व्याकरण का अर्थ ,परिभाषा , महत्त्वपूर्ण ग्रंथ
व्याकरण का अर्थ
व्याकरण शब्द वि+आ+करण से बना है, जिसका अर्थ होता है- पृथक्-पृथक् करना या विश्लेषण करना या भली-भाँति समझना।
व्याकरण हमें भाषा को शुद्ध रूप से पढ़ने, समझने, बोलने और लिखने की विधि का ज्ञान कराता है।
हिन्दी व्याकरण को चार भागों में बाँटा गया
(क) वर्ण विभाग
इसके अन्तर्गत वर्णों का आकार तथा उसके उच्चारण का अध्ययन किया जाता है।
(ख) शब्द विभाग
इसके अन्तर्गत शब्दों के भेद, उसके रूपान्तर तथा उसकी रचना का अध्ययन किया जाता है।
(ग) पद विभाग
इसके अन्तर्गत पद-भेद, रूपान्तर और प्रयोग संबंधी नियमों का अध्ययन किया जाता है।
(घ) वाक्य विभाग
इसके अन्तर्गत शब्दों का परस्पर सम्बन्ध और वाक्य बनाने के नियमों का अध्ययन किया जाता है।
व्याकरण की परिभाषा
संस्कृत के व्याकरणाचार्य पतंजलि के अनुसार -"जिससे साधु शब्द का ज्ञान हो उसे व्याकरण कहते हैं-'शब्दज्ञानजनक व्याकरणम्' ।"
पतंजलि ने व्याकरण को 'शब्दानुशासन' भी कहा है।
पाणिनि के अनुसार-"व्याकरण वह शास्त्र या विद्या है, जिससे शब्दों को शासित करने वाले नियमों का निरूपण हो।
रामचन्द्र वर्मा ने अपनी पुस्तक 'अच्छी हिन्दी' में लिखा है-" व्याकरण भाषा की रचना या संघटन का परिचायक है।
जैसे- वास्तुशास्त्र मकान बनाने के लिए नियम या ढंग बताता है, उसी प्रकार व्याकरण भी भाषा का निर्माण बताता है।"
पं. कामता प्रसाद गुरू ने अपनी पुस्तक हिन्दी व्याकरण' की भूमिका में लिखा है"
किसी भी भाषा का 'सर्वांगपूर्ण' व्याकरण वही है, जिससे उस भाषा के सब शिष्ट रूपों और प्रयोगों का पूर्ण विवेचन किया जाय और उनमें यथासम्भव स्थिरता लायी जाय, हमारे पूर्वजों ने व्याकरण का यही उद्देश्य माना है।"
आचार्य पं. सीताराम चतुर्वेदी के अनुसार"व्याकरण ही भाषा का शासक होता है।
व्याकरण वह सारथी है, जो भाषारूपी रथ का संचालन करता है।"
व्याकरण के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ
सन् 1658 ई. में मिर्जा खाँ ने 'ब्रजभाषा 2 व्याकरण' नामक पुस्तक लिखी थी।
सन् 1715 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एक कर्मचारी जोहानस जोजुवा कैदलियर ने खड़ीबोली का पहला व्याकरण लिखा था।
सन् 1856 ई. में बिहार के श्री लाल ने 'भाषा-चन्द्रोदय' लिखा था।
सन् 1858 ई. में उत्तर प्रदेश के रामजतन ने 'भाषा-तत्व बोधनी' लिखा था।
सन् 1868 ई. में नवीनचन्द्र राय ने 'नवीन चन्द्रोदय' लिखा था ।
सन् 1870 ई. में शीतल प्रसाद ने 'शब्द प्रकाशिका' नामक व्याकरण ग्रंथ लिखा था।
सन् 1871 ई. में पादरी एथरिंगटन ने पंडित विष्णुदत्त की सहायता से 'भाषा-भाष्कर' नामक व्याकरण ग्रंथ लिखा था।
सन् 1875 ई. में 'राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द' ने 'हिन्दी व्याकरण' लिखा था।
सन् 1877 ई. में बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री ने 'हिन्दी व्याकरण' लिखा था।
सन् 1885 ई. में बाबू रामचरण सिंह ने 'भाषा प्रभाकर' लिखा था।
सन् 1905 ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका में 'भाषा और व्याकरण' नामक लेख प्रकाशित किया था।
सन् 1920 ई. में कामता प्रसाद गुरू ने "हिन्दी व्याकरण' लिखा जिसका प्रकाशन नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा हुआ।
सन् 1948 ई. में पं. किशोरी दास वाजपेयी ने 'राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण' लिखा था। सन् 1957 ई. में पं. किशोरी दास वाजपेयी ने 'हिन्दी शब्दानुशासन' लिखा था।
सन् 1957 ई. में आर्येन्द्र शर्मा ने 'आधुनिक हिन्दी का आधार-व्याकरण' लिखा, जिसका प्रकाशन भारत सरकार द्वारा हुआ।
पं. अम्बिका प्रसाद वाजपेयी ने 'हिन्दी-कौमुदी' लिखा था।