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  झारखण्ड के राजकीय प्रतीक (State Emblem of Jharkhand)

 

झारखण्ड के राजकीय प्रतीक

State Emblem of Jharkhand

राजकीय प्रतीक

चिन्ह

वैज्ञानिक नाम

पक्षी

कोयल

Eudynamys scolopaceus

पशु 

हाथी

Elephant maxumus

वृक्ष

साल

Shorea robusta

पुष्प

पलाश

Butea monosperma/frondosa

 

झारखंड का नया राज्य चिन्ह 

  • झारखंड सरकार के द्वारा नया प्रतीक चिन्ह को अपनाया गया। 
  • यह 15 अगस्त 2020 से लागू हुआ। 
  • झारखंड राज्य के नए प्रतीक चिन्ह का आकर वृताकार है।
  • झारखंड राज्य के नए प्रतीक चिन्ह में कुल 7 वृताकार घेरे है। 
  • इसे 205 दिनों में तैयार किया गया है। 
  • पहले गोल घेरे में अशोक स्तंभ हैं। 
  • दूसरे गोल घेरे में 60 सफेद गोल घेरे हैं। 
  • तीसरे गोल घेरे में 48  (24  जोड़ी) मानव है। 
  • चौथे गोल घेरे में 24 पलाश के फूल है । 
  • पांचवे गोल घेरे में 24 सफेद हाथी है। 
  • छठे गोल घेरे में Government of Jharkhand (झारखंड सरकार) लिखा हुआ है।

प्रतीक चिन्ह की विशेषता :

  • हरा रंग – झारखंड की हरी भरी धरती और वनसंपदा को प्रतिबिंबित करता है 
  • हाथी – राज्य की एश्वर्य और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों और समृद्धि को दर्शाता है। 
  • पलाश का फूल – प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाता है। 
  • सौरा चित्रकारी – राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। 
  • अशोक स्तंभ – राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह होने के साथ राज्य की संप्रभुता शक्ति का द्योतक है और देश के विकास में झारखंड की भागीदारी को प्रदर्शित करता है। 

 

झारखंड का पुराना राज्य चिन्ह लागू- Feb 2002

  • 4 ‘J’ अक्षरों के बीच में अशोक चक्र 
  • झारखण्ड राज्य के पुराना राजचिह्व का डिजाइन ,राष्ट्रीय अभिकल्पना संस्थान (National institute of design),अहमदाबाद केअमिताभ पाण्डेय ने तैयार किया था.

  • झारखंड –झार/झाड़ (वन)+ खण्ड (प्रदेश) ,झारखंड का अर्थ है- वन प्रदेश 
  • इस क्षेत्र का प्रथम साहित्यिक उल्लेख ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ में  पुण्ड/ पुण्ड्र नाम से मिलता है।
  • इस क्षेत्र का प्रथम पुरातात्विक उल्लेख 13वीं सदी ई. के एक ताम्रपत्र में  झारखंड नाम से मिलता है।  
  • जनजातियों की अधिकता के कारण झारखण्ड को ‘कर्कखण्ड’ भी कहा जाता है।

स्रोत 

नाम 

ऐतरेय ब्राह्मण

प्रथम साहित्यिक उल्लेख

पुण्ड्र या पुण्ड

प्रथम पुरातात्विक उल्लेख 

13वीं सदी ई. के एक ताम्रपत्र में

झारखंड

ऋगवेद

कीकाटानाम देशो अनार्थ 

अथर्ववेद

व्रात्य 

वायु पुराण

मुरण्ड 

मुरुण्ड-समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति

विष्णु पुराण

मुण्ड

मुण्डल-टॉलमी द्वारा

भागवत पुराण

किक्कट प्रदेश

महाभारत (दिग्विजय पर्व में)

पुण्डरीक

महाभारत 

पशुभूमि

कौटिल्य का अर्थशास्त्र

कुकुट / कुकुटदेश

पूर्वमध्यकालीन संस्कृत साहित्य 

कलिंद देश

  1. 13वीं सदी के ताम्रपत्र में
  2. तारीख-ए-फिरोजशाही
  3. तारीख-ए-बंग्ला
  4. सियार-उल-मुतखरीन
  5. कबीर के दोहे में
  6. मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा (पद्मावत में)
  7. अकबरनामा
  8. नरसिंहदेव द्वितीय के ताम्रपत्र में

झारखण्ड

आईने-अकबरी

कोकरा / खंकराह 

फाहियान 

कुक्कुटलाड

ह्वेनसांग

की-लो-ना-सु-का-ला-ना  

कर्णसुवर्ण

मुगल काल

खुखरा / कुकरा 

तुजुक-ए-जहाँगीरी

खोखरा 

ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में 

छोटानागपुर

छोटानागपुर  

  • छोटानागपुर, झारखंड का सबसे बड़ा भाग है। 
  • चीनी यात्री फाहियान ने अपने यात्रा-वृतांत ‘फो-को-क्वी’ में छोटानागपुर पठार को कुक्कुटलाड कहा है।
  •  एक दूसरे चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा-वृतान्त ‘सी-यू-की’ में छोटानागपुर पठार को किलो-ना-सु -का-ला-ना (अथात  ‘कर्ण सुवर्ण’ ) कहा है। 
  • मध्यकाल में राँची क्षेत्र कोकरा/खोखरा के नाम से जाना जाता था। 
  • क्षेत्र धीरे-धीरे चुटियानागपुर, चुटानागपुर या सामान्यतः छोटानागपुर के नाम से जाना जाने लगा 
  • ब्रिटिश शासन काल के दौरान 1765 ई. से 1833 ई. तक इस क्षेत्र के लिए छोटानागपुर नाम प्रयुक्त होता रहा।
  •  1834 (1833)ई. में अंग्रेजों ने इसे दक्षिण-पश्चिमी सीमांत एजेंसी (South-Western Frontier Agency-SWFA) के रूप में गठित किया जिसका मुख्यालय विलिकिंसनगंज या विशुनपुर (बाद का राँची) को बनाया।

संथाल परगना 

  • संथाल परगना, झारखंड का दूसरा सबसे बड़ा भाग है।
  •  इस क्षेत्र का प्राचीनतम नाम नरीखंड है। 
  • बाद में इसे कांकजोल कहा जाने लगा।
  •  ह्वेनसांग ने संथाल परगना के मुख्य क्षेत्र राजमहल का उल्लेख कि-चिंग-कोई-लो के नाम से किया है।
  •  राजमहल नामकरण मध्य काल में हुआ। 
  • संथाल परगना के एक भाग को दामिन-ए-कोह (अर्थात पहाड़ी अंचल) कहा जाता था। 
  • कैप्टन टैनर के सर्वेक्षण के आधार पर 1824(1832) ई. में दामिन-ए-कोह की स्थापना हुयी थी।
  • वैदिक साहित्य में झारखण्ड की जनजातियों के लिए असुर शब्द का प्रयोग किया गया है। 
  • ऋग्वेद में असुरों को ‘लिंग पूजक’ या ‘शिशनों का देव‘ कहा गया है।
  • बुकानन ने बनारस से लेकर बीरभूम तक के पठारी क्षेत्र को झारखण्ड के रूप में वर्णित किया है। 
  • महाभारत काल में झारखण्ड सम्राट जरासंध के अधिकार क्षेत्र में था। 

झारखण्ड में आदिवासियों का प्रवेश 

असुर

  • झारखण्ड की प्राचीनतम जनजाति 

बिरजिया, बिरहोर,खड़िया

  • कैमूर की पहाड़ियों से छोटानागपुर में प्रवेश 

मुण्डा, उराँव, हो

  • उराँव झारखण्ड में राजमहल तथा पलामू नामक दो शाखाओं में बसे थे। 

चेरो, खरवार, संथाल

  • चेरो खरवार एवं संथाल जनजाति का आगमन झारखंड में सबसे बाद में  1000 ई.पू. में हुआ

 

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