ज्वालामुखी (Volcano)
- ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उपस्थित ऐसी दरार या मुख होता है जिससे पृथ्वी के भीतर का गर्म लावा, गैस, भस्म आदि बाहर आते हैं।
- इसके अंतर्गत पृथ्वी के आंतरिक परतों ‘ में पेरीडोटाइट के गलन से मैग्मा की उत्पत्ति होती है।
- जब यही मैग्मा पृथ्वी के आतरिक परतों को तोड़ते हुए सतह पर पहुँचता है तो उसे ‘लावा‘ की संज्ञा दी जाती है। ज्वालामुखी क्रिया के अंतर्गत लावा के अतिरिक्त गैस, राख व तरल पदार्थ भी पृथ्वी की सतह पर पहुँचते हैं।
- ज्वालामुखी क्रिया में सबसे अधिक जलवाष्प गैस निकलती है।
- ज्वालामुखी से जलवाष्प के अलावा कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन जैसी कई अन्य गैसें भी निकलती हैं।
ज्वालामुखी के कारण (Causes of Volcanism)
- पृथ्वी की आंतरिक परतों में रेडियोएक्टिव तत्वों के विघटन के फलस्वरूप अत्यधिक तापमान के कारण संवहन धाराओं की उत्पत्ति होती है जो प्लेटों के संचलन हेतु प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं।
- संवहन धाराओं के प्रभाव से प्लेटों में अपसारी व अभिसारी प्लेट संचलन संपन्न होता है।
- अपसारी प्लेट सीमांत पर प्लेटों के एक-दूसरे के विपरीत संचलन हाने से भ्रंशन की क्रिया के फलस्वरूप दाब में कमी के कारण शात दरार प्रकार की ज्वालामुखी की क्रिया संपन्न होती है।
- फलस्वरूप महासागरीय बेसिन पर जहाँ बेसाल्ट लावा से महासागरीय कटक (मध्य अटलांटिक कटक) का निर्माण होता है,
- वहीं महाद्वीपीय क्षेत्र पर बेसाल्टिक पठार (दक्कन का पठार) का विकास होता है।
- अभिसारी प्लेट सीमांत पर अत्यधिक घनत्व वाली प्लेट का कम घनत्व वाली प्लेट के नीचे अधिक गहराई में क्षेपण होने से तापमान व दाब की अधिकता के कारण मैग्मा की उत्पत्ति होती है और जब यही मैग्मा पृथ्वी की आंतरिक परतों को तोड़ते हुए सतह पर आता है
- तो महाद्वीपीय क्षेत्र में ज्वालामुखी पर्वत (एंडीज पर्वतश्रृंखला के ज्वालामुखी) तथा महासागरीय क्षेत्र में ज्वालामुखी द्वीप का निर्माण होता है।
सक्रियता के आधार पर
- सक्रिय ज्वालामुखी
- सुषुप्त ज्वालामुखी
- मृत ज्वालामुखी
विस्फोटकता के आधार पर
- शांत दरारी प्रकार का ज्वालामुखी
- केंद्रीय विस्फोटक प्रकार का ज्वालामुखी
भौगोलिक अवस्थिति के आधार पर
- प्लेट सीमांत ज्वालामुखी
- अपसारी प्लेट सीमांत ज्वालामुखी – ज्वालामुखी कटक
- अभिसारी प्लेट सीमांत ज्वालामुखी
- महासागरीय-महाद्वीपीय टक्कर – ज्वालामुखी श्रृंखला
- महासागरीय-महासागरीय टक्कर – ज्वालामुखी द्वीप समूह
- अंतः प्लेट ज्वालामुखी
अम्लीयता एवं क्षारीयता के आधार पर
- पीलियन तुल्य
- वल्केनियन तुल्य
- स्ट्रॉम्बोली तुल्य
- हवाईयन तुल्य
- विसुवियस या प्लीनियन तुल्य
सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano)
- वे ज्वालामुखी जिनसे समय-समय पर मैग्मा निकलता रहता है अथवा वर्तमान में उद्गार हो रहे हैं, को ‘सक्रिय ज्वालामुखी’ कहते हैं। जैसे
- लिपारी द्वीप समूह (इटली) का स्ट्रॉम्बोली (भूमध्यसागर का प्रकाश
- माउंट एटना (इटली)
- इक्वाडोर का कोटोपैक्सी
- अंडमान-निकोबार का बैरन द्वीप (भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी)
- माउंट एरेबुस (अंटार्कटिका)
- मौना लोआ (हवाई द्वीप समूह)
- मेयोन (फिलीपींस)
प्रसुप्त/ सुषुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano)
- वे ज्वालामुखी जो कुछ समय या लंबे समय से सक्रिय नहीं हैं, लेकिन कभी भी सक्रिय हो सकते हैं, ‘सुषुप्त ज्वालामुखी’ कहलाते हैं। जैसे
- जापान का फ्यूजीयामा
- इटली का विसुवियस
- अंडमान-निकोबार का नारकोंडम
शांत/मृत ज्वालामुखी (Extinct Volcano)
- ऐसे ज्वालामुखी, जिसमें हजारों वर्षों या लंबे अरसों से कोई उद्भेदन नहीं हुआ है तथा भविष्य में भी उद्भेदन की कोई संभावना नहीं है, मृत ज्वालामुखी कहलाते हैं।
- तंजानिया का किलिमंजारो
- म्यांमार का पोपा
- ईरान का देमबंद
- अर्जेंटीना का एकांकागुआ
- इक्वाडोर का चिंबोराज़ो
- पाकिस्तान का कोह-ए-सुल्तान (कुछ मानक स्रोतों में ईरान में स्थित बताया गया है)
शांत दरारी प्रकार का ज्वालामुखी
- ज्वालामुखी क्रिया के दौरान जब ज्वालामुखी से मैग्मा का उद्गार विस्फोटक प्रकार का न होकर दरारी प्रकार का हो तथा मैग्मा कम गाढ़ा हो तब उसे ‘शांत दरारी प्रकार का ज्वालामुखी’ कहते हैं।
- इसमें मैग्मा सतह पर दूर तक फैलकर जम जाता है, जैसे
- बेसाल्ट चट्टान से निर्मित भारत का दक्कन ट्रैप
- यूएसए में कोलंबिया का स्नेक पठार
- ब्राज़ील का पराना पठार
- दक्षिण अफ्रीका का ड्रैकेंसबर्ग पठार
केंद्रीय विस्फोटक प्रकार का ज्वालामुखी
- ज्वालामुखी क्रिया के दौरान जब अम्लीय एवं गाढ़ा मैग्मा विस्फोट के साथ सतह पर आता है तो इसे ही केंद्रीय विस्फोटक प्रकार का ज्वालामुखी’ कहते हैं।
- इसमें मैग्मा सतह पर न फैलकर शंकु का निर्माण करता है।
अपसारी प्लेट सीमांत ज्वालामुखी
- अपसारी प्लेट संचलन के कारण भ्रंश घाटी की चौड़ाई में वृद्धि से जब दाब में कमी आती है तब पेरिडोटाइट के गलन से क्षारीय मैग्मा की उत्पत्ति होती है और जब यहीं मैग्मा सतह पर आता है तो शांत दरार प्रकार की ज्वालामुखी प्रक्रिया से महासागरों में कटकों का निर्माण होता है, जैसे.
- मध्य अटलांटिक कटक (डॉल्फिन तथा चैलेंजर कटक)
- हिंद महासागरीय कटक (सोकोत्रा तथा चागोस कटक)
- प्रशांत महासागरीय कटक (हवाईयन तथा दक्षिणी होंशु कटक)
अभिसारी प्लेट सीमांत ज्वालामुखी
- अभिसारी प्लेट सीमांत पर जहाँ प्लेटों की आपसी टक्कर से महासागरीय प्लेट का गहराई में क्षेपण होता है, वहीं क्षेपित प्लेट के तापमान में वृद्धि से भूपर्पटी (क्रस्ट) का आंशिक गलन होने के कारण मैग्मा का निर्माण होता है।
- यहीं मैग्मा जब पृथ्वी की आंतरिक परतों को तोड़ते हुए सतह पर आता है तो केंद्रीय विस्फोटक प्रकार की ज्वालामुखी क्रिया होती है।
- इसके द्वारा पूर्वी-प्रशांत महासागर के सहारे विस्तृत मोड़दार पर्वतीय क्षेत्रों में ‘ज्वालामुखी श्रृंखला’ का निर्माण हुआ है, जबकि पश्चिमी भाग में ‘ज्वालामुखी द्वीप समूह‘ की उत्पत्ति हुई है।
- महासागरीय प्लेटों का वह भाग जहाँ क्षेपण के बाद भूकंप की उत्पत्ति होती है, उसे ‘बेनी ऑफ जोन’ (Benioff Zone) कहते हैं।
अंत: प्लेट ज्वालामुखी
- इसका संबंध प्लेट सीमांत से दूर स्थित ‘तप्त स्थल’ (Hot-Spot) से होता है, जो पृथ्वी के अंदर स्थित एक ऐसा स्थान होता है, जहाँ अपेक्षाकृत अधिक तापमान होने से मैग्मा का निर्माण होता है।
- महाद्वीप की तुलना में महासागरीय प्लेट की मोटाई कम होती है। अतः तप्त स्थल के मैग्मा के महासागरीय सतह पर आने की संभावना अधिक रहती है।
पीलियन तुल्य ज्वालामुखी
- इस प्रकार के ज्वालामुखी के मैग्मा में सिलिका की मात्रा अधिक होने के कारण मैग्मा अधिक चिपचिपा एवं अम्लीय होता है, जिसके कारण यह ज्वालामुखी अधिक विनाशकारी होता है।
- पीलियन तुल्य ज्वालामुखी का नामकरण पश्चिमी द्वीप समूह (कैरीबियन सागर) के पीलियन ज्वालामुखी के नाम पर पड़ा है।
वल्केनियन तुल्य ज्वालामुखी
- इसमें अम्लीय एवं क्षारीय, सभी प्रकार के मैग्मा की उत्पत्ति होती है।
- मैग्मा के साथ अत्यधिक मात्रा में गैस के निकलने के कारण फूलगोभी के आकार की ज्वालामुखी से निर्मित बादलों का निर्माण होता है।
स्ट्रॉम्बोली तुल्य ज्वालामुखी
- इस प्रकार के ज्वालामुखी मैग्मा में सिलिका की मात्रा कम होने के कारण कुछ कम अम्लीय होते हैं।
- सामान्यतः इसमें उद्गार बिना विस्फोट के होता है.
हवाईयन तुल्य ज्वालामुखी
- इसमें मैग्मा का उद्गार शांत तरीके से होता है तथा विस्फोट बहुत कम होता है क्योंकि लावा तरल एवं अत्यधिक क्षारीय होता है।
- अत्यधिक तरल होने के कारण लावा सतह पर दूर तक फैलकर जमकर कठोर हो जाता है।
विसुवियस तुल्य ज्वालामुखी
- इस प्रकार के ज्वालामुखी में लावा में गैसों की अधिकता होने के कारण उद्गार विस्फोटक रूप में होता है।
- विस्फोट के कारण निर्मित बादल का आकार फूलगोभी के समान होता है।
ज्वालामुखी क्रिया से निर्मित स्थलाकृतियाँ
- बाह्य स्थलाकृति
- दरारी उद्गार द्वारा निर्मित स्थलाकृति
- लावा पठार
- लावा मैदान
- दरारी उद्गार द्वारा निर्मित स्थलाकृति
- केंद्रीय विस्फोट द्वारा निर्मित स्थलाकृति
- ज्वालामुखी शंकु
- क्रेटर
- काल्डेरा
- अभ्यांतरिक स्थलाकृति
- बैथोलिथ
- लैकोलिथ
- फैकोलिथ
- लोपोलिथ
- सिल एवं शीट
- डाइक
लावा पठार
- ज्वालामुखी के दरारी उद्भेदन के समय भू-गर्भ से बेसाल्टिक मैग्मा भू-पटल पर चादरीय स्वरूप में प्रकट होता है तथा तरल होने के कारण शाघ्रता से क्षैतिज रूप में धरातल पर जम जाता है। यदि इसकी परत की गहराई अधिक होती है तो उसे ‘लावा पठार’ कहते हैं। उदाहरण
- भारत का दक्कन का लावा पठार
- संयुक्त राज्य अमेरिका का कोलंबिया का लावा पठार
लावा मैदान
- यदि वृहद् क्षेत्र में फैले लावा की परत की गहराई कम हो तो उसे लावा का मैदान’ कहते हैं। उदाहरणार्थ- स्नेक रिवर प्लेन (यूएसए), प्री-कैंब्रियन शील्ड (उत्तरी कनाडा)
चालामुखी शंकु
- ” शकु का निर्माण ज्वालामुखी उद्गार के समय निकास नली के चारों ओर लावा का शंक्वाकार रूप में जमने से होता है जबकि इसका मध्य भाग एक कीपाकार गर्त के रूप में विकसित होता है।
- इनमें उपस्थित पदार्थों की रासायनिक संरचना एवं संघटन के अनुसार ज्वालामुखी शंकु कई प्रकार के होते हैं, जैसे- सिंडर शंकु, मिश्रित या कंपोजिट शंकु, लावा शंकु, परिपोषित शंकु आदि।
गेसर/गीज़र (Geyser)
- गीज़र, गर्म जलस्रोत होते हैं, जिनका ज्वालामुखी क्रिया से संबध होता है। बहुत से ज्वालामुखी क्षेत्रों में निर्मित दरारों से फुहारों के रूप में गर्म जल निकलता है, इसे ही ‘गीज़र’ कहते हैं।
- कभी-कभी इनकी ऊँचाई सैकड़ों फीट तक होती है। उदाहरणार्थ संयुक्त राज्य अमेरिका के यलोस्टोन नेशनल पार्क में ‘ओल्ड फेथफुल गीज़र’।
धुआँरा (Fumarole)
- जब ज्वालामुखी के उद्गार से लावा, राख तथा विखंडित पदार्थ आदि का निकलना समाप्त हो जाता है तो कभी-कभी कुछ समयांतराल के बाद उससे भाप और गैसें निकलती रहती हैं और दूर से देखने में ऐसा लगता है मानो धुआँ-ही-धुआँ निकल रहा हो। इसे ‘धुआँरा’ कहते हैं। धुआँरे ज्वालामुखी की सक्रियता के अंतिम लक्षण भी माने जा सकते हैं।
- अलास्का के कटमई नेशनल पार्क को ‘दस सहस्र धूम्र घाटी’ (A Valley of Ten Thousand Smokes) कहा जाता है।
- धुआँरे के साथ वाष्प गैस तथा कुछ खनिज पदार्थ निस्सृत होते हैं। इनमें गंधक की प्रमुखता होती है। ऐसे धुआँरे, जिनसे अधिक मात्रा में गंधक निकलता है, उन्हें ‘गंधकीय धुआँरे’ या ‘सोलफतारा’ कहते हैं।
- धुआँरों का आर्थिक उपयोग भी होता है। इनसे गंधक एवं बोरिक एसिड प्राप्त किया जाता है।
ज्वालामुखी का वैश्विक वितरण (Global Distribution of Volcano)
- प्लेट विवर्तनिकी के आधार पर 80 प्रतिशत ज्वालामुखी विनाशात्मक किनारों पर, 15 प्रतिशत रचनात्मक किनारों पर एवं शेष 5 प्रतिशत आंतरिक भागों में पाए जाते हैं, जिनका विभिन्न ज्वालामुखी पेटियों के रूप में विभाजन निम्नलिखित है
प्रशांत महासागरीय पेटी
- विश्व के ज्वालामुखी क्षेत्र का लगभग 2/3 भाग प्रशांत महासागर के पूर्वी एवं पश्चिमी किनारों तथा द्वीपों के सहारे पाया जाता है। इसे ‘अग्नि वलय’ (Ring of Fire) भी कहते हैं।
- यह पेटी ‘माउंट इरेबुस’ (अंटार्कटिका) से लेकर दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतमाला व उत्तरी अमेरिका के रॉकी पर्वत से लेकर अलास्का, पूर्वी रूस, जापान, फिलीपींस से होते हुए ‘मध्य महाद्वीपीय पेटी’ में मिल जाती है।
रिंग ऑफ फायर (Ring of Fire)
- ‘रिंग ऑफ फायर’ प्रशांत महासागर में भूकंप एवं ज्वालामुखी से प्रभावित लगभग 40,000 किमी. के क्षेत्र में ‘घोड़े के नाल’ के आकार में फैला एक विस्तृत क्षेत्र है।
- विश्व के अधिकांश भूकंप एवं ज्वालामुखी (सक्रिय एवं सुषुप्त) इसी क्षेत्र में आते हैं, जो प्रशांत महासागर के पूर्वी एवं पश्चिमी दोनों किनारों पर विस्तृत हैं।
मध्य महाद्वीपीय पेटी
- इस क्षेत्र में यूरेशियन, अफ्रीकन एवं इंडियन प्लेट के अभिसरण क्षेत्र में ज्वालामुखी क्षेत्र स्थित हैं। इसकी दो शाखाएँ हैं- पहली शाखा अटलांटिक (आंध्र) महासागर से होती हुई पश्चिमी द्वीप समूह तक जाती है एवं दूसरी स्पेन, इटली होते हुए हिमालय की ओर आगे बढ़ती हुई दक्षिण में प्रशांत महासागरीय पेटी में मिल जाती है।
- इस पेटी के हिमालयन क्षेत्र में ज्वालामुखी क्रियाएँ नहीं होती क्योंकि – इस क्षेत्र में प्लेटों का क्षेपण उस अनुपात (गहराई) में नहीं है, जिस अनुपात में ज्वालामुखी क्रिया के लिए होना चाहिए।
मध्य अटलांटिक मेखला या महासागरीय कटक ज्वालामुखी
- इस क्षेत्र में रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे ज्वालामुखी क्रियाएँ होती रहती हैं, जिसमें अपसरण से भ्रंश घाटी एवं महासागरीय कटकों का निर्माण होता है। इस क्षेत्र में पाए जाने वाले ज्वालामुखी निम्नलिखित हैं
- आइसलैंड का हेकला एवं लॉकी ज्वालामुखी।
- दक्षिणी अटलांटिक महासागर का सेंट हेलेना।
भूकंप एवं ज्वालामुखी में संबंध (Relationship between Earthquakes and volcanoes)
- प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के द्वारा भूकंप एवं ज्वालामुखी के अंतर्संबंधों की स्पष्ट व्याख्या की जा सकती है। इसके अनुसार, ज्वालामुखी क्रिया के दौरान जब मैग्मा आंतरिक परतों को तोड़ते हुए सतह पर आता है तो परतों के टूटने के क्रम में भूकंप की उत्पत्ति होती है इसलिये ज्वालामुखी से प्रभावित सभी क्षेत्र भूकंप से भी प्रभावित क्षेत्र होते हैं।
- वहीं भकंप से प्रभावित सभी क्षेत्रों में ज्वालामुखी की अनिवार्य क्रिया नहीं होती है, क्योंकि कभी-कभी प्लेटों का क्षेपण अत्यधिक गहराई तक नहीं हो पाता है, जिससे कि प्लेट गलकर मैग्मा में परिवर्तित हो सके। साथ ही, जहाँ ज्वालामुखीयता का संबंध केवल अभिसारी (सामान्यतया महाद्वीपीय- महाद्वीपीय टक्कर को छोड़कर) व अपसारी प्लेट संचलन से है, वहीं भूकंप का संबंध सभी प्लेट सीमाओं से है।
- इस प्रकार, सभी ज्वालामुखी प्रभावित क्षेत्र भूकंप प्रभावित होते हैं. जबकि सभी भूकंप प्रभावित क्षेत्र ज्वालामुखी प्रभावित नहीं होते।
विश्व के प्रमुख ज्वालामुखी
नाम | देश |
ओजोस डेल सलाडो | अर्जेंटीना-चिली |
एरेनल , इराजू | कोस्टारिका |
क्राकाटाओ | इंडोनेशिया |
कोटोपैक्सी | इक्वाडोर |
किलायू | हवाई द्वीप |
किलिमंजारो | तंजानिया |
माउंट कैमरून | .कैमरून (अफ्रीका) |
माउंट लेमिंग्टन | पापुआ न्यू गिनी |
माउंट एटना | सिसली (इटली) |
माउंट इरेबुस | अंटार्कटिका |
माउंट सेंट हेलेंस | संयुक्त राज्य अमेरिका |
माउंट पिनाटुबो | फिलीपींस |
माउंट रेनियर | संयुक्त राज्य अमेरिका |
मोना लोआ | हवाई द्वीप |
माउंट केलिमुटू | इंडोनेशिया |
फ्यूजीयामा | जापान |
चिंबराजो | इक्वाडोर |
विसुवियस | इटली (नेपल्स की खाड़ी) |
माउंट ताल | फिलीपींस |
माउंट पोपा | म्याँमार |
स्ट्रॉम्बोली | लिपारी द्वीप समूह (इटली) |
देमबंद | ईरान |
टकाना | ग्वाटेमाला व मेक्सिको |
कटमई | अलास्का |
माउंट शस्ता, माउंट हुड | संयुक्त राज्य अमेरिका |
मेयोन | फिलीपींस |
हेकला व लाकी | आइसलैंड |
लैसेन पीक | संयुक्त राज्य अमेरिका |
मेरापी,सेमेरू | इंडोनेशिया |
कोलिमा | मेक्सिको |
सबनकाया | पेरू |
अलबुर्ज | ईरान |
किनाबालू | मलेशिया |
एकांकागुआ | अर्जेंटीना |
मैग्मा/लावा (Magma/Lava)
- मैग्मा एक गर्मगलित पदार्थ है, जिसकी उत्पत्ति तापमान में वृद्धि या दाब में कमी या दोनों के कारण होती है और यह पृथ्वी की सतह के नीचे निर्मित होता है।
- जब मैग्मा सतह पर पहुँचता है तो उसे ‘लावा‘ कहते हैं।
- मैग्मा में सिलिका की मात्रा का उसकी अम्लीयता एवं गाढ़ेपन से सीधा संबध होता है।
- गाढ़ा मैग्मा (अम्लीय) पृथ्वी की आंतरिक परतों को तोड़ते हुए ‘केंद्रीय विस्फोटक ज्वालामुखी प्रक्रिया’ द्वारा सतह पर आता है, जिससे डायोराइट, एंडेसाइट, ग्रेनाइट एवं रायोलाइट से निर्मित चट्टानों एवं संरचनाओं का निर्माण होता है।
- तरल मैग्मा (क्षारीय), ‘शांत दरार’ प्रकार की ज्वालामुखी प्रक्रिया के द्वारा सतह पर आता है, जिससे बेसाल्ट चट्टान से निर्मित संरचनाओं (पठार एवं महासागरीय कटक) का निर्माण होता है।
- ज्वालामुखी बम (Volcanic Bomb)- ज्वालामखी उद्गार की प्रक्रिया में निकले चट्टानों के बडे-बडे टुकड़ों को ‘ज्वालामुखी बम’ कहते हैं।
- ये गर्मगलित अवस्था में रहते हैं, लेकिन जैसे-जैसे सतह पर आते हैं, इनका शीतलन होता जाता है और अंततः ठंडे होकर ठोस अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं।
- Lapilli- ज्वालामुखी प्रक्रिया से निष्कर्षित, लगभग मटर के दाने के बराबर वाली ठोस लावा चट्टानों को ‘लैपिली’ कहते हैं।
- प्यूमिस (Pumice)- ये लावा के झाग से बने होते हैं, इसलिये इसका घनत्व जल के घनत्व से भी कम होता है, फलतः ये जल के ऊपर तैरते हैं।
- धूल/राख (Dust/ash)- अति महीन चट्टानी कण, जो हवा के साथ उड़ सकते हैं, धूल/ राख कहलाते हैं।
- पाइरोक्लास्ट (Pyroclasts)- ज्वालामुखी क्रिया में निकलने वाले चट्टानों के बड़े टुकड़ों को
सुनामी (Tsunami)
- सुनामी एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ ‘बंदरगाही लहरें‘ होता है।
- सुनामी उच्च ऊर्जा वाली दीर्घ महासागरीय तरंगें होती हैं।
- सुनामी की उत्पत्ति के कारन
- महासागरीय तली में भ्रंशन व प्लेटों के टकराने के कारण उत्पन्न भूकंप (रिक्टर स्केल पर 7.0 से अधिक) से
- महासागरीय भूस्खलन
- तटीय क्षेत्रों में हिमस्खलन
- महासागरीय तली पर होने वाले ज्वालामुखी विस्फोट से
- स्वालिग प्रभाव’ (Shoaling effect) – जहाँ गहरे महासागर में सुनामी की लंबाई सर्वाधिक तथा तरंग की ऊंचाई कम होती है, वहीं जैसे-जैसे सुनामी तटों की ओर अग्रसर होती है. उसकी लंबाई में कमी व तरंगों की ऊँचाई में जाता है.
- अत्यधिक गहरे समुद्र में सुनामी की गति सर्वाधिक जबकि महासागरीय तटो पर न्यूनतम होता है।
- सुनामी तरंगें ज्वारीय तरंगों से भिन्न होती हैं।
- डार्ट (Deep-Ocean Assessment and Reporting of Tsunamis-DART) सुनामी का पता लगाने तथा प्राप्त सूचनाओं को प्रभावित क्षेत्रों तक त्वरित रूप से पहुँचाने के लिये यह एक खास तकनीक है।
- इससे सुनामी से होने वाले प्रभावों व विनाश से पूर्व बचाव का उचित प्रबंधन किया जा सकेगा। इसके दो प्रमुख भाग होते हैं
- सुनामीटरः इससे समुद्र तल में आए भूकंप की तीव्रता की जानकारी मिलती है।
- सिग्नलिंग एंड कम्युनिकेटिंगः इससे सुनामी के सभी संभावित क्षेत्रों में खतरे की चेतावनी दी जाती है।
- सुनामी की सर्वाधिक उत्पत्ति प्रशांत महासागर में होती है।
- हिंद महासागर में 26 दिसंबर, 2004 को आए भूकंप के कारण शक्तिशाली सुनामी की उत्पत्ति हुई, जिससे भारी जन-धन की हानि हई इसी तरह मार्च 2011 में प्रशांत महासागर के पश्चिमी क्षेत्र में शक्तिशाली सुनामी की उत्पत्ति हुई, जिसने जापान में भारी तबाही मचाई थी।