वाताग्र (Fronts) 

  • दो भिन्न स्वभाव वाली वायुराशियों (तापमान, गति, दिशा, आर्द्रता, घनत्व आदि के संदर्भ में) के मिलने से निर्मित ढलुआ सतह को ‘वाताग्र‘ कहते हैं। 
  • वाताग्र मुख्यतः मध्य अक्षांशों में ही निर्मित होते हैं। 
  • वाताग्र सबसे अधिक वहाँ बनते हैं, जहाँ वायु राशियों के तापमान में सबसे अधिक अंतर पाया जाता है। 
  • वाताग्र कुछ कोण पर झुका होता है, जो ध्रुवों की ओर जाने पर बढ़ता जाता है। ऐसा इसलिये, क्योंकि वाताग्र का ढाल पृथ्वी की अक्षीय गति पर आधारित होता है।
    • भूमध्य रेखा पर वाताग्र का ढाल लगभग शून्य होता है। 
  • वाताग्र के बनने की प्रक्रिया को ‘वाताग्र जनन’ (frontogenesis) तथा नष्ट होने की प्रक्रिया को ‘वाताग्र क्षय’ (Frontolysis) कहते हैं। 
  • वाताग्र जनन एवं वाताग्र क्षय से ही चक्रवातों एवं प्रतिचक्रवातों की उत्पत्ति होती है। 
  • वायुराशियों का अभिसरण (Convergence) वाताग्र जनन में सहायक तथा वायुराशियों का अपसरण (Divergence) वाताग्र जनन में बाधक होता है। 

 4 वाताग्र के प्रकार

  • शीत वाताग्र'(Cold Front)
  • उष्ण वाताग्र (Warm Front) 
  • अधिविष्ट वाताग्र (Occluded Front)
  • स्थायी’ अथवा ‘अचर वाताग्र’ (Stationary Front)

3 वाताग्र प्रदेश (Frontal Zone) 

  • आर्कटिक वाताग्र प्रदेश (Arctic Frontal Zone) 
  • ध्रुवीय वाताग्र प्रदेश (Polar Frontal Zone) 
  • अंत: उष्ण कटिबंधीय वाताग्र प्रदेश (Inter-Tropical Frontal Zone)
  • आर्कटिक वाताग्र प्रदेश का विस्तार यूरेशिया तथा उत्तर अमेरिका में पाया जाता है। 
  •  आर्कटिक वाताग्र महाद्वीपीय हवाओं तथा ध्रुवीय सागरीय हवाओं के मिलने से बनते हैं। 
  • ध्रवीय वाताग्र का निर्माण ध्रुवीय ठंडी वायुराशि तथा उष्ण गर्म वायराशि के मिलने से होता है।
  • ध्रुवीय वाताग्र प्रदेश का विस्तार उत्तरी अटलांटिक महासागर तथा उत्तरी प्रशांत महासागर में अधिक पाया जाता है।

चक्रवात (Cyclones) 

  • चक्रवात के केंद्र में निम्न ‘ वायुदाब तथा बाहर उच्च वायुदाब होता है, ‘चक्रवात’ कहलाता है। 
  • हवाएँ चक्रीय गति से परिधि से केंद्र की ओर चलने लगती हैं। 
  • चक्रवात की दिशा 
    • उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत (वामावर्त)
    • क्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा (दक्षिणावर्त) में होती है। 
  • चक्रवात प्रायः गोलाकार, अंडाकार या ‘V’ आकार के होते हैं। 
  • चक्रवात को वायुमंडलीय विक्षोभ‘ (Atmospheric Disturbance) के अंतर्गत शामिल किया जाता है।
  • अवस्थिति के आधार पर चक्रवात दो प्रकार के होते हैं
    • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cyclones)
    • उष्ण कटिबंधीय चक्रवात

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cyclones) 

  • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति तथा प्रभाव क्षेत्र शीतोष्णा कटिबंध, अर्थात् मध्य अक्षांशों (दोनों गोलार्द्ध में 35° से 65° अक्षांशों के मध्य) में होता है।
  • ये चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में केवल शीतऋतु में उत्पन्न होते हैं,
  • दक्षिणी गोलार्द्ध में जलीय भाग के अधिक होने के कारण यह वर्षभर उत्पन्न होते रहते हैं।
  •  इन्हें ‘निम्न गर्त‘ या ‘ट्रफकहते हैं। 
  • यचक्रवात की गति पछुआ पवनों के कारण प्रायः पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर रहती है।
  • इन चक्रवातों के प्रमुख क्षेत्र अटलांटिक महासागर और उत्तर-पश्चिमी यूरोप हैं। 
  • इनकी उत्पत्ति ठंडी एवं गर्म, दो विपरीत गुणों वाली वायुराशियों के मिलने से होती है। 
  • इसके केंद्र में निम्न वायुदाब तथा बाहर उच्च वायुदाब होता है, जिसके कारण हवाएँ बाहर/परिधि से केंद्र की ओर चलती हैं। 
  • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात जब पास आता है , आकाश पर सर्वप्रथम पक्षाभ तथा पक्षाभ स्तरी बादल दिखाई देते हैं, और सूर्य तथा चंद्रमा के चारों तरफ ‘प्रभामंडलका निर्माण हो जाता है। 

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के मुख्य क्षेत्र

उत्तरी अटलांटिक महासागर 

  • यहाँ ये शीत ऋतु में आइसलैंड तथा ग्रीनलैंड से आने वाली ध्रुवीय पवनों तथा गल्फ स्ट्रीम के ऊपर से होकर आने वाली गर्म पछुआ पवनों के सम्मिलन से उत्पन्न होते हैं।
  • ग्रेट ब्रिटेन, नॉर्वे, स्वीडन तथा उत्तर-पश्चिमी यूरोप में इनका प्रभाव अधिक पड़ता है। 

भूमध्य सागर 

  • यहाँ शीत ऋतु में आर्द्र पछुआ पवनों का मिलन मध्य यूरोप से आने वाली शीतल व शुष्क पवनों से होता है, जिससे शीतोष्ण चक्रवात की उत्पत्ति होती है।
  • ये चक्रवात इतने शक्तिशाली होते हैं कि भूमध्य सागर को पार कर पाकिस्तान तथा उत्तर-पश्चिमी भारत तक पहुँच जाते हैं। यहाँ इनको ‘पश्चिमी विक्षोभ’ कहते हैं। 
  •  भारत में शीत ऋतु में होने वाली यह वर्षा पंजाब, हरियाणाउत्तर प्रदेश में गेहूँ की कृषि के लिये लाभदायक होती है।

 उत्तरी प्रशांत महासागर 

  •  ये चक्रवात उत्तर-पूर्व दिशा में गमन करते हुए अलास्का की खाड़ी तक पहुँचने के बाद अंततः अल्यूशियन निम्न दाब से मिलकर दक्षिणी मार्ग का अनुसरण करते हैं तथा कैलिफोर्निया तक पहुँचते हैं। 

चीन सागर

  • ये शीत ऋतु में जापान सागर के निकट उत्पन्न होते हैं और चीन सागर से होते हुए उत्तरी व मध्य चीन तक पहुंच जाते हैं। इनसे उत्तरी चीन में वर्षा होती है।

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात  (Tropical Cyclones)

  • उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों में उत्पन्न तथा विकसित होने वाले चक्रवातों को ‘उष्ण कटिबंधीय चक्रवात’ कहते हैं। 
  • ये 5° से 30° उत्तर तथा 5° से 30° दक्षिणी अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं।
    • भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° से 8° अक्षांशों वाले क्षेत्रों में न्यूनतम कोरिऑलिस बल के कारण इन चक्रवातों का प्रायः अभाव रहता है। 
  • उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति कर्क एवं मकर रेखाओं के मध्य महासागरीय क्षेत्र में होती है
  • इनका प्रवाह स्थलीय क्षेत्र की तरफ होता है।
  • वह स्थान जहाँ से उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तट को पार कर जमीन पर पहुँचते है, चक्रवात का लैंडफॉल‘ कहलाता है। 
  •  भूमध्य रेखा के समीप जहाँ दोनों गोलार्ध की व्यापारिक पवनें मिलती हैं, उसे ‘अंत: उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र/तल’ (ITCZ) कहते हैं।
    • इस अभिसरण क्षेत्र/तल का उत्तरी व दक्षिणी दोनों गोलार्ध में विस्थापन होता है। 
    • ग्रीष्म ऋतु में ITCZ का विस्थापन भूमध्य रेखा से उत्तरी गोलार्द्ध में होता है।
    • इस अभिसरण तल पर व्यापारिक पवनों का अभिसरण व आरोहण होता है, फलतः सतह पर निम्न वायुदाब का विकास होता है। 
    • इसी निम्न वायुदाब के केंद्र में विभिन्न क्षेत्रों से पवनें अभिसरित होती हैं तथा कोरिऑलिस बल के प्रभाव से वृत्ताकार मार्ग का अनुसरण करती हुई ऊपर उठती हैं। फलतः वृत्ताकार समदाब रेखाओं के सहारे उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति होती है। 
  • उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में वायु के संचरण की दिशा
    • उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के चलने की विपरीत दिशा में अथवा वामावर्त
    • दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा में अथवा दक्षिणावर्त होती है।
  • 32 किमी. प्रति घंटे की चाल से गति करने वाले चक्रवात को ‘क्षीण चक्रवात‘ कहते हैं,
  • 120 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाले चक्रवात को ‘हरिकेन कहा जाता है।
  • 200 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाले चक्रवात को ‘सुपर साइक्लोनकहते हैं। 
  • उष्ण कटिबंधीय चक्रवात वर्ष के निश्चित समय में ही (सामान्यतः ग्रीष्मकाल में) उत्पन्न/विकसित होते हैं।
  • उष्ण कटिबंधीय चक्रवात उत्पत्ति एवं विकास के लिये अनुकूल स्थितियाँ
    • गर्म तथा आर्द्र वायु का लगातार आरोहण होना चाहिये, क्योंकि चक्रवात को ऊर्जा की आपूर्ति संघनन की प्रक्रिया में छिपी हुई गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) से होती है।
    • समुद्री सतह का ताप 27°C से अधिक होना चाहिये। 
    •  समुद्री सतह पर निम्न वायुदाब का विकास तथा वायु का अभिसरण व आरोहण होना चाहिये। 
    •  ‘कोरिऑलिस बल’ की उपस्थिति अनिवार्य है क्योंकि यह वायु को चक्रीय गति प्रदान करती है। 
    • धरातलीय चक्रवात के ऊपरी वायुमंडलीय परत में प्रतिचक्रवातीय दशाएँ होनी चाहिये।

चक्रवात की आँख

  • चक्रवात के केंद्र या मध्य भाग को ‘चक्रवात की आँख’ कहते हैं। इस क्षेत्र में वायु का आरोहण नहीं होता है, जिसके कारण वर्षा के लिये प्रतिकूल स्थिति बनी रहती है। चक्रवात के केंद्र में शांत क्षेत्र पाया जाता है तथा इसके ऊपर प्रायः मेघ नहीं होते। इस भाग में पवन का वेग बहुत ही धीमा हो जाता है तथा पवन मंद गति से अलग-अलग दिशाओं में चलना शुरू कर देती है, तापमान अधिक और आर्द्रता काफी कम हो जाती है। 
  • आँख की दीवार (The Eyewall)  – यह केंद्र या मध्य भाग का वह क्षेत्र होता है, जहाँ वायु का अधिक तीव्रता से आरोहण होने के कारण अत्यधिक मात्रा में वर्षा होती है। इसी क्षेत्र में पवनों का वेग अधिकतम होता है। 

उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के प्रमुख क्षेत्र 

  • कैरेबियन सागर में आने वाले ऐसे चक्रवातों को हरिकेन कहते हैं। ये मुख्यतः जून से अक्तूबर तक आते हैं। 
  • चीन सागर क्षेत्र में ऐसे चक्रवातों को टाइफून‘ (Typhoons) कहते हैं। ये जुलाई से अक्तूबर तक चलते रहते हैं। ये फिलीपींस, चीन तथा जापान को प्रभावित करते हैं। 
  • हिंद महासागर क्षेत्र में ऐसे चक्रवातों कोचक्रवात के नाम से ही जाना जाता है। ये भारत, बांग्लादेश, म्याँमार, मेडागास्कर तथा ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी तट पर आते हैं। ऑस्ट्रेलिया में
    • इन चक्रवातों को विली-विलीज़’ (Willy-Willies) के नाम से जाना जाता है। 
  • उष्ण कटिबंधीय अक्षांशों में दक्षिणी-पूर्वी अटलांटिक और दक्षिणी-पूर्वी प्रशांत क्षेत्रों में चक्रवात उत्पन्न नहीं होने का प्रमुख कारण समुद्री पृष्ठों का ताप निम्न होना है क्योंकि यहाँ पर ठंडी जलधाराएँ प्रवाहित होती हैं। 

शीतोष्ण कटिबंधीय एवं उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में अंतर 

(Difference Between Temperate and Tropical Cyclones) 

  • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात 35° और 65° अक्षांशों के मध्य आते हैं
    • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में स्पष्ट वाताग्र प्रणालियों का विकास होता है, शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में उष्ण तथा शीत वाताग्र होते हैं
    • शीतोष्ण चक्रवात, उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की अपेक्षा अधिक विस्तृत क्षेत्र को प्रभावित करते हैं।
    • शीतोष्ण चक्रवात पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर चलते हैं
    • शीतोष्ण चक्रवात में चक्रवात की आँख का अभाव रहता है।
    • शीतोष्ण चक्रवातों से होने वाली वर्षा को ‘वाताग्री वर्षा कहते हैं, 
    • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का आकार बड़ा होने के कारण वायुदाब प्रवणता कम होती है
    • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात, उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की अपेक्षा कम विनाशकारी होते हैं।
    • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में पवन की गति वाताग्र पर निर्भर करती है।
    • जबकि शीतोष्ण चक्रवात में हिम तथा ओलावृष्टि होती है। 
  • उष्ण कटिबंधीय चक्रवात 5° और 30° अक्षांशों के मध्य विकसित होते हैं। 
    • उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में कोई वाताग्र नहीं होता है। 
    • उष्ण कटिबंधीय चक्रवात केवल जलीय सतह पर उत्पन्न होते हैं और स्थलीय सतह पर पहुँचते ही समाप्त हो जाते हैं।  
    • उष्ण कटिबंधीय चक्रवात पूर्व से पश्चिम दिशा में गमन करते हैं। 
    • उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के मध्य/केंद्र में शांत क्षेत्र पाया जाता है, जिसे ‘चक्रवात की आँख‘ कहते हैं, 
    • उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के द्वारा संवहनीय वर्षा‘ होती है।
    • उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में आकार छोटा होने के कारण वायुदाब प्रवणता अधिक होती है। 
    • उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में पवनें चक्राकार मार्ग में गति करती हैं
    • उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में हिम तथा ओलावृष्टि नहीं होती, 

चक्रवातों का नामकरण 

  • वर्तमान में चक्रवातों का नामकरण उनके स्थान, विशेषता और विस्तार के आधार पर किया जाता है। 
  • चक्रवातों के नामकरण की प्रक्रिया वर्ष 1953 से प्रारंभ हुई थी, जो अब तक जारी है।
    • चक्रवातों का नाम अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम में रखा जाता है, जिसमें से Q, U, X, Y और Z वर्ण को हटा दिया गया है। 
    • चक्रवातों के नामकरण के लिये अक्षर प्रणाली का प्रयोग किया जाता है।
    • वर्ष 1979 से पहले चक्रवातों का नाम सिर्फ महिलाओं के नाम पर आधारित होता था। इसके बाद चक्रवातों के नाम पुरुषों के नामों पर भी रखे जाने लगे। 
  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने नामों की छः सूचियाँ तैयार की हैं, इन नामों का छ: वर्ष बाद पुनः प्रयोग किया जा सकता है।
    • जो चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी होते हैं, उनका नाम सूची से हटा दिया जाता है। 
  • हिंद महासागर के उत्तरी हिस्से के ऊपर से गुजरने वाले उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का नामकरण वर्ष 2004 से इस क्षेत्र के आठ देशों (भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्याँमार, श्रीलंका, मालदीव, थाईलैंड और ओमान) द्वारा दिये जाते हैं। 
  • भारत ने अब तक अग्नि, आकाश, बिजली, लहर, जल, मेघ, सागर और वायु आदि नाम दिये हैं।
  • वरदा’ चक्रवात का नाम पाकिस्तान द्वारा दिया गया था। वरदा एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ ‘लाल गुलाब‘ होता है। 
  • हुदहुद’ चक्रवात का नामकरण ओमान द्वारा सुझाया गया था, हुदहुद एक चिड़िया का नाम है, जिसका उल्लेख कुरान में मिलता है।

प्रतिचक्रवात (Anticyclones) 

  • चक्रवात के विपरीत दशाओं एवं विशेषताओं वाले वायु परिसंचरण तंत्र को ‘प्रतिचक्रवात’ कहते हैं। 
  • इसकी उत्पत्ति उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रों में अधिक होती है, जबकि भूमध्य रेखा के आस-पास के क्षेत्रों में इसका अभाव रहता है।
  • प्रतिचक्रवात के केंद्र में उच्च वायुदाब  तथा बाहर की तरफ अपेक्षाकृत निम्न वायुदाब का क्षेत्र होने के कारण ही हवाएँ केंद्र से परिधि की ओर चलती हैं। 
  • उत्तरी गोलार्द्ध में – प्रतिचक्रवातों की दिशा (क्लॉकवाइज़) में 
  • दक्षिणी गोलार्द्ध – घड़ी की सुइयों के चलने की विपरीत दिशा (एंटी क्लॉकवाइज़) में चलती है। 
  • प्रतिचक्रवातों का आकार – ‘गोलाकार‘/ ‘V’ आकार में 
  • प्रतिचक्रवातों के केंद्र में हवाएँ ऊपर से नीचे उतरती हैं, जिससे मौसम साफ रहता है।
    • इसी कारण से प्रतिचक्रवातों को मौसम रहित परिघटना कहते हैं। 
    • प्रतिचक्रवातों में सामान्यतः ‘वाताग्र’ नहीं बनते हैं, लेकिन कभी-कभी दो प्रतिचक्रवातों के आपस में टकराने/मिलने से सम्मिलन रेखा के सहारे वाताग्र का निर्माण हो जाता है, जिसकी दिशा उत्तर-दक्षिण होती है, इसलिये इसे ‘देशांतरीय वाताग्र कहते हैं। 
  • प्रतिचक्रवातों के आगमन के समय आसमान मेघरहित होने लगते हैं, मौसम साफ होने लगता है तथा हवा का बहाव कम हो जाता है। 
  • शीत प्रतिचक्रवात आर्कटिक क्षेत्र में उत्पन्न होकर पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर चलते हैं
  • उष्ण प्रतिचक्रवात उपोष्ण उच्च वायुदाब की पेटी में उत्पन्न होते हैं।
  • ये दक्षिणी-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों को अधिक प्रभावित करते हैं। 
  • अवरोधी प्रतिचक्रवात की अवधारणा नवीन है।
    • क्षोभमंडल के ऊपरी भाग में वायु संचार के अवरोध के कारण इनकी उत्पत्ति होती है।
    • ये उत्तर-पश्चिमी यूरोप तथा निकटवर्ती अटलांटिक महासागरीय भाग तथा मध्य उत्तरी प्रशांत महासागर के पश्चिमी भाग में उत्पन्न होते हैं।

टॉरनेडो (Tornadoes) 

  • टॉरनेडो के केंद्र में निम्न वायुदाब होता है।
  • इसका विकास सामान्यतः मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में होता है।
  •  समुद्र पर टॉरनेडो को ‘जलस्तंभ‘ (Waterspouts) कहते हैं। 
  • टॉरनेडो की तीव्रता मापने के लिये ‘फुजीटा स्केल का प्रयोग किया जाता है।
  • टॉरनेडो मुख्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया में उत्पन्न होते हैं।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका में टॉरनेडो प्रभावित वृहद् मैदानी भाग टॉरनेडो एली (Tornado Alley) कहलाता है।
    • इस टॉरनेडो एली में मुख्यतः . मिसीसिपी-मिसौरी घाटी के टेक्सास, ओकलाहोमा, कंसास और नेब्रास्का राज्य सम्मिलित हैं। 
  • इसके अलावा यह फ्राँस, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, अर्जेंटीना, दक्षिण अफ्रीका, चीन, भारत आदि में भी आते हैं।
  • भारत में इन्हें बवंडर कहते हैं। 

चक्रवात पूर्वानुमान प्रणाली

  • यह कार्य भारत के ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तत्त्वावधान में क्षेत्रीय विशेष मौसम विज्ञान केंद्र (दिल्ली) द्वारा किया जाता है। 
  • वर्ष 2014 में भारत में  विनाशकारी चक्रवात हुदहुद आए था। 

उत्तर भारतीय महासागर पर उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के लिये क्षेत्रीय विशेष मौसम विज्ञान केंद्र 

क्षेत्रीय विशेष मौसम विज्ञान केंद्र चक्रवातीय पूर्वानुमान चार चरणों में जारी करता है

पहला चरण : पूर्व चक्रवात निगरानी’

  • इस चरण में उत्तरी हिंद महासागर में चक्रवात हेतु ज़िम्मेदार आवश्यक दशाओं के विकास के संबंध में 72 घंटे पहले जानकारी दी जाती है। 

दूसरा चरण : ‘चक्रवात संकट सूचना’

  • इस चरण में भारतीय तटीय क्षेत्रों के मौसम में प्रतिकूल बदलाव के लगभग 48 घंटे पहले चेतावनी जारी की जाती है। इसके साथ ही, इस चरण में तूफान की गहनता, तीव्रता का अनुमान सटीकता से लगाया जाता है। 

तीसरा चरण : ‘चक्रवात चेतावनी’ 

  • इस चरण में प्रतिकूल मौसम होने के 24 घंटे पहले चेतावनी दी जाती है, साथ ही चक्रवात के लैंडफॉल बिंदु की भी भविष्यवाणी की जाती है। लैंडफॉल बिंदु का स्थान, समय, भारी वर्षा, तेज़ हवाएँ आदि से संबंधित भविष्यवाणी प्रत्येक 3 घंटे के अंतराल पर की जाती है। 

चौथा चरण : “लैंडफॉल के बाद का परिदृश्य कला 

  • इस चरण में चक्रवात के अनुमानित समय से 12 घंटे पहले चेतावनी जारी की जाती है और इसके साथ ही लैंडफॉल के बाद चक्रवात की दिशा में होने वाले परिवर्तन एवं अंतः क्षेत्रों में इसके प्रभाव का अनुमान भी लगाया जाता है।
  • वर्ष 2006 के बाद राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority-NDMA) द्वारा इन चरणों की पहचान हेतु विभिन्न रंगीन कोडों का उपयोग किया जा रहा है। 

चेतावनी चरण

रंगीन कोड

चक्रवात अलर्टपीला 
चक्रवात चेतावनीनारंगी
पोस्ट लैंडफॉल आउटलुकलाल

साफिर-सिंपसन स्केल (Saffir-simpson Scale) 

  • यह स्केल तूफान को उसकी निरंतर गति के आधार पर मापता है। 
  • इसमें 1 से लेकर 5 श्रेणी की रेटिंग शामिल हैं। 
  • इस स्केल का प्रयोग ‘हरिकेन‘ तूफानों से होने वाली क्षति को मापने में किया जाता है।

फुजीटा स्केल (Fujita scale)

  • फुजीटा स्केल का प्रयोग टॉरनेडो की तीव्रता मापने के लिए किया जाता है।

बैरोमीटर 

  • पारा का तल का अचानक गिरावट – तूफान का संकेत

हवा की निरंतर गति 

(किमी. में)

तूफान से होने वाले   विनाश/क्षति के प्रकार 

119-153 किमी./घंटाकम क्षति
154-177 किमी./घंटाविस्तृत क्षति
178-208 किमी./घंटाभारी क्षति
209-251 किमी./घंटा अत्यधिक क्षति
252 किमी./घंटा और  अधिकविनाशकारी क्षति 
विल्ली विल्लीऑस्ट्रेलिआ
हरिकेनUSA
टायफूनचीन, फिलीपींस
बागियोंचीन
टाइफुजापान
चक्रवातभारत
भारत में आये भूंकप
26 दिसम्बर , 2004उत्तरी सुमात्रा का पश्चिमी तट भारत श्रीलंका मालदीव9.1 तीव्रता
26 जनवरी  , 2001गुजरात7 .6 तीव्रता
भारत में आये चक्रवात 
2023बिपरजॉयअरब सागर (गुजरात में)
2024अल्वारो मेडागास्कर
2024RemalBay of Bengal – West Bengal and Bangladesh
 
Cyclone and Anticyclone