उच्च न्यायालय (High Court )
- संविधान के भाग छह में अनुच्छेद 214 से 231 तक उच्च न्यायालयों के बारे में बताया गया है।
- भारत के संविधान में प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है
- 7वें संशोधन अधिनियम, 1956 में संसद को अधिकार दिया गया कि वह दो या दो से अधिक राज्यों एवं एक संघ राज्य क्षेत्र के लिए एक साझा उच्च न्यायालय की स्थापना कर सकती है।
- इस समय देश में 25 उच्च न्यायालय हैं। इनमें से चार साझा उच्च न्यायालय हैं।
- संसद किसी संघ राज्य क्षेत्र को एक उच्च न्यायालय के न्यायिक क्षेत्र के अधीन या बाहर कर सकती है।
उच्च न्यायालय का संगठन
- प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायधीश और अन्य न्यायधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं ।
- संविधान में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या के बारे में कुछ नहीं बताया गया है।
- इसे राष्ट्रपति के विवेक पर छोड़ दिया गया है। तद्नुसार, राष्ट्रपति इनकी संख्या निर्धारित करते हैं।
न्यायाधीशों की नियुक्ति
- उच्च न्यायालयों के न्यायधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वाराकी जाती है।
- मुख्य न्यायधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा, भारत के मुख्य न्यायधीश और संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्शके बाद की जाती है।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति पर उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दो वरीयतम न्यायाधीशों से परामर्शकरना चाहिए।
- अन्य न्यायधीशों की नियुक्ति में संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश से भी परामर्श किया जाता है।
- दो या अधिक राज्यों के साझा उच्च न्यायालय में नियुक्ति में राष्ट्रपति सभी संबंधित राज्यों के राज्यपालों से भी परामर्श करता है।
- 99वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 तथा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोगअधिनियम 2014 द्वारा सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कार्यरत कॉलेजियम सिस्टम को एक नये निकाय राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC-National Judicial Appointments Commission) से प्रतिस्थापित किया गया है।
- लेकिन 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने 99वें संविधान संशोधन तथा NJAC एक्ट, दोनों को असंवैधानिक घोषित कर दिया है।
- वर्तमान में पुराना कौलेजियम सिस्टम पुनः अस्तित्व में है।
न्यायाधीशों की योग्यताएं
- वह भारत का नागरिक हो।
- उसे भारत के न्याययिक कार्य में 10 वर्ष का अनुभवहो,
- वह उच्च न्यायालय या न्यायालय में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो।
- संविधान में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए कोई न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
शपथ अथवा प्रतिज्ञान
- उसे शपथ राज्य के राज्यपाल या उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा दिलाया जाता है।
न्यायाधीशों का कार्यकाल
- संविधान में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल निर्धारित नहीं किया गया है।
- 62 वर्ष की आयु तक पद पर रहता है।
- उसकी आयु के संबंध निर्णय राष्ट्रपति,भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करता है। इस संबंध में राष्ट्रपति का निर्णय अंतिम होता हैं।
2. त्यागपत्र -राष्ट्रपति
3. संसद की सिफारिश से राष्ट्रपति द्वारा उसे पद से हटा सकता है।
4. उसकी नियुक्ति उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में हो जाने पर या उसका किसी दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरण हो जाने पर वह पद छोड़ देता है ।
न्यायाधीशों को हटाना
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को राष्ट्रपति के आदेश से पद से जा सकता है।
- राष्ट्रपति न्यायधीश को हटाने का आदेश संसद द्वारा उसी सत्र में पारित प्रस्ताव के आधार पर ही जारी कर सकता है।
- प्रस्ताव को विशेष बहुमत के साथ संसद के प्रत्येक सदन का समर्थन (इस प्रस्ताव को उस सदन के कुल सदस्यों के बहुमत का समर्थन और उस सदन में मौजूद और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई का समर्थन) मिलना आवश्यक है।
- हटाने के दो आधार सिद्ध कदाचार और अक्षमता।
- इस तरह, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की तरह ही उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसी प्रक्रिया और आधारों पर हटाया जा सकता है।
न्यायाधीश जांच अधिनियम (1968) में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा हटाने के निम्नलिखित नियम हैं :
वेतन एवं भत्ते
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का वेतन भत्ते,को संसद द्वारा निर्धारित किया जाता है।
- सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश को उनके अंतिम माह के वेतन का 50 प्रतिशत प्रतिमाह पेंशन पाने के हकदार हैं।
- वेतन एवं भत्ते और उच्च न्यायालय का प्रशासनिक खर्चा संबंधित राज्य की संचित निधि पर भारित होते हैं।राज्य विधानमंडल में इस पर कोई मतदान नहीं हो सकता है।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की पेंशन भारत की संचित निधि से दी जाती है, न कि राज्य की संचित निधि से।
न्यायाधीशों का स्थानांतरण
- भारत के मुख्य न्यायाधीश का स्थानांतरण एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में राष्ट्रपति द्वारा ,भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद कर सकता है।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के स्थानांतरण मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश को निम्न से परामर्श करना चाहिए।
- उच्चतम न्यायालय चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों,
- दो उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों (एक वहां के, जहां से न्यायाधीश का स्थानांतरण हो रहा है, एक वहां के, जहां वह जा रहा हो) परामर्श करना चाहिए। इस तरह एकमात्र भारत के मुख्य न्यायाधीश की राय से ही परामर्श प्रक्रिया पूरी नहीं होती है।
- न्यायाधीशों के स्थानांतरण की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है लेकिन वही न्यायाधीश इस मामले को चुनौती दे सकता है जिसे स्थानांतरित किया गया है।
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश
- किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उस उच्च न्यायालय का कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति नियुक्त कर सकता है, जबः
- 1. उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो, या
- 2. उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अस्थायी रूप से अनुपस्थित हो, या
- 3. यदि मुख्य न्यायाधीश अपने कार्य निर्वहन में अक्षम हो।
अतिरिक्त और कार्यकारी न्यायाधीश
- राष्ट्रपति निम्नालिखित परिस्थितियों में योग्य व्यक्तियों को उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीशों के रूप में अस्थायी रूप से नियुक्त कर सकते हैं, जिसकी अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होगी:
- 1. यदि अस्थायी रूप से उच्च न्यायालय का कामकाज बढ़ गया हो, या
- 2. उच्च न्यायालय में बकाया कार्य अधिक है।
- राष्ट्रपति उस स्थिति में भी योग्य व्यक्तियों को किसी उच्च न्यायालय का कार्यकारी न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है जब उच्च न्यायालय का न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश के अलावा):
- 1. अनुपस्थिति या अन्य कारणों से अपने कार्यों का निष्पादन करने में असमर्थ हो,
- 2. किसी न्यायाधीश को अस्थायी तौर पर संबंधित उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया हो।
- कार्यकारी न्यायाधीश तब तक कार्य करता है, जब तक कि स्थायी न्यायाधीश अपना पदभार न संभालें। हालांकि अतिरिक्त या कार्यकारी न्यायाधीश 62 वर्ष की उम्र से के पश्चात पद पर नहीं रह सकता।
सेवानिवृत्त न्यायाधीश
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश किसी भी समय उस उच्च न्यायालय अथवा किसी अन्य उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अस्थायी अवधि के लिए बतौर कार्यकारी न्यायाधीश काम करने के लिए कह सकते हैं।
- वह ऐसा राष्ट्रपति की पूर्व संस्तुति एवं संबंधित व्यक्ति की मंजूरी के बाद ही कर सकता है।
- ऐसे न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा तय भत्तों का अधिकारी होता है।
न्यायाधीशों के कार्य पर चर्चा नहीं की जा सकतीः
- संविधान एक उच्च न्यायालय के न्यायधीश के आचरण पर संसद अथवा राज्य विधानमंडल में चर्चा पर प्रतिबंध लगाता है सिवाय उस स्थिति के जब संसद में महाभियोग प्रस्ताव विचाराधीन हो।
सेवानिवृत्ति के बाद वकालत पर प्रतिबंधः उच्च
- न्यायालय का सेवानिवृत स्थायी न्यायाधीश भारत में उच्चतम न्यायालय और अन्य उच्च न्यायालयों के अलावा किसी भी अन्य न्यायालय में अथवा प्राधिकारी के सामने बहस अथवा कार्य नहीं कर सकता।
अपनी अवमानना के लिए दंड देने की शक्तिः उच्च
- न्यायालय किसी भी व्यक्ति को अपनी अवमानना के को लिए दंड दे सकता है। इस प्रकार, कोई भी इसके कार्यों और निर्णयों की आलोचना या विरोध नहीं कर सकता।
अपने कर्मचारियों की नियुक्ति की स्वतंत्रताः
- उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अपने अधिकारियों एवं कर्मचारियों की उच्च न्यायालय में बिना कार्यपालिका के हस्तक्षेप के नियुक्ति कर सकता है ।
इसके न्यायिक क्षेत्र में कटौती नहीं की जा सकती:
- उच्च न्यायालय की न्यायिक क्षेत्र और न्यायिक शक्तियों को न तो संसद द्वारा और न ही राज्य विधानमंडल द्वारा कम किया जा सकता है।
- लेकिन अन्य मामलों में इसके न्यायिक क्षेत्र एवं शक्ति को संसद एवं विधानमंडल द्वारा परिवर्तित किया जा सकता
उच्च न्यायालय का न्याय क्षेत्र एवं शक्तियां
- यह राज्य में अपील करने का सर्वोच्च न्यायालय होता है।
- यह नागरिकों के मूल अधिकारों का रक्षक होता है।
- इसके पास संविधान की व्याख्या करने का अधिकार होता है।
- इसकी पर्यवेक्षक एवं सलाहकार की भूमिका होती है।
वर्तमान में उच्च न्यायालयों को निम्नलिखित न्यायिक क्षेत्र और शक्तियां प्राप्त हैं:
1. प्रारंभिक क्षेत्राधिकार
- इसका अर्थ है उच्च न्यायालय की विवादों की प्रथम दृष्टया सुनवाई सीधे, न कि अपील के जरिए, करने का अधिकार है,
2. रिट क्षेत्राधिकार
- संविधान का अनुच्छेद 226 एक उच्च न्यायालय को नागरिकों के मूल अधिकारों के प्रवर्तन और अन्य किसी उद्देश्य के लिए
- बंदी प्रत्यक्षीकरण(Habeas Corpus)
- परमादेश(Mandamus)
- उत्प्रेषण(Certiorari)
- प्रतिषेध (Prohibition)
- अधिकार प्रेच्छा। (Quo-warrento)
- किसी अन्य उद्देश्य के लिए का अर्थ है एक सामान्य कानूनी अधिकार का प्रवर्तन।
- उच्च न्यायालय किसी भी व्यक्ति, प्राधिकरण और सरकार को, अपने राज्यक्षेत्र की क्षेत्राधिकार के सीमाओं के अंदर ही नहीं बल्कि इसके बाहर भी ऐसा न्यायादेश दे सकता है। यदि न्यायादेश देने का कारण इसके क्षेत्राधिकार के राज्यक्षेत्र की सीमाओं में है
- उच्च न्यायालय का रिट जारी करने की शक्तिउच्चतम न्यायालय से ज्यादा विस्तारित है। क्योंकि उच्चतम न्यायालय सिर्फ मूल अधिकारों के प्रवर्तन संबंधी आदेश दे सकता है न कि किसी अन्य प्रयोजन के लिए.
- उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार संविधान के मूल ढांचे के अंग है। इसका तात्पर्य है कि संविधान संशोधन के जरिए भी इसमें कुछ जोड़ा या घटाया नहीं जा सकता।
3. अपीलीय क्षेत्राधिकार
- उच्च न्यायालय मूलत: एक अपीलीय न्यायालय है।
- उच्च न्यायालय में राज्य क्षेत्र के तहत आने वाले अधीनस्थ न्यायालयों के आदेशों के विरुद्ध अपील की सुनवाई होती है।
- यहां दोनों तरह के सिविल एवं आपराधिक मामलों के, बारे में अपील होती है।
4. पर्यवेक्षीय क्षेत्राधिकार
- उच्च न्यायालय को अधिकार है कि वह अपने क्षेत्राधिकार के क्षेत्र के सभी न्यायालयों व सहायक न्यायालयों के क्रियाकलापों पर नजर रखे (सिवाय सैन्य न्यायालयों और अभिकरणों के)।
5. अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण
- जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति में राज्यपाल उच्च न्यायालय से परामर्श लेता।
- यह अधीनस्थ न्यायालय में लंबित किसी मामले को वापस ले सकता है या तो इस मामले को निपटा सकता है या अपने निर्णय के साथ मामले को संबंधित न्यायालय को लौटा सकता है।
- जैसे उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित कानून को मानने के लिए भारत के सभी न्यायालय बाध्य होते हैं, उसी प्रकार उच्च न्यायालय के कानून को उन सभी अधीनस्थ न्यायालयों को मानने की बाध्यता होती है, जो उसके न्यायिक क्षेत्र में आते हैं।
6. अभिलेख न्यायालय
अभिलेख न्यायालय के रूप में उच्च न्यायालय के पास दो शक्तियां हैं:
(अ) उच्च न्यायालय के फैसले, कार्यवाही और कार्य साक्ष्य के लिए रखे जाते हैं ।
- इन अभिलेखों को साक्ष्य के तौर पर रखा जाता है और अधीनस्थ न्यायालयों में कार्यवाही के समय इन साक्ष्य पर सवाल नहीं उठाए जा सकते।
(ब) इसे न्यायालय की अवमानना पर साधारण कारावास या आर्थिक दंड या दोनों प्रकार के दंड देने का अधिकार है।
- न्यायालय की अवमानना पद को संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है।
- न्यायालय की अवहेलना अधिनियम 1971 में इसे परिभाषित किया गया है।
- इसके तहत अवहेलना दीवानी अथवा आपराधिक किसी भी प्रकार की हो सकती है।
- उच्च न्यायालय को अपने स्वयं के आदेश अथवा निर्णय की समीक्षा की और उसमें सुधार की शक्ति भी उसे प्राप्त है। इस संबंध में संविधान द्वारा इसे कोई विशिष्ट शक्ति प्रदान नहीं की गयी है।
- उच्चतम न्यायालय को संविधान ने विशिष्ट रूप से अपने निर्णयों की समीक्षा करने की शक्ति प्रदान की है।
7. न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति
- उच्च न्यायालय की न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति राज्य विधानमंडल व केंद्र सरकार दोनों के अधिनियमनों और कार्यकारी आदेशों की संवैधानिकता के परीक्षण के लिए है।
- न्यायिक समीक्षा का प्रयोग संविधान में कहीं भी नहीं किया गया है लेकिन अनुच्छेद 13 और 226 में उच्च न्यायालय द्वारा समीक्षा के उपबंध स्पष्ट हैं।
- संवैधानिक वैधता के मामले में विधायी अधिनियमनों अथवा कार्यपालिका के आदेशों को निम्नलिखित आधारों पर चुनौती दी जा सकती है:
- (अ) मौलिक अधिकारों का हनन (भाग तीन)
- (ब) जिस प्राधिकरण के कार्य क्षेत्र से बाहर है
- (स) संवैधानिक उपबंधों के विरुद्ध हो।