ब्रह्मांड एवं सौरमंडल (Universe and Solar System )

ब्रह्मांड एवं सौरमंडल (universe and solar system )

भूगोल से संबंधित रचनाएँ

रचना

रचनाकार

आर्यभट्टीयम्

आर्यभट्ट 

सिद्धांत शिरोमणि 

भास्कराचार्य 

(भास्कर द्वितीय)

इलियड एवं ओडिसी

होमर

ज्योग्राफिका

स्ट्रैबो

किताब-उल-हिंद (भारत का भूगोल)

अलबरूनी

नेचुरल हिस्ट्री/ हिस्टोरिया नेचुरलिस

प्लिनी द एल्डर

द ज्योग्राफी ऑफ द पीस

निकोलस जॉन स्पाइकमैन 

कॉसमॉस

cosmos

अलेक्जेंडर वॉन हंबोल्ट

Alexander von Humboldt

डाई एर्डकुंडे

Die Erdkunde

कार्ल रिटर

Carl Ritter’s

द ज्योग्राफी 

the geography

टॉलेमी

किताब सूरत-अल-अर्द

अल-ख्वारिज्मी 

एंथ्रोपोज्योग्राफी

Anthropogeography

फ्रेडरिक रेटजेल

Friedrich Ratzel

पॉलिटिक्स

अरस्तु

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • एनेक्ज़ीमेंडर ने सर्वप्रथम मापक के आधार पर विश्व का मानचित्र बनाया था। 
  • भूगोलवेत्ता ‘कार्ल रिटर’ ने पृथ्वी तल का अध्ययन मानव को केंद्र में रखकर किया। इन्हें ‘आराम कुर्सी वाला भूगोलवेत्ता’ कहा जाता है। 
  • टॉलेमी ने सर्वप्रथम विश्व मानचित्र पर भारत को दर्शाया था।
  • सर्वप्रथम औद्योगिक स्थानीकरण सिद्धांत का प्रतिपादन – वेबर ने
  • ‘पारिस्थितिक तंत्र’ (Ecosystem) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग – ए.जी. टांसले 
  • हृदय स्थल सिद्धांत (Heartland Theory) – एच. मैकिंडर 
  • समताप रेखाओं का जन्मदाता – हंबोल्ट 
  • सौर मंडल की संकल्पना – कॉपरनिकस
  • ‘पारिस्थितिकी’ (Ecology) शब्द का प्रथम प्रयोग – अर्नेस्ट हैकल 
  • पथ्वी के भूगर्भिक इतिहास की सर्वप्रथम व्याख्या – कास्ते-द-बफन 
  • आधुनिक भू-विज्ञान(geology) का पिता – जेम्स हटन
  • आधार तल की संकल्पना – पावेल
  •  ‘भू-संतुलन’ शब्द का प्रयोग – क्लैरेंस डटन
  • भौगोलिक चक्र का प्रतिपादन – डेविस 
  • ‘पैंजिया’ शब्द का प्रयोग – वेगनर
  • आधुनिक भूगोल का जनक- अलेक्जेंडर वॉन हंबोल्ट
  • सर्वप्रथम भूगोल शब्द का प्रयोग – इरेटोस्थनीज
  • भूगोल का पिता – इरेटोस्थनीज (हिकेटियस को भी)
  • भूगोल में नव नियतिवाद का सिद्धांत का प्रतिपादन – जी टेलर

 (General Introduction) 

  • ब्रह्मांड (आकाशगंगाओं का समूह)–>आकाशगंगा (तारो का समूह )–>सौरमंडल ( सूर्य एवं 8 ग्रहो का समूह)
  •  ‘पृथ्वी’, ‘सौरमंडल’ का एक भाग है और सौरमंडल आकाशगंगा का एक भाग है, तथा आकाशगंगाओं का समूह ‘ब्रह्मांड’ कहलाता है। 
  • सूक्ष्म अणुओं से लेकर विशालकाय आकाशगंगाओं तक के सम्मिलित रूप को ‘ब्रह्मांड’ कहते हैं। 
  • सौरमंडल की रचना ‘निहारिका’ नामक एक विशाल गैसीय पिंड से हुई है। सौरमंडल का लगभग 99 प्रतिशत से भी अधिक द्रव्यमान सूर्य में निहित है, जबकि सारे ग्रह मिलकर शेष द्रव्यमान से बने हुए हैं। 

अवधारणाएँ (Conceptions)

टॉलेमी का भूकेंद्री अवधारणा(Ptolemy’s Geocentric Concept)

कॉपरनिकस का सूर्यकेंद्री अवधारणा(Copernicus’s heliocentric concept)

  • ब्रह्मांड के केंद्र मेंसूर्य है तथा पृथ्वी एवं अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। 
  • कॉपरनिकस को ‘आधुनिक खगोलशास्त्र का जनक’ कहा गया। 

कैपलर ग्रहीय ग्रहीय गति के नियम(Kepler’s laws of planetary motion)

  • कैपलर ने सूर्य को ग्रहीय कक्षा का केंद्र माना। 
  • सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले ग्रहों का पथ  दीर्घवृत्तय या अंडाकार(elliptical) है

गैलीलियो (Galileo)

  • 1609 ईस्वी में गैलीलियो ने अपवर्तक दूरबीन(Refractor telescope) का आविष्कार किया 
  • गैलीलियो ने सूर्य कलंक या सूर्य धब्बे का पता लगाया 
  • इन्होंने ही बताया कि सूर्य का निकटवर्ती तारा प्रॉक्सिमा सैंटोरी है

न्यूटन

‘हर्शल'(Harschel) 

एडविन हबल का आकाशगंगाओं के प्रतिसरण का नियम(The law of Recession of Galaxies) 

  • एडविन हब्बल ने प्रमाण दिया कि ब्रह्मांड का विस्तार अभी भी जारी है, जिसको उन्होंने आकाशगंगाओं के बीच बढ़ रही दूरी के आधार पर सिद्ध किया। 
  • 1925 ईस्वी में हबल ने बताया कि विश्व में हमारी आकाशगंगा “दुग्ध मेखला (Milkyway)” की तरह लाखों अन्य आकाशगंगा  हैं 
  • ये  आकाशगंगा अंतरिक्ष में स्थिर नहीं है बल्कि वे एक दूसरे से दूर होती जा रही है जैसे-जैसे आकाशगंगाओं के बीच में दूरी बढ़ती जाती है उनके भागने की गति भी तीव्र होती जाती है इसे आकाशगंगाओं के प्रतिसरण का नियम कहते हैं
  • आकाशगंगा दूर भाग रही है और विश्व का लगातार विस्तार हो रहा है यह डॉप्लर प्रभाव द्वारा ज्ञात किया गया है

ब्रह्मांड की उत्पत्ति (The Origin of the Universe) 

विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना/बिग बैंग सिद्धांत

  • ब्रह्मांड की उत्पत्ति के विषय में चार सिद्धांत प्रमुख हैं जिसमें ‘बिग बैंग सिद्धांत’ सर्वाधिक मान्य है। इसे ‘विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना‘(Expanding Universe Hypothesis) भी कहा जाता है। 
  • इस सिद्धांत का प्रतिपादन 1925  में ‘जॉर्ज लेमैत्रे’ (Georges Lemaitre) ने किया एवं बाद में रॉबर्ट वेगनर ने 1967 में इस सिद्धांत की व्याख्या प्रस्तुत की। 
  • बिग बैंग सिद्धांत की Confirmation ‘डॉप्लर प्रभाव/doppler effect’ से भी की जा चुकी है।
  • इस सिद्धांत के अनुसार, ब्रह्मांड लगभग 13.7 अरब वर्ष पूर्वभारी पदार्थों से निर्मित एक गोलाकार सूक्ष्म पिंड था, जिसका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म और ताप व घनत्व अनंत था, बिग बैंग की प्रक्रिया में इसके अंदर महाविस्फोट हुआ और ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। 
  • विस्फोट के फलस्वरूप अनेक पिंड अंतरिक्ष में बिखर गए जो आज भी गतिशील अवस्था में हैं। इसके साथ ही, समय, स्थान एवं वस्तु की व्युत्पत्ति हुई। 
  • कुछ अरब वर्ष बाद हाइड्रोजन एवं हीलियम के बादल संकुचित होकर तारों एवं आकाशगंगाओं का निर्माण करने लगे। 
  • बिग बैंग घटना के पश्चात् आज से लगभग 4.5 अरब वर्ष पूर्व सौरमंडल का विकास हुआ, जिससे ग्रहों तथा उपग्रहों का निर्माण हुआ।

स्थिर अवस्था संकल्पना’ (Steady State Theory)

  • ‘होयल’ ने इस परिकल्पना के विपरीत ‘स्थिर अवस्था संकल्पना’ (Steady State Theory) के नाम से नवीन परिकल्पना प्रस्तुत की। 
  • इसके अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार लगातार हो रहा है लेकिन इसकाः स्वरूप किसी भी समय एक ही जैसा रहा है। लेकिन वर्तमान में  ‘बिग बैंग सिद्धांत’ को ही सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है। 

आकाशगंगा (Galaxy) ,निहारिका(Nebula) 

  • आकाशगंगा के निर्माण की शुरुआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादलों के संचयन से होती है। इसे ‘निहारिका’ कहा जाता है। 
  • इस बढ़ती हुई निहारिका में गैस के झुंड विकसित हुए, झुंड बढ़ते-बढ़ते घने गैसीय पिंड बने जिनसे तारों का निर्माण हुआ। 
  • गुरुत्वाकर्षण बल के अधीन बंधे तारों, धूलकणों एवं गैसों के तंत्र को ही ‘आकाशगंगा’ कहते है। 
  • आकाशगंगा से विभिन्न प्रकार के विकिरण निकलते रहते हैं, 
    • इनमें अवरक्त(Infrared) किरणें, गामा किरणें, रेडियो तरंगें, X-किरणें, दृश्य प्रकाश(Visible) एवं पराबैंगनी(Ultraviolet) तरंगें आदि शामिल हैं। 

मंदाकिनी

  • हमारा सौरमंडल जिस आकाशगंगा में स्थित है उसे मंदाकिनी कहते हैं। 
  • यह सर्पिलाकार(spiral) है
  • इसमें तीन घूर्णनशील भुजायें एवं एक केंद्र है। केंद्र को ‘बल्ज’ कहा जाता है, जिसमें एक ‘ब्लैक होल’ पाया जाता है। 

‘स्वर्ग की गंगा’ या ‘मिल्की वे’ (‘Ganges of Heaven’ or ‘Milky Way’)

तारे का जन्म तथा विकास (Origin and Evolution of Star) 

  • तारों का जीवनकाल अत्यधिक लंबा होता है एवं विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरता है। तारे के जीवन चक्र की अवस्थाएँ निम्न हैं
  • ब्रह्मांड में उपस्थित गैसों एवं धूल के कणों/बादलों का गुरुत्वाकर्षण के कारण आकाशगंगा के केंद्र में नाभिकीय संलयन शुरू हो जाता है एवं हाइड्रोजन, हीलियम में बदलने के कारण नवीन तारों का  निर्माण होता है। इन्हीं बादलों को ‘स्टेलर नर्सरी’ कहा जाता है।

आदि तारा’ (Protostar)

    • आकाशगंगा में हाइड्रोजन का बादल बड़ा होता है तो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से गैसीय पिंड सिकुड़ने लगता है जो तारे के जन्म का प्रारंभिक स्वरूप होता है। यह आदि तारा’ (Protostar) कहलाता है। 

‘पूर्ण तारा’

  • आदि तारा के सिकुड़ने पर गैस के बादलों में परमाणुओं की टक्करों की संख्या बढ़ने से हाइड्रोजन के हीलियम में बदलने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। इस अवस्था में आदि तारा ‘पूर्ण तारा’ बन जाता है। 
  • तारा प्रकाश उत्पन्न करने वाला खगोलीय पिंड होता है, जो अपने द्रव्यमान के अनुरूप छोटा या बड़ा हो सकता है। 
  • तारे के केंद्र में चलने वाली निरंतर नाभिकीय संलयन अभिक्रिया के फलस्वरूप कुछ समय बाद उसके क्रोड में हीलियम की मात्रा ज्यादा हो जाती है तथा नाभिकीय संलयन की अभिक्रिया रुक जाती है। इससे क्रोड में दबाव कम हो जाता है तथा तारा सिकुड़ने लगता है।

‘लाल दानव तारा’ (Red Giant Star)

  • पुनः तारे की बाह्य कवच के हाइड्रोजन का हीलियम में परिवर्तन होने से ऊर्जा विकिरण की तीव्रता घट जाती है एवं इसका रंग बदलकर लाल हो जाता है। इस अवस्था के तारे को ‘लाल दानव तारा’ (Red Giant Star) कहा जाता है। 
  • यदि किसी तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से कम अथवा बराबर (चंद्रशेखर सीमा) है तो वह लाल दानव से ‘श्वेत वामन’ (White Dwarf) और अंततः ‘काला वामन’ (Black Dwarf) में परिवर्तित हो जाता है। 

‘सुपरनोवा विस्फोट’ (Supernova Explosion)

  • यदि तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से अधिक या कई गुना अधिक है तो तारे की मध्यवर्ती परत गुरुत्वाकर्षण के कारण तारे के केंद्र में ध्वस्त हो जाती है। इससे निकली ऊर्जा तारे के ऊपरी परत को नष्ट कर देती है और भयानक विस्फोट होता है जिसे ‘सुपरनोवा विस्फोट’ (Supernova Explosion) कहते हैं। 
  • सुपरनोवा विस्फोट के बाद वह तारा ‘न्यूट्रॉन तारा’ तथा इसके पश्चात् ‘ब्लैक होल’ में बदल जाता है।

तारों का रंग, तापमान एवं उम्र 

  • तारों के रंग से उसके तापमान को ज्ञात किया जाता है। 
  • तारों द्वारा मुक्त ऊष्मा के आधार पर उनकी उम्र ज्ञात की जा सकती है, जैसे
    • नीला व सफेद – युवा (आद्य तारा) 
    • नारंगी – प्रौढ़(mature) 
    • लाल – वृद्ध
  • विस्फोट के बाद तारे की मृत्यु हो जाती है या वह ‘कृष्ण विवर’ (Black Hole) बन जाता है।

चंद्रशेखर सीमा (Chandrasekhar Limit) 

  • एस. चंद्रशेखर भारतीय मूल के अमेरिकी खगोल भौतिकविद् थे।जिन्होंने श्वेत वामन तारों के जीवन अवस्था के बारे में सिद्धांत प्रतिपादित किया। 
  • इसके अनुसार, 1.44 सौर द्रव्यमान ही श्वेत वामन के द्रव्यमान की ऊपरी सीमा है। इसे ही ‘चंद्रशेखर सीमा’ कहते हैं। 
  • एस. चंद्रशेखर को संयुक्त रूप से नाभिकीय खगोल भौतिकी में ‘डब्ल्यू. ए. फाउंलर’ के साथ 1983 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। 

न्यूट्रॉन तारा (Neutron Star)

  • सुपरनोवा विस्फोट से बचे हुए केंद्रीय भाग, जो कि अत्यधिक घनत्व वाला होता है, से न्यूट्रॉन तारों का निर्माण होता है।
  • अधिक गति से चक्कर लगाने वाले न्यूट्रॉनों से बने तारों को ‘न्यूट्रान तारा’ कहते हैं। 
  •  न्यूट्रॉन तारे के सभी अंश न्यूट्रॉन के रूप में संगठित रहते हैं। 
  • यह तीव्र रेडियो तरंगें उत्सर्जित करते हैं। 
  • न्यूट्रॉन तारे को ‘पल्सर’ भी कहा जाता है। 

कृष्ण विवर (Black Hole)

  • कृष्ण विवर अंतरिक्ष में स्थित ऐसा स्थान है जहाँ गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि प्रकाश का परावर्तन या किसी भी वस्तु का वहाँ से पलायन नहीं हो सकता। 
  •  इसे दूरबीन से भी नहीं देखा जा सकता। 
  • कृष्ण विवर की पुष्टि प्रकाश के अपने पथ के विचलन के द्वारा की जाती है। 
  • कृष्ण विवर का निर्माण तब हो सकता है जब न्यूट्रॉन तारे में द्रव्यमान एक ही स्थान पर संकेद्रित हो जाए अथवा उसकी मृत्यु हो रहा है।”
  • ब्लैक होल आकार में बड़ा या छोटा हो सकता है। छोटे ब्लैक होल एक परमाणु  जितने छोटे हो सकते हैं लेकिन उनका द्रव्यमान बहुत अधिक होता है।
  • जिन तारों का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के तीन गुने से अधिक होता है वे विघटित होकर अंततः ब्लैक होल में transform हो जाते हैं।

नक्षत्र (Asterism) 

  • एक निश्चित आकृति में व्यवस्थित तारों के समूह को ‘नक्षत्र’ कहा जाता है। इनकी संख्या 27 मानी जाती है। 
  • भारतीय मनीषियों ने एक 28वें नक्षत्र ‘अभिजीत’ की भी परिकल्पना की है। 
  • यह आकाश में रात में दिखाई पड़ते हैं। 
  • कुछ प्रमुख नक्षत्र हैं- 

चित्रा, हस्त, विशाखा, श्रवण, धनिष्ठा, मघा, आर्द्रा, अनुराधा, रोहिणी इत्यादि। 

  • नक्षत्र दिवस
    • किसी नियत नक्षत्र के मध्याह्न रेखा के ऊपर से उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच के समय को नक्षत्र दिवस कहते हैं। 
    • यह दिवस 23 घंटे, 56 मिनट का होता है। 

तारा मंडल (Constellation) 

  • आकाश में तारो के समूह जो आकृतियों के रूप में व्यवस्थित होते हैं। इन आकतियों को ‘तारामंडल’ कहते हैं। 
  • इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) के अनुसार इनकी संख्या 88 मानी गई है। 
  • सबसे बड़ा तारामंडल  सेन्टारस (Centaurus)-जिसमे 94 तारे  है 
  • प्रमुख तारामंडल
    • सप्तर्षि (Ursa Major-Great Bear)
    • ध्रुव मत्स्य (Ursa Minor-Little Bear)

ध्रुव तारा (Pole Star) 

  • उत्तरी ध्रुव पर स्थित तारे को ही ‘ध्रुव तारा’ कहते हैं। यह आकाश में हमेशा एक ही स्थान पर रहता है। यह ‘लिटिल बियर तारा समूह’  का  सदस्य है।
  • सप्तर्षि मंडल की सहायता से ध्रुव तारे की स्थिति को जान सकते हैं अर्थात् सप्तर्षि मंडल के संकेतक तारों को आपस में मिलाते हुए एक काल्पनिक रेखा खींची जाए एवं उसे आगे की ओर बढ़ाया जाए तो यह ध्रुव तारे को दर्शाता करेगी।

 सौरमंडल की संरचना (The Structure of the Solar System) 

  •  ‘सौरमंडल’ सूर्य, ग्रहों, विभिन्न उपग्रहों तथा अन्य खगोलीय पिंडों का एक परिवार है, जिसमें सूर्य एक तारा है तथा इसके आठ ज्ञात ग्रहों में क्रमशः बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुणवरुण हैं। 
  • ये ग्रह परवलयाकार(parabolic) मार्ग में सूर्य की परिक्रमा करते हैं। 
  • सूर्य हमारे सौरमंडल के केंद्र में स्थित है, जो सौर परिवार के लिए ऊर्जा एवं प्रकाश का प्रमुख स्रोत है। 
  • इस आधार पर खगोलीय पिंडों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है- 
    • ऐसे खगोलीय पिंड जिनके पास अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश होता है, जैसे-तारे। 
    • ऐसे खगोलीय पिंड जिनके पास अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश नहीं होता, ये प्रकाश के लिए सूर्य समान तारों पर निर्भर रहते हैं, जैसे- ग्रह। 

खगोलीय इकाई (Astronomical Unit): 

  • सूर्य से दूरी खगोलीय इकाई(AU) में है। 
  • 1 AU = 14 करोड़ 95 लाख 98 हजार 5 सौ  किलोमीटर । 
  • # = भूमध्यरेखीय अर्द्धव्यास 6378.137 किमी. = 1 है।

ग्रह

सूर्य से दूरी 

AU में   

घनत्व

(gm/cm3)

अर्द्धव्यास

#

उपग्रहों की सख्या

बुध

0.387

5.44

0.383

0

शुक्र

0.723

5.245

0.949

0

पृथ्वी 

1.000

5.517

1.000

1

मंगल

1.524

3.945

0.5333

2

बृहस्पति 

5.203

1.33

11.19

79

शनि

9.539

0.70

9.460

82

यूरेनस (अरुण)

19.182

1.17

4.11

27

नेप्च्यून (वरुण)

30.058

1.66

3.88

13

माप इकाइयाँ 

प्रकाश वर्ष (Light Year): 

पारसेक (Parsec): 

ब्रह्मांड वर्ष (Cosmic Year): 

  • सूर्य सौरमंडल के अन्य सदस्यों सहित, मंदाकिनी/आकाशगंगा की एक परिक्रमा लगभग 25 करोड़ वर्ष में पूरी करता है, इस अवधि को ही ब्रह्मांड वर्ष’ कहते हैं। 

खगोलीय इकाई (Astronomical Unit): 

सूर्य (Sun)

  • सूर्य एक मध्यम आयु का मध्यम तारा है। 
  • इसका व्यास लगभग 13.9 लाख किमी. है। 
  • सूर्य की वर्तमान आयु लगभग 4.7 अरब वर्ष है।
  • सूर्य के द्रव्यमान का 70.6 प्रतिशत भाग हाइड्रोजन और 27.4 प्रतिशत भाग हीलियम से बना है। 
  • सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर लगभग 8 मिनट में पहुँचता है। 
  • सूर्य अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमता है। इसकी घूर्णन अवधि भूमध्य रेखा पर 25 पृथ्वी दिवस है। 
  • सूर्य का अपना कोई चंद्रमा नहीं है। साथ ही, सूर्य पर किसी छल्ले की भी विद्यमानता नहीं है। 
  • सूर्य की संरचना को छः क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है
  • केंद्र/क्रोड (Core) 
  • विकिरण क्षेत्र (Radiation zone) 
  • संवहनी क्षेत्र(Convective Layer)
  • प्रकाशमंडल (Photosphere)
  • सौर वायुमंडल(solar atmosphere)
    • वर्णमण्डल (Chromosphere) 
    • कोरोना (Corona)
  • सूर्य कलंक /सौर धब्बे (sun  spots)

             Sun

केंद्र/क्रोड (Core)  –

  • सूर्य का सबसे आंतरिक भाग क्रोड कहलाता है। सूर्य के केंद्र का तापमान 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस है जो नाभिकीय संलयन के अनुकूल है। 

विकिरण क्षेत्र (Radiation zone)

  • सूर्य के केंद्र में नाभिकीय संलयन से उत्पन्न ऊर्जा केंद्रीय भाग से विकिरण क्षेत्र से होता हुआ संवाहक घेरे  व वहां से प्रकाश मंडल होता हुआ बाह्य  अंतरिक्ष में पहुंच जाता है

संवहनी क्षेत्र(Convective Layer)

प्रकाशमंडल (Photosphere)

  • सूर्य का जो भाग हमें दिखाई होता है, उसे ‘प्रकाशमंडल’ (Photosphere) कहते हैं। प्रकाशमंडल में ही सौरकलंक (Sunspots) पाये जाते  है।
  • प्रकाश मंडल से ही सूर्य का व्यास निर्धारित होता है
  • सूर्य की बाह्य प्रकाशित सतह को फोटोस्फीयर कहा जाता है। यहाँ फोटॉन की अधिकता पाई जाती है। फोटोस्फीयर में अनगिनत छोटे-छोटे प्रकाशित कण होते हैं, इन्हें ‘ग्रैनूल’ कहा जाता है। 

सौर वायुमंडल(solar atmosphere)

  • वर्णमण्डल (Chromosphere)- 
    • यह हाइड्रोजन गैस से बना होता है 
    • कभी-कभी क्रोमो स्फीयर में तीव्र गहनता का प्रकाश उत्पन्न होता है, जिसे ‘सौर ज्वाला’ (Solar Flare) कहते है।
  • कोरोना (Corona)
    • प्रकाशमंडल का बाहरी भाग, जो केवल सूर्यग्रहण के समय दिखाई पड़ता है, ‘किरीट’ या ‘कोरोना’ कहलाता है।

सूर्य कलंक /सौर धब्बे (sun  spots)

  • फोटोस्फीयर में ठंडे एवं काले धब्बों को ‘सौरकलंक’ या ‘सौरधब्बा’ कहते हैं तथा गर्म एवं प्रकाशित भाग को ‘फैकुला’ कहा जाता है। 
  • सूर्य कलंक का तापमान आसपास के तापमान से 1500  डिग्री सेल्सियस कम होता है 
  • जब सौर धब्बे दिखाई देता है उस समय पृथ्वी पर चुम्बकीय झंझावात(magnetic storm) उत्पन्न होते हैं 
    • इससे रेडियो, टीवी आदि बिजली से चलने वाली मशीनों में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है 
    • चुंबक के सुई की दिशा बदल जाती है तथा नाविकों को दिशा भ्रम हो जाता है 
    • सौर धब्बे का एक पूरा चक्र 22 वर्षों का होता है जिसे सूर्य धब्बा चक्र(sun spot circle) कहते हैं 
  • सौरकलंक की सर्वप्रथम खोज ‘गैलीलियो’ ने की थी।

नोट: 

नासा के अनुसार, सौरकलंक की खोज को लेकर गैलीलियो और थॉमस हैरियट’ के नाम में अभी भी मतभेद बने हुए हैं।’ 

अम्ब्रा एवं पेनुम्बा (Umbra and Penumba)

  • प्रकाशमंडल में पाये जाने वाले सौरकलंक में काले केंद्र को अम्ब्रा (Umbra) कहते हैं, तथा इसके चारों ओर हल्के रंग का क्षेत्र होता है, जिसे ‘पेनुम्ब्रा’ कहते हैं। 
  • संपूर्ण सौर तंत्र से होकर प्रवाहित होने वाली पवन को ‘सौर पवन’ (Solar Wind) कहते हैं।

(ध्रुवीय ज्योति)/(Aurora) 

  • अंतरिक्ष से आने वाली ब्रह्मांड किरणों, सौर पवनों तथा पृथ्वी के चुम्बकीय प्रभावों के मध्य घर्षण के कारण ध्रुवों के ऊपर एक रंगीन चमक उत्पन्न होती है, जिसे ‘अरोरा’ कहते हैं। 
  • उत्तरी ध्रुव पर इसे ‘अरोरा बोरियालिस/aurora borealis’ एवं दक्षिणी ध्रुव पर ‘अरोरा ऑस्ट्रालिस/aurora australis‘ कहते हैं।

ग्रह (Planet) 

  • अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) ने वर्ष 2006 में ग्रह की नई परिभाषा दी जिसके अनुसार, ग्रह उन्हीं आकाशीय पिंडों को माना जाएगा, जो
    • ऐसे पिंड जिसमें पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण बल हो जिससे वह गोल स्वरूप धारण कर सके 
    • वह सूर्य का परिक्रमा करता हो 
    • अपने पड़ोसी पिंडों की कक्षा को नहीं लांघता  हो।
  • ग्रहों के पास अपना कोई प्रकाश या ऊष्मा नहीं होती। ये सूर्य से ही ऊष्मा एवं प्रकाश प्राप्त करते हैं। 

‘घूर्णन’ या ‘परिभ्रमण’ (Rotation)/दैनिक गति 

  • ग्रहों का अपने अक्ष पर घूमना ‘घूर्णन’ या ‘परिभ्रमण’ (Rotation) कहलाता है 

‘परिक्रमण’ (Revolution)/वार्षिक गति 

  • उनका सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाना ‘परिक्रमण’ (Revolution) कहलाता है। 
  •  वर्तमान समय में सौरमंडल में पृथ्वी सहित 8 ग्रह हैं, जिनका वर्गीकरण निम्न है

आंतरिक/पार्थिव ग्रह

बाह्य/जोवियन ग्रह

बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल

बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण

सूर्य से दूरी के अनुसार क्रम

आकार के अनुसार (बढ़ते क्रम में)

पार्थिव एवं जोवियन ग्रहों में अंतर

पार्थिव ग्रह(terrestrial planets)

जोवियन ग्रह(Jovian Planet) 

  • पार्थिव ग्रहों का निर्माण सूर्य के निकट हुआ। 
  • पार्थिव ग्रहों की सूर्य से निकटता के कारण यहाँ अत्यधिक तापमान है।
  • सूर्य के निकट सौर वायु अधिक शक्तिशाली होने के कारण यह पार्थिव ग्रहों से धूलकण और गैसों को उड़ाकर ले गई। अर्थात् इन ग्रहों में धूलकण और गैसों की अत्यधिक कमी पाई जाती है। 
  • पार्थिव ग्रहों के छोटे आकार के कारण इनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति कम है, जिससे यह गैसों को अपनी ओर अधिक मात्रा में आकर्षित नहीं कर पाये। इसके साथ-साथ इन ग्रहों पर बाहरी धातु, जैसे- लोहा और निकेल अत्यधिक मात्रा में हैं। 
  • पार्थिव ग्रह के उदाहरण- 
  • बुध, शुक्र, पृथ्वी तथा मंगल हैं। 
  • ये ठोस ग्रह हैं।
  • जोवियन ग्रहों का निर्माण सूर्य से अधिक दूरी पर हुआ। 
  • जोवियन ग्रहों के सर्य से कम निकटता के कारण यहाँ पार्थिव ग्रहों की अपेक्षा तापमान कम है।
  • सूर्य से अधिक दूरी पर सौर वायु शक्ति कम प्रभावशाली होती है, अतः जोवियन ग्रहों पर धूलकण एवं गैसों की अधिकता पाई जाती है। 
  • जोवियन ग्रहों के बड़े आकार के कारण इनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति अधिक है, जिस कारण गैसों का संकेंद्रण यहाँ अधिक पाया गया। 
  • जोवियन ग्रहों के उदाहरण 
  • बृहस्पति, शनि, यूरेनस (अरुण) तथा नेप्च्यून (वरुण) हैं। 
  • ये गैसीय ग्रह हैं।

बुध (Mercury) 

  • यह सूर्य से सबसे निकट का ग्रह है एवं सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है। 
  • यह सूर्य की परिक्रमा सबसे कम समय (88 दिन) में पूरा कर लेता है।
  • इसकी कक्षीय गति सौरमंडल के अन्य ग्रहों की अपेक्षा सर्वाधिक है। यह 48 किमी. प्रति सेकंड की गति से सूर्य की परिक्रमा करता है। (कुछ अन्य स्रोतों में 50 किमी. प्रति सेकंड) 
  • यहाँ दिन अत्यधिक गर्म तथा रातें बर्फीली होती हैं, अतः बुध का तापांतर अन्य ग्रहों की अपेक्षा सर्वाधिक है। 
  • बुध के पास अपना कोई उपग्रह नहीं है। 
  • बुध पर वायुमंडल का अभाव है। 

शुक्र (Venus) 

  • यह पृथ्वी के सर्वाधिक नज़दीक है, जो सूर्य एवं चंद्रमा के बाद तीसरा सबसे चमकीला खगोलीय पिंड है। 
  • शाम को पश्चिम में एवं सुबह को पूरब में दिखाई देने के कारण ही इसे क्रमशः ‘सांझ का तारा’ तथा ‘भोर का तारा’ भी कहते हैं। 
  • इसे पृथ्वी की बहन’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह आकार, घनत्व एवं व्यास में पृथ्वी के लगभग बराबर है।
  • शुक्र के वायुमंडल में अधिकतम कार्बन डाइऑक्साइड (90-95 प्रतिशत) होने के कारण ही इस पर ‘प्रेशरकुकर’ जैसी स्थिति उत्पन्न होती है इसलिये यह सबसे गर्म ग्रह है। इसके चारों तरफ सल्फर डाइआक्साइड के घने बादल हैं। 
  •  शुक्र एवं अरुण’ की परिक्रमण दिशा विपरीत (पूरब से पश्चिम) अर्थात् दक्षिणावर्त(clockwise) है, जबकि अन्य सभी ग्रहों की वामावर्त (counterclockwise) है।इसलिये यहाँ सूर्योदय पश्चिम में एवं सूर्यास्त पूरब में होता है।
  •  बुध के समान इसका भी कोई उपग्रह नहीं है। 
  • इसका परिक्रमण काल 225 दिनों (अन्य स्रोतों में 255 दिन) का तथा घूर्णन काल 243 दिनों(सर्वाधिक) का होता है अर्थात् हमारे सौरमंडल के अन्य ग्रहों की अपेक्षा सर्वाधिक लंबे दिन-रात यहाँ होते हैं। 

पृथ्वी (Earth) 

  • पृथ्वी सौरमंडल का एकमात्र ऐसा ग्रह है, जिस पर जीवन है। 
  • आकार की दृष्टि से यह पाँचवा बड़ा ग्रह तथा पार्थिव ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है, वहीं सूर्य से दूरी के क्रम में तीसरे स्थान पर है। 
  • पृथ्वी शुक्र और मंगल ग्रह के बीच स्थिति है.
  • पृथ्वी अपने अक्ष(AXIS) पर 231 2 ° झुकी हुई है। ध्रुवों के पास थोड़ी चपटी होने के कारण इसके आकार को ‘भूआभ’ (Geoid) कहा जाता है। 
  • पृथ्वी अपने कक्ष (ORBIT) पर  661 2 ° झुकी हुई है एवं अपने कक्ष पर सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्तीय है या अंडाकार मार्ग(elliptical or oval path) पर चक्कर काटती है
  • सूर्य से पृथ्वी की दूरी14 करोड़ 95 लाख 98 हजार 5सौ  किलोमीटर है इसी दूरी को एक खगोलीय इकाई  कहते हैं
  • सूर्य से इसकी निकटतम दूरी(perihelion) 14.73 करोड़ किमी तथा अधिकतम दूरी (Aphelion) 15.2  करोड़ किमी है
  • पृथ्वी पर जल की अधिकता होने के कारण अंतरिक्ष से देखने पर यह ‘नीला’ दिखाई देता है, इसलिये इसे ‘नीला ग्रह भी कहते हैं। 

पृथ्वी का घूर्णन काल(rotation)/दैनिक गति

  • पृथ्वी का घूर्णन काल(rotation)/दैनिक गति  23 घंटे, 56 मिनट एवं 4 सेकंड अर्थात् लगभग एक दिन का होता है 
  • घूर्णन के कारण पृथ्वी पर दिन और रात होते हैं

परिक्रमण/वार्षिक गति (Revolution)

  • सूर्य के चारों ओर एक परिक्रमण/वार्षिक गति (Revolution) 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट एवं 46 सेकंड अर्थात् लगभग एक वर्ष का होता है। 
  • परिक्रमण के कारण ही पृथ्वी पर ऋतु परिवर्तन होता है

 ‘सौर वर्ष’- पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में लगे समय को ‘सौर वर्ष’ कहते हैं। 

गोल्डीलॉक्स ज़ोन (habitable zone, or the Goldilocks zone)

  •  ‘गोल्डीलॉक्स जोन’ को निवास योग्य क्षेत्र या जीवन क्षेत्र (पृथ्वी सदृश) भी कहा जाता है। 
  • किसी तारे के आस-पास का क्षेत्र है जहां आसपास के ग्रहों की सतह पर तरल पानी के अस्तित्व के लिए, न तो बहुत गर्म और न ही बहुत ठंडा क्षेत्र होता है.यानि गोल्डीलॉक्स जोन जहाँ पर किसी ग्रह की सतह पर तरल जल काफी मात्रा में मौजूद हो सकता है। 

मंगल (Mars) 

  • यह ग्रह आकार की दृष्टि से सातवाँ बड़ा तथा सूर्य से दूरी के क्रम में चौथे स्थान पर है। 
  • इसे सूर्य की परिक्रमा करने में लगभग 687 दिन लगते हैं। 
  • मंगल आंतरिक ग्रहों में सबसे बाहरी ग्रह है। 
  • मंगल ग्रह की मिट्टी में ‘आयरन ऑक्साइड’ की अधिकता होने के कारण यह लाल रंग का दिखाई देता है इसीलिये मंगल को ‘लाल ग्रह भी कहते हैं। 
  • मंगल के. वायुमंडल में 95 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य गैसों के रूप में नाइट्रोजन, आर्गनकार्बन मोनोऑक्साइड जैसे गैसों की विद्यमानता पाई जाती है।  अपने अक्ष पर 25° झुके होने के कारण मंगल पर पृथ्वी के समान ही लगभग समान अवधि के दिन और रात होते हैं। 
  • मंगल के दो उपग्रह ‘फोबोस’ तथा ‘डीमोस’  हैं तथा डीमोस सौरमंडल का सबसे छोटा उपग्रह है। 
  • सौरमंडल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी‘ओलम्पस मोन्स (Olympus Mons)’ तथा सबसे ऊँचा पर्वत ‘निक्स ओलंपिया (Nix Olympia)’ मंगल ग्रह पर ही मौजूद हैं। निक्स ओलंपिया पर्वत एवरेस्ट से तीन गुना ऊँचा है। 

बृहस्पति (Jupiter) 

  • यह सौरमंडल का सबसे बड़ा और सबसे भारी ग्रह है तथा सूर्य से दूरी के क्रम में पाँचवें स्थान पर है। 
  • बृहस्पति ग्रह की खोज गैलीलियो ने की थी। 
  • यह लगभग 12 वर्षों में सूर्य की परिक्रमा पूर्ण करता है। अपने अक्ष पर यह लगभग 9 घंटे, 56 मिनट में एक चक्कर लगाता है। 
  • इसके कुल 79 उपग्रह हैं। 
  • गैनीमीड, कैलिस्टो, लो (आयो) तथा यूरोपा इसके सबसे बड़े उपग्रह हैं 
    • गैनीमीड इस सौरमंडल का सबसे बड़ा उपग्रह है। 
  • लो (आयो) हमारे सौरमंडल में सर्वाधिक सक्रिय ज्वालामुखी वाला पिंड है। 
  • बृहस्पति का पलायन वेग सौरमंडल का सर्वाधिक अर्थात् 59.6 किमी./सेकंड है। 
  • इसके बड़े आकार के कारण इसे ‘तारा सदृश’ ग्रह भी कहा जाता है तथा इसे ‘मास्टर ऑफ गॉड्स’ (Master of Gods) भी कहा जाता है। 
  • बृहस्पति को ‘लघु सौर तंत्र’ भी कहते हैं। 
  • नासा द्वारा बृहस्पति के अध्ययन हेतु 2011 में ‘जूनो’ नामक अंतरिक्ष यान भेजा गया था। 

शनि (Saturn) 

  • यह आकार में दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है तथा सूर्य से दूरी के क्रम में छठवें स्थान का ग्रह है। 
  • इसके चारों ओर वलयों((rings)) पाया जाता है। 
  • इसका घनत्व 0.7 ग्राम प्रति घन सेमी. है जो अन्य सभी ग्रहों में सबसे कम है। 
  • शनि का ऊपरी वायुमंडल पीली अमोनिया कणों की परत से घिरा है, जिससे यह पीले रंग का दिखाई देता है। 
  • लगभग प्रत्येक 14.7 वर्ष में एक खगोलीय घटना में शनि ग्रह के छल्ले कुछ समय के लिए लुप्त प्रतीत होते हैं, जिसे ‘रिंग-क्रॉसिंग (Ring Crossing) की घटना कहते हैं।
  •  इसके वायुमंडल में भी बृहस्पति के समान हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन तथा अमोनिया गैसें पाई जाती हैं। इस कारण इसे ‘गैसों का गोला’ भी कहते हैं। 
  • शनि का घूर्णन काल 10 घंटा, 40 मिनट तथा परिक्रमण काल 29 वर्ष (कुछ स्रोतों में 29 वर्ष, 5 माह) का होता है। 
  • शनि ग्रह का सबसे पहला खोजा गया उपग्रह ‘टाइटन’ (Titan) है। 
  • इसके 82 (सर्वाधिक ) उपग्रह हैं, जिसमें ‘एंसेलेडस’ नामक उपग्रह पर सक्रिय ज्वालामुखी पाये गए हैं। 
  • यह अंतिम ग्रह है, जिसे आँखों से देखा जा सकता है। 
  •  ‘टाइटन’ शनि का सबसे बड़ा उपग्रह जबकि सौरमंडल का द्वितीय बड़ा उपग्रह है। 
  • ‘फोबे उपग्रहशनि के अन्य उपग्रहों की अपेक्षा विपरीत दिशा में परिभ्रमण करता है। 

अरुण (Uranus) 

  • यह ग्रह आकार में तीसरा बड़ा तथा सूर्य से दूरी के क्रम में सातवें स्थान पर है। 
  • इस ग्रह की खोज ‘सर विलियम हर्शल’ ने की थी। 
  • इसे सूर्य की परिक्रमा करने में 84 वर्ष लगते हैं। इस ग्रह के 27 ज्ञात उपग्रह हैं। 
  •  मीथेन गैस की अधिकता के कारण यह हरे रंग का दिखाई देता है।इसलिए इसे हरा ग्रह भी कहते हैं 
  • अक्षीय झुकाव अधिक होने के कारण इसे ‘लेटा हुआ ग्रह भी कहते हैं। 
  • यह अपने अक्ष पर पूरब से पश्चिम (दक्षिणावर्त) दिशा में घूमता है, इसलिये यहाँ सूर्योदय पश्चिम में एवं सूर्यास्त पूरब में होता है। 
  • अरुण ग्रह में शनि की तरह चारों ओर वलय(rings) पाये जाते हैं। 

वरुण (Neptune) 

  • यह आकार में चौथा बड़ा ग्रह है। 
  • यह सूर्य से दूरी के क्रम में आठवें स्थान पर है। 
  • इसे सूर्य की परिक्रमा करने में लगभग 165 वर्ष (कुछ स्रोतों में र 164 वर्ष) लगते हैं। 
  • 1846 ई. में जॉन गाले ने इस ग्रह की खोज की। 
  • यह हरा -पीला  रंग का प्रतीत होता है तथा सर्वाधिक ठंडा ग्रह है।
  • शनी एवं अरुण ग्रह की तरह इस ग्रह के चारों ओर वलय(rings)  हैं 
  • इसके 13 ज्ञात उपग्रह हैं। 
    • ‘ट्राइटन’ (Triton) इसका प्रमुख उपग्रह है। ट्राइटन पर गीज़र के प्रमाण मिले हैं। 

प्लूटो 

  • प्लूटो की खोज 1930 में ‘क्लाइड टॉमबैग’ ने की थी। 
  • 2006 से पहले तक इसे सौरमंडल का नौवाँ एवं सबसे छोटा ग्रह माना जाता था। 
  • वर्ष 2006 में प्लूटो से ग्रह का दर्जा छीन लिया गया। 
  • ग्रह की श्रेणी से अलग किये जाने के बाद प्लूटो को सौरमंडल के बाहरी ‘क्यूपर घेरे’ की सबसे बड़ी संरचना (खगोलीय वस्तु) माना जा रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ(international astronomical union)

  • Headquarters: Paris, France
  • Founded: 28 July 1919

ग्रहों की नई परिभाषा 

  • ऐसे पिंड जिसमें पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण बल हो जिससे वह गोल स्वरूप धारण कर सके 
  • वह सूर्य का परिक्रमा करता हो 
  • अपने पड़ोसी पिंडों की कक्षा को नहीं लांघता  हो।

बौने ग्रह (dwarf planets) 

  • ऐसे ग्रह जो आकार, द्रव्यमान, गुरुत्वाकर्षण बल एवं अपने परिभ्रमण चक्र में अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (आई.ए.यू.) द्वारा 2006 में निर्धारित ग्रहों की परिभाषा से भिन्नता रखते हों, उन्हें बौने ग्रह की श्रेणी में रखा जाता है। 
  • वर्तमान में सेरेस, प्लूटो (यम), एरीस, हौमिया, मेकमेक आदि को बौना ग्रह माना जाता है।

ग्रह

घूर्णन की अवधि

परिक्रमण की अवधि

बुध

58.65 दिन

88 दिन (न्यूनतम)

शुक्र

243 दिन(सर्वाधिक)

225 दिन

पृथ्वी

23 घंटे  56 मिनट  4 सेकंड

365 दिन 5घंटे  48 मिनट 46 सेकंड 

मंगल

24 घंटे  37 मिनट  23 सेकंड 

687 दिन

बृहस्पति

9 घंटे  55  मिनट (न्यूनतम)

12 वर्ष

शनि

10 घंटे  40  मिनट

29 वर्ष

अरुण

17 घंटे  14  मिनट

84 वर्ष

वरुण

16 घंटे

165 वर्ष (सर्वाधिक)

विभिन्न ग्रहों पर उपस्थित गैसें

ग्रह

गैसे 

बुध

(वायुमंडल रहित), हाइड्रोजन का हल्का आवरण 

शुक्र

CO2 , SO2,

पृथ्वी

N2, O2,CO2 , अन्य

मंगल

CO2, N2, Ar

बृहस्पति

He, H2, NH3,CH4,

शनि

NH3,CH4,

अरुण

CH4,

वरुण

CH4,

प्राकृतिक उपग्रह (Natural Satellite/Moon) 

  • वे आकाशीय पिंड जो अपने ग्रह की परिक्रमा करने के साथ-साथ सूर्य की भी परिक्रमा करते हैं, ‘उपग्रह’ कहलाते हैं। 
  • ग्रहों के समान उपग्रहों का भी परिक्रमण पथ दीर्घ वृत्तीय या अंडाकार(elliptical path) होता है
  • ग्रहों की भाँति इनमें भी अपनी चमक (प्रकाश) नहीं होती। अतः ये भी सूर्य (तारों) के ही प्रकाश से प्रकाशित होते हैं। 
  • सबसे अधिक उपग्रह शनि के हैं तथा ‘बुध एवं शुक्र’ का कोई उपग्रह नहीं है।
  • सौरमंडल का सबसे बड़ा उपग्रह गेनीमीड है तथा सबसे छोटा उपग्रह डिमोस  है

उपग्रहो की संख्या

प्रमुख उपग्रह 

पृथ्वी

1

चंद्रमा

मंगल

2

डीमोस,फोबोस

बृहस्पति

79 

गैनीमीड, कैलिस्टो, यूरोपा, लो आदि

शनि 

82 

(सर्वाधिक )

टाइटन, रिया, लापेटस, बेस्टला, टेथिस, पंडोरा

आदि।

अरुण

27

टिटेनिया, ओबेरान, उंब्रियल, एरियल आदि।

वरुण 

13

ट्राइटन, लारिसा, प्रोटियस आदि

चंद्रमा (Moon)

  • पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा है तथा इसकी उत्पत्ति पृथ्वी के ही एक टुकड़े से मानी जाती है।  
  • चंद्रमा पर वायुमंडल अनुपस्थित है।इसलिए चंद्रमा पर कोई ध्वनि  भी नहीं है 
  • चंद्रमा का पथ परवलयाकार(parabolic) होने के कारण पृथ्वी एवं चंद्रमा के बीच की दूरी घटती-बढ़ती रहती है। 
    • जब पृथ्वी एवं चंद्रमा के बीच की दूरी न्यूनतम होती है तो इस स्थिति को ‘पेरीजी/’Perigee” कहते हैं। इस स्थिति में चंद्रमा अपेक्षाकृत अधिक बड़ा एवं चमकीला दिखाई पड़ता है  
    • जब दोनों के बीच की दूरी अधिकतम होती है तो उस स्थिति को ‘अपोजी/apogee’ कहते हैं। 
  • चंद्रमा की परिभ्रमण तथा परिक्रमण अवधि लगभग 27 दिन, 8 घंटे है।चंद्रमा का परिक्रमण काल वह घूर्णन काल समान होने के कारण हमें इसका केवल एक ही सता दिखाई देता है और यही सत्य हमेशा सूर्य के सामने रहता है इसका पिछला भाग हमेशा अंधकार में डूबा रहता है जिसे शांति का सागर कहते हैं
  • लगातार चार पूर्ण चंद्रग्रहण के संयोजन को ‘ब्लडमून’ या ‘टेट्राड'(‘Bloodmoon’ or ‘Tetrad’) कहते हैं। 
    • इस अवस्था में चंद्रमा पूर्ण रूप से लाल प्रतीत होता है। 
  • चंद्रमा का गुरुत्वीय क्षेत्र पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र का भाग है। 
  • चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण शक्ति का छठवां भाग(1 /6 ) के बराबर है
  • इसका  द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का 0 .012 भाग है
  • चंद्रमा पर जल नहीं है 
  • चंद्रमा पर सबसे ऊंचा स्थान लिबनिट्ज़  पर्वत है जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित है, इसकी ऊंचाई 35000 फीट है
  • चंद्रमा से आकाश का रंग काला दिखाई देता है 
  • चंद्रमा की रोशनी पृथ्वी पर 1.3 सेकंड में पहुंचती है

धूमकेतु/पुच्छल तारे (Comet) 

  • धूमकेतु आकाश में धूल, बर्फ और गैस से निर्मित पिंड होते हैं, जो सूर्य के परवलयाकार पथ(parabolic path) पर अनियमित परिक्रमा करते हैं। 
    • जब भी कोई धूमकेतु सूर्य के नज़दीक पहुँच जाता है तो गर्म होने के बाद उनसे गैसों के फुहारे निकलने लगते हैं, जिससे पूँछ जैसी संरचना का निर्माण होता है, इसे ही ‘पुच्छल तारा’ कहते हैं। 
    • पुच्छल तारे की पूँछ सूर्य के विपरीत दिशा में रहती है। 
    • ‘हैली’ एक पुच्छल तारा है। 
  • इस प्रकार धूमकेतु के तीन भाग होते हैं

  1. नाभि
  2. कोमा 
  3. पूँछ

क्षुद्र ग्रह (Asteroids) 

  • वे खगोलीय पिंड जो ब्रह्माण्ड में विचरण करते रहते है। 
  • यह ग्रहों के समान ही दीर्घवृत्तीय कक्षा(elliptical orbit) में पश्चिम से पूर्व (घड़ी की सुई के विपरीत) दिशा में सूर्य की परिक्रमा करने वाले विभिन्न आकारों के चट्टानी मलबे होते हैं
  • यह अपने आकार में ग्रहों से छोटे और उल्का पिंडों से बड़े होते हैं। 
  • क्षुद्र ग्रह मंगल और बृहस्पति ग्रह के मध्य करोड़ों किलोमीटर क्षेत्र में पाये जाते हैं। 
  •  2006 में अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ(international astronomical union) द्वारा प्लूटोको ग्रह की श्रेणी से बाहर निकालकर क्षुद्रग्रह की श्रेणी में रखा गया एवं प्लूटो तथा उसके जैसे अन्य क्षुद्र ग्रहों के लिए एक नई श्रेणी ‘प्लूटॉइड/Plutoids बना दी गई।
  • खोजा जाने वाला पहला क्षुद्रग्रह, सेरेस, 1819 में ग्यूसेप पियाज़ी द्वारा खोजा गया था ।
    • सेरेस’ सबसे बड़ा एवं सर्वाधिक चमकीला क्षुद्र ग्रह है हैं। 

उल्का /उल्कापिंड (Meteors/Meteorite)

  • वह आकाशीय पिंड जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने  के पश्चात पृथ्वी की वायुमंडल में उपस्थित  गैसों से होने वाले घर्षण के कारण जल कर नष्ट हो जाते है हैं, इसे ही ‘टूटता हुआ तारा’ (Shooting Star)/उल्का कहते हैं। 
    • उल्का- पृथ्वी पर पहुंचने से पूर्व ही जलकर राख हो जाते हैं 
    • उल्कापिंड – उल्कायें जो चट्टानों के रूप में पृथ्वी पर गिरते हैं 
  • मंगल एवं बृहस्पति के मध्य क्षुद्र ग्रहों के साथ अरबों की संख्या में उल्का पाये जाते हैं 
  • वरुण ग्रह के बाद क्यूपर बेल्ट (Kuiper Belt) उल्काओं का सबसे बड़ा स्रोत है।

खगोलीय अभियान

अपोलो मिशन 

1968

नासा 

चंद्र अभियान

कैसिनी 

1997

नासा,

यूरोपीयन स्पेस एजेंसी, इटेलियन स्पेस एजेंसी

शनि अभियान

हायाबूसा 

2003

जापान

क्षुद्रगह अभियान 

रॉसेटा मिशन 

2004

यूरोपीयन स्पेस एजेंसी, 

सौरमंडल के अध्ययन हेतु 

Huygens Probe 

2004

नासा

टाइटन उपग्रह

मैसेंजर 

2004

नासा

बुध अभियान

ऑर्बिटर मैसेंजर 

2004

नासा

शुक्र अभियान 

डीप इंपैक्ट यान 

2005

नासा

धूमकेतु अभियान 

सोलर-बी 

2006

नासा,यूरोपीयन स्पेस एजेंसी, 

जापान

सूर्य के अध्ययन हेतु

चंद्रयान-1 

2008

भारत

चंद्र अभियान

चंद्रयान-2 

क्यूरियोसिटी रोवर 

2011

नासा

मंगल अभियान

ग्रेल (GRAIL) 

2011

नासा

चंद्र अभियान

मंगलयान 

2013

भारत

मंगल अभियान

चांगई-5 

2017

चीन

चंद्र अभियान

मून ऑर्बिटर 

(2020-25)

दक्षिण कोरिया

चंद्र अभियान

प्रमुख पुस्तकें एवं उनके लेखक

पुस्तक

लेखक

A Brief History of Time

स्टीफन हॉकिंग

The Theory of Everything

स्टीफन हॉकिंग

The World As I See It

अल्बर्ट आइंस्टीन

The Mathematical Theory of Black Holes

सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • पृथ्वी से सबसे नज़दीक का तारा ‘सूर्य’ है। 
  • पृथ्वी से सूर्य के बाद दूसरा सबसे नज़दीक का ताराप्रोक्सिमा सेंटोरी‘ है जो लगभग 4 प्रकाश वर्ष दूर है। 
  • दो आकाशगंगाओं के मध्य का स्थान काला है। 
  • हिग्स-बोसॉन कण को ‘गॉड पार्टिकल‘ कहा जाता है।
  • यदि कोई खगोलीय पिंड प्रकाश के वेग से गतिमान हो तो उसका द्रव्यमान अनंत होगा।

ब्रह्मांडीय किरणें

  • ब्रह्मांडीय किरणें तेज़ गति से चलने वाली ऐसी सूक्ष्म कण हैं जो बाह्य अंतरिक्ष से निरंतर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती रहती हैं। 
  • सर्वप्रथम इन किरणों का अध्ययन ‘मिलिकन’ नामक वैज्ञानिक ने किया। 
  • केपलर को ‘नवीन खगोलशास्त्र’ का जनक कहा जाता है। 
  • कॉपरनिकस को ‘आधुनिक खगोलशास्त्र’ का जनक कहा जाता है। 
  • प्रोटोस्टार या आदि तारे को ‘भ्रूण तारा’ भी कहा जाता है। 
  • तारे में पाये जाते हैं। 
  • पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का अक्ष भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न होता है। 
    • उत्तरी गोलार्द्ध में पृथ्वी का चुंबकीय ध्रुवकनाडा’ के उत्तर मेंक्वीन एलिज़ाबेथ द्वीप’ पर स्थित है। 
  • केरल के तिरुवनंतपुरम’ जिले में ‘थुंबा’ मेंTERLS‘ (Thumba Equatorial Rocket Launching Station) को स्थापित किया गया है, क्योंकि यहाँ चुंबकीय क्षेत्र अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक है।

Quasar( क्वासर्स)

  •  क्वासर्स एक चमकीला खगोलीय पिंड है, जो प्रकाश उत्सर्जित करता है। 
  • क्वासर्स आकाशगंगा का मध्य भाग है जिसका ज्ञान हमें अब तक नहीं है। 
  • अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1916 में ‘सापेक्षता के सिद्धांत‘ के माध्यम से पहली बार ब्लैक होल की भविष्यवाणी की थी। 
  • भौतिक वैज्ञानिक जॉन व्हीलर ने 1967 में सार्वजनिक व्याख्यान में सर्वप्रथम‘ब्लैक होल’ शब्द का प्रयोग किया। 
  • स्टीफन हॉकिंग ने 1974 में अपनी सबसे प्रसिद्ध खोज ‘काले विवर विकिरण उत्सर्जित करते हैं’ का प्रतिपादन किया।