संघ एवं इसका क्षेत्र (Union and its territories)
- संविधान के भाग 1 के अंतर्गत अनुच्छेद 1 से 4 तक में संघ एवं इसके क्षेत्रों का वर्णन है।
राज्यों का संघ
- अनुच्छेद 1 में कहा गया है कि भारत ‘राज्यों का संघ’ होगा।
- अनुच्छेद 1 के अनुसार भारतीय क्षेत्र को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है:
- संविधान की पहली अनुसूची में -राज्यों एवं संघ शासित राज्यों के नाम, उनके क्षेत्र विस्तार को दर्शाया गया है।
- वर्तमान में 28 राज्य एवं 8 केंद्रशासित क्षेत्र हैं,
- संविधान के उपबंध सभी राज्यों पर (जम्मू एवं कश्मीर को छोड़कर) समान रूप से लागू हैं।
- भाग XXI/21 के अंतर्गत, कुछ राज्यों के लिए विशेष उपबंध हैं;
- इनमें शामिल हैं-महाराष्ट्र, गुजरात, नागालैंड, असम, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा एवं कर्नाटक ।
- पांचवीं एवं छठी अनुसूचियों में राज्य के भीतर अनुसूचित एवं जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिए विशेष उपबंध हैं।
अनुच्छेद 2
- संसद को यह शक्ति दी गई है कि संसद, विधि द्वारा, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी।
- इस तरह अनुच्छेद 2 संसद को दो शक्तियां प्रदान करता है
- नये राज्य को भारत के संघ में शामिल करे
- (ब) नये राज्यों को गठन करने की शक्ति ।
अनुच्छेद 2
- उन राज्यों, जो भारतीय संघ के हिस्से नहीं हैं, के प्रवेश एवं गठन से संबंधित है।
अनुच्छेद 3
- भारतीय संघ के नए राज्यों के निर्माण या वर्तमान राज्यों में परिवर्तन से संबंधित है।
- अनुच्छेद 3 में भारतीय संघ के राज्यों के पुनर्सीमन की व्यवस्था करता है।
राज्यों के पुनर्गठन
- संबंधी संसद की शक्ति अनुच्छेद 3 संसद को अधिकृत करता है:
- किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके
- दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी
- किसी राज्य के क्षेत्र को बढ़ा सकेगी।
- किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी।
- किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी।
- किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी। है।
इस संबंध में अनुच्छेद 3 में दो शर्तों का उल्लेख है।
- इस तरह के परिवर्तन से संबंधित कोई अध्यादेश राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बाद ही संसद में पेश किया जा सकर
- संस्तुति से पूर्व राष्ट्रपति उस अध्यादेश को संबंधित राज्य के विधानमंडल का मत जानने के लिए भेजता है।
- यह मत नश्चित सीमा के भीतर दिया जाना चाहिए।
- राष्ट्रपति (या संसद) राज्य विधानमंडल के मत को मानने के लिए बाध्य नहीं है, और इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है।
- संघ क्षेत्र के मामले में संबंधित विधानमंडल के संदर्भ की कोई आवश्यकता नहीं, संसद जब उचित समझे स्वयं कदम उठा सकती है।
- स्पष्ट है कि संविधान, संसद को यह अधिकार देता है कि वह नये राज्य बनाने, उसमें परिवर्तन करने नाम बदलने या सीमा में परिवर्तन के संबंध में बिना राज्यों की अनुमति से कदम उठा सकती है।
- इस तरह संविधान द्वारा क्षेत्रीय एकता या राज्य के अस्तित्व को गारंटी नहीं दी गई है, इस तरह भारत को सही कहा गया है, विभक्त राज्यों का अविभाज्य संघ।
- दूसरी तरफ अमेरिका में क्षेत्रीय एकता या राज्यों के अस्तित्व को संविधान द्वारा गारंटी दी गई है। अमेरिकी संघीय सरकार नये राज्यों का निर्माण या उनकी सीमाओं में परिवर्तन बिना संबंधित राज्यों की अनुमति के नहीं कर सकती। इसलिए अमेरिका को ‘अविभाज्य राज्यों का अविभाज्य संघ’ कहा गया है।
अनुच्छेद 4
- नए राज्यों का प्रवेश या गठन (अनुच्छेद 2 के अंतर्गत), नये राज्य के निर्माण, सीमाओं, क्षेत्रों और नामों में परिवर्तन (अनुच्छेद 3 के अंतर्गत) को संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन नही माना जाएगा।
Q. क्या संसद को यह भी अधिकार है कि वो किसी राज्य के क्षेत्र समाप्त कर (अनुच्छेद 3 के अंतर्गत) ,भारतीय क्षेत्र को किसी अन्य देश को दे दे?
ANS-
- उच्चतम न्यायालय ने बेरूबाड़ी संघ (पश्चिम बंगाल) मामले में कहा कि संसद की शक्ति राज्यों की सीमा समाप्त करने और (अनुच्छेद 3 के अंतर्गत) भारतीय क्षेत्र को अन्य देश को देने की नहीं है।
- यह कार्य अनुच्छेद 368 में ही संशोधन कर किया जा सकता है।
- इस तरह 9वें संविधान संशोधन अधिनियम (1960) पारित कर बेरूबाड़ी संघ (पश्चिम बंगाल) को पाकिस्तान को स्थानांतरित कर दिया गया।
- 1969 में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि भारत और अन्य देश के बीच सीमा निर्धारण विवाद को हल करने के लिए संवैधानिक संशोधन की जरूरत नहीं है।
- यह कार्य कार्यपालिका द्वारा किया जा सकता है।
- इसमें भारतीय क्षेत्र को विदेश को सौंपना शामिल नहीं है।
केंद्रशासित प्रदेशों एवं राज्यों का उद्भव
देशी रियासतों का एकीकरण
- आजादी के समय भारत में राजनीतिक इकाईयों की दो श्रेणियां थीं
- ब्रिटिश प्रांत (ब्रिटिश सरकार के शासन के अधीन)
- देशी रियासतें (राजा के शासन के अधीन लेकिन ब्रिटिश राजशाही से संबद्ध)।
- भारतीय स्वतंत्रता (1947) के समय 552 देशी रियासतें, भारत की भौगोलिक सीमा में थीं।
- 549 भारत में शामिल हो गयीं और बची हुयी तीन रियासतों ने भारत में शामिल होने से इंकार कर दिया। कुछ समय बाद इन्हें भी भारत में मिला लिया गया
- हैदराबाद -पुलिस कार्यवाही के द्वारा
- जूनागढ़ -जनमत के द्वारा
- कश्मीर -कश्मीर को विलय पत्र के द्वारा
- 1950 में संविधान ने भारतीय संघ के राज्यों(संख्या-29) को चार प्रकार से वर्गीकृत किया
- भाग क(कुल 9 ) – गर्वनर का शासन
- भाग ख(कुल 9 ) –राज्य विधानमंडल के साथ शाही शासन
- भाग ग(कुल 10)- मुख्य आयुक्त का शासन(केंद्रीकृत प्रशासन)
- भाग घ(कुल 1) –अंडमान एवं निकोबार द्वीप
धर आयोग और जेवीपी समिति
- स्वतंत्रा बाद भारत के विभिन्न भागों से मांग उठने लगी कि राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन हो।
- जून, 1948 में भारत सरकार ने एस.के. धर की अध्यक्षता मेंभाषायी प्रांत आयोग की नियुक्ति की।
- आयोग ने अपनी रिपोर्ट दिसंबर, 1948 में पेश की।
- आयोग ने सिफारिश की कि राज्यों का पुनर्गठन भाषा के आधार की बजाय प्रशासनिक सुविधा के अनुसार होना चाहिए।
- इससे अत्यधिक असंतोष फैल गया,
जेवीपी समिति
- फिर कांग्रेस द्वारा दिसंबर, 1948 में एक अन्य भाषायी प्रांत समिति का गठन किया गया।
- इसमें जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल और पटटाभि सीतारमैया शामिल थे, जिसे जेवीपी समिति के जाना गया।
- इसने अपनी रिपोर्ट अप्रैल, 1949 में पेश की ।
- जेवीपी समिति ने भी अस्वीकार किया कि राज पुनर्गठन का आधार भाषा होनी चाहिए।
भाषा के आधार पर गठित पहला राज्य – आंध्रप्रदेश
- अक्तूबर, 1953 में भारत सरकार को भाषा के आधार परमद्रास से तेलुगू भाषी क्षेत्रों को पृथक कर आंध्रप्रदेश का गठन किया गया।
- इसी आंदोलन के दौरान , भूख हड़ताल में पोट्टी श्रीरामुलु का निधन हो गया।
फजल अली आयोग
- आंध्र प्रदेश के निर्माण से अन्य क्षेत्रों से भी भाषा के आधार पर राज्य बनाने की मांग उठने लगी।
- इसके कारण भारत सरकार ने दिसंबर 1953 में एक तीन सदस्यीय राज्य पुनर्गठन आयोग, फजल अली की अध्यक्षता में गठित किया ।
- इसके अन्य दो सदस्य थे- के.एम. पणिक्कर और एच. एन. कुंजरू।
- इसने अपनी रिपोर्ट 1955 में पेश की
- फजल अली आयोग ने
- राज्यों के पुनर्गठन में भाषा को मुख्य आधार बनाया
- इसने ‘एक राज्य एक भाषा’ के सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया।
- आयोग ने सलाह दी कि मूल संविधान के अंतर्गत चार आयामी राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त किया जाए और 16 राज्यों एवं 3 केंद्रीय प्रशासित क्षेत्रों का निर्माण किया जाए।
- भारत सरकार ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 और 7वें संविधान संशोधन अधिनियम 1956 के द्वारा 1 नवंबर, 1956 को 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया गया।
1956 के बाद बनाए गए नए राज्य एवं संघ शासित क्षेत्र
महाराष्ट्र और गुजरात :
- 1960 में बंबई को दो पृथक् राज्यों में विभक्त किया गया
- महाराष्ट्र – मराठी भाषी लोगों के लिए एवं
- गुजरात – गुजराती भाषी लोगों के लिए।
- गुजरात भारतीय संघ का 15वां राज्य था।
दादरा एवं नागर हवेली :
- 1954 में इसके स्वतंत्र होने से पूर्व यहां पुर्तगाल का शासन था।
- 10वें संविधान संशोधन अधिनियम 1961 द्वारा इसे संघ शासित क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया गया।
गोवा, दमन एवं दीव :
- 1961 में पुलिस कार्यवाही के माध्यम से भारत में इन तीन क्षेत्रों को अधिगृहीत किया गया
- 12वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1962 के द्वारा इन्हें संघ शासित क्षेत्र के रूप में स्थापित किया गया।
- बाद में 1987 में गोवा को एक पूर्ण राज्य बना दिया गया।
- इसी तरह दमन और दीव को पृथक केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया।
- पुडुचेरी का क्षेत्र पूर्व फ्रांसीसी गठन का स्वरूप था, जिसे भारत में पुडुचेरी, कराइकल, माहे और यनम के रूप में जाना गया।
- 1954 में फ्रांस ने इसे भारत को सौप दिया।
- इस तरह 1962 तक इसका प्रशासन अधिगृहीत क्षेत्र’ की तरह चलता रहा।
- फिर इसे 14 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1962द्वारा संघ शासित प्रदेश बनाया गया।
नागालैंड :
- 1963 में नागालैंड राज्य का गठन किया गया ।
- नागालैंड को भारतीय संघ के 16वें राज्य का दर्जा दिया गया था।
हरियाणा, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश :
- 1966 में पंजाब राज्य से भारतीय संघ के 17वें राज्य हरियाणा और केन्द्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ का गठन किया गया।
- शाह आयोग (1966) की सिफारिश पर पंजाबी भाषी क्षेत्र को पंजाब राज्य एवं हिंदी भाषी क्षेत्र को हरियाणा राज्य के रूप में स्थापित किया गया एवं इससे लगे पहाड़ी क्षेत्र को केंद्र शासित राज्य हिमाचल प्रदेश का रूप दिया गया ।
- 1971 में संघ शासित क्षेत्र हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया (भारतीय संघ का 18वां राज्य)।
- 1972 में दो केंद्र शासित प्रदेश मणिपुर व त्रिपुरा एवं उपराज्य मेघालय को राज्य का दर्जा मिला।
- इसके साथ ही भारतीय संघ में राज्यों की संख्या 21 हो गई
- 1972 में इनके अलावा दो संघ शासित प्रदेशों मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश (मूलतः जिसे पूर्वोत्तर सीमांत एजेंसी ‘NEFA’ के नाम से जाना जाता है) भी अस्तित्व में आए।
सिक्किम :
- संसद द्वारा 35वां संविधान संशोधन अधिनियम (1974) लागू किया गया। इसके द्वारा सिक्किम को एक संबद्ध राज्य’ का दर्जा दिया गया।
- 36 वें संविधान संशोधन अधिनियम (1975) के प्रभावी होने के बाद सिक्किम को भारतीय संघ का पूर्ण राज्य बना दिया गया (22 वां राज्य)।
मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और गोवा :
- 1987 में भारतीय संघ में तीन नये राज्य अस्तित्व में आये।
- मिजोरम – 23 वें
- अरुणाचल प्रदेश – 24 वें
- गोवा – 25 वें
छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड और झारखंड :
- सन 2000 मेंछत्तीसगढ़(26वें),उत्तराखण्ड(27वें) और झारखंड(28वें) को क्रमश: मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार से पृथक कर नये राज्यों के रूप में मान्यता दी गयी।
- वर्ष 2014 में तेलंगाना राज्य आन्ध्र प्रदेश राज्य के भूभाग को काटकर भारत के 29 वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।
नामों में परिवर्तन :
- संयुक्त प्रांत पहला राज्य था जिसका नाम परिवर्तित कर 1950 मेंउत्तर प्रदेश किया गया।