भारत में राजनीतिक चेतना का विकास

भारत में आधुनिक शिक्षा का विकास 

  • वारेन हेस्टिंग्स ने 1781 में अरबी व फारसी भाषा के अध्ययन हेतु कलकत्ता मदरसा की स्थापना की। 
  • 1784 में सर विलियम जोन्स ने कलकत्ता में ‘एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल‘ की स्थापना की। 
  • चार्ल्स विल्किंस ने भगवद्गीता का अंग्रेजी अनुवाद किया। 
  • विलियम जोंस द्वारा कालिदास कृत अभिज्ञानशाकुंतलम् का अंग्रेजी अनुवाद किया गया। 
  • बनारस के ब्रिटिश रेजिडेंट जोनाथन डंकन के प्रयास से 1791 में बनारस में संस्कृत कॉलेज की स्थापना की गई।
  •  लॉर्ड वेलेजली ने कंपनी के असैन्य अधिकारियों की शिक्षा के लिये 1800 में कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की। 
  •  ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक प्रयास 1813 के चार्टर अधिनियम के तहत शुरू किया गया। 1813 के चार्टर एक्ट में गवर्नर जनरल को अधिकार दिया गया कि वह एक लाख रुपये, साहित्य के पुनरुद्धार और विज्ञान व दर्शन की शिक्षा प्रदान करने हेतु खर्च करें। 
  • राजा राममोहन राय तथा डेविड हेयर के प्रयत्नों से 1817 में बना हिंदू कॉलेज (कलकत्ता) पाश्चात्य पद्धति पर उच्च शिक्षा देने का प्रथम कॉलेज था।
  • सरकार ने कलकत्ता, आगरा और बनारस में तीन संस्कृत कॉलेजों  को स्थापना करवाई । 

आंग्ल-प्राच्य विवाद

Orientalist Anglicist controversy

  • लोक (सार्वजनिक) शिक्षा समिति में 10 यूरोपीय सदस्य शामिल थे | समिति केदो गुट बन गए थे, 
    • प्राच्य शिक्षा समर्थक 
    • आंग्ल/पाश्चात्य शिक्षा समर्थक 

प्राच्यवादी वर्ग (Oriental Class)

आंग्ल/पाश्चात्य शिक्षा समर्थक

(i) भारतीय भाषाओं अर्थात् संस्कृत, हिन्दी और अरबी आदि के माध्यम से शिक्षा दी जाये। 

(ii) भारतीय साहित्यों एवं ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा दी जाये। 

(iii) भारतीयों को पाश्चात्य् ज्ञान-विज्ञान का सामान्य ज्ञान कराया जाए।

(i) प्राच्य शिक्षा-पद्धति मरणासन्न है और उसको पुनर्जीवित करना असंभव है। 

(ii)अरबी-फारसी और संस्कृत साहित्य में रूढ़िवादी एवं संकुचित विचारों के अतिरिक्त कोई लाभप्रद ज्ञान नहीं है। 

  • प्राच्य विद्या के समर्थक लोगों का नेतृत्व समिति के सचिव एच.टी प्रिंसेप ने किया, जिनका समर्थन समिति के मंत्री एच.एच. विल्सन ने भी किया। 
  • पाश्चात्य या आंग्ल शिक्षा समर्थकों का नेतत्व मुनरो व एलिफिंस्टन ने किया। इनका समर्थन लॉर्ड मैकाले ने भी किया। 
  • प्राच्य-पाश्चात्य विवाद की बढ़ती उग्रता देख तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने अपनी काउंसिल के विधि सदस्य लॉर्ड मैकाले को लोक शिक्षा समिति का प्रधान नियुक्त कर उन्हें भाषा संबंधी विवाद पर अपना विवरण-पत्र प्रस्तुत करने को कहा। 
  •  2 फरवरी, 1835 को मैकाले ने आंग्ल दल का समर्थन किया व उसने अंग्रेजी भाषा साहित्य की प्रशंसा करते हुए भारतीय भाषा व साहित्य की आलोचना की और कहा कि “यूरोप के एक अच्छे पुस्तकालय की आलमारी का एक कक्ष भारत एवं अरब के समस्त साहित्य से ज़्यादा मूल्यवान है।” 
  • मैकाले भारत में अंग्रेज़ी शिक्षा के माध्यम से ऐसा वर्ग तैयार करना चाहता था, जो रक्त व रंग से भले ही भारतीय हो, परंतु विचार अंग्रेज़ों जैसी हो अर्थात् वह “काली चमड़ी में अंग्रेजों का एक वर्ग चाहता था।” 
  •  मैकाले के इन सुझावों के बाद सरकार ने स्कूलों व कॉलेजों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बना दिया।

शिक्षा का अधोमुखी निस्यंदन सिद्धांत(downward filtration theory of education )

  • शिक्षा के अधोमुखी निस्यंदन सिद्धांत का मतलब यह था कि शिक्षा समाज के उच्च वर्ग को ही दी जाए, इस वर्ग के शिक्षित होने पर शिक्षा का प्रभाव छन-छन कर जनसाधारण तक पहुँचेगा। 

वुड घोषणा-पत्र (1854) 

  • सर चार्ल्स वुड ने 1854 में भारत की शिक्षा नीति की योजना बनाई 
  • इसे  ‘भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा’ कहा जाता है, जिसमें अखिल भारतीय स्तर पर शिक्षा की नियामक पद्धति का गठन किया गया। 

 इसकी सिफारिशें निम्नलिखित थीं

  • जनसाधारण की शिक्षा का दायित्व सरकार द्वारा वहन किया जाए। 
  •  सरकार पाश्चात्य शिक्षा, कला, दर्शन, विज्ञान और साहित्य का प्रसार करे। 
  •  उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी हो, लेकिन देशी भाषाओं को भी प्रोत्साहित किया जाए। 
  •  देशी भाषायी प्राथमिक पाठशालाएँ स्थापित की जाएँ और उनके ऊपर (जिला स्तर) आंग्ल-देशी भाषायी हाई स्कूल और संबंधित कॉलेजों की स्थापना की जाए। 
  •  Teachers  के training हेतु Teacher training institutions की स्थापना की जाए। 
  • महिला शिक्षा को प्रोत्साहन । बेथून के प्रयत्नों द्वारा महिला पाठशालाओं की स्थापना भी की गई। 
  • शिक्षा क्षेत्र में निजी प्रयासों को प्रोत्साहन हेतु अनुदान सहायता (Grants-in-Aid) । 
  • प्रत्येक प्रांत में पृथक् लोक शिक्षा विभाग की स्थापना की जाए। 
  • लंदन विश्वविद्यालय के आधार पर कलकत्ता, बंबई और मद्रास में तीन विश्वविद्यालय 1857 में स्थापित । 
  • 1855 में एक पृथक् शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। भारत की शिक्षा का ढाँचा पाश्चात्य शिक्षा पद्धति के आधार पर विकसित हुआ और प्राचीन शिक्षा पद्धति नष्ट होती चली गई।
  • 1870 में शिक्षा को प्रांतीय विषय बना दिया गया। 

Bethune College

  • बेथ्यून कॉलेज कोलकाता में स्थित एक महिला कॉलेज है,
  • यह भारत का सबसे पुराना महिला कॉलेज है।
  • यह 1849 में लड़कियों के स्कूल के रूप में और 1879 में एक कॉलेज के रूप में स्थापित किया गया था।
  • कॉलेज की स्थापना 1849 में जॉन इलियट बेथ्यून द्वारा कलकत्ता महिला स्कूल के रूप में की गई थी

हंटर आयोग (1882-83) 

  • सरकार ने 1882 में डब्ल्यू.डब्ल्यू. हंटर की अध्यक्षता में शिक्षा का मूल्यांकन करने हेतु एक आयोग गठित किया। 
  • यह आयोग प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा के प्रसार के लिये आवश्यक सुझाव हेतु गठित किया गया था। 

भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 (कर्ज़न की शिक्षा नीति)

  • 1901 में कर्जन ने शिमला में एक सम्मेलन बुलाया। 
  • 1902 में ‘टॉमस रैले’ की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय आयोग का गठन किया गया। 
  •  अधिनियम की सिफारिशें निम्नलिखित थीं. 
    • विश्वविद्यालय के उप सदस्यों (Fellows) की संख्या 50 से कम तथा 100 से अधिक नहीं होनी चाहिये, जिनका कार्यकाल 6 वर्ष का होगा। उपसदस्य सरकार द्वारा मनोनीत होने चाहिये। 
    • विश्वविद्यालय की सीनेट द्वारा पारित प्रस्ताव पर वीटो का अधिकार (निषेधाधिकार) संरकार को दिया गया। 
    • इस अधिनियम द्वारा Private College पर सरकारी नियंत्रण कठोर हो गया। 
    • कॉलेजों को विश्वविद्यालय से affiliated कराने का अधिकार सरकार ने अपने जिम्मे ले लिया। 
    • विश्वविद्यालयों के उत्थान हेतु 5 लाख/वर्ष की दर से राशि5 वर्ष के लिये स्वीकृत की गई। 
  • गोपाल कृष्ण गोखले ने इसे ‘राष्ट्रीय शिक्षा को पीछे की ओर ले जाने वाला अधिनियम‘ की संज्ञा दी। 

सैडलर आयोग (1917) 

  • 1917 में सरकार ने डॉ. माइकल सैडलर के नेतृत्व में विश्वविद्यालय की समस्याओं के अध्ययन हेतु एक आयोग नियुक्त किया। 
  • आयोग के दो अन्य भारतीय सदस्य आशुतोष मुखर्जी व डॉ.ज़ियाउद्दीन अहमद थे। 
  • सैडलर आयोग द्वारा 1904 के विश्वविद्यालय अधिनियम की कड़ी आलोचना करते हुए निम्न सिफारिशें प्रस्तुत की गईं. 
    • स्कूल की शिक्षा 12 वर्ष की होनी चाहिये। 
    • हाई स्कूल की परीक्षा के पश्चात् विद्यार्थी 2 वर्ष तक इंटरमीडिएट में शिक्षा प्राप्त करें। 
    •  इस शिक्षा व्यवस्था हेतु प्रत्येक प्रांत में हाई स्कूल बोर्ड व इंटरमीडिएट बोर्ड की स्थापना की जाए। 
    • स्नातकीय शिक्षा (Degree Course) अधिकतम 3 वर्ष की हो। बी.ए. साधारण (Pass) पाठ्यक्रम, ऑनर्स (Honours) पाठ्यक्रम अलग-अलग होने चाहिये। 
    • विश्वविद्यालयों को व्यावसायिक कॉलेज भी खोलने चाहिये। 
    • सैडलर आयोग रिपोर्ट पर मैसूर, पटना, बनारस, अलीगढ़, ढाका, लखनऊ और हैदराबाद में विश्वविद्यालय स्थापित किये गए।

स्थापना वर्ष 

Indian Institute of Technology, Roorkee(Uttarakhand)

1847

कलकत्ता विश्वविद्यालय

1857

बॉम्बे विश्वविद्यालय

1857

मद्रास विश्वविद्यालय

1857

Aligarh Muslim University

1875

Sir Syed Ahmad Khan

Allahabad University

1875

द्वैध शासन के अंतर्गत शिक्षा 

  • 1919 के मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के अंतर्गत शिक्षा विभाग, प्रांतीय सरकारों को हस्तांतरित कर दिया गया 
  • शिक्षा के लिए केंद्रीय अनुदान भी बंद कर दिया गया। 

हार्तोंग  समिति (1929)

  • भारतीय परिनियत आयोग (Indian Statutory Commission) की अनुशंसा पर 1929 में सर फिलिप हार्तोंग की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई। 

सिफारिशें 

  • प्राथमिक शिक्षा पर बल दिया । 
  • उन्हीं को उच्च शिक्षा दी जाए जो योग्य हों अर्थात् ग्रामीण प्रवृत्ति के विद्यार्थियों को महाविद्यालयी शिक्षा प्राप्त करने से रोक देना चाहिये। 
  • ग्रामीण प्रवृत्ति (Rural Pursuits) के छात्रों को मिडिल स्कूल तक ही शिक्षा दी जाए, इसके बाद उन्हें औद्योगिक एवं व्यावसायिक शिक्षा दी जाए।

वर्धा योजना (1937) 

  • इस योजना का मूलभूत सिद्धांत ‘हस्त उत्पादक कार्य था। 
  •  डॉ. जाकिर हुसैन समिति ने इस योजना का ब्यौरा प्रस्तुत किया ।
  • द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ होने पर तथा प्रांतीय मंत्रिमंडलों के त्यागपत्र से इस योजना को लागू नहीं किया जा सका।

सिफारिशें 

  • प्रथम 7 वर्ष तक के बच्चों के लिये उनकी मातृभाषा में नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था हो।

सार्जेंट योजना (1944)

  • 1944 में सर जॉन सार्जेंट ने शिक्षा पर एक महत्त्वपूर्ण योजना पेश की, जिसकी सिफारिशें इस प्रकार थीं
  • देश में प्राथमिक विद्यालय, उच्च माध्यमिक विद्यालय स्थापित किये जाएँ। 
  • 6 से 11 वर्ष तक के बच्चो के लिये निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था हो। 
  • 11 से 17 वर्ष की उम्र तक के लिये 6 वर्ष की अतिरिक्त शिक्षा की व्यवस्था हो। 
  • समिति ने उच्चतर विद्यालयों की स्थापना की भी बात कही थी, जो दो प्रकार से प्रस्तावित थे
    • 1. विद्या विषयक 
    • 2. तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा हेतु
  • सार्जेंट योजना के अंतर्गत 40 वर्षों के भीतर देश में शिक्षा के पुनर्निर्माण का कार्य पूरा होना था। 
  • खेर समिति(7 जून, 1955 की श्री बी. जी. खेर की अध्यक्षता में राजभाषा आयोग नियुक्त) ने इस अवधि को घटाकर मात्र 16 वर्ष कर दिया।

भारतीय समाचार पत्रों का इतिहास

  •  पुर्तगालियों के आगमन से भारत में समाचार पत्रों का विकास हुआ। 
  • सर्वप्रथम पुर्तगाली मुद्रणालय (प्रिटिंग प्रेस) भारत में लाए। 
  •  गोवा के पादरियों ने 1557 में पहली पुस्तक भारत में छापी। 
  •  1684 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंबई में एक मुद्रणालय की स्थापना की। 
  • 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने भारत में पहला समाचार पत्र प्रकाशित किया, जिसका नाम ‘द बंगाल गजट’ अथवा ‘द कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर‘ था। 

समाचार पत्रों का पत्रेक्षण (सेंसरशिप) अधिनियम (1799) 

  •  लॉर्ड वेलेजली ने सभी समाचार पत्रों पर सेंसर लगा दिया
  • सभी समाचार पत्र अपने मालिक, संपादक, मुद्रक का नाम समाचार पत्रों में छापें। 
  • समाचार पत्रों को प्रकाशन पूर्व, सरकार के सचिव के पास पूर्व पत्रेक्षण (Pre-censorship) के लिये भेजना होगा । 
  • 1818 में समाचार पत्रों की पूर्व पत्रेक्षण (pre-censorship) समाप्त कर दी गई। 

1823 का अनुज्ञप्ति नियम (The Licensing Regulations of 1823) 

  • 1823 में जॉन एडम्स के कार्यवाहक गवर्नर जनरल बनने के बाद भारतीय प्रेस पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया गया। 
  •  इस अधिनियम के अनुसार, मुद्रक तथा प्रकाशक को मुद्रणालय स्थापित करने के लिये अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) लेनी होगी। 
  • नोटः इस नियमानुसार राजा राममोहन राय को पत्रिका ‘मिरात-उल-अखबार’  का प्रकाशन बंद करना पड़ा।

1835 का प्रेस अधिनियम या मेटकॉफ अधिनियम 

  • गवर्नर जनरल चार्ल्स मेटकॉफ (1835-36) ने 1823 के अनुज्ञप्ति लाइसेंस नियम को रद्द कर दिया। 
  •  इस प्रयास के कारण मेटकॉफ को ‘भारतीय समाचार पत्रों का मुक्तिदाता कहा जाता है। 
  • 1835 के अधिनियम के अनुसार प्रकाशक, मुद्रक केवल प्रकाशन के स्थान की सूचना देकर कार्य कर सकता था। 
  • 1856 तक यह कानून चलता रहा और इस अवधि में देश में समाचारों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई।

1857 का अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) अधिनियम

  • इस अधिनियम के अनुसार, बिना लाइसेंस के मुद्रणालय स्थापित नहीं किया जा सकता था। 
  • सरकार  मुद्रणालय केलाइसेंस को रद्द भी कर सकती थी।
  • संकटकालीन अधिनियम था। अतः 1 वर्ष बाद इसे समाप्त कर दिया गया। 

पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) अधिनियम, 1867

  • इस अधिनियम के द्वारा प्रेस एवं समाचार पत्रों को प्रतिबंधित न करके उन्हें नियमित किया गया। 
  •  यह अनिवार्य कर दिया कि मुद्रित सामग्री पर मुद्रक, प्रकाशक तथा मुद्रण स्थान का नाम अवश्य उल्लेखित हो एवं इसके प्रकाशन के एक माह के भीतर पुस्तक की एक प्रति सरकार को देनी आवश्यक थी। 

देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम, 1878 /(वर्नाकुलर प्रेस एक्ट) 

  • सरकार ने देशी भाषा के समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने के लिये यह अधिनियम पारित किया।
  • जिला दंडनायक (District Magistrate) को किसी भारतीय भाषा के समाचार पत्र को आज्ञा देने का आदेश दे दिया कि वे बंधन पत्र पर हस्ताक्षर करे तथा कोई ऐसा सामग्री प्रकाशित नहीं करेंगे, जिससे सरकार विरोधी भावना भडके। इसके विषय में मजिस्ट्रेट के निर्णय को अंतिम माना  गया। 
  • इसमें अंग्रेज़ी और देशी समाचार पत्रों में भेद किया गया था तथा जिला दंडनायक के निर्णय के ख़िलाफ़ आगे अपील करने का प्रावधान नहीं था। 
  • इस अधिनियम के अधीन सोम प्रकाश, भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर जैसे समाचार पत्रों के विरुद्ध मामले दर्ज किये गए। 
  • अब प्रायः देशी समाचार पत्रों में अंग्रेजी समाचार पत्र से समाचार उधार लिये जाने लगे। 
  • इस अधिनियम से बचने के लिये ‘अमृत बाज़ार पत्रिका’ रातों-रात अंग्रेजी समाचार पत्र में बदल गई। 
  •  सितंबर 1878 में तात्कालिक भारत सचिव क्रेनब्रुक ने पूर्व-सेंसर की धारा हटा दी। 
  •  लॉर्ड रिपन ने 1882 में वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया।

अमृत बाजार पत्रिका

  • अमृत बाजार पत्रिका बंगला भाषा का एक प्रमुख भारतीय समाचार पत्र है। 
  • इसका पहला प्रकाशन 20 February 1868 को हुआ था। 
  • इसकी स्थापना दो भाइयों शिषिर घोष और मोतीलाल घोष ने की थी। 
  • यह पत्रिका पहले साप्ताहिक रूप में आरम्भ हुई।
  • वर्नाकुलर प्रेस एक्ट 1878 से बचने के लिये ‘अमृत बाज़ारपत्रिकारातों-रात अंग्रेजी समाचार पत्र में बदल गई। 

समाचार पत्र अधिनियम, 1908  [Newspaper (Incitement to Offences) Act, 1908] 

  • इसके अनुसार, जो समाचार पत्र आपत्तिजनक सामग्री, जिससे लोगों को हिंसा अथवा हत्या की प्रेरणा मिलती हो, प्रकाशित करेगा, उसकी संपत्ति अथवा मुद्रणालय को ज़ब्त किया जा सकता था। 

भारतीय समाचार पत्र अधिनियम, 1910

  • भारतीय समाचार पत्र अधिनियम, 1910 ने लिटन के अधिनियम के सभी प्रावधानों को पुनर्जीवित कर दिया था। 
  • इस अधिनियम के तहत सरकार किसी समाचार पत्र के प्रकाशक से ‘पंजीकरण(Registration) एवं जमानत(Security)’ मांग सकती थी। 
  • पंजीकरण जमानत (Registration Security) की न्यूनतम राशि ₹ 500 व अधिकतम ₹ 2,000 तक हो सकती थी। 
  • सरकार इस अधिनियम के तहत पंजीकरण रद्द करने के साथ-साथ जमानत भी जब्त कर सकती थी। 
  • सरकार को पुनः पंजीकरण के लिये कम-से-कम ₹ 1,000 और ज़्यादा-से-ज्यादा ₹ 10,000 की जमानत मांगने का अधिकार था। 
  • समाचार पत्रों द्वारा पुनः आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करने पर नया पंजीकरण भी रद्द किया जा सकता था। 
  •  इस अधिनियम के शिकार समाचार पत्र 2 महीने के अंदर स्पेशल ट्रिब्यूनल के पास अपील कर सकते थे।

 प्रेस इंक्वायरी कमेटी, 1921

  •  1921 में विधि सदस्य सर तेजबहादुर सप्रू की अध्यक्षता में प्रेस इंक्वायरी कमेटी की नियुक्ति की गई।
  • प्रेस समिति की अनुशंसाओं के आधार पर समाचार पत्र अधिनियम  1908 तथा भारतीय समाचार पत्र अधिनियम, 1910 को समाप्त कर दिया गया।

भारतीय समाचार पत्र (संकटकालीन शक्तियाँ) अधिनियम, 1931 

  •  इस अधिनियम की धारा 4(1) में शब्द, संकेत अथवा आकृति द्वारा किसी की हत्या के या अन्य संज्ञेय (Cognizable) अपराध के बदले कठोर दंड की व्यवस्था की गई। 
  • 1932 में इस अधिनियम का विस्तार करके ‘क्रिमिनल एमेंडमेंट एक्ट’ लागू किया गया। 
  • इसमें वे सभी गतिविधियाँ शामिल कर दी गईं जो सरकार की प्रभुसत्ता को हानि पहुँचा सकती थी।

स्वतंत्रता के पश्चात्

  • समाचार पत्र जाँच समिति (1947) 

    • इस समिति की सिफारिशों में सम्मिलित था। 
    • 1931 के अधिनियम को रद्द करना,
    • समाचार पत्र और पुस्तकों के पंजीकरण के अधिनियम में संशोधन, 
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए और 153 ए में परिवर्तन, 
    • 1931 तथा 1934 के देशी राज्य अधिनियम को रद्द करना 

समाचार पत्र (आपत्तिजनक विषय) अधिनियम, 1951

  •  इस कानून में कार्रवाई से पहले संबंधित व्यक्ति को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार दिया  । 
  • 1954 में इस अधिनियम की जाँच के लिये प्रेस आयोग का गठन किया गया।
  •  यह कानून 1956 तक लागू रहा। 

प्रेस परिषद् अधिनियम, 1965

  • 1965 में समाचार पत्रों तथा पत्रकारों के आंतरिक नियमन हेतु ‘प्रेस परिषद् अधिनियम, 1965’ पारित किया गया। 
  • 1975 में आंतरिक आपातकाल लागू होने के बाद इसे निरसित कर दिया गया।

INDIAN PENAL CODE, 1860

  • drafted on the recommendations of first law commission of India
  • धारा 309 – आत्महत्या के प्रयास से संबंधित है,
  • धारा 497-Adultery(व्यभिचार) सुप्रीम कोर्ट ने 2018 को असंवैधानिक करार दे दिया
  • धारा 377 – same sex relations

Criminal Procedure Code (CrPC)

  • It was enacted in 1973 and came into force on 1 April 1974.

भारत में राजनीतिक चेतना का विकास