जिनगिक डहर कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

आवा जिनगी के तनी नजिकें डांड़ाइ के देखब , दहेक भीतर हेल फुरखूँदी डुबाइ के देखब ।। पोंगापंथी डहरें जे गुला डिहइर गेला , बोंड़ाइल जिनगी आवा नजइर गाड़ाइ के देखब । फअक फुलाञ कते करभे लुगे लेपटल जिनगी , मानुस महाबोने ई जिनगी नुकाइ के देखब ।। लहर आने खातिर उता सुता करे चाही , कानापतिआर ई डहर के बेंडाइ के देखब । जे फोर टा बइसले खोड़ें रोपल हलो से पुरखें , तोर रोंपल गाछ चल तनी ढेंढ़ाई के देखव ।। ई सोझ डहरें सगरगाड़ी के सोझवे खातिर मात्र , बेटी , बहिन के अगुवारी सोझाइ के देखब । जिनगिक आन , मान , सान तोंञ राखे नाञ पइलें जिनगी राखे खातिर जिनगी हेराइ के देखब । जिनगिक मरम अनचोटें गौतम बुद्धे पड़ला , गियान पावे खातिर जिनगी के खाराइ के देखब । शिव के संगे लइ के हुलुस्थुल करे खातिर , हैजामारा सब के आवा साड़ाइ के देखब ।

25. जिनगिक डहर कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

शीर्षक का अर्थ – जीवन की राह

भावार्थ – इस कविता की रचना उर्दू शायरी की तर्ज पर की गई है। इस कविता के माध्यम से कवि ने अंधविश्वास (काना पतियार), अशिक्षा, दिखावा-ढोंग आदि से मुक्त होने का आह्वान करते हैं। इन विसंगतियों से मुक्ति ही जीवन की सही राह है। यदि हम इन कुरीतियों, अंधविश्वासों के मकड़जाल में फंसे रहेंगे तो हमरा जीवन भटकता ही रहेगा।

khortha for JSSC
khortha for JSSC
You are currently viewing जिनगिक डहर कविता  तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
जिनगिक डहर कविता तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक