Page Contents ToggleReport a questionछऊ नृत्यझूमर नृत्य के प्रमुख प्रकार पाइका नृत्य Report a question What's wrong with this question?You cannot submit an empty report. Please add some details. /39 Created by M. Mahatoझारखण्ड के लोकनृत्य QuizBY : SARKARI LIBRARYMANANJAY MAHATO 1 / 391. झारखण्ड राज्य में पुरुषों द्वारा त्यौहारों और शादियों आदि समारोहों जैसे मौके पर तलवार और ढ़ाल के साथ कौन-सा नृत्य किया जाता है? PGT-2018 (A) डोमकच (B) फगुआ (C) घुमरा (D) पइका पाइका नृत्ययह एक ओजपूर्ण नृत्य है। इसमें नर्तक सैनिक वेश धारण करके नृत्य करते हैं। नर्तकों को एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में शील्ड (ढाल) को संभालना होता है। इसमें नर्तक रंग-बिरंगी झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी (टोपी) बाँधते हैं।इस नृत्य में पगड़ी पर कलगी अनिवार्य होता है। यह उत्तेजक, ओजस्वी, मनोरंजक व वीरतापरक गीत रहित नृत्य है। यह नृत्य पद के साथ मार्शल आर्ट तकनीक (मार्शिलय नृत्य / युद्ध नृत्य) का संयोजन भी है। । यह केवल पुरूष सदस्यों द्वारा किया जाता है तथा इस नृत्य में पाँच, सात या नौ के जोडे होते हैं।यह एक युद्ध नृत्य है तथा यह आदिवासी व सदान दोनों में प्रचलित है। यह नृत्य मुण्डा जनजाति में सर्वाधिक प्रचलित है। डॉ. रामदयाल मुण्डा के नेतृत्व में इस नृत्य का मंचन भारत महोत्सव (रूस) में किया गया था जो रूस में अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। 2 / 392. झारखण्ड के किस नृत्य शैली को राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय प्रसिद्धि मिली है? 5th JPSC (PT) - 2013 (A) फगुआ (B) छऊ (C) डोमकच (D) पइका छऊ नृत्यछऊ नृत्य नृत्य का प्रारंभ - सरायकेला में हुआ यहीं से यह मयूरभंज (उड़ीसा) व पुरूलिया (प० बंगाल) में विस्तारित हुआ। यह झारखण्ड का सबसे प्रसिद्ध लोकनृत्य है। छऊ नृत्य को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष ख्याति प्राप्त है। इसकी तीन शैलियाँ सरायकेला (झारखण्ड), मयूरभंज (उड़ीसा) तथा पुरूलिया (प० बंगाल) हैं। छऊ की सबसे प्राचीन शैली ‘सरायकेला छऊ' है।झारखण्ड के खूटी जिले में इसकी एक विशेष शैली 'सिंगुआ छऊ' का विकास हुआ है। यह पुरूष प्रधान नृत्य है।इसका विदेश में सर्वप्रथम प्रदर्शन 1938 ई. में सुधेन्दु नारायण सिंह द्वारा किया गया। यह एक ओजपूर्ण नृत्य है इसमें विभिन्न मुखौटों को पहनकर पात्र पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं का मंचन करते हैं। इसके अतिरिक्ति कठोरवा नृत्य में भी पुरूष मुखौटा पहनकर नृत्य करते हैंइस नृत्य में प्रयुक्त हथियार वीर रस के तथा कालिभंग श्रृंगार रस को प्रतिबिंबित करते हैं। इस नृत्य में भावो की अभिव्यक्ति के साथ-साथ कथानक भी होता है जबकि झारखण्ड के अन्य लोकनृत्यों में केवल भावों की अभिव्यक्ति होती, कथानक नहीं।इसमें प्रशिक्षक/गुरू की उपस्थिति अनिवार्य होती है। वर्ष 2010 में छऊ नृत्य को यूनेस्को द्वारा 'विरासत नृत्य' में शामिल किया गया है। 3 / 393. झूमर, पड़का, नटुआ तथा अग्नि सभी प्रकार हैं : TGT-2012 (A) नृत्य के (B) संगीत के (C) लोक कला के (D) लिपिओं के झूमर नृत्ययह नृत्य मुख्यतः फसल की कटाई के अवसर पर किया जाता है। यह स्त्री प्रधान नृत्य है। जनजातियों द्वारा विवाह तथा अन्य पर्व-त्योहारों के अवसर पर भी इस नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है। यह नृत्य घेरा बनाकर समूह में किया जाता है। झूमर नृत्य के प्रमुख प्रकार करिया झूमर नृत्य - स्त्री प्रधान नृत्य उधउआ नृत्य - गाढ़े प्रकृति का झूमर नृत्य रसकिर्रा नृत्य - तीव्र गति का झूमर नृत्य पहिल सांझा नृत्य - रात के प्रथम पहर में किया जाने वाला धीमे व मध्यम गति का झूमर नृत्य अधरतिया नृत्य - आधी रात के समय तीव्र गति से किया जानेवाला रस से परिपूर्ण झूमर नृत्य भिनसरिया नृत्य - रात्रि के अवसान के बाद मध्यम गति पर किया जाने वाला अग्नि नृत्य यह धार्मिक नृत्य है।इस नृत्य के द्वारा शील की पूजा की जाती है।यह नृत्य मण्डा या विपु पूजा के अवसर पर किया जाता है। नटुआ नृत्य यह पुरुष प्रधान नृत्य है। इसमें पुरुषों द्वारा स्त्री वेश धारण करके नृत्य किया जाता है।पाइका नृत्ययह एक ओजपूर्ण नृत्य है। इसमें नर्तक सैनिक वेश धारण करके नृत्य करते हैं। नर्तकों को एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में शील्ड को संभालना होता है। इसमें नर्तक रंग-बिरंगी झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी (टोपी) बाँधते हैं।इस नृत्य में पगड़ी पर कलगी अनिवार्य होता है। यह उत्तेजक, ओजस्वी, मनोरंजक व वीरतापरक गीत रहित नृत्य है। यह नृत्य पद के साथ मार्शल आर्ट तकनीक (मार्शिलय नृत्य / युद्ध नृत्य) का संयोजन भी है। । यह केवल पुरूष सदस्यों द्वारा किया जाता है तथा इस नृत्य में पाँच, सात या नौ के जोडे होते हैं।यह एक युद्ध नृत्य है तथा यह आदिवासी व सदान दोनों में प्रचलित है। यह नृत्य मुण्डा जनजाति में सर्वाधिक प्रचलित है। डॉ. रामदयाल मुण्डा के नेतृत्व में इस नृत्य का मंचन भारत महोत्सव (रूस) में किया गया था जो रूस में अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। 4 / 394. सरायकेला छऊ निम्नलिखित में से किसके साथ जुड़े हैं? SI (PT)-2017 (A) छऊ नृत्य (B) छऊ संगीत (C) छऊ व्यापार (D) छऊ पेंटिंग्स छऊ नृत्यछऊ नृत्य नृत्य का प्रारंभ - सरायकेला में हुआ यहीं से यह मयूरभंज (उड़ीसा) व पुरूलिया (प० बंगाल) में विस्तारित हुआ। यह झारखण्ड का सबसे प्रसिद्ध लोकनृत्य है। छऊ नृत्य को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष ख्याति प्राप्त है। इसकी तीन शैलियाँ सरायकेला (झारखण्ड), मयूरभंज (उड़ीसा) तथा पुरूलिया (प० बंगाल) हैं। छऊ की सबसे प्राचीन शैली ‘सरायकेला छऊ' है।झारखण्ड के खूटी जिले में इसकी एक विशेष शैली 'सिंगुआ छऊ' का विकास हुआ है। यह पुरूष प्रधान नृत्य है।इसका विदेश में सर्वप्रथम प्रदर्शन 1938 ई. में सुधेन्दु नारायण सिंह द्वारा किया गया। यह एक ओजपूर्ण नृत्य है इसमें विभिन्न मुखौटों को पहनकर पात्र पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं का मंचन करते हैं। इसके अतिरिक्ति कठोरवा नृत्य में भी पुरूष मुखौटा पहनकर नृत्य करते हैंइस नृत्य में प्रयुक्त हथियार वीर रस के तथा कालिभंग श्रृंगार रस को प्रतिबिंबित करते हैं। इस नृत्य में भावो की अभिव्यक्ति के साथ-साथ कथानक भी होता है जबकि झारखण्ड के अन्य लोकनृत्यों में केवल भावों की अभिव्यक्ति होती, कथानक नहीं।इसमें प्रशिक्षक/गुरू की उपस्थिति अनिवार्य होती है। वर्ष 2010 में छऊ नृत्य को यूनेस्को द्वारा 'विरासत नृत्य' में शामिल किया गया है। 5 / 395. इनमें से कौन-सा एक लोक नृत्य झारखण्ड का नहीं है? TGT - 2009 (A) घूमर (B) पइका (C) छऊ (D) करमा घूमर राजस्थान का एक लोकप्रिय नृत्य है, जो महिलाओं द्वारा किया जाता है। 6 / 396. कृष्णलीला, भकुली बंका, कीर्तनिया, ये सभी..............के प्रकार हैं । SI (PT)-2017 (A) संगीत (B) नाटक (C) नृत्य (D) साहित्य जट-जटिन नाटक आयोजन - श्रावण से कार्तिक माह के बीचकुँवारी लड़कियों द्वारा वैवाहिक जीवन को दर्शाया जाता है। भकुली-बंका नाटकआयोजन - श्रावण (सावन) से कार्तिक माह तक वैवाहिक जीवन को दर्शाया जाता है। भकुली का मतलब - पत्नीबंका का मतलब - पति सामा-चकेवा नाटकआयोजन - कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी से पूर्णमासी तक सामा - नाट्य के नायिका कोचकेवा - नायक कोचूड़क/चुगला- खलनायक को साम्ब- सामा के भाई को यह सामूहिक गीत है। प्रश्नोत्तर माध्यम से विषय-वस्तु को प्रस्तुत किया जाता है।यह भाई-बहन के पवित्र प्रेम से संबंधित लोकनाट्य है।किरतनिया नाटकइसमें भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन गायन के द्वारा किया जाता है। 7 / 397. दशहरा में निम्नलिखित में से कौन-सा नृत्य शिक्षक और छात्र दोनों द्वारा एक साथ किया जाता है? SI (PT)-2017 (A) दोंगेड (B) बाहा (C) दोहा (D) दसंय दसाई नृत्य इस नृत्य का आयोजन दशहरा से ठीक पहले पांच दिनों हेतु आदिवासी पुरूषों द्वारा किया जाता है। नृत्य के दौरान नृतक के माथे पर मोर का पंख लगा होता है।दशहरा में नृत्य शिक्षक और छात्र दोनों द्वारा एक साथ किया जाता है? SI (PT)-2017इस नृत्य में भाग लेने वाले पुरुष ,महिला के वेश में वाद्ययंत्रों पर नृत्य करते हैं। इस नृत्य के दौरान प्रयुक्त होने वाला वाद्ययंत्र सूखे कटू से बनाया जाता है, जिसे भुआंगकहते हैं। इसके अतिरिक्त इस नृत्य में थाली व घंटी का भी प्रयोग किया जाता है।इस नृत्य की शुरूआत बाहरी आक्रमणकारियों द्वारा आदिवासी क्रांतिकारियों को बंदी बनाने के बाद उन आदिवासियों को ढूंढने हेतु हुआ था। इस दौरान पुरूष द्वारा महिला का रूप धारण करके बंदी बनाए गए क्रांतिकारियों को ढूंढने हेतु टोलियों में निकलते थे। इस नृत्य के प्रारंभ में माँ दुर्गा की अराधना की जाती है। इस नृत्य की शुरूआत हाय रे हाय... शब्द (बंदी बनाने का दु:ख) के साथ शुरू होता है तथा इसकी समाप्ति देहेल, देहेल शब्द (विजय का प्रतीक) के साथ होती है। 8 / 398. झारखण्ड की स्थानीय जनजातियों के बीच प्रचलित जशपुरिया, असमिया, झुमटा, एकहरिया नृत्य के प्रकार है। SI (PT)-2017 (A) फगुआ (B) बाहा (C) डोमकच (D) दसंय डोमकच नृत्य यह स्त्रियों द्वारा विशेष अवसरों (जैसे - विवाह आदि) पर आयोजित घरेलू लोक नाट्य है। इसमें हास-परिहास, अश्लील हाव-भाव व संवाद का प्रदर्शन किया जाता है।इस लोकनाट्य का सामूहिक प्रदर्शन नहीं किया जाता है। पुरुषों को देखने की मनाही होती है।इसका आयोजन विवाह एवं अन्य अवसरों पर रात भर किया जाता है। यह एक लोकनृत्य है, जिसका निष्पादन विवाह के दौरान दूल्हे के परिवार में किया जाता हैझारखण्ड की स्थानीय जनजातियों के बीच प्रचलित जशपुरिया, असमिया, झुमटा, एकहरिया आदि डोमकच नृत्य के प्रकार है। 9 / 399. यह एक लोकनृत्य है, जिसका निष्पादन विवाह के दौरान दूल्हे के परिवार में किया जाता है (A) पाइका (B) करमा (C) डमकच (D) लहसुआ डोमकच यह स्त्रियों द्वारा विशेष अवसरों (जैसे - विवाह आदि) पर आयोजित घरेलू लोक नाट्य है। इसमें हास-परिहास, अश्लील हाव-भाव व संवाद का प्रदर्शन किया जाता है।इस लोकनाट्य का सामूहिक प्रदर्शन नहीं किया जाता है। पुरुषों को देखने की मनाही होती है।इसका आयोजन विवाह एवं अन्य अवसरों पर रात भर किया जाता है। यह एक लोकनृत्य है, जिसका निष्पादन विवाह के दौरान दूल्हे के परिवार में किया जाता है 10 / 3910. निम्नलिखित में से किस राज्य का लोकनृत्य करमा है? Panchayat Secretary-2018 (A) झारखण्ड और छत्तीसगढ़ (B) पकेवल छत्तीसगढ़ (C) केवल झारखण्ड (D) झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश करमा/लहुसा नृत्य इस नृत्य में 8 पुरूष / 8 स्त्री भाग लेते हैं। यह नृत्य मुख्यतः करमा पर्व के अवसर पर सामूहिक रूप से किया जाता है। इस नृत्य में पुरूष व स्त्रियाँ गोलार्द्ध बनाकर आमने-सामने खड़े होते हैं तथा एक-दूसरे के आगे-पीछे चलते हुए नृत्य करते हैं।यह नृत्य झुककर किया जाता है। इस नृत्य के दौरान 'लहुसा गीत' गाया जाता है। इस नृत्य के दो प्रकार खेमटा और झिनसारी हैं। झारखण्ड के इस लोकनृत्य का नाम एक करमवृक्ष के नाम पर पड़ा हैकरमा झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश राज्य का लोकनृत्य है 11 / 3911. झारखण्ड में 'पाइका' क्या है? A.नृत्य B.लोकगीत C.चित्रकला D.लोककला पाइका नृत्ययह एक ओजपूर्ण नृत्य है। इसमें नर्तक सैनिक वेश धारण करके नृत्य करते हैं। नर्तकों को एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में शील्ड को संभालना होता है। इसमें नर्तक रंग-बिरंगी झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी (टोपी) बाँधते हैं।इस नृत्य में पगड़ी पर कलगी अनिवार्य होता है। यह उत्तेजक, ओजस्वी, मनोरंजक व वीरतापरक गीत रहित नृत्य है। यह नृत्य पद के साथ मार्शल आर्ट तकनीक (मार्शिलय नृत्य / युद्ध नृत्य) का संयोजन भी है। । यह केवल पुरूष सदस्यों द्वारा किया जाता है तथा इस नृत्य में पाँच, सात या नौ के जोडे होते हैं।यह एक युद्ध नृत्य है तथा यह आदिवासी व सदान दोनों में प्रचलित है। यह नृत्य मुण्डा जनजाति में सर्वाधिक प्रचलित है। डॉ. रामदयाल मुण्डा के नेतृत्व में इस नृत्य का मंचन भारत महोत्सव (रूस) में किया गया था जो रूस में अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। 12 / 3912. छऊ नृत्य की तीन शैलियाँ देखने में आती हैं, जिनका नामकरण उनके निष्पादन स्थल के अनुरूप किया जाता है। झारखण्ड में स्थान नाम है (A) मयूरभंज (B) पुरूलिया (C) सरायकेला (D) कोडरमा छऊ नृत्य नृत्य का प्रारंभ - सरायकेला में हुआ यहीं से यह मयूरभंज (उड़ीसा) व पुरूलिया (प० बंगाल) में विस्तारित हुआ। यह झारखण्ड का सबसे प्रसिद्ध लोकनृत्य है। छऊ नृत्य को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष ख्याति प्राप्त है। इसकी तीन शैलियाँ सरायकेला (झारखण्ड), मयूरभंज (उड़ीसा) तथा पुरूलिया (प० बंगाल) हैं। छऊ की सबसे प्राचीन शैली ‘सरायकेला छऊ' है।झारखण्ड के खूटी जिले में इसकी एक विशेष शैली 'सिंगुआ छऊ' का विकास हुआ है। यह पुरूष प्रधान नृत्य है।इसका विदेश में सर्वप्रथम प्रदर्शन 1938 ई. में सुधेन्दु नारायण सिंह द्वारा किया गया। यह एक ओजपूर्ण नृत्य है इसमें विभिन्न मुखौटों को पहनकर पात्र पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं का मंचन करते हैं। इसके अतिरिक्ति कठोरवा नृत्य में भी पुरूष मुखौटा पहनकर नृत्य करते हैंइस नृत्य में प्रयुक्त हथियार वीर रस के तथा कालिभंग श्रृंगार रस को प्रतिबिंबित करते हैं। इस नृत्य में भावो की अभिव्यक्ति के साथ-साथ कथानक भी होता है जबकि झारखण्ड के अन्य लोकनृत्यों में केवल भावों की अभिव्यक्ति होती, कथानक नहीं।इसमें प्रशिक्षक/गुरू की उपस्थिति अनिवार्य होती है। वर्ष 2010 में छऊ नृत्य को यूनेस्को द्वारा 'विरासत नृत्य' में शामिल किया गया है। 13 / 3913. दोसमी नृत्य में ....... प्रकार के संगीत का प्रयोग किया जाता है। ST (PT) - 2017 (A) शेरू (B) लांगड़े (C) बिहा (D) कर्मा लांगड़े नृत्ययह संथाली जनजाति का लोकनृत्य है। यह नृत्य किसी भी खुशी या उत्सव के अवसर पर किया जाता है। दोसमी नृत्य में लांगड़े प्रकार के संगीत का प्रयोग किया जाता है। ST (PT) - 2017 14 / 3914. सरायकेला की मिट्टी, किसकी लय के साथ जीवंत है? SI (Mains) -2017 (A) फगुआ (B) छऊ (C) डोमकच (D) पइका छऊ नृत्यछऊ नृत्य नृत्य का प्रारंभ - सरायकेला में हुआ यहीं से यह मयूरभंज (उड़ीसा) व पुरूलिया (प० बंगाल) में विस्तारित हुआ। यह झारखण्ड का सबसे प्रसिद्ध लोकनृत्य है। छऊ नृत्य को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष ख्याति प्राप्त है। इसकी तीन शैलियाँ सरायकेला (झारखण्ड), मयूरभंज (उड़ीसा) तथा पुरूलिया (प० बंगाल) हैं। छऊ की सबसे प्राचीन शैली ‘सरायकेला छऊ' है।झारखण्ड के खूटी जिले में इसकी एक विशेष शैली 'सिंगुआ छऊ' का विकास हुआ है। यह पुरूष प्रधान नृत्य है।इसका विदेश में सर्वप्रथम प्रदर्शन 1938 ई. में सुधेन्दु नारायण सिंह द्वारा किया गया। यह एक ओजपूर्ण नृत्य है इसमें विभिन्न मुखौटों को पहनकर पात्र पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं का मंचन करते हैं। इसके अतिरिक्ति कठोरवा नृत्य में भी पुरूष मुखौटा पहनकर नृत्य करते हैंइस नृत्य में प्रयुक्त हथियार वीर रस के तथा कालिभंग श्रृंगार रस को प्रतिबिंबित करते हैं। इस नृत्य में भावो की अभिव्यक्ति के साथ-साथ कथानक भी होता है जबकि झारखण्ड के अन्य लोकनृत्यों में केवल भावों की अभिव्यक्ति होती, कथानक नहीं।इसमें प्रशिक्षक/गुरू की उपस्थिति अनिवार्य होती है। वर्ष 2010 में छऊ नृत्य को यूनेस्को द्वारा 'विरासत नृत्य' में शामिल किया गया है। 15 / 3915. छऊ ....... है। SI (PT)-2017 (A) छऊ नृत्य (B) छऊ संगीत (C) छऊ व्यापार (D) छऊ पेंटिंग्स छऊ नृत्यछऊ नृत्य नृत्य का प्रारंभ - सरायकेला में हुआ यहीं से यह मयूरभंज (उड़ीसा) व पुरूलिया (प० बंगाल) में विस्तारित हुआ। यह झारखण्ड का सबसे प्रसिद्ध लोकनृत्य है। छऊ नृत्य को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष ख्याति प्राप्त है। इसकी तीन शैलियाँ सरायकेला (झारखण्ड), मयूरभंज (उड़ीसा) तथा पुरूलिया (प० बंगाल) हैं। छऊ की सबसे प्राचीन शैली ‘सरायकेला छऊ' है।झारखण्ड के खूटी जिले में इसकी एक विशेष शैली 'सिंगुआ छऊ' का विकास हुआ है। यह पुरूष प्रधान नृत्य है।इसका विदेश में सर्वप्रथम प्रदर्शन 1938 ई. में सुधेन्दु नारायण सिंह द्वारा किया गया। यह एक ओजपूर्ण नृत्य है इसमें विभिन्न मुखौटों को पहनकर पात्र पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं का मंचन करते हैं। इसके अतिरिक्ति कठोरवा नृत्य में भी पुरूष मुखौटा पहनकर नृत्य करते हैंइस नृत्य में प्रयुक्त हथियार वीर रस के तथा कालिभंग श्रृंगार रस को प्रतिबिंबित करते हैं। इस नृत्य में भावो की अभिव्यक्ति के साथ-साथ कथानक भी होता है जबकि झारखण्ड के अन्य लोकनृत्यों में केवल भावों की अभिव्यक्ति होती, कथानक नहीं।इसमें प्रशिक्षक/गुरू की उपस्थिति अनिवार्य होती है। वर्ष 2010 में छऊ नृत्य को यूनेस्को द्वारा 'विरासत नृत्य' में शामिल किया गया है। 16 / 3916. पइका क्या है? 1st JPSC (PT) - 2003 (A) नृत्य (B)संगीत (C) लोक कला (D) पेंटिंग्स पाइका नृत्ययह एक ओजपूर्ण नृत्य है। इसमें नर्तक सैनिक वेश धारण करके नृत्य करते हैं। नर्तकों को एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में शील्ड (ढाल) को संभालना होता है। इसमें नर्तक रंग-बिरंगी झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी (टोपी) बाँधते हैं।इस नृत्य में पगड़ी पर कलगी अनिवार्य होता है। यह उत्तेजक, ओजस्वी, मनोरंजक व वीरतापरक गीत रहित नृत्य है। यह नृत्य पद के साथ मार्शल आर्ट तकनीक (मार्शिलय नृत्य / युद्ध नृत्य) का संयोजन भी है। । यह केवल पुरूष सदस्यों द्वारा किया जाता है तथा इस नृत्य में पाँच, सात या नौ के जोडे होते हैं।यह एक युद्ध नृत्य है तथा यह आदिवासी व सदान दोनों में प्रचलित है। यह नृत्य मुण्डा जनजाति में सर्वाधिक प्रचलित है। डॉ. रामदयाल मुण्डा के नेतृत्व में इस नृत्य का मंचन भारत महोत्सव (रूस) में किया गया था जो रूस में अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। 17 / 3917. निम्नलिखित पारंपरिक नृत्य रूपों में से झारखण्ड का नृत्य कौन-सा है ? IRB-2017 (A) सत्रिया (B) पुलिकाली (C) घुमरा (D) पइका घुमरा राजस्थान का एक लोकप्रिय नृत्य है, जो महिलाओं द्वारा किया जाता है।पुलिकाली, जिसे पुलीकली के नाम से भी जाना जाता है, एक रंगीन और ऊर्जावान लोक नृत्य है जो भारत के दक्षिणी राज्य केरल में मनाया जाता है। यह नृत्य, जिसे "टाइगर डांस" के रूप में अनुवादित किया जा सकता हैसत्रिया भारत का एक शास्त्रीय नृत्य है जो असम राज्य से उत्पन्न हुआ है। 18 / 3918. हंट के लिए तैयारी करने का कार्य किस नृत्य रूप में दर्शाया गया है? SI (PT)-2017 (A) हुंटा (B) मुंडारी (C) डोमकच (D) बराव जपी नृत्य यह नृत्य शिकार से विजयी होकर लौटने के प्रतीक के रूप में किया जाता है।यह सरहुल पर्व (चैत) में प्रारंभ होकर आषाढ़ी पर्व (आषाढ़) तक चलता है।यह मध्यम गति का नृत्य है, जिसे स्त्री-पुरूष सामूहिक रूप से प्रदर्शित करते हैं। इस नृत्य के दौरान महिलाएँ एक-दूसरे की कमर पकड़ कर नृत्य करती हैं तथा वादक, गायक व नर्तक पुरूष इन महिलाओं से घिरे होते हैं। हुंटा नृत्य : हंट के लिए तैयारी करने का कार्य हुंटा नृत्य में दर्शाया गया है 19 / 3919. झारखण्ड में एक लोकप्रिय मार्शल नृत्य कौन-सा है? (A) दोहरी दोमकच (B) पाइका (C) फगुवा (D) विंसरिया पाइका नृत्ययह एक ओजपूर्ण नृत्य है। इसमें नर्तक सैनिक वेश धारण करके नृत्य करते हैं। नर्तकों को एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में शील्ड को संभालना होता है। इसमें नर्तक रंग-बिरंगी झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी (टोपी) बाँधते हैं।इस नृत्य में पगड़ी पर कलगी अनिवार्य होता है। यह उत्तेजक, ओजस्वी, मनोरंजक व वीरतापरक गीत रहित नृत्य है। यह नृत्य पद के साथ मार्शल आर्ट तकनीक (मार्शिलय नृत्य / युद्ध नृत्य) का संयोजन भी है। । यह केवल पुरूष सदस्यों द्वारा किया जाता है तथा इस नृत्य में पाँच, सात या नौ के जोडे होते हैं।यह एक युद्ध नृत्य है तथा यह आदिवासी व सदान दोनों में प्रचलित है। यह नृत्य मुण्डा जनजाति में सर्वाधिक प्रचलित है। डॉ. रामदयाल मुण्डा के नेतृत्व में इस नृत्य का मंचन भारत महोत्सव (रूस) में किया गया था जो रूस में अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। 20 / 3920. लुरिसायरो, झारखण्ड की जनजातियों द्वारा किया जाने वाला एक प्रकार का …. है। Revenue Staff ( Mains) - 2017 (A) लोक नृत्य (B)लोक संगीत (C) लोक कला (D) पेंटिंग्स 21 / 3921. इनमें से कौन-सा एक लोकनृत्य झारखण्ड का नहीं है? (A) पइका (B) घूमर (C) नटुआ (D) छऊ पाइका नृत्ययह एक ओजपूर्ण नृत्य है। इसमें नर्तक सैनिक वेश धारण करके नृत्य करते हैं। नर्तकों को एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में शील्ड को संभालना होता है। इसमें नर्तक रंग-बिरंगी झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी (टोपी) बाँधते हैं।इस नृत्य में पगड़ी पर कलगी अनिवार्य होता है। यह उत्तेजक, ओजस्वी, मनोरंजक व वीरतापरक गीत रहित नृत्य है। यह नृत्य पद के साथ मार्शल आर्ट तकनीक (मार्शिलय नृत्य / युद्ध नृत्य) का संयोजन भी है। । यह केवल पुरूष सदस्यों द्वारा किया जाता है तथा इस नृत्य में पाँच, सात या नौ के जोडे होते हैं।यह एक युद्ध नृत्य है तथा यह आदिवासी व सदान दोनों में प्रचलित है। यह नृत्य मुण्डा जनजाति में सर्वाधिक प्रचलित है। डॉ. रामदयाल मुण्डा के नेतृत्व में इस नृत्य का मंचन भारत महोत्सव (रूस) में किया गया था जो रूस में अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। छऊ नृत्यछऊ नृत्य नृत्य का प्रारंभ - सरायकेला में हुआ यहीं से यह मयूरभंज (उड़ीसा) व पुरूलिया (प० बंगाल) में विस्तारित हुआ। यह झारखण्ड का सबसे प्रसिद्ध लोकनृत्य है। छऊ नृत्य को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष ख्याति प्राप्त है। इसकी तीन शैलियाँ सरायकेला (झारखण्ड), मयूरभंज (उड़ीसा) तथा पुरूलिया (प० बंगाल) हैं। छऊ की सबसे प्राचीन शैली ‘सरायकेला छऊ' है।झारखण्ड के खूटी जिले में इसकी एक विशेष शैली 'सिंगुआ छऊ' का विकास हुआ है। यह पुरूष प्रधान नृत्य है।इसका विदेश में सर्वप्रथम प्रदर्शन 1938 ई. में सुधेन्दु नारायण सिंह द्वारा किया गया। यह एक ओजपूर्ण नृत्य है इसमें विभिन्न मुखौटों को पहनकर पात्र पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं का मंचन करते हैं। इसके अतिरिक्ति कठोरवा नृत्य में भी पुरूष मुखौटा पहनकर नृत्य करते हैंइस नृत्य में प्रयुक्त हथियार वीर रस के तथा कालिभंग श्रृंगार रस को प्रतिबिंबित करते हैं। इस नृत्य में भावो की अभिव्यक्ति के साथ-साथ कथानक भी होता है जबकि झारखण्ड के अन्य लोकनृत्यों में केवल भावों की अभिव्यक्ति होती, कथानक नहीं।इसमें प्रशिक्षक/गुरू की उपस्थिति अनिवार्य होती है। वर्ष 2010 में छऊ नृत्य को यूनेस्को द्वारा 'विरासत नृत्य' में शामिल किया गया है। नटुआ नृत्य यह पुरुष प्रधान नृत्य है।इसमें पुरुषों द्वारा स्त्री वेश धारण करके नृत्य किया जाता है। घूमर राजस्थान का एक लोकप्रिय नृत्य है, जो महिलाओं द्वारा किया जाता है 22 / 3922. रूस में भारत महोत्सव में निम्नलिखित में से कौन-सा नृत्य प्रस्तुत किया गया है? SI (PT)-2017 (A) डोमकच (B) फगुआ (C) घुमरा (D) पइका पाइका नृत्ययह एक ओजपूर्ण नृत्य है। इसमें नर्तक सैनिक वेश धारण करके नृत्य करते हैं। नर्तकों को एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में शील्ड (ढाल) को संभालना होता है। इसमें नर्तक रंग-बिरंगी झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी (टोपी) बाँधते हैं।इस नृत्य में पगड़ी पर कलगी अनिवार्य होता है। यह उत्तेजक, ओजस्वी, मनोरंजक व वीरतापरक गीत रहित नृत्य है। यह नृत्य पद के साथ मार्शल आर्ट तकनीक (मार्शिलय नृत्य / युद्ध नृत्य) का संयोजन भी है। । यह केवल पुरूष सदस्यों द्वारा किया जाता है तथा इस नृत्य में पाँच, सात या नौ के जोडे होते हैं।यह एक युद्ध नृत्य है तथा यह आदिवासी व सदान दोनों में प्रचलित है। यह नृत्य मुण्डा जनजाति में सर्वाधिक प्रचलित है। डॉ. रामदयाल मुण्डा के नेतृत्व में इस नृत्य का मंचन भारत महोत्सव (रूस) में किया गया था जो रूस में अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। 23 / 3923. छऊ नृत्य झारखण्ड के कौन-से जिले से संबंधित है? SI (PT)-2017 (A) देवघर (B) चतरा (C) सरायकेला-खरसावां (D) गोड्डा छऊ नृत्यछऊ नृत्य नृत्य का प्रारंभ - सरायकेला में हुआ यहीं से यह मयूरभंज (उड़ीसा) व पुरूलिया (प० बंगाल) में विस्तारित हुआ। यह झारखण्ड का सबसे प्रसिद्ध लोकनृत्य है। छऊ नृत्य को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष ख्याति प्राप्त है। इसकी तीन शैलियाँ सरायकेला (झारखण्ड), मयूरभंज (उड़ीसा) तथा पुरूलिया (प० बंगाल) हैं। छऊ की सबसे प्राचीन शैली ‘सरायकेला छऊ' है।झारखण्ड के खूटी जिले में इसकी एक विशेष शैली 'सिंगुआ छऊ' का विकास हुआ है। यह पुरूष प्रधान नृत्य है।इसका विदेश में सर्वप्रथम प्रदर्शन 1938 ई. में सुधेन्दु नारायण सिंह द्वारा किया गया। यह एक ओजपूर्ण नृत्य है इसमें विभिन्न मुखौटों को पहनकर पात्र पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं का मंचन करते हैं। इसके अतिरिक्ति कठोरवा नृत्य में भी पुरूष मुखौटा पहनकर नृत्य करते हैंइस नृत्य में प्रयुक्त हथियार वीर रस के तथा कालिभंग श्रृंगार रस को प्रतिबिंबित करते हैं। इस नृत्य में भावो की अभिव्यक्ति के साथ-साथ कथानक भी होता है जबकि झारखण्ड के अन्य लोकनृत्यों में केवल भावों की अभिव्यक्ति होती, कथानक नहीं।इसमें प्रशिक्षक/गुरू की उपस्थिति अनिवार्य होती है। वर्ष 2010 में छऊ नृत्य को यूनेस्को द्वारा 'विरासत नृत्य' में शामिल किया गया है। 24 / 3924. करमा नृत्य के दो प्रकार कौन से हैं? 7th-10th JPSC (PT)-2021 (A) घुड़ीया एवं पनारी (B) मागे एवं जोरगो (C) गोतियो एवं छऊ (D) खेमटा एवं भिनुसारी करमा/लहुसा नृत्य इस नृत्य में 8 पुरूष / 8 स्त्री भाग लेते हैं। यह नृत्य मुख्यतः करमा पर्व के अवसर पर सामूहिक रूप से किया जाता है। इस नृत्य में पुरूष व स्त्रियाँ गोलार्द्ध बनाकर आमने-सामने खड़े होते हैं तथा एक-दूसरे के आगे-पीछे चलते हुए नृत्य करते हैं।यह नृत्य झुककर किया जाता है। इस नृत्य के दौरान 'लहुसा गीत' गाया जाता है। इस नृत्य के दो प्रकार खेमटा और झिनसारी हैं। झारखण्ड के इस लोकनृत्य का नाम एक करमवृक्ष के नाम पर पड़ा है 25 / 3925. यह एक लोक नृत्य है, जिसका निष्पादन विवाह के दौरान दूल्हे के परिवार में किया जाता है? Excise Constable - 2019 (A) दोंगेड (B) बाहा (C) डोमकच (D) दसंय डोमकच नृत्य यह स्त्रियों द्वारा विशेष अवसरों (जैसे - विवाह आदि) पर आयोजित घरेलू लोक नाट्य है। इसमें हास-परिहास, अश्लील हाव-भाव व संवाद का प्रदर्शन किया जाता है।इस लोकनाट्य का सामूहिक प्रदर्शन नहीं किया जाता है। पुरुषों को देखने की मनाही होती है।इसका आयोजन विवाह एवं अन्य अवसरों पर रात भर किया जाता है। यह एक लोकनृत्य है, जिसका निष्पादन विवाह के दौरान दूल्हे के परिवार में किया जाता है 26 / 3926. सोहराइ नृत्य में महिला गाती हैं। SI (PT)-2017 (A) जमाव (B) चुमावड़ी (C) लंगड़े (D) सकरात सोहराई नृत्यइस नृत्य का आयोजन पालतू पशुओं के लिए किया जाता है।इस नृत्य के दौरान गोशाला में पूजा की जाती है।नृत्य के दौरान महिलाओं के द्वारा चुमावड़ी गीत गाया जाता है।इस नृत्य के दौरान पुरूष गाँव-जमाव गीत गाकर नाचते हैं। 27 / 3927. झारखण्ड राज्य में पुरुषों द्वारा त्योहारों और शादियों आदि समारोहों जैसे मौका पर तलवार और ढाल के साथ कौन-सा नृत्य किया जाता है? (A) पाईका (B) फगुआ (C) अग्नि (D) अमर पाइका नृत्ययह एक ओजपूर्ण नृत्य है। इसमें नर्तक सैनिक वेश धारण करके नृत्य करते हैं। नर्तकों को एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में शील्ड (ढाल) को संभालना होता है। इसमें नर्तक रंग-बिरंगी झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी (टोपी) बाँधते हैं।इस नृत्य में पगड़ी पर कलगी अनिवार्य होता है। यह उत्तेजक, ओजस्वी, मनोरंजक व वीरतापरक गीत रहित नृत्य है। यह नृत्य पद के साथ मार्शल आर्ट तकनीक (मार्शिलय नृत्य / युद्ध नृत्य) का संयोजन भी है। । यह केवल पुरूष सदस्यों द्वारा किया जाता है तथा इस नृत्य में पाँच, सात या नौ के जोडे होते हैं।यह एक युद्ध नृत्य है तथा यह आदिवासी व सदान दोनों में प्रचलित है। यह नृत्य मुण्डा जनजाति में सर्वाधिक प्रचलित है। डॉ. रामदयाल मुण्डा के नेतृत्व में इस नृत्य का मंचन भारत महोत्सव (रूस) में किया गया था जो रूस में अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। 28 / 3928. नटुवा नाच में प्रयुक्त पगड़ी को पंच परगना क्षेत्र में सामान्यतः कहा जाता है। SI (PT)-2017 (A) दोंगेड (B) कालगा (C) टोपी (D) पगड़ी नटुआ नृत्य/ नटुवा नाच यह पुरुष प्रधान नृत्य है। इसमें पुरुषों द्वारा स्त्री वेश धारण करके नृत्य किया जाता है।नटुवा नाच में प्रयुक्त पगड़ी को पंच परगना क्षेत्र में सामान्यतः कालगा कहा जाता है। 29 / 3929. निम्नलिखित में से किस नृत्य को 'युद्ध नृत्य/ मार्शियल नृत्य' की संज्ञा दी गयी है ? SI (PT)-2017, Constable - 2016 (A) डोमकच (B) फगुआ (C) घुमरा (D) पइका पाइका नृत्ययह एक ओजपूर्ण नृत्य है। इसमें नर्तक सैनिक वेश धारण करके नृत्य करते हैं। नर्तकों को एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में शील्ड (ढाल) को संभालना होता है। इसमें नर्तक रंग-बिरंगी झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी (टोपी) बाँधते हैं।इस नृत्य में पगड़ी पर कलगी अनिवार्य होता है। यह उत्तेजक, ओजस्वी, मनोरंजक व वीरतापरक गीत रहित नृत्य है। यह नृत्य पद के साथ मार्शल आर्ट तकनीक (मार्शिलय नृत्य / युद्ध नृत्य) का संयोजन भी है। । यह केवल पुरूष सदस्यों द्वारा किया जाता है तथा इस नृत्य में पाँच, सात या नौ के जोडे होते हैं।यह एक युद्ध नृत्य है तथा यह आदिवासी व सदान दोनों में प्रचलित है। यह नृत्य मुण्डा जनजाति में सर्वाधिक प्रचलित है। डॉ. रामदयाल मुण्डा के नेतृत्व में इस नृत्य का मंचन भारत महोत्सव (रूस) में किया गया था जो रूस में अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। 30 / 3930. झारखण्ड में आयोजित मछुआ महोत्सव में सामान्यतः नृत्य प्रदर्शित किया जाता है। SI (PT)-2017 (A) दोंगेड (B) बाहा (C) भादुरिया (D) दसंय लुरिसायरो नृत्य झारखण्ड की जनजातियों द्वारा किया जाने वाला एक प्रकार का लोकनृत्य है। Revenue Staff ( Mains) - 2017झारखण्ड में 'धुबिया' नृत्य को कहा जाता हैझारखण्ड में पंवड़िया लोक नृत्य को जन्मोत्सव आदि अवसरों पर पुरुषों के द्वारा किया जाता है? SI (Mains) - 2017झारखण्ड में आयोजित मछुआ महोत्सव में सामान्यतः भादुरिया नृत्य प्रदर्शित किया जाता है। SI (PT)-2017 31 / 3931. झारखण्ड में 'धुबिया' किसको कहा जाता है? SI (Mains) - 2017 (A) नृत्य (B)संगीत (C) लोक कला (D) पेंटिंग्स झारखण्ड की जनजातियों द्वारा किया जाने वाला एक प्रकार का लोकनृत्य है। Revenue Staff ( Mains) - 2017झारखण्ड में 'धुबिया' नृत्य को कहा जाता है 32 / 3932. लाँगड़े क्या है? 6th JPSC (PT) - 2016 (A) नृत्य (B) संगीत (C) लोक कला (D) वाद्य यंत्र लांगड़े नृत्ययह संथाली जनजाति का लोकनृत्य है।यह नृत्य किसी भी खुशी या उत्सव के अवसर पर किया जाता है। 33 / 3933. झारखण्ड में किस लोक नृत्य को जन्मोत्सव आदि अवसरों पर पुरुषों के द्वारा किया जाता है? SI (Mains) - 2017 (A) करमा नृत्य (B) जोग्गा नृत्य (C) झरनी नृत्य (D) पंवड़िया नृत्य झारखण्ड की जनजातियों द्वारा किया जाने वाला एक प्रकार का लोकनृत्य है। Revenue Staff ( Mains) - 2017झारखण्ड में 'धुबिया' नृत्य को कहा जाता हैझारखण्ड में पंवड़िया लोक नृत्य को जन्मोत्सव आदि अवसरों पर पुरुषों के द्वारा किया जाता है? SI (Mains) - 2017 34 / 3934. ...... स्थानीय नृत्य संगीत का प्रकार नहीं है । ST (PT) - 2017 (A) बिहा (B) डोमकच (C) लुझरी (D) खेमटा लुझरी नृत्य इसमें लुझकते हुए नृत्य मंडली झूमर नृत्य करती है।इसका प्रयोग स्त्री व पुरूष दोनों के द्वारा झूमर के दौरान किया जाता है।यह अंगनई की एक शैली है तथा इसे लुझकउआ नृत्य भी कहा जाता है। 35 / 3935. झारखण्ड के इस लोक नृत्य का नाम एक वृक्ष के नाम पर पड़ा है : Excise Constable - 2019 (A) घुड़ीया (B) पइका (C) छऊ (D) करमा करमा/लहुसा नृत्य इस नृत्य में 8 पुरूष / 8 स्त्री भाग लेते हैं। यह नृत्य मुख्यतः करमा पर्व के अवसर पर सामूहिक रूप से किया जाता है। इस नृत्य में पुरूष व स्त्रियाँ गोलार्द्ध बनाकर आमने-सामने खड़े होते हैं तथा एक-दूसरे के आगे-पीछे चलते हुए नृत्य करते हैं।यह नृत्य झुककर किया जाता है। इस नृत्य के दौरान 'लहुसा गीत' गाया जाता है। इस नृत्य के दो प्रकार खेमटा और झिनसारी हैं। झारखण्ड के इस लोकनृत्य का नाम एक करमवृक्ष के नाम पर पड़ा है 36 / 3936. निम्न में से किस नृत्य के प्रकार को नचनी खेलड़ी नृत्य भी कहा जाता है ? SI (PT) - 2017 (A) शेरू (B) नटुवा नाच (C) छऊ (D) कली कली नृत्य यह नृत्य महिलाओं द्वारा किया जाता है।नृत्य करने वाली महिलाएँ श्रृंगार से सजकर मुकुट पहनकर नृत्य करती हैं।इस नृत्य में राधा-कृष्ण के प्रेम-प्रसंग की प्रमुखता होती है।इसे नचनी-खेलड़ी नाच भी कहा जाता है। 37 / 3937. झारखण्ड की एक प्राचीन सांस्कृतिक विरासत निम्नलिखित में से कौन-सी है ? Panchayat Secretary-2018 (A) शेरू (B) मुंडारी (C) छऊ (D) इनमें से कोई नहीं छऊ नृत्य नृत्य का प्रारंभ - सरायकेला में हुआ यहीं से यह मयूरभंज (उड़ीसा) व पुरूलिया (प० बंगाल) में विस्तारित हुआ। यह झारखण्ड का सबसे प्रसिद्ध लोकनृत्य है। छऊ नृत्य को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष ख्याति प्राप्त है। इसकी तीन शैलियाँ सरायकेला (झारखण्ड), मयूरभंज (उड़ीसा) तथा पुरूलिया (प० बंगाल) हैं। छऊ की सबसे प्राचीन शैली ‘सरायकेला छऊ' है।झारखण्ड के खूटी जिले में इसकी एक विशेष शैली 'सिंगुआ छऊ' का विकास हुआ है। यह पुरूष प्रधान नृत्य है।इसका विदेश में सर्वप्रथम प्रदर्शन 1938 ई. में सुधेन्दु नारायण सिंह द्वारा किया गया। यह एक ओजपूर्ण नृत्य है इसमें विभिन्न मुखौटों को पहनकर पात्र पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं का मंचन करते हैं। इसके अतिरिक्ति कठोरवा नृत्य में भी पुरूष मुखौटा पहनकर नृत्य करते हैंइस नृत्य में प्रयुक्त हथियार वीर रस के तथा कालिभंग श्रृंगार रस को प्रतिबिंबित करते हैं। इस नृत्य में भावो की अभिव्यक्ति के साथ-साथ कथानक भी होता है जबकि झारखण्ड के अन्य लोकनृत्यों में केवल भावों की अभिव्यक्ति होती, कथानक नहीं।इसमें प्रशिक्षक/गुरू की उपस्थिति अनिवार्य होती है। वर्ष 2010 में छऊ नृत्य को यूनेस्को द्वारा 'विरासत नृत्य' में शामिल किया गया है। 38 / 3938. चढ़नतरी, रसक्रीड़ा, ठढ़िया, तथा खेमटा नृत्य के प्रकार हैं। SI (PT) - 2017 (A) भादुरिया (B) जनानी झूमर (C) अंगनई (D) मुंडारी अंगनई नृत्य यह पूजा के अवसर पर किया जाने वाला एक धार्मिक नृत्य है। यह नृत्य मुख्यतः सदानों में प्रचलित है।इस नृत्य के प्रमुख प्रकार चढ़नतरी, रसक्रीड़ा, थडिया तथा खेमटा हैं। 39 / 3939. झारखण्ड के इस लोकनृत्य का नाम एक वृक्ष के नाम पर पड़ा है (A) पाइका (B) करमा (C) छऊ (D) संथाल करमा/लहुसा नृत्य इस नृत्य में 8 पुरूष / 8 स्त्री भाग लेते हैं। यह नृत्य मुख्यतः करमा पर्व के अवसर पर सामूहिक रूप से किया जाता है। इस नृत्य में पुरूष व स्त्रियाँ गोलार्द्ध बनाकर आमने-सामने खड़े होते हैं तथा एक-दूसरे के आगे-पीछे चलते हुए नृत्य करते हैं।यह नृत्य झुककर किया जाता है। इस नृत्य के दौरान 'लहुसा गीत' गाया जाता है। इस नृत्य के दो प्रकार खेमटा और झिनसारी हैं। झारखण्ड के इस लोकनृत्य का नाम एक करमवृक्ष के नाम पर पड़ा है Your score is 0% Restart quiz झारखण्ड के लोकनृत्य QuizPost published:June 18, 2025