गुप्त साम्राज्य: विस्तार, भाषा, कला एवं स्थापत्य
गुप्त वंश (लगभग 275-550 ई.) को भारत का ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है। इस काल में राजनीतिक एकता, आर्थिक समृद्धि और सांस्कृतिक प्रगति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। गुप्त शासकों ने न केवल एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया, बल्कि कला, साहित्य, विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रोत्साहन दिया।
गुप्त साम्राज्य का विस्तार
गुप्त साम्राज्य की नींव श्री गुप्त एवं घटोत्कच ने रखी, किंतु वास्तविक संस्थापक चंद्रगुप्त प्रथम (320-335 ई.) थे। उन्होंने लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह कर अपनी शक्ति को मजबूत किया और ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की।
साम्राज्य के वास्तविक विस्तारक समुद्रगुप्त (335-375 ई.) थे। हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति में उनकी विजयों का विस्तृत वर्णन मिलता है। उनकी विजय यात्रा (दिग्विजय) को चार भागों में बांटा जा सकता है:
- आर्यावर्त की विजय: उत्तर भारत के 9 राज्यों (जैसे – अच्युत, नागसेन, कंट आदि) पर विजय।
- दक्षिणापथ की विजय: दक्षिण के 12 शासकों (जैसे – मंत्रराज, महेंद्र, व्याघ्रराज आदि) को पराजित किया, किंतु उनके राज्यों को गुप्त साम्राज्य में शामिल नहीं किया, बल्कि कर लेकर छोड़ दिया।
- सीमांत क्षेत्रों की विजय: पूर्वोत्तर के राज्यों (कामरूप, डवाक, नेपाल) तथा पश्चिमी राज्यों (मालव, अर्जुनायन, यौधेय, मद्रक) पर अधिकार।
- आत्मनिरपेक्ष राज्य: सामंतों, यौधेयों, मालवों आदि ने उनकी अधिपत्ता स्वीकार की।
चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) (375-415 ई.) ने शक राजाओं (पश्चिमी क्षत्रपों) को पराजित कर पश्चिमी भारत (मालवा, गुजरात, काठियावाड़) पर अधिकार किया। इस विजय ने गुप्त साम्राज्य को अरब सागर तक पहुंच दी और व्यापार को बढ़ावा मिला। उसके शासनकाल में साम्राज्य अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया।
स्कंदगुप्त (455-467 ई.) ने हूणों के आक्रमण को रोका, किंतु उनके बाद साम्राज्य का पतन शुरू हो गया।
गुप्तकालीन भाषा एवं साहित्य
गुप्त काल संस्कृत साहित्य का स्वर्ण युग था। संस्कृत राजभाषा और राष्ट्रभाषा बनी।
- कालिदास: इस युग के सर्वश्रेष्ठ कवि; उनकी रचनाएं – अभिज्ञानशाकुंतलम, मेघदूत, ऋतुसंहार, रघुवंश, कुमारसंभव।
- विष्णु शर्मा: पंचतंत्र की रचना, जिसका अनुवाद विश्व की कई भाषाओं में हुआ।
- अमरसिंह: अमरकोश (संस्कृत का प्रसिद्ध कोश/थिसॉरस)।
- विशाखदत्त: मुद्राराक्षस (राजनीतिक विषय पर आधारित नाटक)।
- शूद्रक: मृच्छकटिकम (दशकुमारचरित)।
- धार्मिक साहित्य: पुराण और स्मृतियों (जैसे नारद स्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति) का वर्तमान स्वरूप इसी युग में तैयार हुआ।
गुप्तकालीन कला
गुप्त कला भारतीय कला का शिखर मानी जाती है, जिसमें आदर्शवाद, सौंदर्य और प्राकृतिकता का सुंदर समन्वय है।
- मूर्तिकला: इस काल की मूर्तियों में आध्यात्मिक शांति, गरिमा और कोमलता झलकती है। बुद्ध की प्रतिमाएं इसका उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जिनमें सारनाथ की धर्मचक्रप्रवर्तन मुद्रा वाली बुद्ध प्रतिमा विश्वविख्यात है। हिंदू देवी-देवताओं (विष्णु, शिव, दुर्गा) की मूर्तियों का भी निर्माण हुआ।
- चित्रकला: इसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण अजंता की गुफाएं (विशेषकर गुफा संख्या 16 और 17) हैं। इन चित्रों में जातक कथाओं, बुद्ध के जीवन और समकालीन सामाजिक जीवन के दृश्यों को अत्यंत कलात्मक ढंग से उकेरा गया है। रंगों की स्थायित्व और रेखाओं की सजीवता आश्चर्यजनक है।
गुप्तकालीन स्थापत्य कला
गुप्त काल में मंदिर स्थापत्य की नींव पड़ी। इस युग के मंदिरों को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
- मंदिरों के प्रकार:
- फ्लैट-रूफ्ड स्टाइल (चौकोर शिखर रहित): सादे, चौकोर गर्भगृह वाले मंदिर। उदाहरण: देवगढ़ (झांसी) का दशावतार मंदिर, भितरगांव (कानपुर) का ईंटों का मंदिर।
- शिखर स्टाइल (तिर्यक शिखर वाले): इनमें गर्भगृह के ऊपर शिखर बना होता था। उदाहरण: दशावतार मंदिर का ऊपरी हिस्सा (हालांकि अब नष्ट हो चुका है)।
- गुफा स्थापत्य: अजंता (चित्रकला के लिए), एलोरा (गुफा संख्या 16, दशावतार), उदयगिरि (विदिशा) की गुफाएं गुप्तकालीन स्थापत्य की उत्कृष्ट कृतियां हैं। इनमें स्तंभ, मूर्तियां और सजावट देखने योग्य है।
निष्कर्षत: गुप्त वंश ने एक ऐसी सभ्यता का निर्माण किया जिसने न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया की कला और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया। उनकी कलात्मक और साहित्यिक विरासत आज भी भारतीय सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न अंग है।