खाद्यान्न फसलें (Food Crops)
- अनाज की संरचना के आधार पर खाद्यान्नों को दो में वर्गीकृत किया जाता है।
- अनाज
- दाल
अनाज
- मुख्य अनाज – चावल, गेहूँ आदि
- मोटे अनाज – ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी आदि
मुख्य अनाज
धान/चावल (paddy )
- आर्द्र उष्ण कटिबंधीय(Wet Tropical ) एवं स्वपरागित फसल (self pollinated crops)
- खरीफ़ फसल
- मूल स्थानः दक्षिण-पूर्व एशिया
- औसत तापमान – 24°C से अधिक
- वर्षाः 100 सेमी. से अधिक
- Scientific name: Oryza sativa
- Family: Poaceae
- भारत के दक्षिणी राज्यों तथा पश्चिम बंगाल में जलवायु की अनुकूलता के कारण एक कृषि वर्ष में चावल की दो या तीन फसलें बोई जाती हैं। चावल की इन फसलों को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है
चावल की प्रमुख किस्में
- लूनी श्री, रोहिणी, पूसा 33, सरजू, काँची, कृष्णा, कावेरी, अन्नपूर्णा, कोहसर, राजेश्वरी, माही सुगंधा, पूसा सुगंधा-5, (पूसा 2511), साकेत, बरानी दीप, रतना, करूणा, जया, जगन्नाथ। शाहसारंग, गौरी, धनराशि, श्वेता, चिंगम, RH-204, DRR धान 45 (जिंक युक्त), पंजाब बासमती-3, पूसा 1609 आदि।
बासमती चावल की किस्में
- बासमती 370, माही सुगंधा’, रणबीर बासमती, पूसा बासमती 1509, वल्लभ बासमती 22, मालवीय बासमती धान 10-9, पंत बासमती 1 और 2, गंगा, सुरुचि, पूसा RH-10 (भारत द्वारा विकसित विश्व का प्रथम संकर बासमती चावल), PHB-71 आदि।
चावल की नवीनतम प्रतिरोधी किस्में
- पूसा 1592 एवं पंजाब बासमती-3:जीवाणु पत्ती झुलसा रोग (Bacterial Leaf Blight) के प्रति प्रतिरोधी किस्म
- पूसा 1609 : झोंका रोग (Blast) की प्रतिरोधी किस्म
- ‘लूनी श्री’
- केंद्रीय धान अनुसंधान संस्थान, कटक द्वारा विकसित
दपोग विधि (Dapog Method)
- धान उत्पादन की विधि है जो फिलीपींस एवं जापान में प्रचलित है एवं वहाँ से यह भारत आयी।
श्री विधि-चावल गहनीकरण पद्धति (SRI Method System of Rice Intensification)
- यह धान उत्पादन की एक तकनीक है जिसके द्वारा पानी के बहुत कम प्रयोग से भी धान की अच्छी उपज प्राप्त हो जाती है।
- इस तकनीक में पौधों की जड़ों में नमी बरकरार रखना ही पर्याप्त होता है।
- फ्रांसीसी पादरी ‘हेनरी डे लाउलानी’ द्वारा 1983 में मेडागास्कर में श्री पद्धति विकसित किये जाने के कारण इसे धान उत्पादन की मेडागास्कर विधि भी कहते हैं।
धान के विभिन्न रोग, कीट एवं उपचार ( paddy diseases, pests and treatment)
- खैरा रोग – जस्ते (जिंक) की कमी से
- पत्ती का भूरा धब्बा-जीवाणु झुलसा (Bacterial Blight) रोग – कवक द्वारा
- धान का झौंका (Blast) रोग– कवक द्वारा
- टुंग्रो रोग – राइस टुंग्रो वायरस द्वारा
- आभासी कंड (False Smut)रोग – कवक द्वारा
- धान में लगने वाले विभिन्न कीट – गंधी कीट, सैनिक कीट, तना छेदक, धान का भूरा एवं सफेद फुदका, पत्ती लपेटक कीट,गाल फ्लाई कीट आदि
- गंधी कीट को मैलाथियान तथा सैनिक कीट को क्लोरपायरीफास द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- गाल फ्लाई कीट के कारण धान में रजत प्ररोह रोग होता है।
- 1943 के बंगाल अकाल के कारणों में धान का भूरा पर्णचित्ती (Brown Spot) रोग एक प्रमुख कारण था।
- C3, पौधेः चावल, गेहूँ, ओट्स, बार्ली, आलू, सोयाबीन आदि।
- ‘गोल्डन धान’ की किस्म में सर्वाधिक मात्रा में विटामिन-A पाया जाता है।
- भारतीय बासमती चावल को G.I. टैग मिला हुआ है।
गेहूँ (Wheat )
- शीतोष्ण कटिबंधीय फसल (temperate crop)
- रबी फसल ।
- गुणसूत्र संख्या: 42
- औसत तापमान – 10°-25°C
- वर्षाः 80 सेमी
- वैज्ञानिक नाम : Triticum aestivum
गेहूँ की विभिन्न किस्में
प्रमुख किस्में:
- कल्याण सोना, कंचन, गिरजा, गोमती, अनुराधा, मैकरोनी, सोनालिका, अर्जुन, कुंदन, पूसा विशेष, मालव कीर्ति, भवानी, अमर, सुजाता, चंद्रिका, राज़ 3077, मंगला, नरेंद्र,सोनोरा 64 आदि।
नवीनतम विकसित किस्में:
- (1) I.C.A.R द्वारा: D.W.B-14, H.S-420, VL-829, H.I-1500, पूसा बेकर, पूसा किरन, नीलगिरी खापली, पूसा मालवी
- (2) IARI द्वारा: HS-562, HD-311F
- ट्रिटिकेल:गेहँ एवं राई के ‘क्रॉस’ (संकर) से विकसित है।
- गेहूँ की प्रजाति सोनोरा 64 – उत्परिवर्तन द्वारा विकसित किया गया है।
- गेहूँ में पाया जानेवाला प्रोटीन – ग्लूटिन (Gluten)
गेहूँ का वर्गीकरण (Wheat classification)
- गेहूँ की कई प्रजातियाँ हैं जो एक साथ ट्रिटिकम जीनस (वर्ग) बनाती हैं।
- ट्रिटिकम (Triticum) वर्ग की 3 प्रमुख प्रजातियाँ
-
- ट्रिटिकम एस्टीवम (Triticum Aestivum)
- ट्रिटिकम डूरम (Triticum Durum)
- ट्रिटिकम डिकोकम (Triticum Dicocum)
ट्रिटिकम एस्टीवम (Triticum Aestivum):
- यह सर्वाधिक उपयोग की जाने वाली प्रजाति है
- इसे नरम गेहूँ (Soft Wheat) भी कहा जाता है।
- इस प्रजाति का विकास डॉ. नार्मन. ई. बोरलॉग द्वारा मैक्सिकों में किया गया था।
- उदाहरण- PBW 343, Raj 3077,GW2731
ट्रिटिकम डूरम (Triticum Durum):
- इसे मैकरोनी गेहूँ एवं सख्त गेहूँ भी कहा जाता है।
- शुष्क परिस्थितियों हेतु यह गेहूँ उत्तम माना जाता है।
- इससे सेमोलीना (सूजी, रवा, पास्ता इत्यादि) बनाया जाता है।
ट्रिटिकम डिकोकम (Triticum Dicocum):
- इसे इमर गेहूँ (Emmer Wheat) भी कहते हैं।
- इसे दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में उगाया जाता है।
गेहूँ के रोग (diseases of wheat)
रस्ट (Rust): पक्सीनिया (Puccinia) कवक के द्वारा
- Stem Rust (Black Rust),
- Leaf Rust (Brown Rust)
- Stripe Rust (Yellow Rust)
करनाल बंट (Karnal Bunt): टिललेटिया इंडिका (Tilletia Indica) कवक द्वारा
अनावृत्त कंड (Loose Smut): ओस्टिलगो सीगटम (Ustilago Segetum) के द्वारा
सेहूँ (Ear Cock): ऐगुइना नामक सूत्रकृमि (निमैटोड/nematode) के कारण
खरपतवार नाशी (weed killer)
- गेहूँ के प्रमुख खरपतवार नाशी
- फेलेरिस माइनर (गेंहूसा) – ‘गेहूँ का मामा’
- 2, 4-D इथाइल एस्टर एवं आइसोप्रोटयूरॉन
- फेनॉक्साप्राय
- भारत में हरित क्रांति का सर्वाधिक प्रभावगेहूँ पर पड़ा था।
- नोरीन (Norin) नामक बौनी जीन से तैयार Norin-10 गेहूँ की प्रजाति को ए.सी. सालमन U.S.A ले गए थे। उसके बाद डॉ. ओ.ए. वोगल ने इस जीन से ‘Gains’ नामक एक बौने शीत गेहूँ को विकसित किया।
Q.इनमें से किस खरपतवार नाशी को गेहूं का मामा भी कहा जाता है ? फेलेरिस माइनर (गेंहूसा)
मोटे अनाज (coarse grains)
SARKARI LIBRARY
मक्का (Maize/corn)
- मक्का एक खाद्य तथा चारा फसल हैं।
- इसे पुर्तगाली भारत लाए थे।
- Scientific name: Zea mays (जिआ मेज)
- Family: Poaceae
- मक्का तीनों ऋतुओं की फसल है – खरीफ, रबी एवं जायद
- यह पूरे वर्ष बोई जाती है।
- जायद में यह चारे के रूप में उगायी जाती है।
- गर्म तथा शुष्क जलवायु में बोई जाती है।
- धान्य फसलों के मुकाबले सबसे अधिक स्टार्च की मात्रा मक्का में पाई जाती है।
- मक्का एक C4 पौधा है, जिसे ‘अनाजों की रानी’ के नाम से जाना जाता है।
- यह एक उभयलिंगी (एक ही पौधे पर नर तथा मादा पुष्प दोनों) पौधा है, जिसमें पर-परागण होता है।
- मक्का के प्रोटीन को ‘Zein’ कहते हैं। इसमें 2 आवश्यक अमीनों अम्ल यथा Tryptophane एवं Lysine की कमी होती है।
- मक्का की प्रजातियाँ
- प्रताप ,रतन, शक्ति एवं प्रोतिना
- मक्का कीसंकर प्रजातियाँ:
- गंगा-5, गंगा सफेद-2, हिमालय, AH-21, दक्कन, कामधेनु इत्यादि।
- मक्का की कंपोजिट प्रजातियाँ:
- पूसा कंपोजिट-3 एवं पूसा कंपोजिट-4, विजय, किसान।
- खाने में उपयोग आने वाला मक्का स्वीट कॉर्न (Sweet Corn) कहलाता है।
- मक्का से ही पॉपकार्न (Popcorn) बनता है।
- Zn जिंक की कमी से मक्का की पत्तियों का शीर्ष सफेद होने लगता है।
- मक्का के प्रमुख शाकनाशी : एट्राजिन या सिमेजिन, लिनोरॉन आदि
- मक्का पौधे के प्रमुख कीट : तना छेदक(Stem Bores) एवं गुलाबी छेदक (Pink Bores)
उपयोग
- खाद्य पदार्थ के रूप में एवं जैव-ईंधन, प्लास्टिक, लेई, गोंद, रेयान, रेजिन, सिरका और कृत्रिम लेदर आदि के निर्माण में प्रयोग होता है।
- यह कीटनाशी के निर्माण में वाहक का कार्य करता है।
Q . इनमें से किस अनाज को अनाजों की रानी के नाम से जाना जाता है ?
कदन्न (Millets)
- ईनमें खनिज लवण उच्च मात्रा में पाया जाता है।
- अनाजों (Cereals) में से सर्वाधिक सूखा सहने की क्षमताबाजरे में होती है।
- अनाजों में सर्वाधिक खनिज लवण की मात्राबाजरे में पाई जाती है।
कदन्न वर्ग में शामिल अनाज
Finger Millet(मंडुआ/रागी)
- यह कैल्शियम से समृद्ध होता है।
Sorghum Millet: (ज्वार)
- प्रथम Sweet Sorghum – hybrid NSSHIO4
Barnyard Millet(अंगोरा)
- यह रेशा एवं लौह तत्वों से भरपूर होता है।
Pearl Millet(बाजरा)
- भारत इसका सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
बाजरा की नवीन किस्में:
- R.H.B-127 एवं पूसा कम्पोजिट-701, HHB-272, NBH-149, ICM4-155
- बाजरे के रोगः हरित बाली, अर्गट तथा कंदुआ।
- मक्का एवं बाजरे के तना छेदक कीट का नियंत्रण ‘इंडोसल्फान’ द्वारा किया जाता है।
पशुपालन एवं कीट विज्ञान ( Animal Husbandry & Entomology)
गौवंश
- विश्व के दुग्ध-उत्पादक देशों में प्रथम स्थान – भारत
- सबसे ज्यादा गोवंशीय जनसंख्या – भारत
अन्य नस्लें
- दुधारू (Milch): ये नस्लें सबसे ज़्यादा दूध का उत्पादन करती हैं। उदाहरण-साहीवाल, गिर, रेड सिंधी, देवनी।
- भारवाही (Draught): भार ढोने वाली नस्लों को इसके अंतर्गत रखा गया है। उदाहरण-हल्लीकार, अमृतमहल, कांगायम, बरगुर, नागौरी, बछौर, खिल्लारी, मालवी, सिरी।
- द्विकाजी (Dual Purpose): दूध देने एवं भार ढोने, दोनों कार्यों हेतु प्रयुक्त नस्लों को इसके अंतर्गत रखा जाता है।
- उदाहरण – थारपारकर, कांकरेज, कृष्णाघाटी, मेवाती, गोओलाओ।
- गायों की (भारत में) सबसे भारी नस्ल कांकरेज है।
- होलस्टीन फ्रीजियन गायें विश्व में सबसे ज़्यादा दुग्ध उत्पादन करती हैं।
- विदेशी गायों का दूध उत्पादन भारतीय गायों की अपेक्षा अधिक होता है, परंतु यूरोपीय गायों (आइसलैंड की गायों के अतिरिक्त) की तुलना में भारतीय गायों का दूध श्रेष्ठ माना जाता है।
- विदेशी नस्ल की गायजरसिंध भारतीय जलवायु के प्रति सबसे उपयुक्त मानी गई है।
- गर्नशी गाय के दूध में 5.0% तक वसा मापी गई है।
संकर प्रजातियाँ (hybrids)
- करन स्विस एवं करन फ्राइज भारत में विकसित संकर प्रजातियाँ हैं।
- इन दोनों ही प्रजातियों का विकास राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल (हरियाणा) द्वारा किया गया है।
कुछ महत्त्वपूर्ण दुधारू विदेशी नस्लें
- जर्सी (यूनाईटेड किंगडम), होलस्टीन फ्रीजियन (नीदरलैंड), ब्राउन स्विस (स्विट्ज़रलैंड); गर्नशी (फ्राँस), आयरशायर (स्कॉटलैंड)
भैंस
भारत में भैंसों को दो वर्गों में रखा जाता है
- 1. भारतीय भैंस: इन्हे ‘जल भैंस’ भी कहा जाता है।
- 2. विदेशी भैंसः इन्हें ‘दलदली भैंस’ भी कहा जाता है। ये दक्षिण-पूर्वी एशिया में पायी जाती हैं।
7 मान्यता प्राप्त भारतीय भैसों की नस्लें
- मुर्रा (हरियाणा)
- सूरती (गुजरात)
- मेहसाना (गुजरात)
- जाफारावादी (गुजरात)
- नागपुरी (महाराष्ट्र)
- भदावरी (उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश)
- तराई (उत्तराखंड)
SARKARI LIBRARY
- इनके अलावा – नीली-रावी (पंजाब), मंडा, टोडा (नीलगिरी पहाडियाँ) आदि भी भारत में पाई जाती हैं।
- भारत में सर्वाधिक दूध देने वाली भैसें मुर्रा (विश्व की सर्वश्रेष्ठ भैंस नस्ल) और सबसे भारी भैंस जाफरावादी है।
- भदावरी देश में सर्वाधिक वसा प्रतिशत (14% तक) वाले दूध का उत्पादन करती है।
- केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान (हिसार)
- विश्व में क्लोन द्वारा उत्पादित दूसरा भैंस का बच्चा– गरिमा, करनाल (हरियाणा)
भेड़ की नस्लें
भेड़ की अन्य नस्लें
भारत में
- लोही: सर्वाधिक दूध उत्पादन
- लोही एवं कच्छीः द्विकाजी नस्लें हैं
- चोकला: सबसे महीन कालीन ऊन
- मांड्याः सबसे बढ़िया माँस प्रदान करने वाली नस्ल
विदेश में
- मैरिनो (स्पेन): सर्वाधिक, ऊन प्रदाता नस्ल
- लिसिस्टर (इंग्लैंड): सबसे लंबी ऊन
- मैरिनो एवं रेबुले नस्लें अत्यंत महीन ऊन का उत्पादन करती है।
बकरी
- इसे निर्धनों की ‘कामधेनु’ भी कहा जाता है।
- बकरी को रेगिस्तान का चलता-फिरता (रनिंग) डेयरी भी कहते है।
- विपरीत परिस्थितियों में जीवित रह पाने के कारण
- बकरी के दूध के पोषक तत्त्वःआयरन (गाय की अपेक्षा अधिक), पोटैशियम
भारत में बकरी की नस्ले
- दुधारू: जमुनापारी, बीटल, ओसामावादी, झकराना, बारबरी, सुरती
- माँसः सिरोही, ब्लैक बंगाल, ओसामावादी, गंजाम
- ऊनःपश्मीना, चेंगू
- खालः ब्लैक बंगाल, मालावरी
- जमुनापारीःआकार में सबसे बड़ी एवं द्विकाजी नस्ल की बकरी ये मुख्यतः दुध उत्पादन हेतु पाली जाती हैं।
- सोजतः सिरोही एवं जमुनावारी के मध्य क्रॉस द्वारा विकसित
- (मुख्यतः माँस देने वाली नस्ल)
- पश्मीना (कश्मीर): बकरी के ऊन हेतु विश्व प्रसिद्ध प्रजाति
- द्विकाजी नस्लें: सिरोही, मेहसाना, मालाबरी, झालावाड़ी, सुरती
SARKARI LIBRARY
विदेश में
- सानेन बकरी (स्विट्ज़रलैंड): विश्व की दूध की रानी कही जाती है।
- अंगोरा बकरी (मध्य एशिया): मोहेयर ऊन हेतु प्रसिद्ध
- एग्लों नुबियन (इंग्लैंड): बकरी जगत में ‘जर्सी’ कही जाती है।
- (भारत से आयातित जमुनापारी एवं जरैबी के मध्य क्रॉस द्वारा विकसित)
- बलुची: माँस हेतु सर्वश्रेष्ठ प्रजाति
- नूरी: विश्व की प्रथम पश्मीना बकरी की क्लोन
सूअर
- सूअर, सूस (Sus) वर्ग का जानवर है।
विदेश में
- टैमवर्थ (इंग्लैंड): सबसे अच्छी किस्म का माँस
- सफेद यार्कशायर (इंगलैंड): माँस तथा अधिक बच्चा देने हेतु प्रसिद्ध
- अन्य विदेशी नस्लें: सफेद यार्कशायर, बर्कशायर, हैम्पशायर, चैस्टर व्हाइट आदि।
मुर्गियों की नस्लें
- एशियाई नस्लें: असील, ब्रह्म (भारत), लेग्शान, कोचीन (चीन)
- अंडा उत्पादन करने वाली नस्लें: मिनोर्का , व्हाइट लेगहार्न
- माँसोत्पादन करने वाली नस्लें: कोचीन, न्यू हैम्पशायर
- मनोरंजक नस्लें: असील (मुर्गे की लड़ाई हेतु)
- मुर्गी के अंडे का खोलकैल्शियम कार्बोनेट का बना होता है।
- लेगहान संसार में सर्वाधिक अंडा देने वाली मुर्गी है।
मुर्गियों के प्रमुख रोग
- रानीखेत (वायरस)
- बर्ड फ्लू ( वायरस)
- फाउल पॉक्स (वायरस)
- पुलोरम (जीवाणु)
मत्स्य पालन (Pisciculture/Fish Farming)
वेलापवर्ती मछलियाँ (Pelagic Fish)
- समुद्र सतह के समीप पाई जाने वाली मछलियों को वेलापवर्ती मछलियाँ कहते हैं
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
- रोहू(टापरा या रूइ)- भारत में पायी जाने वाली सबसे स्वादिष्ट मछली
- देश में सबसे ज्यादा मात्रा में उत्पादित की जाने वाली मछली – कतला
- लांची:
- एक शल्क विहीन मछली (Scaleless fishes)
- IUCN के Red list में Near Threatened में शामिल
- मृगला:
- नदियों के तेज बहाव में अंडे देने वाली मछली
- सिर्फ कावेरी नदी में
- IUCN द्वारा Vulnerable का दर्जा
- मागुरः
- वायु में श्वसन करने वाली ताजे जल की कैट फिश
- IUCN की Red List में Endangered में
- विश्व में झींगा का सर्वाधिक उत्पादन – भारत में
- शव को को अधिक समय तक ताजा बनाए रखने में प्रयोग
- फॉर्मेलिन या फॉर्मेल्डिहाइड का
- कपड़ा, प्लास्टिक, कागज, पेंट निर्माण तथा शव(मछली) को संरक्षित रखने आदि में
- एक कैंसरजन्य कारक भी है।
- फॉर्मेलिन या फॉर्मेल्डिहाइड का
एक्वाकल्चर (Aquaculture)
- जलीय उत्पादों की कृषि करना
सागरीय कृषि (Mariculture)
- एक्वाकल्चर की शाखा
- सिर्फ समुद्री जीवों की कृषि
रेशम कीट पालन (Sericulture)/सिल्क फार्मिंग
- कच्चे रेशम (प्राकृतिक रेशम) के उत्पादन के लिये रेशमी कीड़ों का पालन करना
- प्राकृतिक रेशम, कीट रेशा (Insect Fiber) होता है
- इसे रेशम के कीड़े के कोकून (Cocoon) से प्राप्त किया जाता है।
- कीट के प्यूपा (Pupa) द्वारा धागे को स्वयं के शरीर पर लपेटने से कोकून का निर्माण होता है।
- भारत रेशम की सभी पाँचों वाणिज्यिक किस्मों का उत्पादन करने वाला अकेला देश है।
- मलबरी, ट्रॉपिकल टसर, ओक टसर, इरी और मूंगा
- मलबरी रेशम के अलावा रेशम के अन्य तीनों प्रकार ‘वन्य सिल्क’ कहलाते हैं।
- भारत में सर्वाधिक उत्पादनमलबरी रेशम का होता है।
- मूगा रेशम का उत्पादन सिर्फ भारत में होता है।
- देशी टसर का संस्कृत नाम कोसा सिल्क है।
- बाफ्टा– टसर एवं कॉटन का मिक्स है।
- रेशम का धागा एक प्रोटीन संरचना है, जो ताप का कुचालक होता है।
- कपास एवं जूट प्राकृतिक बहुलक (Polymer) सेल्यूलोज से बने होते हैं।
- प्राकृतिक रेशम के उत्पादन एवं खपत में भारत का दूसरा स्थान है।
- रेशमी वस्त्र उत्पादक शीर्ष राज्यकर्नाटक तथा असम है।
- इरी एवं मूगा का सर्वाधिक उत्पादन असम में होता है।
- भारत में सबसे अधिक शहतूत रेशम कीट (Bombyx mori) का पालन किया जाता है।
SARKARI LIBRARY
मधुमक्खी पालन (Apiculture)
- मधुमक्खी पालन ‘शहद’ के उत्पादन हेतु किया जाता है।
- मधुमक्खी के परिवार में रानी (Queen)-1, नर (Drones)-10% एवं श्रमिक (Worker Bees) करीब 90% होते हैं।
- रानी मक्खी केवल अंडे देने का कार्य करती है।
- नर मक्खी का कार्य अंडों का निषेचन करना है।
- श्रमिक मक्खियाँनपुंसक होती हैं एवं ये ही नेक्टर इक्ट्ठा करने तथा परागकण का कार्य करती है।
- रानी मक्खी के शरीर से निकले अल्फा कीटोग्लूटैरिक अम्ल के प्रभाव से श्रमिक मक्खियाँ नपुंसक हो जाती है।
मधु (Honey) = 82% शर्करा तथा 18% जल
- मधुमक्खी में प्राकृतिक अनिषेकजनन (अलैंगिक जनन का प्राकृतिक रूप) पाया जाता है।
- इसे ‘वर्जिन बर्थ’ के नाम से भी जाना जाता है।
- निषेचित अंडे से मादा मक्खी का विकास होता है
- अनिषेचित अंडे से नर मक्खी का विकास होता है।
- इसे ‘वर्जिन बर्थ’ के नाम से भी जाना जाता है।
- मादा मक्खी, मादा श्रमिक मक्खी बन जाती है एवं अगर लार्वा को पर्याप्त पोषण दिया गया तो वो रानी मक्खी बन जाती है।
- मधुमक्खी की भाषा (Beedance) की खोज हेतु प्रो. कार्ल वॉन फ्रिश को नोबल पुरस्कार मिला था।
लाख कीट पालन (Lac Culture)
- लाख एक प्राकृतिक राल है, जो केरिया लेका कीट/लेसीफेरा लेक्का कीट द्वारा पैदा की जाती है.
- यह मादा कीट के शरीर से लिक्विड के रूप में निकलती है और हवा के संपर्क में आने पर सख्त हो जाती है.
- भारत में पाई जाने वाली प्रजातियाँ: लेसीफेरा एवं पैराटेकारडिना।
- भारत में दो प्रकार की लाख फसल होती है.
- कुसुमी लाखःकुसुम के पौधों पर का
- रंगीनी लाखःपलाश, बेर के पौधों पर
- लाख उत्पादन की दृष्टि से विश्व में सर्वप्रथम – भारत
- भारत विश्व के 80% लाख का उत्पादन करता है।
- भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान (राँची) 1924 में स्थापित किया गया।
दूध से संबंधित तथ्य
- दूध एक कोलाइडल पदार्थ है
- सफेद रंग – केसीन प्रोटीन के कारण
- दूध का पीला रंग – कैरोटिन (Carotene) के कारण
- दूध में पाए जाने वाले अन्य प्रोटीन– एलब्यूमिन एवं ग्लोब्यूलिन
- दूध में उपस्थित पोषक तत्त्व
- प्रोटीन, कैल्शियम, पोटैशियम, फॉसफोरस, सेलेनियम, मैग्नीशियम, विटामिन A, विटामिन B (B2,B5 and B12), विटामिन D आदि।
- दूध में पाया जाने वाला मिठास – लैक्टोज शर्करा के कारण
- दूध खट्टे के कारण – लैक्टिक एसिड
- स्ट्रैप्टोकोकस लैक्टिस और कोलाई फार्म जीवाणु दूध के लैक्टोज को लैक्टिक अम्ल में बदल देते हैं।
- दूध के प्रोटीन का किण्वन – दही का निर्माण
- बैसिलस सबटिलिस एवं स्यूडोमोनास फलुऑरेसेन्स जीवाणु
- देसी घी की महक के कारण
- लैक्टोन्स, मिथाइल किटोन्स, डाइएसीटाइल एवं डाइमिथाइल सल्फाइड
SARKARI LIBRARY
दूध में मिलावट (Adulteration) का पता लगाने वाली परीक्षण विधियाँ
-
हंसा परीक्षण, प्रेसीपीटिन परीक्षण:
- गाय के दूध में भैंस, बकरी, भेंड़ आदि दूध की मिलावट का पता करने हेतु।
-
वैनेडियम (III):
- दूध में नाइट्रेट की उपस्थिति का पता लगाने हेतु
-
पिकरिक अम्ल परीक्षण:
- दूध में लैक्टोज का वर्णमति (रंग) परीक्षण किया
पाश्च्यु रीकरण (Pasteurization)
- 72°C तापमान पर 15 सेकेंड तक दूध को गर्म करने (पुनः 5°C तक ठंडा करने) पर उसके जीवाणु नष्ट हो जाते है एवं दूध के गुणों का ह्रास नहीं होता। यही ‘पाश्च्युरीकरण’ कहलाता है।
होम पाश्च्यु रीकरण (Home Pasteurization)
- यह 63°C तापमान पर 30 मिनट तक दूध को गर्म कर जीवाणुओं की नष्ट करने की प्रक्रिया है।
निर्जीवीकरण (Sterilization)
- इसमें दूध को बंद कंटेनर में लगातार 15 मिनट के लिये 115°C तापमान पर या कम से कम 1 Sec के लिये 130°C पर गर्म करते है।
- इससे दूध के गुणों में कमी आ जाती है।
- प्रजनन के तुरन्त बाद प्राप्त दूध – खीस (Colostrum)
-
- प्रतिजैविक (Antibiotic) गुण
- इसमें केसीन की अपेक्षा एलब्यूमिन एवं ग्लोब्यूलिन प्रोटीन अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
SARKARI LIBRARY
- दुग्ध उत्पादों में सबसे अधिक वसा
- घी (सबसे ज्यादा 99.5%) >क्रीम > मक्खन > दही(सबसे कम)
- दुग्ध उत्पादों में सबसे अधिक प्रोटीनचीज़ (सर्वप्रमुख) तथा पनीर में पाया जाता है।
- दूध के खराब होने का कारणलैक्टोबैसीलस जीवाणु है।
- दुग्ध परिरक्षक (Milk Presersative):
- बेंजोइक अम्ल(Benzoic Acid)
- फार्मलीन (Formalin)
- सैलिसीलिक अम्ल (Salicylic Acid)
- दूध स्रावण हेतु आवश्यक हार्मोन – ऑक्सीटोसिन
- ऑक्सीटॉसिन एक हार्मोन है जो मस्तिष्क में अवस्थित पिट्यूटरी ग्रंथि(pituitary gland) से स्रावित होता है।
- मनुष्य के व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण ऑक्सीटॉसिन को लव हार्मोन (Love Harmone) के नाम से भी जाना जाता है।
- ऑक्सीटॉसिन के इंजेक्शन का उपयोग आमतौर पर दूध देने वाले पशुओं से अतिरिक्त दूध प्राप्त करने के लिये किया जाता है। इसका इंजेक्शन लगा देने से पशु किसी भी समय दूध दे सकता है।
- ऑक्सीटॉसिन का इस्तेमाल प्रसव पीड़ा शुरू करने और रक्तस्राव नियंत्रित करने के लिये किया जाता है।
- दूध का हिमांक (Freezing point):– 0.53 एवं -0.56°C के बीच
- दूध से क्रीम निकालने की दो विधियाँ प्रचलित हैं
- गुरुत्वाकर्षण विधि(gravity method)
- अपकेंद्रीय विधि (centrifugal method)
- दुधारू पशुओं में दूध कूपिका (Alveoli) कोशिकाओं में बनता है।
SARKARI LIBRARY
- कवक विज्ञान का जनक (Mycology) – माइकेली को
- गेहूँ एवं विभिन्न फसलों जैसे ओट्स, बार्ली आदि हेतु बीजोपचार(seed treatment) के रूप में विटावैक्स (Vitavax) का प्रयोग किया जाता है।
- Pesticides(कीटनाशक)
- Herbicides (शाकनाशी)
- Insecticides (कीटनाशक)
- कवकनाशी( fungicide)
- Carbendazim
- जैविक कवकनाशी(organic fungicide) – प्लांट वैक्स (Plantvax)
- काउपॉक्स एक संक्रमणकारी बीमारी(contagious disease) है जो काउपॉक्स वायरस के कारण गाय जैसे जानवरों में होता है, परंतु स्वस्थ मनुष्य में संचारित होने के उपरांत यह स्मॉलपॉक्स के प्रति रोगप्रतिरोधक क्षमता(immunity) विकसित कर लेता है।
फेरोमोंस (Pheromones):
- इन रसायनों का प्रयोग अंतर जातीय संचार हेतु किया जाता है।
- इन्हें इक्टो हार्मोन भी कहते हैं।
- इनकी सहायता से नर कीटों को आकर्षित कर उन्हें पकड़ने में मदद मिलती है।
- भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कीटनाशक(insecticide)
- DDT – dichloro-diphenyl-trichloroethane
- BHC – Benzene hexachloride
- Aldrin (एल्ड्रिन)
- ऐजोला(Azolla) का उपयोग जैव उर्वरक(biofertilizer) के रूप में किया जाता है
- जैव उर्वरक प्राकृतिक उर्वरक हैं
कृषि में हरी खाद (green manure)
- हरी खाद एक सहायक फसल को कहते हैं जिसकी खेती मुख्यत: भूमि में पोषक तत्त्वों को बढ़ाने तथा उसमें जैविक पदाथों की पूर्ति करने के उद्देश्य से की जाती है।
- उदाहरण – हरी खाद के लिए दलहनी फसलों में सनैइ (सनहेम्प), ढैंचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ग्वार आदि
- पर्णीय छिड़काव(Foliar plant spray) हेतु सबसे प्रचलित उर्वरक यूरिया है।
- जिप्सम का प्रयोग क्षारीय मृदा को सुधारने में होता है।
- भारतीय मृदाओं में जस्ता तत्व की सर्वाधिक कमी होती है।
- मणिपुर के लोकटक झील में फँडी (Phumdi) नामक तैरती ठोस भूमि पायी जाती है।
- भारत में अवनालिका अपरदन से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रचंबल घाटी (मध्य प्रदेश) है।
- पाइराइटस(pyrites) को झूठा सोना कहा जाता है।
- सूरजमुखी का तेलहृदय रोगियों के लिये लाभकारी होता है।
- बहुभ्रूणीयता (Polyembryony) जामुन, आम तथा सिट्रस फलों मे पायी जाती है।
- आम एवं केला क्लाइमेटिक (Climatic) फलों का जोड़ा कहलाते हैं।
- गोबर गैस का प्रमुख दहनशील गैस मीथेन लगभग 50-60 प्रतिशत होता है।
- दलहनी फसल जो वायुमंडल के नाइट्रोजन का स्थिरीकरण नहीं करती।
- फ्रेंचबीन,राजमा
- पौधों पर कीटनाशकों का हानिकारक प्रभाव उनमें उपस्थित एंजाइम के कारण नहीं पड़ता है।