प्राचीन भारत पर विदेशी आक्रमण
- हखामनी/ईरानी आक्रमण
- यूनानी आक्रमण
हखामनी/ईरानी आक्रमण
- भारत में सर्वप्रथम विदेशी आक्रमण हखामनी वंश के राजाओं ने किया।
- इस वंश के संस्थापक साइरस द्वितीय (558 ई.पू. से 529 ई.पू.) ने भारत पर आक्रमण का असफल प्रयास किया था।
हखामनी (ईरानी) साम्राज्य के प्रमुख शासक
साइरस द्वितीय (558 ई.पू. से 529 ई.पू.)
- साइरस द्वितीय ने छठी शताब्दी ई.पू. के मध्य ईरान में हखामनी साम्राज्य की स्थापना की।
- साइरस ने सिंध के पश्चिम में भारत के सीमावर्ती क्षेत्र की विजय की। प्लिनी के विवरण से ज्ञात होता हैं कि साइरस ने कपिशा नगर को ध्वस्त किया।
- साइरस की मृत्यु कैस्पियन क्षेत्र में डरबाइक नामक एक पूर्वी जनजाति के विरुद्ध लड़ते हुए हुई तथा उसका पुत्र केम्बिसीज द्वितीय (520 ई. पू. से 522 ई. पू.) उसके साम्राज्य का उत्तराधिकारी हुआ। वह गृह युद्धों में ही उलझा रहा और उसके समय में हखामनी साम्राज्य का भारत की ओर कोई विस्तार न हो सका।
दारा प्रथम (डेरियस प्रथम) (522 ई.पू. से 486 ई.पू.)
- भारत पर आक्रमण करने में प्रथम सफलता दारा प्रथम (डेरियस प्रथम) को प्राप्त हुई।
- दारा के यूनानी सेनापति स्काईलैक्स (Scylax) ने सिंधु से भारतीय समुद्र में उतरकर अरब और मकरान तटों का पता लगाया।
- दारा प्रथम ने 516 ई. पू. में सर्वप्रथम गांधार को जीतकर फारसी साम्राज्य में मिलाया था।
- भारत का पश्चिमोत्तर भाग दारा के साम्राज्य का 20वाँ प्रांत (हेरोडोटस के अनुसार) था।
- कंबोज एवं गांधार पर भी उसका अधिकार था।
- दारा प्रथम के तीन अभिलेखों-बेहिस्तून, पर्सिपोलिस एवं नक्शेरुस्तम से यह पता चलता है कि उसी ने सर्वप्रथम सिंधु नदी के तटवर्ती भारतीय भू-भागों को अधिकृत किया।
क्षयार्ष अथवा ज़रक्सीज (लगभग 486 ई. पू. से 465 ई. पू.)
- यह दारा का पुत्र था तथा इसने अपने पिता के साम्राज्य को सुरक्षित रखा, किंतु यह यूनानियों द्वारा परास्त किया गया था।
- इसने अपनी फौज में भारतीयों को शामिल किया।
ज़रक्सीज के उत्तराधिकारी तथा पारसीक साम्राज्य का विनाश
- ज़रक्सीज की मृत्यु के पश्चात् उसके तात्कालिक उत्तराधिकारी क्रमशः अर्तज़रक्सीज प्रथम एवं अज़िरक्सीज द्वितीय हुए।
- साक्ष्यों से पता चलता है इन उत्तराधिकारियों द्वारा दारा प्रथम द्वारा निर्मित साम्राज्य को सुरक्षित रखा गया।
- पारसीकों का अंतिम सम्राट दारा तृतीय (360 ई.पू. से 330 ई.पू.) था।
- दारा तृतीय को यूनानी सिकंदर ने अरबेला/गौगामेला के युद्ध (331 ई.पू.) में बुरी तरह परास्त किया। इस प्रकार पारसीकों का विनाश हुआ।
हखामनी (ईरानी) आक्रमण का भारत पर प्रभाव
ईरानी आक्रमण का भारत पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा
- समुद्री मार्ग की खोज से विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन मिला।
- पश्चिमोत्तर भारत में दायीं से बायीं ओर लिखी जाने वाली खरोष्ठी लिपि का प्रचार हुआ। (अशोक के कुछ अभिलेख खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण हैं।)
- ईरानियों की अरमाइक लिपि का प्रचार-प्रसार हुआ।
- अभिलेख उत्कीर्ण करने की प्रथा प्रारंभ हुई।
- मौर्य वास्तुकला पर ईरानी प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है, जैसे अशोक कालीन स्मारक विशेषकर घंटे के आकार के गुंबद, कुछ हद तक ईरानी प्रतिरूपों पर आधारित थे।
- अशोक के शासनकाल की प्रस्तावना और उनमें प्रयुक्त शब्दों में भी ईरानी प्रभाव देखा जा सकता है।
यूनानी आक्रमण
सिकंदर
- फिलिप द्वितीय जो सिकंदर का पिता था, 359 ई.पू. में मकदूनिया का शासक बना। इसकी हत्या 336 ई.पू. में कर दी गई।
- पिता की मृत्यु के पश्चात् सिंकदर लगभग 20 वर्ष की अल्पायु में ही सिंहासनारूढ़ हुआ। वह अरस्तु का शिष्य था।
- यूनानी शासक (मकदूनियाई शासक) सिकंदर का भारत पर आक्रमण लगभग 326 ई.पू. में हुआ।
- भारत विजय अभियान के तहत सिकंदर 326 ई.पू. में बल्ख (बैक्ट्रिया, वर्तमान अफगानिस्तान का क्षेत्र) को जीतने के बाद काबुल होता हुआ हिंदुकुश पर्वत (खैबर दर्रा) पार कर भारत आया।
- तक्षशिला के शासक आम्भी ने आत्मसमर्पण के साथ उसका स्वागत करते हुए उसे सहयोग का वचन दिया।
- सिकंदर के आक्रमण के समय अश्वक एक सीमांत गणराज्य था जिसकी राजधानी मस्सग थी। यूनानी लेखकों के अनुसार, सिकंदर के विरुद्ध हुए युद्ध में बड़ी संख्या में पुरुष सैनिकों के मारे जाने के बाद वहाँ की स्त्रियों ने शस्त्र धारण किया था। इसी विवरण से पता चलता है कि सिकंदर ने इस नगर की समस्त स्त्रियों को मौत के घाट उतार दिया था।
- सिकंदर को पंजाब (झेलम तथा चिनाब का मध्यवर्ती क्षेत्र) के शासक पोरस के साथ युद्ध करना पड़ा, जिसे ‘हाइडेस्पीज या झेलम (वितस्ता) के युद्ध‘ के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में पोरस की पराजय हुई।
- 19 महीने तक भारत में रहने के बाद सिकंदर की सेना ने व्यास नदी के पश्चिमी तट पर पहुंचकर उसको पार करने से मना कर दिया।
- सिकंदर विजित प्रदेशों को अपने सेनापति फिलिप को सौंपकर स्थल मार्ग द्वारा 325 ई.पू. में भारत से लौट गया।
- सिकंदर ने दो नगरों की स्थापना की
- 1. निकैया – विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में।
- 2. बऊकेफला – अपने प्रिय घोड़े के नाम पर।
- सिकंदर की मृत्यु, 323 ई.पू. में बेबीलोन में 33 वर्ष की अवस्था में हो गई।
- सिकंदर के साथ आने वाले लेखकों में नियार्कस, आनेसिक्रिटस तथा अरिस्टोबुलस के विवरण अधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय हैं।
सिकंदर के आक्रमण का भारत पर प्रभाव
- प्राचीन यूरोप को प्राचीन भारत के संपर्क में आने का अवसर मिला।
- भारत और यूनान के बीच विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष संपर्क की स्थापना।
- पश्चिमोत्तर भारत के अनेक छोटे-छोटे राज्यों का एकीकरण।
- सिकंदर के अभियान से अनेक स्थल और जलमार्ग खुले जो आज भी भारतीय व्यापार में अहम योगदान दे रहे हैं।
- भारतीयों ने यूनानियों से ‘क्षत्रप प्रणाली’ और ‘मुद्रा निर्माण’ की कला को ग्रहण किया। उलूक शैली के सिक्के इसी के परिणाम थे।
- भारत में गांधार शैली की कला का विकास यूनानी प्रभाव का ही परिणाम था। इसमें भारतीय-यूनानी कला का सम्मिश्रण दिखता है।