अपवाह तंत्र (Drainage System)
प्रारंभिक धरातलीय सतह की प्रकृति, ढाल एवं भौमकीय संरचना के आधार पर अपवाह तंत्र को दो भागों में बाँटा जाता है
क्रमवर्ती अपवाह तंत्र (Sequent Drainage System)
- इसके अंतर्गत उन नदियों को सम्मिलित किया जाता है जो ढालों के अनुरूप प्रवाहित होती हैं, जैसेअनुवर्ती, परवर्ती नदियाँ इत्यादि।
अनुवर्ती नदियाँ (Consequent rivers)
- वे नदियाँ, जो सामान्य ढाल की दिशा में बहती हैं, अनुवर्ती नदियाँ कहलाती हैं। प्रायद्वीपीय भारत की अधिकांश नदियाँ अनुवर्ती नदियों के उदाहरण हैं, जैसे – गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि।
परवर्ती नदियाँ (Subsequent rivers)
- मुख्य अनुवर्ती नदी से समकोण पर मिलने वाली नदियाँ परवर्ती नदियाँ कहलाती हैं। जैसे- चंबल, सिंध, बेतवा, सोन इत्यादि नदियाँ गंगा तथा यमुना में जाकर समकोण पर मिलती हैं।
अक्रमवर्ती अपवाह तंत्र (Insequent system)
- इसके अंतर्गत उन नदियों को सम्मिलित किया जाता है जो प्रादेशिक ढाल का अनुसरण नहीं करती हैं तथा भौमकीय संरचना के प्रतिकूल प्रवाहित होती हैं, जैसे- पूर्ववर्ती तथा पूर्वारोपित नदियाँ।
पूर्ववर्ती नदियाँ (Antecedent rivers)
- वे नदियाँ जो हिमालय निर्माण के पहले से बहती थीं तथा अपनी धाराओं की दिशा में उत्थित स्थलों जैसे पर्वतों को काटकर गॉर्ज (Gorge) अथवा महाखड्ड बनाकर प्रवाहित होती हैं, ‘पूर्ववर्ती नदियाँ’ कहलाती हैं। उदाहरण- सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलुज आदि पूर्ववर्ती नदियाँ हैं।
पूर्वारोपित नदियाँ (Superimposed Rivers)
- ये नदियाँ स्थलखंड के ढाल का अनुसरण नहीं करती हैं।
- स्वर्ण रेखा, सोन, चंबल, बनास आदि पूर्वारोपित/अध्यारोपित नदियों के उदाहरण हैं।
भारत की नदियों का अपवाह तंत्र
(Drainage System of Indian Rivers)
भौगोलिक आकृतियों के आधार पर भारत की नदियों के अपवाह तंत्र को मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित किया गया है
- 1. हिमालय की नदियों का अपवाह तंत्र
- 2. प्रायद्वीपीय नदियों का अपवाह तंत्र
हिमालय की नदियों का अपवाह तंत्र (Drainage System of Himalayan Rivers)
- हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बारहमासी होती हैं अर्थात् इनमें जल का बहाव पूरे वर्ष निरंतर बना रहता है, क्योंकि इनको जल की प्राप्ति ‘हिम के पिघलने’ तथा वर्षा दोनों से होती है।
- अपने पर्वतीय मार्ग में ये नदियाँ गहरे गॉर्ज, V-आकार की घाटियाँ, क्षिप्रिकाएँ व जलप्रपात का निर्माण करती हैं तथा मैदान में पहुँचने पर समतल घाटियों, गोखुर झीलों, बाढ़कृत मैदानों, विसर्पो तथा डेल्टाओं का निर्माण करती हैं।
- हिमालय से निकलने वाली नदियों के अपवाह तंत्र में मुख्यतः तीन नदियों का अपवाह तंत्र शामिल है
- (i) सिंधु नदी अपवाह तंत्र
- (ii) गंगा नदी अपवाह तंत्र
- (iii) ब्रह्मपुत्र नदी अपवाह तंत्र
सिंधु नदी
- सिंधु नदी का उद्गम तिब्बत में कैलाश पर्वत श्रेणी में ‘बोखर चू’ (Bokhar chu) के निकट एक हिमनद से होता है, इसे तिब्बत में ‘सिंगी खंबान’ अथवा ‘शेर मुख’ कहते हैं।
- अपने उद्गम से निकलने के पश्चात् लद्दाख एवं जास्कर श्रेणियों के बीच से उत्तर-पश्चिम दिशा में प्रवाहित होती हुई यह ‘दमचोक’ के पास भारत में प्रवेश करती है तथा लद्दाख एवं गिलगित से प्रवाहित होने के दौरान गॉर्ज का निर्माण कर दर्दिस्तान में चिल्लड़ के निकट पाकिस्तान में प्रवेश करती है। भारत में इसकी लंबाई 1,114 किमी. एवं कुल लंबाई 2,880 किमी. है।
- सिंधु नदी के बायें एवं दायें दोनों तरफ से अनेक सहायक नदियाँ मिलती हैं, जैसे- श्योक, गिलगित, शिगार, काबुल, जास्कर, पंचनद (झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास, सतलुज) आदि। इनमें काबुल के अतिरिक्त दाहिने तट पर मिलने वाली अन्य मुख्य सहायक नदियाँ कुर्रम, तोची, गोमल, विबोआ और संगर है। ये सभी नदियाँ सुलेमान पर्वत श्रेणी से निकलती हैं।
- पंचनद नदियाँ आपस में मिलकर पाकिस्तान में ‘मीथनकोट’ के पास सिंधु नदी में मिल जाती हैं।
- सिंधु नदी का मुहाना अरब सागर में है।
सिंधु नदी से संबंधित विशेष तथ्य
- सिंधु नदी की कुल लंबाई 2,880 किमी. है।
- भारत में केवल जम्मू और कश्मीर के लेह जनपद में प्रवाहित होती है। सिंधु नदी के दायें तट पर ‘लेह’ अवस्थित है।
- सिंधु नदी जल समझौते के अनुसार भारत इसके विसर्जनक्षमता का केवल 20 प्रतिशत भाग ही उपयोग कर सकता है
- सिंधु जल समझौता 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक ने मध्यस्थता से हुई थी।
- इस संधि पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने दस्तखत किए थे।
- 12 जनवरी 1961 से संधि की शर्तें लागू कर दी गईं थीं।
- संधि के तहत 6 नदियों के पानी का बंटवारा तय हुआ, जो भारत से पाकिस्तान जाती हैं।
- पूर्वी क्षेत्र की तीनों नदियां- रावी, ब्यास और सतलज पर भारत का एकछत्र अधिकार है।
- वहीं, पश्चिमी क्षेत्र की नदियों- सिंधु, चिनाब और झेलम का कुछ पानी पाकिस्तान को भी देने का समझौता हुआ। भारत में पश्चिमी नदियों के पानी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है और इनका करीब 20 प्रतिशत हिस्सा भारत के लिये है।
झेलम नदी
- इसका उद्गम पीरपंजाल गिरिपद में स्थित वेरीनाग के निकट ‘शेषनाग झील’ से होता है तथा यह वूलर झील से होती हुई पाकिस्तान में चेनाब नदी से मिल जाती है। यह श्रीनगर के पास विसर्प का निर्माण करती है।
- पाकिस्तान में प्रवेश करने से पूर्व यह नदी एक गहरी घाटी का निर्माण करती है, जिसे ‘बासमंगल’ के नाम से जाना जाता है।
- पाकिस्तान में चेनाब से मिलने के पहले झेलम नदी पर ‘मंगला डैम’ का निर्माण किया गया है।
- जम्मू-कश्मीर में झेलम नदी मुज्जफराबाद से मीरपुर तक (भारत एवं पाकिस्तान) सीमारेखा से होकर बहती है।
- झेलम नदी पर जम्मू-कश्मीर में तुलबुल एवं उरी परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं।
चेनाब नदी
- यह सिंधु की सबसे बड़ी सहायक नदी (भारत में लंबाई 1,180 किमी.) है। हिमाचल प्रदेश में इसे ‘चंद्रभागा’ के नाम से जाना जाता है।
- चेनाब नदी बारालाचा ला दर्रे के दोनों ओर से निकलने वाली ‘चंद्र’ और ‘भागा’ नामक नदियों के केलांग के निकट तांडी में मिलने से बनती है।
- यह पीरपंजाल पर्वत श्रेणी के समानांतर कुछ दूरी तक पश्चिम दिशा में बहती है और किश्तवाड़ के निकट पीरपंजाल में गहरा गॉर्ज बनाती है। इसके पश्चात् यह अखनूर के निकट मैदान में प्रवेश करती है।
- चेनाब नदी पर निर्मित महत्वपूर्ण जल परियोजनाएँ- बगलिहार परियोजना, सलाल परियोजना तथा दुलहस्ती परियोजनाएँ हैं।
रावी नदी
- इसका उद्गम हिमाचल प्रदेश में वहद हिमालय के रोहतांग दर्रे के पश्चिम से होता है। यह चंबा घाटी में प्रवाहित होती है।
- यह पाकिस्तान में सराय सिंधु के पास चेनाब से मिल जाती है।
- रावी नदी पर निर्मित परियोजनाएँ ‘चमेरा’ तथा ‘थीन’ (रणजीत सागर) हैं।
ब्यास नदी
- यह रोहतांग दर्रे के पास ‘ब्यास कुंड’ से निकलती है।
- यह हिमाचल प्रदेश के ‘कुल्लू घाटी’ से प्रवाहित होती है।
- यह धौलाधर श्रेणी में काती एवं लारगी में गॉर्ज का निर्माण करती है।
- पंजाब के होशियारपुर जिले में स्थित तलवाड़ा नामक स्थान पर यह मैदानी भाग में प्रवेश करती है।
- यह हरिके नामक स्थान पर सतलुज से मिलती है तथा इनके मिलन स्थान पर ही ‘हरिके बैराज’ का निर्माण किया गया है।
- हरिके बैराज से ही ‘इंदिरा गांधी नहर’ (भारत की सबसे लंबी नहर) का निर्माण सिंचाई के उद्देश्य से किया गया है।
- यह पंचनद की एकमात्र ऐसी नदी है, जिसका प्रवाह केवल भारत में है।
सतलुज नदी
- यह तिब्बत के पठार की ‘राक्षस ताल’ झील से निकलती है, जहाँ इसे ‘लॉगचेन खंबाब’ के नाम से जाना जाता है। यह भारत में प्रवेश करने से पहले लगभग 400 किमी. तक सिंधु के समानांतर प्रवाहित होती है तथा ‘शिपकीला दर्रा’ से होकर भारत में प्रवेश करती है।
- राक्षस ताल से निकलकर यह नदी पश्चिमी दिशा में प्रवाहित होती है एवं हिमाचल प्रदेश में यह गहरी घाटी का निर्माण करती है।
- भाखड़ा-नांगल परियोजना, हरिके बैराज तथा इंदिरा गांधी नहर से संबंधित होने के कारण ही यह भारत की महत्त्वपूर्ण नदियों में से एक है।
- सतलुज नदी भी फिरोजपुर से फाजिलका (पंजाब) के बीच भारत-पाकिस्तान की सीमा से होते हुए बहती है।
- सतलुज नदी की कुल लंबाई 1,450 किमी. है जिसमें से यह भारतीय क्षेत्र में 1,050 किमी. बहती है।
गंगा नदी अपवाह तंत्र
- सतोपथ हिमानी से निकली अलकनंदा और गोमुख’ के निकट ‘गंगोत्री हिमनद‘ से निकली भागीरथी,देवप्रयाग में मिलने के बाद संयुक्त रूप से गंगा कहलाती हैं।
- अलकनंदा की सहायक नदियाँ, जैसे- ‘पिंडार नदी‘ बायें तट से कर्णप्रयाग‘ में तथा मंदाकिनी नदी दायें तट से ‘रुद्रप्रयाग‘ में इससे आकर मिलती हैं। धौली गंगा व विष्णगंगा अलकानंदा की अन्य सहायक नदियाँ हैं। बद्रीनाथ का मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है।

- गंगा पूर्व दिशा में पश्चिम बंगाल के फरक्का (गंगा डेल्टा का सबसे उत्तरी बिंदु) तक बहती है, जहाँ यह दो धाराओं में बँट जाती है एक धारा हुगली (पश्चिम बंगाल) के नाम से जानी जाती है तथा दूसरी धारा भागीरथी के रूप प्रवाहित होती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है, जहाँ ब्रह्मपुत्र नदी से मिलने के बाद यह ‘पद्मा’ और अंततः मेघना नाम से बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- गंगा के दायें तथा बायें दोनों तटों से अनेक सहायक नदियाँ आकर मिलती हैं, जिनमें ‘यमुना नदी’ सबसे बड़ी सहायक नदी है, जो बंदरपूंछ चोटी के यमुनोत्री हिमनद से निकलती है तथा इलाहाबाद में गंगा के दायें तट पर मिलती है। सोन भी गंगा से दायें तट पर मिलती है।
- चंबल, सिंध, बेतवा, केन इत्यादि नदियाँ यमुना के दायें तट की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
- चंबल की सहायक नदियों में बनास, काली सिंध, कुनो इत्यादि प्रमुख हैं। बनास की सहायक नदियों में खारी एवं धुंद प्रमुख है।
- कोसी, गंगा के बायें तट से मिलती है। इसके द्वारा अपने नदी मार्ग के अधिक कटाव तथा मार्ग परिवर्तन के कारण ही इसे ‘बिहार का शोक‘ कहते हैं। गोमती, घाघरा, गंडक आदि गंगा के बायें तट पर मिलने वाली अन्य सहायक नदियाँ हैं।
- दामोदर, हुगली के दायें तट की एक प्रमुख नदी है। इसे ‘बंगाल का शोक’ कहते हैं।
- गंगा नदी पर ही ‘राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-1’ (इलाहाबाद से हल्दिया तक) स्थित है।
वितरिका (Distributary):
- मुख्य नदी से निकलने वाली छोटी नदी जो उसमें नहीं मिलती, जैसे- हुगली।
सहायक नदी (Tributary):
- मुख्य नदी में मिलने वाली नदी जिसका आधार तल मुख्य नदी से ऊँचा होता है जैसे यमुना, सोन।
गंगा नदी से संबंधित विशेष तथ्य
- कुल लंबाई 2,525 किमी. तथा मुहाना बंगाल की खाड़ी में है।
- भारत की नदियों में सबसे बड़ा अपवाह तंत्र है।
- 2008 में गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया गया।
- सन् 2017 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा तथा यमुना नदी को ‘जीवित मानव’ का दर्जा दिया।
- गंगा नदी के किनारे बसा सबसे बड़ा शहर कानपुर है।
- गंगा नदी अपने प्रवाह क्रम में निम्न नामों से जानी जाती है
- गंगा– उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल
- हुगली व भागीरथी- पश्चिम बंगाल, दो वितरिकाओं में बँटने के पश्चात्, मुख्य शाखा भागीरथी बांग्लादेश चली जाती है।
- पद्मा– बांग्लादेश में प्रवेश करने के पश्चात्।
- मेघना– मेघना से मिलने के पश्चात् अंततः मेघना के नाम से ही अपना जल बंगाल की खाड़ी में विसर्जित करती है।
- यमुना नदी उत्तर प्रदेश के कुल 19 जिलों से होकर बहती है।
- गंगा नदी उत्तर प्रदेश के कुल 28 जिलों से होकर गुज़रती है। यह बिजनौर जिले से प्रवेश करके बलिया जिले से बाहर हो जाती है।
कोसी नदी
- नेपाल में सात धाराओं के मिलने से उद्गम। मुख्य धारा ‘अरुण’ है जो तिब्बत के गोसाईं थान चोटी से निकलती है।
- नेपाल में, अरुण में सुनकोसी एवं तामूर कोसी मिलती है। अरुण इसके बाद सप्तकोसी बन जाती है (नेपाल के सप्तकोसी क्षेत्र की सात धाराओं से मिलकर कोसी नदी तीन नदियों का रूप धारण करती है- तामूर, अरुण एवं सुनकोसी)
- सप्तकोसी कही जाने वाली सात धाराओं के नाम- सुतकोसी, तांबा कोसी, तलखू, दूधकोसी, भोटिया, अरुण, तामूर।
- मुहाना – गंगा नदी (काढ़ागोला, कुरसैला, बिहार के निकट।)
- नेपाल से आने वाली यह नदी बिहार के बराह क्षेत्र में समतल मैदान में उतरती है। बराह क्षेत्र, नेपाल सीमा से सटा बिहार का वह क्षेत्र है, जिसके बारे में धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यहीं ‘वराह-अवतार’ धारण किया था। अपने मार्ग बदलने के लिये कुख्यात है। इसे ‘बिहार का शोक’ कहा जाता है।
ब्रह्मपुत्र नदी
- हिमालय के उत्तर में स्थित मानसरोवर झील के पास कैलाश श्रेणी के ‘चेमायुंगडुंग हिमानी’ से निकलने के पश्चात् तिब्बत में ‘सांग्पो’ नाम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है। तिब्बत में ‘रांगो सांग्पो‘ इसके दाहिने तट की प्रमुख नदी है।
- इसके बाद सिंटेक्सियल बेंड के सहारे नामचा बारवा के निकट मध्य हिमालय को काटती हुई, यंग्याप दर्रे के द्वारा दक्षिण दिशा में मुड़कर (यू-टर्न लेते हुए) भारत के अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है, जहाँ इसको ‘सियांग’ अथवा ‘दिहांग’ नाम से जाना जाता है तथा दिबांग एवं लोहित नदी के बायें तट से मिलने के बाद इसे ‘ब्रह्मपुत्र’ के नाम से जाना जाता है।
- ब्रह्मपुत्र को तिब्बत में सांग्पो या सांपू के नाम से, अरुणाचल प्रदेश में दिहांग, असम में ब्रह्मपुत्र एवं बांग्लादेश में जमुना नाम से जाना जाता है।
- यह विश्व की सबसे लंबी नदियों में से एक है जो गंगा नदी के साथ मिलकर विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा (सुंदरबन डेल्टा) बनाती है। इसमें सिल्ट का निक्षेपण अत्यधिक मात्रा में होता है।
- ‘राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2’ (सादिया से धुबरी तक) को ब्रह्मपुत्र नदी पर ही बनाया गया है।
- ब्रह्मपुत्र नदी में ही विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप ‘माजुली’ (असम) स्थित है।
- ब्रह्मपुत्र नदी के दायें तथा बायें दोनों तटों से इसकी अनेक सहायक नदियाँ आकर मिलती हैं, जिनमें सुबनसिरी, कामेंग, मानस, अमो, संकोश, तीस्ता इसके दायें तट की तथा दिबांग, लोहित, धनसिरी, कोपिली, मेघना तथा बराक इसके बायें तट से मिलने वाली नदियाँ हैं।
- मेघना की मुख्य धारा बराक नदी का उद्गम मणिपुर की पहाड़ियों से होता है। इसकी मुख्य सहायक नदियाँ माकू, तरंग, तुईवई, जिरी, सोनाई, रुकनी, काथखल, धलेश्वरी, लांगाचिनी, मदुवा और जटिंगा है।
- नोट: लोहित नदी को ‘खूनी नदी’ भी कहा जाता है।
- भारत में प्रमुख नदी द्रोणी घटते क्रम में
गंगा > सिंधु > गोदावरी > कृष्णा > ब्रह्मपुत्र > महानदी
प्रायद्वीपीय नदियों का अपवाह तंत्र
- प्रायद्वीपीय भारत का पश्चिमी घाट, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों के मध्य एक प्रमुख जल विभाजक का कार्य करता है।
- प्रायद्वीपीय पठार का सामान्य ढाल पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व की ओर होने के कारण प्रायद्वीपीय भारत की अधिकांश नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलने के बाद बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। ये नदियाँ डेल्टा का निर्माण करती हैं।
- प्रायद्वीपीय भारत की नर्मदा तथा ताप्ती नदियाँ अपवादस्वरूप बंगाल की खाड़ी में न गिरकर, अरब सागर में गिरती हैं, क्योंकि ये दोनों नदियाँ भ्रंश घाटी से होकर बहती हैं तथा ज्वारनदमुख (Estuary) का निर्माण करती हैं। नर्मदा और ताप्ती नदी घाटियाँ पुरानी रिफ्ट घाटियाँ मानी जाती हैं।
- अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली प्रमुख नदियाँ निम्नलिखित हैं
- अरब सागर की नदियाँ: नर्मदा, ताप्ती, माही, साबरमती, पेरियार, मांडवी, जुआरी आदि।
- बंगाल की खाड़ी की नदियाँ: स्वर्ण रेखा, वैतरणी, ब्राह्मणी, गोदावरी, कृष्णा, महानदी, कावेरी आदि।
नर्मदा नदी
- (1,312 किमी.)
- मध्य प्रदेश में अमरकंटक की पहाड़ी से निकलने के पश्चात् यह उत्तर में विंध्यन पर्वत तथा दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत के मध्य भ्रंश घाटी से होकर बहते हुए अरब सागर की ‘खम्भात की खाड़ी’ में गिरती है। सरदार सरोवर परियोजना इसी नदी पर है।
- यह जबलपुर के पास भेडाघाट की संगमरमर शैलों को काटकर ‘धुआँधार जलप्रपात’ का निर्माण करती है।
- ओरसंग’, नर्मदा के दायें तट से मिलने वाली एक प्रमुख नदी है एवं तवा, बंजर, शेर आदि अन्य प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
ताप्ती नदी
- (724 किमी.)
- इसकी उत्पत्ति मध्य प्रदेश के बैतुल जिले में सतपुड़ा की पहाड़ियों (मुलताई नामक स्थान) से होती है।
- यह भी भ्रंश घाटी से बहती हुई अरब सागर के ‘खम्भात की खाड़ी‘ में गिरती है। इसकी द्रोणी मध्य प्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र राज्य में है।
- गिरना इसके बायें तट तथा अरुणावती इसके दायें तट से मिलने वाली प्रमुख नदियाँ हैं।
गोदावरी
- (1465 किमी.)
- यह प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदी है, जिसका अपवाह तंत्र सबसे बड़ा है। यह महाराष्ट्र के नासिक जिले के ‘त्र्यंबक’ नामक स्थान से निकलती है।
- पूर्णा, वर्धा, मंजरा, पेनगंगा, वेनगंगा, प्राणहिता, इंद्रावती, सबरी आदि गोदावरी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
- आकार एवं विस्तार में बड़ी होने के कारण इसे ‘दक्षिण भारत की गंगा’ के नाम से जाना जाता है।
- इसकी द्रोणी महाराष्ट्र (नदी द्रोणी का 50 प्रतिशत भाग), मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक में है।
कृष्णा
- (1,402 किमी.)
- यह प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है, जिसका उद्गम महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट (सहयाद्रि) में महाबलेश्वर के पास से होता है।
- इसकी सहायक नदियों में तुंगभद्रा, कोयना, घाटप्रभा, मालप्रभा, मुसी, भीमा आदि प्रमुख हैं।
- तुंगभद्रा, कृष्णा की सबसे बड़ी सहायक नदी है। तुंगभद्रा की प्रमुख सहायक नदी हगरी है।
- कृष्णा नदी गोदावरी नदी के साथ मिलकर आंध्र प्रदेश में भारत का दूसरा सबसे बड़ा डेल्टा बनाती है।
- कृष्णा नदी जल विवादआंध्र प्रदेश, कर्नाटक व महाराष्ट्र के मध्य है।
महानदी
- (851 किमी)
- इसका उद्गम छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में ‘सिंहावा पहाड़ी’ के पास से हुआ है तथा यह नदी ओडिशा में बहती हुई ‘पाराद्वीप’ के पास बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- शिवनाथ, मांड और ईब, बायें तट से तथा जोंक और तेल दायें तट से मिलने वाली महानदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
- हीराकुड, टिकरपारा बांध इस नदी पर प्रमुख बहुउद्देशीय परियोजनाएँ हैं।
- महानदी द्रोणी का अपवाह महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड तथा ओडिशा में है।
कावेरी
- (800 किमी.)
- इसका उद्गम कर्नाटक के कोड़ागु (कोगाडु) जिले की ‘ब्रह्मगिरी पहाड़ियों से होता है।
- ऊपरी घाट में ‘दक्षिण-पश्चिम मानसून’ तथा निचले घाट में ‘उत्तर-पूर्वी मानसून’ द्वारा वर्षा जल की उपलब्धता के कारण ही यह हिमालयी नदियों की तरह एक सदानीरा नदी है, जो कि प्रायद्वीपीय नदियों में एक अपवाद भी है।
- यह भारत में दूसरा सबसे बड़ा जलप्रपात बनाती है, जिसे ‘शिवसमुद्रम’ के नाम से जाना जाता है।
- इसकी द्रोणी तमिलनाडु तथा पुदुच्चेरी में 56 प्रतिशत, केरल में 3 प्रतिशत तथा कर्नाटक में 41 प्रतिशत है।
- हेमावती, लोकापावनी, हेरांगी, शिमसा और अर्कावती बायें तट से तथा लक्ष्मणतीर्थ, काबीनी, सुवर्णवती, भवानी और अमरावती, कावेरी के दायें तट से मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
- यह नदी तीन बार दो धाराओं में विभक्त हो जाती है और कुछ मील आगे जाकर पुनः मिल जाती है। अपने प्रवाह क्रम में यह श्रीरंगपट्टनम्, शिवसमुद्रम् एवं श्रीरंगम् द्वीपों का निर्माण करती है।
लूनी नदी
- (320 किमी.)
- इसका उद्गम अजमेर के दक्षिण-पश्चिम में अरावली पहाड़ियों से होता है। यह राजस्थान तथा गुजरात में प्रवाहित होती हुई कच्छ के रन की दलदली भूमि में विलुप्त हो जाती है।
- यह एक अंतर्वाही नदी है जो ‘लवण नदी‘ के नाम से प्रसिद्ध है।
- सरसुती, बुंदी, सुकरी एवं जवाई इसकी सहायक नदियाँ हैं।
- सरसुती नदी का उद्भवपुष्कर झील से होता है।
तटीय नदियाँ (Coastal Rivers)
- तटीय क्षेत्रों में अनेक छोटी नदियाँ हैं। ये नदियाँ पश्चिम में अरब सागर की ओर तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी की ओर बहती हैं।
- पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ शेत्रुंजी , भद्रा/भादर, वैतरणी , कालिंदी (काली नदी), बेदति, शरावती, भरतपुझा, पेरियार, पंबा आदि हैं।
- पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ वंशधारा, पेन्नार, पलार, वैगई, स्वर्ण रेखा, वैतरणी, ब्राह्मणी आदि हैं।
प्रमुख नदियाँ तथा उनसे संबंधित तथ्य
नोटः
- कॉन्गो- कॉन्गो या जायरे नदी अफ्रीका महाद्वीप की दूसरी सबसे लंबी नदी है। यह नदी दो बार भूमध्य रेखा को पार करती है।
- नील- नील नदी का उद्गम भूमध्य रेखा पर स्थित विक्टोरिया झील से होता है। यह उत्तर की ओर बहते हुए कर्क रेखा को भी पार करती है, इस तरह नील नदी भूमध्य रेखा एवं कर्क रेखा दोनों से संबंधित है।
- लिम्पोपो- अफ्रीका महाद्वीप के दक्षिणी भाग में अपवाहित होने वाली लिम्पोपो नदी मकर रेखा को दो बार पार करती है।
- बरमेजो- दक्षिण अमेरिका की यह नदी मकर रेखा को तीन बार काटती है।
- माही- मध्य प्रदेश के धार जिले में विंध्य श्रेणियों से निकलने वाली माही नदी कर्क रेखा को दो बार काटते हुए मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात में बहकर खंभात की खाड़ी (अरब सागर) में गिरती है।