वायुदाब, वाताग्र, उष्णकटिबंधीय एवं शीतोष्ण चक्रवात
यह टिप्पणी सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के परिप्रेक्ष्य में वायुमंडलीय घटनाओं के मूलभूत सिद्धांतों को समझने के लिए बनाई गई है।
1. वायुदाब (Air Pressure)
पृथ्वी की सतह पर वायु के भार के कारण लगने वाले दबाव को वायुदाब कहते हैं। यह एक महत्वपूर्ण मौसमीय घटक है जो पवनों की दिशा और गति निर्धारित करता है।
मुख्य बिंदु:
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- परिभाषा: किसी इकाई क्षेत्रफल पर उसके ऊपर की वायु स्तंभ के भार द्वारा लगाया गया दबाव।
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- मापन: बैरोमीटर द्वारा मापा जाता है। इकाई: मिलीबार (mb) या हेक्टोपास्कल (hPa)।
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- वितरण को प्रभावित करने वाले कारक:
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- तापमान: तापमान बढ़ने से वायु फैलती है और हल्की होकर ऊपर उठती है, जिससे धरातल पर निम्न दाब का निर्माण होता है। तापमान कम होने पर वायु संकुचित होती है, भारी होकर नीचे बैठती है और उच्च दाब का क्षेत्र बनाती है।
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- जलवाष्प: शुष्क वायु की तुलना में आर्द्र वायु हल्की होती है, इसलिए आर्द्र क्षेत्रों में निम्न दाब और शुष्क क्षेत्रों में उच्च दाब की स्थिति बनती है।
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- ऊँचाई: ऊँचाई बढ़ने के साथ वायुस्तंभ की मात्रा घटती है,故此 दाब भी घटता जाता है।
पवन का नियम: पवनें सदैव उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर चलती हैं। कोरिऑलिस बल के कारण उत्तरी गोलार्ध में ये दाएँ और दक्षिणी गोलार्ध में बाएँ मुड़ जाती हैं।
2. वाताग्र (Fronts)
वाताग्र दो भिन्न ध्रुवता (गर्म एवं ठंडी) की वायुराशियों के मध्य का संक्रमण क्षेत्र होता है। यह शीतोष्ण चक्रवातों की मौसम गतिविधि का केंद्र बिंदु है।
प्रमुख प्रकार:
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- शीत वाताग्र (Cold Front): जब ठंडी वायुराशि, गर्म वायुराशि की ओर बढ़ती है। ठंडी वायु भारी होने के कारण गर्म वायु के नीचे घुसकर उसे तीव्रता से ऊपर धकेलती है। इससे संकुचित मेघों, भारी वर्षा, गरज और तूफान की स्थिति बनती है, लेकिन यह शीघ्र ही समाप्त हो जाती है।
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- उष्ण वाताग्र (Warm Front): जब गर्म वायुराशि, ठंडी वायुराशि की ओर बढ़ती है। गर्म वायु हल्की होने के कारण ठंडी वायु के ऊपर धीरे-धीरे चढ़ती है। इससे विस्तृत मेघ छटा, हल्की एवं लंबे समय तक चलने वाली वर्षा होती है।
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- अचल वाताग्र (Stationary Front): जब दोनों वायुराशियाँ एक-दूसरे की ओर गति नहीं करतीं। इस स्थिति में कई दिनों तक एक ही स्थान पर मौसम एक जैसा बना रह सकता है।
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- संवृद्ध वाताग्र (Occluded Front): यह तब बनता है when a cold front overtakes a warm front and lifts it completely off the ground. इससे complex cloud patterns and precipitation बनते हैं।
3. उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)
ये विषुवत रेखा के निकट गर्म समुद्री क्षेत्रों (26-27°C से अधिक) में उत्पन्न होने वाले प्रबल वायुभंवर हैं, जिनमें अत्यधिक低 वायुदाब का केंद्र होता है। इन्हें अलग-अलग क्षेत्रों में चक्रवात, हरिकेन, टाइफून आदि नामों से जाना जाता है।
विशेषताएँ:
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- उत्पत्ति: गर्म महासागरों पर, विषुवत वृत्त से 5° – 20° अक्षांशों के बीच।
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- ऊर्जा स्रोत: गर्म समुद्री जल से नमी के संघनन की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Condensation)।
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- संरचना: इनका आकार almost circular होता है। केंद्र में शांत, निष्क्रिय और बादलरहित क्षेत्र होता है, जिसे नेत्र (Eye) कहते हैं। नेत्र के चारों ओर अत्यधिक ऊँचे, शक्तिशाली और वर्षा करने वाले बादलों का घेरा होता है, जिसे नेत्र दीवार (Eye Wall) कहते हैं। यही सबसे विनाशकारी भाग होता है।
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- विस्तार: 100-1000 km व्यास तक।
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- जीवनचक्र: इनका जीवनकाल लगभग 7 से 14 दिन का होता है।
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- भारत के लिए प्रासंगिकता: बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उठने वाले ये चक्रवात भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटीय क्षेत्रों के लिए एक गंभीर प्राकृतिक खतरा हैं, जो भारी वर्षा, तूफान और तटीय जलभराव का कारण बनते हैं।
4. शीतोष्ण चक्रवात (Temperate Cyclones or Extra-Tropical Cyclones)
ये मध्य एवं उच्च अक्षांशों (30° – 60°) में पाए जाने वाले निम्न दाब क्षेत्र हैं जिनका निर्माण विपरीत स्वभाव वाली वायुराशियों (गर्म एवं ठंडी) के आपसी मिलन से होता है। इन्हें वाताग्रीय चक्रवात भी कहा जाता है क्योंकि इनके केंद्र में वाताग्र पाए जाते हैं।
विशेषताएँ:
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- उत्पत्ति: उपोष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण क्षेत्रों में, जहाँ पश्चिमी पवनें (Westerlies) चलती हैं।
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- ऊर्जा स्रोत: वायुराशियों के तापांतर से उत्पन्न स्थितिज ऊर्जा।
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- आकार: विस्तृत और अंडाकार (V-shaped), 1000-2500 km व्यास तक।
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- गति: ये पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हैं।
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- मौसम: इनके कारण होने वाली वर्षा हल्की और लंबे समय तक चलने वाली होती है, जो कृषि के लिए very beneficial है। इनसे तूफानी मौसम नहीं बनता।
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- भारत के लिए प्रासंगिकता: शीत ऋतु में हिमालय के उत्तर में बना उच्च दाब पश्चिमी विक्षोभों (Western Disturbances) के रूप में शीतोष्ण चक्रवातों को भारतीय उपमहाद्वीप की ओर मोड़ देता है। ये पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में हिमपात और उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में शीतलहर व हल्की वर्षा के लिए उत्तरदायी होते हैं।
तुलनात्मक अध्ययन
आधार | उष्णकटिबंधीय चक्रवात | शीतोष्ण चक्रवात |
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उत्पत्ति क्षेत्र | विषुवत रेखा के निकट | 30° – 60° अक्षांश |
ऊर्जा स्रोत | गुप्त ऊष्मा | वायुराशियों का तापांतर |
आकार | गोलाकार, छोटा | अंडाकार, विस्तृत |
वाताग्र | अनुपस्थित | केंद्र में उपस्थित |
प्रभावित क्षेत्र | तटीय क्षेत्र | विशाल आंतरिक क्षेत्र |
मौसम | अति प्रचंड, विनाशकारी | हल्का, लाभदायक |
गति एवं दिशा | धीमी, पश्चिम से पूर्व (Trade Winds) | तेज, पश्चिम से पूर्व (Westerlies) |
इन अवधारणाओं को समझना भारतीय मानसून, चरम मौसमी घटनाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का विश्लेषण करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।