लिच्छवि गणराज्य एवं उनका गणतांत्रिक संविधान

यूपीएससी मुख्य परीक्षा: प्राचीन भारतीय इतिहास के संदर्भ में

प्राचीन भारत में राजतंत्रात्मक व्यवस्था के साथ-साथ गणतांत्रिक व्यवस्थाएँ (गणराज्य) भी फलती-फूलती रहीं। इनमें से सबसे शक्तिशाली और प्रसिद्ध गणराज्य था – वज्जि संघ, जिसका सबसे प्रमुख और शक्तिशाली घटक लिच्छवि थे। उनकी गणतांत्रिक शासन प्रणाली उस समय की अत्यंत विकसित एवं जटिल राजनीतिक व्यवस्था का उदाहरण है।

लिच्छवि: एक परिचय

  • स्थान: लिच्छवि गणराज्य वर्तमान उत्तरी बिहार में स्थित था, जिसकी राजधानी वैशाली (आधुनिक बसाढ़, वैशाली जिला) थी।
  • महाजनपद काल: वे 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व के 16 महाजनपदों में से एक, वज्जि के प्रमुख थे। वज्जि एक संघ (confederacy) था, जिसमें लिच्छवि, विदेह, ज्ञातृक और अन्य कबीले शामिल थे।
  • स्रोत: लिच्छवियों का विस्तृत विवरण बौद्ध साहित्य (जैसे- अंगुत्तर निकाय, महापरिनिब्बाण सुत्त, जातक कथाएँ) और जैन साहित्य (भगवती सूत्र) में मिलता है।

लिच्छवियों का गणतांत्रिक संविधान एवं शासन व्यवस्था

लिच्छवियों की शासन प्रणाली एक उन्नत गणतंत्र (Oligarchic Republic) थी, न कि आधुनिक लोकतंत्र। शासन की सत्ता समाज के एक विशेष वर्ग (क्षत्रिय कबीले के सदस्यों/राजकुमारों) के हाथ में थी।

1. संप्रभुता का स्रोत: सर्वोच्च सभा

लिच्छवि गणराज्य में सर्वोच्च सत्ता ‘राजा’ (एकल शासक) में निहित न होकर एक सभा में निहित थी। इस सभा के सदस्यों को ‘राजा’ कहा जाता था, जो वास्तव में गणतंत्र के निर्वाचित प्रतिनिधि या अभिजात वर्ग के सदस्य होते थे। इनकी संख्या 7707 बताई गई है।

2. कार्यपालिका

  • सभा द्वारा निर्वाचित अधिकारी शासन चलाते थे।
  • मुख्य कार्यकारी अधिकारी को ‘गणपुरुष’ या ‘गणराज’ कहा जाता था।
  • अन्य महत्वपूर्ण पदों में ‘सेनापति’ (सैन्य प्रमुख), ‘भंडारी’ (कोषाध्यक्ष), आदि थे।

3. निर्णयन प्रक्रिया

निर्णय बहुमत से लिए जाते थे। बौद्ध ग्रंथों में एक रोचक प्रसंग है जहाँ भगवान बुद्ध ने लिच्छवियों की सभा बुलाने की प्रक्रिया की तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि लिच्छवि:

  • सामूहिक रूप से सभाएँ करते हैं।
  • सामूहिक रूप से निर्णय लेते हैं।
  • संविधान का पालन करते हैं।
  • वरिष्ठों का आदर करते हैं।
  • नारियों का सम्मान करते हैं और उन्हें बलपूर्वक नहीं उठाते।

4. न्यायपालिका

न्यायिक व्यवस्था भी सुनियोजित थी। न्यायाधीशों का एक पैनल होता था जो विवादों का निपटारा करता था।

5. नागरिकता एवं सामाजिक ढाँचा

लिच्छवि समाज मुख्यतः क्षत्रिय था। पूर्ण राजनीतिक अधिकार (जैसे- सभा में भाग लेने का अधिकार) केवल इसी वर्ग के सदस्यों को प्राप्त था। शूद्र, दास और अन्य समुदायों को इस प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार नहीं था। इस प्रकार, यह एक सीमित गणतंत्र था।

गणतंत्र के पतन के कारण

मगध के शक्तिशाली राजा अजातशत्रु ने वज्जि संघ को पराजित किया। इस पतन के पीछे कई कारण बताए जाते हैं:

  • केंद्रीय सत्ता का अभाव: गणतांत्रिक व्यवस्था में एक मजबूत केंद्रीय नेतृत्व का अभाव था, जबकि मगध में एक शक्तिशाली राजा था।
  • आंतरिक मतभेद: कभी-कभी सदस्यों के बीच मतभेद निर्णय लेने की प्रक्रिया को अवरुद्ध कर देते थे।
  • सैन्य चुनौती: मगध की बढ़ती हुई सैन्य शक्ति का सामना करने में असमर्थता।
  • कूटनीतिक पराजय: अजातशत्रु के मंत्री वस्सकार ने लिच्छवियों में फूट डालने की सफल कूटनीति चलाई, जिससे वे कमजोर हुए।

यूपीएससी प्रीलिम्स के लिए तथ्य

  • लिच्छवि वज्जि संघ का हिस्सा थे।
  • राजधानी: वैशाली
  • महत्वपूर्ण स्रोत: अंगुत्तर निकाय (बौद्ध साहित्य)
  • मगध के राजा अजातशत्रु ने उन्हें पराजित किया।
  • गणतंत्र के सदस्यों को सामूहिक रूप से ‘राजा’ कहा जाता था।

निष्कर्ष

लिच्छवि गणराज्य प्राचीन भारत में राजनीतिक व्यवस्था की बहुलवादिता का एक शानदार उदाहरण है। यद्यपि यह एक सीमित गणतंत्र था, फिर भी इसकी सामूहिक निर्णयन प्रक्रिया, निर्वाचित पदाधिकारी और संस्थागत ढाँचा उस समय की अद्वितीय उपलब्धि थी। इसका पतन भारत में गणतांत्रिक प्रयोगों के अंत की शुरुआत और शक्तिशाली राजतंत्रों के उदय का संकेत देता है।

JPSC MAINS PAPER 3/History Chapter – 4