चट्टानें एवं भू-आकृतियाँ: एक विस्तृत अध्ययन

यह लेख भूपृष्ठ (Earth’s Crust) की संरचना बनाने वाली चट्टानों के प्रमुख प्रकार, उनकी विशेषताओं और विभिन्न भू-आकृतिक कारकों (नदी, हिमनद, शुष्क एवं कार्स्ट) द्वारा निर्मित प्रमुख भू-आकृतियों पर केंद्रित है।

चट्टानों के प्रकार एवं विशेषताएँ

चट्टानें खनिजों के प्राकृतिक रूप से निर्मित ठोस समुच्चय हैं। उनकी उत्पत्ति के आधार पर इन्हें तीन मुख्य वर्गों में बाँटा गया है:

1. आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks)

उत्पत्ति: ये चट्टानें मैग्मा (भू-गर्भ में पिघला हुआ पदार्थ) या लावा (भू-पृष्ठ पर निकला पिघला पदार्थ) के ठंडा होकर जमने से बनती हैं।

वर्गीकरण:

    • अंत:भौमिक आग्नेय चट्टानें: मैग्मा के भू-गर्भ में ही धीरे-धीरे ठंडा होने से बनती हैं। इनमें बड़े-बड़े कण पाए जाते हैं। उदाहरण: ग्रेनाइट, गैब्रो, डोलराइट।

    • बहिर्भौमिक आग्नेय चट्टानें: लावा के भू-पृष्ठ पर आकर शीघ्र ठंडा होने से बनती हैं। इनमें कण बहुत बारीक होते हैं। उदाहरण: बेसाल्ट, ओब्सीडियन, प्यूमिस।

2. अवसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks)

उत्पत्ति: पूर्व-निर्मित चट्टानों के टूटने-फूटने (अपक्षय) से प्राप्त अवसादों (sediments) के जल या वायु द्वारा Transported और निक्षेपित (deposited) होने के बाद दाब एवं रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा दृढ़ीकरण (Compaction & Cementation) से बनती हैं। इनमें स्तर (Layers/Strata) पाए जाते हैं।

वर्गीकरण:

    • यांत्रिक निक्षेप से: बलुआ पत्थर, शेल, कांग्लोमरेट।

    • जैविक निक्षेप से: चूना पत्थर (कोरल/शैल से), कोयला (वनस्पति से)।

    • रासायनिक निक्षेप से: जिप्सम, रॉक साल्ट, पोटाश।

3. कायांतरित चट्टानें (Metamorphic Rocks)

उत्पत्ति: पूर्व-निर्मित आग्नेय या अवसादी चट्टानों पर उच्च ताप, उच्च दाब एवं रासायनिक क्रियाओं के प्रभाव से उनके मूल रूप, बनावट और खनिज संघटन में परिवर्तन (कायांतरण) होने से बनती हैं।

उदाहरण:

    • चूना पत्थर → संगमरमर

    • बलुआ पत्थर → क्वार्टजाइट

    • शेल → स्लेट → शिस्ट

    • ग्रेनाइट → नीस

विभिन्न क्षेत्रों की प्रमुख भू-आकृतियाँ

I. नदी द्वारा निर्मित भू-आकृतियाँ (Fluvial Landforms)

नदी अपने जल के माध्यम से अपरदन (Erosion), परिवहन (Transportation) और निक्षेपण (Deposition) की क्रियाओं द्वारा विविध आकृतियाँ बनाती है।

क. अपरदनात्मक आकृतियाँ:

    • V-आकार की घाटी: पर्वतीय क्षेत्रों में तीव्र अपरदन से बनती है।

    • जलप्रपात (Waterfall): नरम एवं कठोर शैलों के क्रम में अंतर के कारण बनते हैं। (उदा. शिवसमुद्रम जलप्रपात)

    • गॉर्ज (Gorge) / कैन्यन: शुष्क क्षेत्रों में कठोर शैलों में नदी के ऊर्ध्वाधर अपरदन से गहरी संकरी घाटी। (उदा. ग्रैंड कैन्यन, USA)

    • महाखड्ड (Canyon): गॉर्ज से अधिक चौड़ी और गहरी घाटी।

    • पुनर्भ्रंश घाटी (Rift Valley): भ्रंशन (Faulting) के बाद अपरदन से बनती है। (उदा. नर्मदा घाटी)

ख. निक्षेपणात्मक आकृतियाँ:

    • बाढ़ के मैदान (Flood Plains): नदी द्वारा अपने किनारों पर बाढ़ के समय मृदा के निक्षेपण से बने विस्तृत उपजाऊ मैदान।

    • विसर्प (Meander): नदी के टेढ़े-मेढ़े मार्ग। मैदानी भागों में नदी की गति धीमी होने पर बनते हैं।

    • प्राकृतिक तटबंध (Natural Levees): बाढ़ के समय नदी के किनारों पर मोटे अवसादों के जमाव से बने उभार।

    • डेल्टा (Delta): नदी के मुहाने पर निक्षेपित अवसादों से बनी त्रिभुजाकार आकृति। (उदा. सुंदरवन डेल्टा)

    • वितलीय मैदान (Alluvial Fan): पर्वतों के तलहटी में शंकु के आकार का निक्षेप। पहाड़ी नदियाँ मैदान में प्रवेश करते ही अपना अवसाद फैला देती हैं।

II. हिमनद द्वारा निर्मित भू-आकृतियाँ (Glacial Landforms)

हिमानी (Glaciers) बर्फ की विशाल चादरें हैं जो धीरे-धीरे खिसकती हैं और अपने मार्ग में भीषण अपरदन करती हैं।

क. अपरदनात्मक आकृतियाँ:

    • U-आकार की घाटी (U-shaped Valley): हिमनद के अपरदन से नदी घाटी के V आकार को U आकार में बदल देती है।

    • सर्क (Cirque) / कार: पर्वतों के शिखर पर बना अर्ध-गोलाकार गड्ढा, जहाँ हिमनद का उद्गम होता है।

    • ऐरेट (Arête): दो समानांतर सर्कों के अपरदन से बना तीक्ष्ण चाकू जैसा कटक।

    • हॉर्न (Horn): तीन या अधिक सर्कों के अपरदन से बना пирамиid जैसा नुकीला शिखर। (उदा. स्विट्जरलैंड का मैटरहॉर्न)

    • फ्जॉर्ड (Fjord): समुद्र में डूबी U-आकार की गहरी घाटी। (उदा. नॉर्वे के फ्जॉर्ड)

ख. निक्षेपणात्मक आकृतियाँ:

    • मोरेन (Moraine): हिमनद द्वारा Transported और निक्षेपित चट्टानों, बजरी, मिट्टी का ढेर। ये हिमनद के किनारे (Lateral), अंत (Terminal) या केंद्र (Medial) पर पाए जाते हैं।

    • ड्रमलिन (Drumlin): अंडाकार या व्हेल-पीठ के आकार की पहाड़ियाँ जो मोरेन के निक्षेप से बनती हैं।

    • एस्कर (Esker): हिमनद के नीचे बहने वाली नदियों के निक्षेप से बनी सर्पिलाकार लंबी संकरी रिज।

    • कैम (Kame): हिमनद की सतह पर जमा हुए अवसादों से बनी गोलाकार पहाड़ियाँ।

III. शुष्क/मरुस्थलीय भू-आकृतियाँ (Arid / Desert Landforms)

शुष्क क्षेत्रों में वनस्पति का अभाव और तापान्तर के कारण यांत्रिक अपक्षय तीव्र होता है। पवन यहाँ प्रमुख भू-आकृतिक कारक है।

क. पवन द्वारा अपरदनात्मक आकृतियाँ:

    • विंडवान्ड/वातखात (Ventifacts/Yardangs): पवन के रगड़ने (Abrasion) से नुकीले कोनों वाली चट्टानें।

    • ज्यूजेन/शृंगयुक्त चट्टान (Zeugen): नरम एवं कठोर शैलों की परतों पर पवन के अपरदन से बनी मेज जैसी आकृति।

    • इन्सेलबर्ग (Inselberg): ‘द्वीप-पर्वत’। मरुस्थल में अकेली खड़ी गुंबदाकार पहाड़ी। (उदा. उलुरु/एयर्स रॉक, ऑस्ट्रेलिया)

ख. पवन द्वारा निक्षेपणात्मक आकृतियाँ:

    • बालू-टिब्बा (Sand Dunes): रेत के ढेर जो पवन की दिशा के अनुसार विभिन्न आकार के होते हैं। प्रकार: बरखान (अर्धचंद्राकार), सीफ (तरंगाकार), अनुप्रस्थ टिब्बा आदि।

    • लोएस (Loess): पवन द्वारा उड़ाकर लाई गई बारीक रुक्ष्मिका (Silt) की मोटी परत। उपजाऊ मृदा का आधार। (उदा. चीन का लोएस पठार)

IV. कार्स्ट भू-आकृतियाँ (Karst Landforms)

कार्स्ट भू-आकृति उन क्षेत्रों में विकसित होती है जहाँ चूना पत्थर (Limestone), डोलोमाइट या जिप्सम जैसे घुलनशील शैल पाए जाते हैं। वर्षा का जल (हल्का अम्लीय) इन शैलों को घोलकर विशिष्ट आकृतियाँ बनाता है।

प्रमुख आकृतियाँ:

    • लैपीज (Lapies): चूना पत्थर की सतह पर बने तीखे, खड़े उभार।

    • सिंकहोल (Sinkhole)/स्वालोहोल (Swallow Hole): भूमि में बना गोलाकार गड्ढा जिससे होकर सतही जल भूमिगत हो जाता है।

    • गुफाएँ एवं ग्रोटो (Caves & Caverns): भूमिगत जल द्वारा शैलों को घोलकर बनाए गए बड़े Hollow स्थान।

    • स्तंभ (Pillars): गुफाओं की छत से लटके स्तंभ स्टैलेक्टाइट (Stalactite – छत से नीचे) और फर्श से ऊपर उठने वाले स्तंभ स्टैलेग्माइट (Stalagmite) कहलाते हैं। दोनों के मिलने से स्तंभ (Column) बनता है।

    • धंसा हुआ मैदान (Uvala) एवं पोलजे (Polje): कई सिंकहोलों के मिलने से बना बड़ा बंद गड्ढा।

कार्स्ट क्षेत्र के उदाहरण: भारत में जम्मू-कश्मीर का किश्तवाड़ क्षेत्र, मेघालय का चेरापूंजी-मावसिनराम क्षेत्र। विश्व में क्रोएशिया का डिनैरिक कार्स्ट क्षेत्र प्रसिद्ध है।

JPSC MAINS PAPER 3/Geography Chapter – 2