बस्तियों के प्रकार और उनकी समस्याएं भारत में महत्वपूर्ण विषय हैं। इससे पहले कि हम मानव बस्तियों की समस्याओं की ओर बढ़ें, चलिए पहले इन बस्तियों के प्रकार और उनके विशेषताओं को समझें।

  1. ग्रामीण बस्तियाँ: ये भारत के गाँवों में स्थित होती हैं। इनमें खेती, पशुपालन और संबंधित गतिविधियों का प्रमुख अधिवास होता है। गाँवों में आधारित होने के कारण, इन बस्तियों में आधुनिक सुविधाएँ अक्सर कम होती हैं। जैसे कि बिजली, पानी, सड़कें आदि। इसके अलावा, ग्रामीण बस्तियों में स्वच्छता की समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं।
  2. शहरी बस्तियाँ: ये शहरों में स्थित होती हैं और आधुनिक जीवनशैली का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनमें अधिकांश लोग अपना रोजगार खोजने के लिए आते हैं। यहाँ पर बिजली, पानी, सड़कें, स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, आदि की सुविधा होती है, लेकिन अक्सर शहरी बस्तियों में जनसंख्या की अत्यधिक भीड़, प्रदूषण, जल-संकट, भूमिगत समस्याएँ, गरीबी, अन्याय, और अनेक और समस्याएँ होती हैं।

शहरी बस्तियों को अनेक तरह की श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे कि:

  • अधिकृत बस्तियाँ: जो शहर के नियंत्रणित क्षेत्रों में स्थित होती हैं और आधिकारिक रूप से अनुमोदित हैं।
  • अवैध बस्तियाँ: जो शहर के नियंत्रणित क्षेत्रों में नहीं होती हैं और अधिकांश लोग यहाँ पर अवैध रूप से निवास करते हैं।

भारत में मानव बस्तियों की कुछ मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हो सकती हैं:

  1. जनसंख्या दबाव: भारत में जनसंख्या का बढ़ता दबाव है, जो शहरी बस्तियों में भीड़ को और अधिक बढ़ाता है।
  2. आवास की अक्षमता: लोगों की बढ़ती जनसंख्या के साथ, आवास की अक्षमता भी बढ़ती जा रही है।
  3. प्रदूषण: शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण की समस्या अत्यधिक है, जो स्वास्थ्य को खतरे में डालती है।
  4. जल संकट: जल की अक्षमता और जल संकट भी एक महत्वपूर्ण समस्या है। शहरों में जल संवर्धन के लिए उपायों की जरूरत है, जैसे कि वर्षा जल का संचयन, पुनर्चक्रणीय जल प्रणालियों का अवलंबन, और जल संरक्षण के लिए सजीव जल संचार प्रणालियों का प्रयोग।
  5. स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य: स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य की समस्याएँ भी शहरी बस्तियों में अत्यधिक हैं, जैसे कि अधिकतर बस्तियों में सार्वजनिक स्वच्छता सुविधाएँ अपुर्ण होती हैं और यहाँ पर विभिन्न रोगों का प्रसार होता है।
  6. बेरोजगारी: शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या अत्यधिक है, जो अनेक युवाओं को आर्थिक संकट में डालती है।
  7. सामाजिक असमानता: शहरी बस्तियों में सामाजिक असमानता भी एक महत्वपूर्ण समस्या है, जहाँ गरीबी, भेदभाव, और अन्याय की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

इन समस्याओं का समाधान करने के लिए सरकारों, स्थानीय स्तर के निकायों, गैर-सरकारी संगठनों, और समुदायों को साथ मिलकर काम करना होगा। साथ ही, नागरिकों को भी सशक्त बनाने के लिए उन्हें सहयोग और समर्थन प्रदान किया जाना चाहिए।

बस्तियों के प्रकार: ग्रामीण व शहरी, शहरी बनावट, कार्यात्मक वर्गीकरण, समस्याएँ

मानव बस्तियाँ मानव समुदाय के भौतिक रूप से संगठित होने का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये बस्तियाँ विभिन्न प्रकार की होती हैं और इनका वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया जाता है। इस लेख में हम बस्तियों के प्रकार, ग्रामीण एवं शहरी बस्तियों की विशेषताओं, शहरी बनावट, कार्यात्मक वर्गीकरण और इनसे जुड़ी समस्याओं पर चर्चा करेंगे।

बस्तियों के प्रकार

बस्तियों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है:

1. ग्रामीण बस्तियाँ

ग्रामीण बस्तियाँ वे बस्तियाँ हैं जहाँ अधिकांश जनसंख्या कृषि और प्राथमिक क्रियाओं में संलग्न होती है। इनकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • जनसंख्या का आकार एवं घनत्व: ग्रामीण बस्तियों में जनसंख्या का आकार छोटा और घनत्व कम होता है।
  • आजीविका के स्रोत: मुख्य रूप से कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, वनोपज संग्रह आदि प्राथमिक क्रियाएँ।
  • सामाजिक संबंध: सामाजिक संबंध व्यक्तिगत, अनौपचारिक और स्थायी होते हैं।
  • जीवन शैली: जीवन शैली सरल और परंपरागत होती है।
  • विकास का स्तर: आधारभूत सुविधाएँ जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन आदि सीमित होती हैं।

ग्रामीण बस्तियों को उनकी बनावट के आधार पर further वर्गीकृत किया जाता है:

  • केंद्रित या संकुलित बस्तियाँ: घर एक केंद्र के चारों ओर समूहित होते हैं।
  • परिक्षिप्त या प्रकीर्ण बस्तियाँ: घर दूर-दूर फैले होते हैं।
  • रेखीय बस्तियाँ: घर सड़क, नदी या नहर के किनारे लंबवत फैले होते हैं।

2. शहरी बस्तियाँ

शहरी बस्तियाँ वे बस्तियाँ हैं जहाँ अधिकांश जनसंख्या गैर-कृषि कार्यों में संलग्न होती है। इनकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • जनसंख्या का आकार एवं घनत्व: शहरी बस्तियों में जनसंख्या का आकार बड़ा और घनत्व अधिक होता है।
  • आजीविका के स्रोत: मुख्य रूप से उद्योग, व्यापार, सेवा क्षेत्र और अन्य द्वितीयक एवं तृतीयक क्रियाएँ।
  • सामाजिक संबंध: सामाजिक संबंध अवैयक्तिक, औपचारिक और अस्थायी होते हैं।
  • जीवन शैली: जीवन शैली जटिल, व्यस्त और गतिशील होती है।
  • विकास का स्तर: आधारभूत सुविधाएँ जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन आदि उन्नत और सुलभ होती हैं।

शहरी बनावट

शहरी बनावट से तात्पर्य शहर के भौतिक लेआउट और उसकी आंतरिक संरचना से है। शहरी क्षेत्रों की बनावट को समझने के लिए विद्वानों ने विभिन्न मॉडल प्रस्तुत किए हैं:

1. concentric zone model (बर्गेस मॉडल)

अर्नस्ट बर्गेस द्वारा प्रतिपादित इस मॉडल के अनुसार शहर केंद्र से बाहर की ओर फैलते हुए concentric circles (संकेंद्रित वृत्त) में विकसित होते हैं।

  • केंद्रीय व्यापारिक जिला (CBD): शहर का केंद्र, जहाँ मुख्य व्यावसायिक गतिविधियाँ केंद्रित होती हैं।
  • संक्रमण क्षेत्र: CBD के चारों ओर का क्षेत्र, जहाँ उद्योग और निम्न-स्तरीय आवासीय क्षेत्र स्थित होते हैं।
  • श्रमिकों के आवासीय क्षेत्र: कारखानों के निकट श्रमिक वर्ग के आवास।
  • मध्यम वर्ग के आवासीय क्षेत्र: बेहतर आवास और सुविधाओं वाला क्षेत्र।
  • उपनगरीय क्षेत्र/यात्रिक क्षेत्र: शहर के बाहरी छोर पर उच्च वर्ग के आवास, जहाँ से लोग daily commute करते हैं।

2. sector model (हॉयट मॉडल)

होमर हॉयट द्वारा प्रस्तुत इस मॉडल के अनुसार शहर का विकास केंद्र से बाहर की ओर sectors (खंडों) में होता है, न कि circles में। विभिन्न भूमि उपयोग wedge-shaped sectors में विकसित होते हैं।

3. multiple nuclei model (हैरिस और उलमैन मॉडल)

हैरिस और उलमैन द्वारा प्रस्तुत इस मॉडल के अनुसार शहर का विकास एक नहीं बल्कि कई केंद्रों (nuclei) के चारों ओर होता है। प्रत्येक nucleus किसी विशेष गतिविधि या भूमि उपयोग के लिए विशिष्ट होता है।

शहरों का कार्यात्मक वर्गीकरण

शहरों को उनके प्रमुख कार्यों या आर्थिक गतिविधियों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:

  • प्रशासनिक शहर: राष्ट्रीय/प्रांतीय राजधानियाँ, जैसे – नई दिल्ली, गांधीनगर।
  • औद्योगिक शहर: जहाँ बड़े पैमाने पर उद्योग स्थित हैं, जैसे – जमशेदपुर, पिंपरी-चिंचवड़।
  • परिवहन शहर: बंदरगाह या महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शन, जैसे – मुंबई, कोलकाता।
  • व्यापारिक शहर: बड़े वाणिज्यिक और व्यापारिक केंद्र, जैसे – मुंबई, सूरत।
  • खनन शहर: खनन गतिविधियों के केंद्र, जैसे – धनबाद, कोडरमा।
  • गैरीसन/कैंटोनमेंट शहर: सैन्य ठिकाने, जैसे – अंबाला, मेरठ।
  • धार्मिक/सांस्कृतिक शहर: धार्मिक या सांस्कृतिक महत्व के स्थान, जैसे – वाराणसी, अमृतसर, तिरुपति।
  • शैक्षणिक शहर: शिक्षण संस्थानों के केंद्र, जैसे – पिलानी, शांति निकेतन।
  • पर्यटन शहर: पर्यटन के केंद्र, जैसे – शिमला, नैनीताल, गोवा।

वास्तव में, अधिकांश शहर एक से अधिक कार्यों में संलग्न होते हैं और उन्हें ‘मिश्रित कार्यात्मक’ शहर कहा जाता है।

शहरी बस्तियों की समस्याएँ

तेजी से शहरीकरण और नगरीय विकास के कारण शहरी बस्तियों में अनेक गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं:

  • आवास की समस्या: बढ़ती जनसंख्या के कारण झुग्गी-झोपड़ियों (slums) का विस्तार और गंदी बस्तियों का विकास।
  • जलापूर्ति की समस्या: पर्याप्त और शुद्ध पेयजल की कमी, विशेषकर गर्मियों में।
  • अपशिष्ट प्रबंधन: ठोस और तरल अपशिष्ट के निपटान की चुनौती, जिससे प्रदूषण फैलता है।
  • यातायात एवं परिवहन की समस्या: वाहनों की अधिकता के कारण traffic congestion, पार्किंग की समस्या और प्रदूषण।
  • वायु एवं ध्वनि प्रदूषण: उद्योगों और वाहनों से निकलने वाला धुआँ और शोरगुल, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
  • सामाजिक समस्याएँ: अपराध, बेरोजगारी, गरीबी, नशाखोरी, भीड़भाड़ और तनावपूर्ण जीवन।
  • अवसंरचनात्मक दबाव: बिजली, सीवेज, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं पर अत्यधिक दबाव।
  • पर्यावरणीय अवक्रमण: हरित क्षेत्रों का कम होना, जलभराव और शहरी ऊष्मा द्वीप effect का उत्पन्न होना।

निष्कर्ष

ग्रामीण और शहरी बस्तियाँ मानव सभ्यता के दो पहलू हैं, जो एक-दूसरे के पूरक हैं। शहरीकरण विकास का एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन अनियोजित और असंतुलित शहरीकरण अनेक समस्याओं को जन्म देता है। इसलिए, सतत विकास के लिए समन्वित नगर नियोजन, कुशल प्रशासन और जनभागीदारी आवश्यक है ताकि शहर रहने योग्य, समावेशी और टिकाऊ बन सकें। ग्रामीण विकास पर भी समान रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि ग्रामीण-शहरी प्रवास पर अंकुश लग सके और संतुलित क्षेत्रीय विकास सुनिश्चित हो सके।

JPSC MAINS PAPER 3/Geography Chapter – 19