त हैं: 

  • वह संसद की बैठक बुला सकता है अथवा कुछ समय के लिए स्थगित कर सकता है और लोकसभा को विघटित कर सकता है। 
    • वह संसद के संयुक्त अधिवेशन का आह्वान  कर सकता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है। 
  • वह प्रत्येक नए चुनाव के बाद तथा प्रत्येक वर्ष संसद के प्रथम अधिवेशन को संबोधित कर सकता है। 
  • वह संसद में लंबित किसी विधेयक या अन्यथा किसी संबंध में संसद को संदेश भेज सकता है।
  • यदि लोकसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों के पद रिक्त हों तो वह लोकसभा के किसी भी सदस्य को सदन की अध्यक्षता सौंप सकता है। 
    • यदि राज्यसभा के सभापति व उप-सभापति दोनों पद रिक्त हों तो वह राज्यसभा के किसी भी सदस्य को सदन की अध्यक्षता सौंप सकता है। 
  • वह साहित्य, विज्ञान, कला व समाज सेवा से जुड़े अथवा जानकार व्यक्तियों में से 12 सदस्यों को राज्यसभा के लिए मनोनीत करता है। 
  • वह लोकसभा में दो आंग्ल-भारतीय समुदाय के व्यक्तियों को मनोनीत कर सकता है। 
    • इसे संविधान का 104वां संसोधन द्वारा समाप्त किया गया। 
  • वह चुनाव आयोग से परामर्श कर संसद सदस्यों की निरर्हता के निर्णय करता है।
  • संसद में कुछ विशेष प्रकार के विधेयकों को प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति की सिफारिश अथवा आज्ञा आवश्यक है। 
    • उदाहरणार्थ, भारत की संचित निधि से खर्च संबंधी या विधेयक 
    • राज्यों की सीमा परिवर्तन या नए राज्य के निर्माण या संबंधी विधेयक

 

  •  जब एक विधेयक संसद द्वारा पारित होकर राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो वह 
    • विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है 
    • विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है
    • विधेयक को (यदि वह धन विधेयक नहीं है तो संसद के पुनर्विचार के लिए लौटा देता है। 
      • यदि संसद विधेयक को संशोधन या बिना किसी संशोधन के पुन:पारित करती है तो राष्ट्रपति की अपनी सहमति देनी ही होती है।

 

  • राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल जब राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखता है तब राष्ट्रपतिः 
    • विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है
    • विधेयक पर अपनी स्वीकति सुरक्षित रखता है,
    • राज्यपाल को निर्देश देता है कि विधेयक 
      • वह धन विधेयक नहीं है तो को राज्य विधायिका को पुनर्विचार हेतु लौटा दे। 
      • यदि राज्य विधायिका विधेयक को काय पुनः राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजती है तो राष्ट्रपति स्वीकृति देने के लिए बाध्य नहीं है।

 

  • वह संसद के सत्रावसान की अवधि में अध्यादेश जारी  कर सकता है। 
    • यह अध्यादेश संसद की पुन:बैठक के छह हफ्तों के भीतर संसद द्वारा अनुमोदित करना आवश्यक है। 
    • वह किसी अध्यादेश को किसी भी समय वापस ले सकता है। 
  •  वह महानियंत्रक व लेखा परीक्षक, संघ लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग व अन्य की रिपोर्ट संसद के समक्ष रखता है। 
  • वह अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादर एवं नागर हवेली एवं दमन व दीव में शांति, विकास व सुशासन के लिए विनियम बना सकता है। पुडुचेरी के भी वह नियम बना सकता है परंतु केवल तब जब वहाँ की विधानसभा निलंबित हो अथवा विघटित अवस्था में हो। 

 

वित्तीय शक्तियां 

राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियां व कार्य निम्नलिखित हैं: 

  • धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • वह वार्षिक वित्तीय विवरण (केंद्रीय बजट)को संसद के समक्ष रखता है। 
  • अनुदान की कोई भी मांग उसकी सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती है। 
  • वह भारत की आकस्मिक निधि से, किसी अदृश्य व्यय हेतु अग्रिम भुगतान की व्यवस्था कर सकता है। 
  • वह राज्य व केंद्र के मध्य राजस्व के बंटवारे के लिए प्रत्येक पांच वर्ष में एक वित्त आयोग का गठन करता है। 

 

न्यायिक शक्तियां 

राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां व कार्य निम्नलिखित हैं:

  •  वह उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति  करता है।
  • वह उच्चतम न्यायालय से किसी विधि या तथ्य पर सलाह ले सकता है परंतु उच्चतम न्यायालय की यह सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं है।
  • वह किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किसी व्यक्ति के के लिए दण्डदेश को निलंबित, माफ या परिवर्तित कर जा सकता है, या दण्ड में क्षमादान, प्राणदण्ड स्थगित, राहत और माफी प्रदान कर सकता है।
    • उन सभी मामलों में, जिनमें सजा सैन्य न्यायालय में  दी गई हो 
    • उन सभी मामलों में, जिनमें केंद्रीय विधियों के विरुद्ध जो अपराध के लिए सजा दी गई हो 
    • उन सभी मामलों में, जिनमें दंड का स्वरूप प्राण दंड हो। 

कूटनीतिक शक्तियां 

  • अंतर्राष्ट्रीय संधियां व समझौते राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते हैं हालांकि इनके लिए संसद की अनुमति अनिवार्य है। 
  • वह अंतर्राष्ट्रीय मंचों व मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व करता है और कूटनीतिज्ञों, जैसे राजदूतों व उच्चायुक्तों को भेजता है एवं उनका स्वागत करता है। 

 

सैन्य शक्तियां 

  • वह भारत के सैन्य बलों का सर्वोच्च सेनापति होता है। 
  • इस क्षमता में वह थल सेना, जल व वायु सेना के प्रमुखों की नियुक्ति करता है। 
  • वह युद्ध या इसकी समाप्ति की घोषणा करता है किंतु यह संसद की अनुमति के अनुसार होता है। 

 

आपातकालीन शक्तियां

संविधान ने राष्ट्रपति को निम्नलिखित तीन परिस्थितियों में आपातकालीन शक्तियां भी प्रदान की हैं

  • राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) 
  • राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356 तथा 365)
  • वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)

 

राष्ट्रपति की वीटो शक्ति 

  • संसद द्वारा पारित कोई विधेयक तभी अधिनियम बनता है जब राष्ट्रपति उसे अपनी सहमति देता है। 
  • जब ऐसा विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के लिए प्रस्तुत होता है तो उसके पास तीन विकल्प होते हैं (संविधान के अनुच्छेद 111 के अंतर्गत):
    • वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है
    • विधेयक पर अपनी स्वीकृति को सुरक्षित रख सकता है
    • वह विधेयक (यदि विधेयक धन विधेयक नहीं है) को संसद के पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है। 
      • हालांकि यदि संसद इस विधेयक को पुनः बिना किसी संशोधन के अथवा संशोधन करके, राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत करे तो राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी ही होगी।

 

  • राष्ट्रपति के पास संसद द्वारा पारित विधेयकों के संबंध में वीटो शक्ति होती है, अर्थात वह विधेयक को अपनी स्वीकृति के लिए सुरक्षित रख सकता है। 

वीटो शक्तियों को चार प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है: 

  • अत्यांतिक वीटो– विधेयक पर अपनी राय सुरक्षित रखना। 
  • विशेषित वीटो-जो विधायिका द्वारा उच्च बहुमत द्वारा निरस्त की जा सके। 
  • निलंबनकारी वीटो-जो विधायिका द्वारा साधारण बहुमत द्वारा निरस्त की जा सके। 
  • पॉकेट वीटो-विधायिका द्वारा पारित विधेयक पर कोई निर्णय नहीं करना। 

 

भारत के राष्ट्रपति में तीन शक्तियां निहित हैं। 

  1. अत्यांतिक वीटो (Absolute Veto)
  2. निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto)
  3. पॉकेट वीटो (pocket veto)

 

अत्यांतिक वीटो 

  • इसका संबंध राष्ट्रपति की उस शक्ति से है, जिसमें वह संसद द्वारा पारित किसी विधेयक को अपने पास सुरक्षित रखता है। यह विधेयक इस प्रकार समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं बन पाता। 
  • सामान्यतः यह वीटो निम्न दो मामलों में प्रयोग किया जाता  है 
    • गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयक संबंध में (अर्थात संसद का वह सदस्य जो मंत्री न हो, द्वारा प्रस्तुत विधेयक) 
    • सरकारी विधेयक के संबंध में जब मंत्रिमंडल त्यागपत्र दे दे (जब विधेयक पारित हो गया हो तथा राष्ट्रपति की अनुमति मिलना शेष हो) और नया मंत्रिमंडल राष्ट्रपति को ऐसे विधेयक पर अपनी सहमति न देने की सलाह दे। 

 

निलंबनकारी वीटो 

  • राष्ट्रपति इस वीटो का प्रयोग तब करता है, जब वह किसी विधेयक को संसद को  पुनर्विचार हेतु लौटाता है। 
    • हालांकि यदि संसद उस विधेयक को पुनः किसी संशोधन के बिना अथवा संशोधन के साथ पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजती है तो उस पर राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देना बाध्यकारी है। 
    • इसका अर्थ है कि राष्ट्रपति के इस वीटो को, उस विधेयक को साधारण बहुमत से पुनः पारित कराकर निरस्त किया जा सकता है 
    • राष्ट्रपति धन विधेयकों के मामले में इस वीटो का प्रयोग नहीं कर सकता है। 
      • राष्ट्रपति किसी धन विधेयक को अपनी स्वीकृति या तो दे सकता है या उसे रोककर रख सकता है 
      • धन विधेयकों को वह संसद को पुनर्विचार के लिए नही भेज सकता है। साधारणतः राष्ट्रपति, धन विधेयक पर अपनी स्वीकृति उस समय दे देता है, धन विधेयक संसद में उसकी पूर्वानुमति से प्रस्तुत किया जाता है। 

पॉकेट वीटो

  • इस मामले में राष्ट्रपति विधेयक पर न तो कोई सहमति देता है। न अस्वीकृत करता है, और न ही लौटाता है परंतु एक अनिश्चित काल के लिए विधेयक को लंबित कर देता है। 
  • राष्ट्रपात की विधेयक पर किसी भी प्रकार का निर्णय न देने की (सकारात्म अथवा नकारात्मक) शक्ति पॉकेट वीटो के नाम से जानी जाता है। 
  • राष्ट्रपति इस वीटो शक्ति का प्रयोग इस आधार पर करता है  कि संविधान में उसके समक्ष आए किसी विधेयक पर निर्णय देने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। 

नोट :

  • संविधान संशोधन से संबंधित अधिनियमों में राष्ट्रपति के पास कोई वीटो शक्ति नहीं है। 
    • 24वें संविधान संशोधन अधिनियम 1971 ने संविधान संशोधन विधेयकों पर राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देने के लिए बाध्यकारी बना दिया। 

 

राज्य विधायिका पर राष्ट्रपति का वीटो 

  • जब कोई विधेयक राज्य विधायिका द्वारा पारित कर राज्यपाल के विचारार्थ उसकी स्वीकृति के लिए लाया जाता है तो अनुच्छेद 200 के अंतर्गत उसके पास चार विकल्प होते हैं:
    • वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है 
    • वह विधेयक पर अपनी अस्वीकृति दे सकता है
    • वह विधेयक (यदि धन विधेयक न हो) को राज्य विधायिका के पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है। 
    • वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचाराधीन आरक्षित कर सकता है। 

 

जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित किया जाता है तो राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प (अनुच्छेद 201) होते हैं:

  • वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है
  • वह विधेयक पर अपनी अस्वीकृति दे सकता है
  • वह राज्यपाल को निर्देश दे सकता है कि वह विधेयक(यदि धन विधेयक नहीं है) को राज्य विधायिका के पास पुनर्विचार हेतु लौटा दे। 
    • यदि राज्य विधायिका किसी संशोधन के बिना अथवा संशोधन करके पुनः विधेयक को पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजती है तो राष्ट्रपति इस पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य नहीं है।
    • संविधान में यह समय सीमा भी तय नहीं है कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ रखे विधेयक पर राष्ट्रपति कब तक अपना निर्णय दे। 
    • इस प्रकार राष्ट्रपति राज्य विधायकों के संदर्भ में भी पॉकेट वीटो का प्रयोग कर सकता है।  

केंद्रीय विधायिका 

राज्य विधायिका

सामान्य विधेयकों के संबंध में: 

1. स्वीकृति दे सकता है। 

2. अस्वीकार कर सकता है।

3. वापस कर सकता है। 

1. स्वीकृति दे सकता है

2.अस्वीकार कर सकता है

3. वापस कर सकता है।

धन विधेयकों को संबंध में:

1. स्वीकृति दे सकता है।

 2. अस्वीकार कर सकता है (परंतु वापस नहीं कर सकता)

1. स्वीकृति दे सकता है। 

2. अस्वीकार कर सकता है परंतु वापस नहीं कर सकता।

संविधान संशोधन विधेयकों के संबंध में: 

केवल स्वीकृति दे सकता है, (न वापस कर सकता है/ न अस्वीकार कर सकता है)।

संविधान संशोधन संबंधी विधेयकों को राज्य विधायिका में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

 

राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति 

  • संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति को संसद के सत्रावसान की अवधि में अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है। 
    • इन अध्यादेशों का प्रभाव व शक्तियां, संसद द्वारा बनाए गए कानून की तरह ही होती हैं 
    • ये प्रकृति से अल्पकालीन होते हैं।
  • इस शक्ति के प्रयोग में निम्नलिखित चार सीमाएं हैं;

1. वह अध्यादेश केवल तभी जारी कर सकता है जब संसद के दोनों अथवा दोनों में से किसी भी एक सदन का सत्र न चल रहा हो। 

    • अध्यादेश उस समय भी जारी किया जा सकता है जब संसद में केवल एक सदन का सत्र चल रहा हो क्योंकि कोई भी विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना होता है न कि केवल एक सदन द्वारा। 
    • जब संसद के दोनों सदनों का सत्र चल रहा हो उस समय जारी किया गया अध्यादेश अमान्य है। 

 

2. वह कोई अध्यादेश केवल तभी जारी कर सकता है जब मौजूदा परिस्थिति ऐसी है कि उसके लिए तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक है। 

    • 44वें संविधान संशोधन,1978  द्वारा राष्ट्रपति की संतुष्टि को असद्भाव के आधार पर न्यायिक चुनौती दी जा सकती है। 

 

3. सभी मामलों में अध्यादेश जारी करने की उसकी शक्ति  केवल संसद की कानून बनाने की शक्तियों के समान ही है। 

  • अध्यादेश केवल उन्हीं मुद्दों पर जारी किया जा की सकता है जिन पर संसद कानून बना सकती है। 
  • अध्यादेश को वहीं संवैधानिक सीमाएं होती हैं, जो संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून की होती हैं। 
  • एक अध्यादेश किसी भी मौलिक अधिकार का लघुकरण अथवा उसको छीन नहीं सकता। 

 

4. संसद के  सत्रावसान की अवधि में जारी किया गया प्रत्येक अध्यादेश संसद की पुनः बैठक होने पर दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। 

    • यदि संसद के दोनों सदन उस अध्यादेश को पारित कर देती है तो वह कानून का रूप धारण कर लेता है। 
    • यदि इस पर संसद कोई कार्रवाई नहीं करती तो संसद की दुबारा बैठक के छह हफ्ते पश्चात यह अध्यादेश समाप्त हो जाता है। 
    • यदि संसद के दोनों सदन इसका ख़ारिज कर दें तो यह निर्धारित छह सप्ताह की अवधि से पहले भी समाप्त हो सकता है। 
    • यदि संसद के दोनों सदनों का अलग-अलग तिथि में पुनः बैठक बुलाया जाता है तो ये छह सप्ताह, बाद वाली तिथि से गिने जाएगा। 
    • इसका अर्थ है किसी अध्यादेश की अधिकतम अवधि छह महीने, संसद की मंजरी न मिलने की स्थिति में  छह हफ्तों की होती है (संसद के दो सत्रों के मन अधिकतम अवधि छह महीने होती है)। 
    • यदि अध्यादेश सभापटल पर रखने से पूर्व ही समाप्त जाता है तो इस के अंतर्गत किए गए कार्य वैध व प्रभावी रहेंगे।

 

  • राष्ट्रपति भी किसी भी समय किसी अध्यादेश को वापस ले सकता है। 
    • हालांकि राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति उसकी कार्य स्वतंत्रता का अंग नहीं है और वह किसी भी अध्यादेश को प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सलाह पर ही जारी करता है अथवा वापस लेता है। 

 

राष्ट्रपति की क्षमादान करने की शक्ति 

 

संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति को उन व्यक्तियों को क्षमा करने की शक्ति प्रदान की गई है, जो निम्नलिखित मामलों में किसी अपराध के लिए दोषी करार दिए गए हैं:

1. संघीय विधि के विरुद्ध किसी अपराध में दिए गए दंड में 

2. सैन्य न्यायालय द्वारा दिए गए दंड में, और; 

3. यदि दंड का स्वरूप मृत्युदंड हो।

 

  • राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति न्यायपालिका से स्वतंत्र है। वह एक कार्यकारी शक्ति है परंतु राष्ट्रपति इस शक्ति का प्रयोग करने के लिए किसी न्यायालय की तरह पेश नहीं आता। राष्ट्रपति की इस शक्ति के दो रूप हैं-
    • विधि के प्रयोग में होने वाली न्यायिक गलती को सुधारने के लिए
    • यदि राष्ट्रपति दंड का स्वरूप अधिक कड़ा समझता है तो उसका बचाव प्रदान करने के लिए। 

 

राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति में निम्नलिखित बातें सम्मिलित है।

1. क्षमा 

  • इसमें दण्ड और बंदीकरण दोनों को हटा दिया जाता है तथा दोषी की सभी दण्ड, दण्डादेशों और निर्रहताओं से पूर्णतः मुक्त कर दिया जाता है।

2. लघुकरण 

  • इसका अर्थ है कि दंड के स्वरूप को बदलकर कम करना। 

उदाहरणार्थ मृत्युदंड का लघुकरण कर कठोर कारावास में परिवर्तित करना, जिसे साधारण कारावास में परिवर्तित किया जा सकता है। 

3. परिहार 

  • इसका अर्थ है, दंड के प्रकृति में परिवर्तन किए बिना उसकी अवधि  कम करना। उदाहरण के लिए दो वर्ष के कठोर कारावास को एक वर्ष के कठोर कारावास में परिहार करना।

4. विराम

  • किसी दोषी को मूल रूप में दी गई सजा को किन्हीं विशेष परिस्थिति में कम करना, जैसे-शारीरिक अपंगता अथवा महिलाओं को गर्भावस्था की अवधि के कारण।

 

5. प्रविलंबन 

  • इसका अर्थ है किसी दंड (विशेषकर मृत्यु दंड) पर अस्थायी रोक लगाना। 

नोट :

  • अनुच्छेद 161 के अंतर्गत राज्य का राज्यपाल भी किसी दंड को क्षमा कर सकता है, अस्थाई रूप से रोक सकता है, सजा को या सजा की अवधि को कम कर सकता है। वह राज्य विधि के विरुद्ध अपराध में दोषी व्यक्ति की सजा को निलंबित कर सकता है दंड का स्वरूप बदल सकता है और दंड की अवधि कम कर सकता है। 

 

राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति 

  • राष्ट्रपति अपनी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सहायता व सलाह से करता है।

(अनुच्छेद 53) 

  • संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा 

(अनुच्छेद 74)

  • राष्ट्रपति को सहायता तथा सलाह के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रीपरिषद होगी 
    • 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 में कहा गया कि राष्ट्रपति पर प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद की सलाह बाध्यकारी है। 
    • 44वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 में कहा गया कि राष्ट्रपति एक बार किसी सलाह को पुनर्विचार के लिए मंत्रिमंडल के पास भेज सकता है परंतु पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह मानने के लिए वह बाध्य है। 

(अनुच्छेद 75)

  • मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी 

 

राष्ट्रपति निम्नलिखित परिस्थितियों में अपनी विवेक स्वतंत्रता का प्रयोग (बिना मंत्रिमंडल की सलाह पर) कर सकता है:

  • लोकसभा में किसी भी दल के पास स्पष्ट बहुमत न होने पर अथवा जब प्रधानमंत्री की अचानक मृत्यु हो जाए तथा उसका कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी न हो वह प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है। 
  • वह मंत्रिमंडल को विघटित कर सकता है, यदि वह सदन में विश्वास मत सिद्ध न कर सके। 
  • वह लोकसभा को विघटित कर सकता है यदि मंत्रिमंडल ने अपना बहुमत खो दिया हो।

राष्ट्रपति से संबंधित अनुच्छेदः एक नजर में

अनुच्छेद 

विषयवस्तु

52

भारत के राष्ट्रपति

53

संघ की कार्यपालक शक्ति 

54

राष्ट्रपति का चुनाव

55

राष्ट्रपति के चुनाव का तरीका

56

राष्ट्रपति का कार्यकाल 

57

पुनर्चुनाव के लिए अर्हता

58

राष्ट्रपति चुने जाने के लिए योग्यता 

59

राष्ट्रपति कार्यालय की दशाएँ 

60

राष्ट्रपति द्वारा शपथ ग्रहण

61

राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया

62

राष्ट्रपति पद की रिक्ति की पूर्ति के लिए चुनाव कराने का समय

65

उप-राष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना

71

राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित मामले 

72

राष्ट्रपति की दंड क्षमादान इत्यादि की शक्ति 

अनुच्छेद 161 के अंतर्गत राज्य का राज्यपाल भी किसी दंड को क्षमा कर सकता है

74

मंत्रिपरिषद का राष्ट्रपति को परामर्श एवं सहयोग प्रदान करना। 

75

मंत्रियों से संबंधित अन्य प्रावधान, जैसे-नियुक्ति, कार्यकाल, वेतन इत्यादि

76

भारत के महान्यायवादी 

77

भारत सरकार द्वारा कार्यवाही का संचालन

78

राष्ट्रपति को सूचना प्रदान करने से संबंधित प्रधानमंत्री के दायित्व इत्यादि

85

संसद के सत्र, सत्रावसान तथा भंग करना

111

संसद द्वारा पारित विधेयकों पर सहमति प्रदान करना 

112

संघीय बजट (वार्षिक वित्तीय विवरण)

123

राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति 

143

राष्ट्रपति की सर्वोच्च न्यायालय से सलाह लेने की शक्ति