भारत के भाषायी परिवार

  • दुनियाभर में बोली जाने वाली भाषाओं को लगभग 10 भाषा परिवारों में विभाजित किया गया है 
  • इन 10 भाषा परिवारों में 5  भाषा परिवारकी भाषाएँ मुख्य रूप से भारत में प्रयुक्त होती हैं
    1. हिन्द आर्य भाषा समूह (भारोपीय भाषा परिवार की)
    2. द्रविड़ भाषा समूह
    3. ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषा समूह
    4. चीनी-तिब्बती या नाग भाषा समूह
    5. अंडमानी भाषा परिवार 

हिंद-आर्य भाषा परिवार

  • भारत में प्रयुक्त सबसे बड़ा भाषायी परिवार 
  • यह हिंद-युरोपीय भाषा परिवार से निकल है। 
  • संस्कृत, हिंदी, उर्दु ,बांग्ला, गुजराती, मराठी, नेपाली, कश्मीरी इत्यादि भाषाएँ 

द्रविड़ भाषा परिवार

  • भारत में प्रयोग होने वाला दूसरा सबसे बड़ा भाषा परिवार है। 
  • इस भाषा परिवार में सम्मिलित भाषाएँ दक्षिणा भारत में बोली जाती हैं। 
  • द्रविड़ भाषा परिवार में शामिल सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा-  तमिल 
    • जो तमिलनाडु में बोली जाती है। 
  • कर्नाटककन्नड़ 
  • केरलमलयालम 
  • आंध्र प्रदेशतेलुगू 
  • तुलू एवं ब्राहुई भाषा 
    • ब्राहुई भाषा – अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान तथा भारतीय कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में बोली जाती है।

ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार

  • इस भाषा परिवार की सबसे बड़ी भाषा संथाल है
    •  जो पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा तथा असम में मख्य रूप से बोली जाती है। 
    • ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार की भाषाएँ
      • हो,मुंडारी , खड़िया, खासी, सावरा आदि। 

चीनी-तिब्बती भाषा परिवार

  • चीनी-तिब्बती भाषा परिवार की भाषाएँ उत्तर-पूर्वी राज्यों में बोली जाती हैं। 
  • इस परिवार में भाषाओं की संख्या सर्वाधिक है। – 66 भाषा लगभग 
  • इस परिवार की मुख्य भाषाएँ हैं- नगा, मिज़ो, गारो, तमांग, जेमी, मणिपुरी, तांगखुल, दफला इत्यादि।

अंडमानी भाषा परिवार

  • अंडमानी भाषा परिवार की खोज भाषा विज्ञानी प्रो. अन्विता अब्बी द्वारा की गई। 
  • इस समूह की भाषाएँ – ग्रेट अंडमानी, ओंग, जारवा आदि प्रमुख हैं।

भाषा  परिवार

प्रमुख भाषाएँ

बोलने वालों की संख्या

हिंद-आर्य भाषा  परिवार

हिंदी, संस्कृत, उर्दू, मराठी, नेपाली, बांग्ला, गुजराती, कश्मीरी आदि

76.87 %

द्रविड़ भाषा परिवार

तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम

20.82 %

ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार

संथाली, हो, मुंडारी, खड़िया

1.11 %

चीनी-तिब्बती भाषा परिवार

नगा मिज़ो, मणिपुरी, तमांग, दफला इत्यादि

1.0 %

सिंधु लिपि

  • सिंधु लिपि भारत की प्राचीनतम लिपि है, किंतु अभी तक इसे पढ़ा नहीं जा सका है। 
  • विद्वानों के एक वर्ग का मानना है कि सिंधु लिपि यूरोपीय या हिंद-आर्य परिवार से संबंधित है, जबकि दूसरा वर्ग इसे द्रविड़ वर्ग की भाषा समूह से संबंधित मानता है। 
  • इस लिपि के तकरीबन 396 चिह्नों की पहचान कर उन्हें सूचीबद्ध कर दिया है। 
  • सिंधु लिपि अरबी लिपि की भाँति दाईं ओर से बाईं ओर लिखी जाती थी।

ब्राह्मी लिपि

  • ब्राह्मी लिपि भारत की अधिकांश लिपियों की जननी है। 
  • 5वीं सदी ईसा पूर्व से 350 ईसा पूर्व तक इसका एक ही रूप मिलता है, किंतु आगे चलकर यह दो भागों में विभाजित हो गई, जिसे ‘उत्तरी धारा’ एवं ‘दक्षिणी धारा’ के नाम से जाना गया। 
  • ब्राह्मी लिपि की उत्तरी धारा–  
    • गुप्त लिपि, कुटिल लिपि, शारदा लिपि एवं प्राचीन देवनागरी लिपि 
  • ब्राह्मी लिपि की दक्षिणी धारा 
    • तेलुगू, कन्नड़, तमिल, ग्रंथ. कलिंग, मध्यदेशी एवं पश्चिमी लिपि 

खरोष्ठी लिपि

  • प्रारंभ में खरोष्ठी लिपि आरमेइक लिपि की भाँति दाएँ से बाएँ लिखा जाता था लेकिन अब  बाएँ से दाएँ लिखी जाने लगी। 
  • यह आरमेइक एवं सीरियाई लिपि से विकसित हुई है। 
  • यह भारत के सीमांत प्रांत में विकसित हुई लिपि है। 
  • 37 वर्णों वाली खरोष्ठी लिपि में दीर्घ स्वरों का अभाव है
  • इसमें मात्राएँ एवं संयुक्त स्वर नहीं मिलते।
  • सम्राट अशोक के मानसेहरा एवं शाहबाज़गढ़ी अभिलेख खरोष्ठी लिपि के प्राचीनतम अभिलेख माने जाते हैं। 
  • खरोष्ठी लिपि में लिखे गए कई अभिलेख प्राचीन गांधार देश से प्राप्त हुए हैं। ।

देवनागरी लिपि

  • ब्राह्मी लिपि से देवनागरी लिपि का विकास हुआ। 
  • ब्राह्मी लिपि के दो रूप प्रचलित हुए
    • दक्षिणी ब्राह्मी 
    • उत्तरी ब्राह्मी 
  • दक्षिणी ब्राह्मी लिपि से द्रविड परिवार से जुड़ी लिपियों का विकास हुआ 
  • उत्तरी ब्राह्मी लिपि से उत्तर भारतीय लिपियों का विकास हुआ 
    • उत्तरी ब्राह्मी लिपि से ही गुप्त काल में गुप्त लिपि का विकास हुआ 
    • गुप्त लिपि से कुटिल लिपि कही गई। 
    • कुटिल लिपि से दो प्रकार की परंपराएँ विकसित हुईं। 
    • शारदा लिपि – कश्मीर के विद्वानों ने इसे ‘शारदा लिपि’ नाम दिया जबकि 
    • प्राचीन नागरी लिपि – गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि स्थानों में कुटिल लिपि से विकसित होने वाली लिपि को ‘प्राचीन नागरी लिपि’ नाम दिया गया।
      • इस प्राचीन नागरी लिपि से पुनः हिंदी, गुजराती, मराठी एवं बांग्ला आदि के लिये अलग-अलग लिपियाँ विकसित हुईं। 
      • हिंदी भाषा लिपि – देवनागरी
      • देवनागरी  लिपि बायीं ओर से दायीं ओर लिखी जाती है। 
      • यह भारत की अनेक लिपियों के निकट है। 
      • इसका प्रयोग बहुत व्यापक (संस्कृत, हिंदी, मराठी की एकमात्र लिपि) है। 

कुटिल लिपि

  • कुटिल लिपि, गुप्त लिपि का ही परिवर्तित रूप मानी जाती है। 
  • इसे ‘न्यूनकोणीय लिपि’ या ‘सिद्ध मातृका लिपि’ के नाम से भी जाना जाता है। 
  • उत्तरी भारत में छठी शताब्दी से लेकर नौवीं शताब्दी तक यह विशेष प्रचलित थी। 
  • इस लिपि के कई अक्षर नागरी लिपि के अक्षरों से मिलते-जुलते हैं। 

कलिंग लिपि

  • कलिंग में प्रचलित होने के कारण इसका नाम कलिंग लिपि पडा। इस लिपि के 

शारदा लिपि

  • कश्मीर राज्य की आराध्य देवी ‘शारदा’ के नाम पर इस लिपि को शारदा लिपि के नाम से जाना गया। 
  • शारदा लिपि की उत्पत्ति गुप्त लिपि की पश्चिमी शैली से हुई है तथा इसके प्राचीनतम लेख 8वीं शताब्दी के हैं। 
  • व्हीलर ने जालंधर के राजा जयचंद्र की कीरग्राम के बैजनाथ मंदिर में लगी प्रशस्तियों का काल 804 ई. माना है। 
  • इसी आधार पर इन्होंने शारदा लिपि के विकास को 800 ई. के आसपास निश्चित किया है। 
  • कील हॉर्न  के अनुसार ये प्रशस्तियाँ 12वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध की हैं
  • गौरीशंकर ओझा शारदा लिपि का आरंभ 10वीं शताब्दी से स्वीकार करते हैं। 
    • इनका मानना है कि शारदा लिपि का विकास भी कुटिल लिपि से हआ है। 
    • शारदा लिपि का प्रथम अभिलेख सराहा (चंबा, हिमाचल प्रदेश) से प्राप्त प्रशस्ति को माना है जो कि 10वीं शताब्दी की है। 

गुरुमुखी लिपि

  • पंजाबी भाषा की लिपि है। 
  • सिखों के दूसरे गुरु ‘गुरु अंगद देव’ द्वारा इस लिपि का विकास किया गया। 
  • सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ की रचना इसी लिपि में की गई है।

गुजराती लिपि

  • यह लिपि गुजरात में प्रयुक्त होती है तथा यह देवनागरी लिपि से विकसित हुई है।

ग्रंथ लिपि 

  • ग्रंथ लिपि का प्रयोग छठी शताब्दी से 20वीं शताब्दी के बीच दक्षिण भारत में देखने को मिलता है। 
  • यह दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के अर्काट, मदुरै, सलेम, तिरूचिरापल्ली, तिरुनेलवेल्ली में व्यापक रूप से प्रचलित लिपि थी। 
  • इस लिपि का प्रयोग दक्षिण भारत के पांड्य, पल्लव एवं चोल राजाओं ने अपने अभिलेखों में किया है। 
  • महाबलीपुरम् स्थित धर्मराज रथ पर ग्रंथ लिपि का अंकन मिलता है तथा पल्लव शासक राजसिंह द्वारा बनवाए गए कैलाश मंदिर पर उत्कीर्ण शिलालेख पर भी ग्रंथ लिपि अंकित है। 

मलयालम लिपि 

  • मलयालम लिपि का उद्भव ग्रंथ लिपि से हुआ है। 
  • यह केरल में बोली जाने वाली मलयालम भाषा  की लिपि है। 
  • मलयालम लिपि को ‘कैराली लिपि’ के नाम से भी जाना जाता है
  • मलयालम लिपि ब्राह्मी लिपि का एक रूप है । 

तेलुगू एवं कन्नड़ लिपि 

  • दोनों लिपियों में समानता है। 
  • इन लिपियों का प्रयोग कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ जिलों में होता है। 
  • हेलेविड शिलालेख को इस लिपि का प्राचीनतम अभिलेख माना जाता है। 
  • तेलुगू एवं कन्नड़ लिपियों का वर्णन चालुक्यकालीन अभिलेखों में मिलता है।
  • इस लिपि को 13वीं शताब्दी में सम्मिलित रूप से ‘आंध्र लिपि’ कहा जाता था

मैथिली लिपि

  • इसे ‘तिरहुता’ या ‘मिथिलाक्षर लिपि’ के नाम से भी जाना जाता है जो कि बांग्ला लिपि से मिलती-जुलती है। 

बांग्ला लिपि 

  • बांग्ला एवं असमिया लिपियों में काफी समानता है। 

शाहमुखी लिपि

  • शाहमुखी लिपि को सर्वप्रथम पंजाब के सूफियों द्वारा प्रयोग में लाया गया। 
  • इस लिपि को ईरानी लिपि के पंजाबी संस्करण के रूप में देखा गया।

मोडी लिपि 

  • यह लिपि यदुवंशी शासक महादेव यादव तथा रामदेव यादव के शासनकाल में उनके मंत्री हेमाद्री पंडित द्वारा विकसित की गई। 
  • 1950 ई.से पहले मोडी लिपि का प्रयोग मराठी भाषा के लेखन में किया जाता था। 

तमिल लिपि

  • तमिल लिपि प्राचीन दक्षिणी ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है ।

भारत की शास्त्रीय भाषाएँ 

  • भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है। 
  • कुछ भारतीय भाषाओं की प्राचीन साहित्यिक परंपरा का संरक्षण व संवर्धन करने हेतु केंद्र सरकार द्वारा उन्हें ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा प्रदान किया जाता है।

किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने हेतु निर्धारित मानदंड 

  1. उस भाषा में लिखित आरंभिक ग्रंथों का इतिहास लगभग 1500-2000 वर्ष पुराना होना चाहिये 
  2. संबंधित भाषा में प्राचीन साहित्य/ ग्रंथों का एक ऐसा समूह होना चाहिये जिसे उस भाषा को बोलने वाली पीढियाँ अमूल्य विरासत के रूप में स्वीकार करती हों 
  3. संबंधित भाषा की अपनी मौलिक साहित्यिक परंपरा होनी चाहिये जो किसी अन्य भाषिक समुदाय द्वारा न ली गई हो। 

शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने के लाभ 

  • संबंधित भाषा के विद्वानों को प्रतिवर्ष दो बड़े अंतर्राष्ट्रीय सम्मान देने की व्यवस्था। 
  • उस भाषा में अध्ययन के लिये उत्कृष्ट केंद्र की स्थापना। 
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से आग्रह कर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में संबंधित भाषा के लिये शास्त्रीय भाषा की कुछ सीटें आरक्षित करवाना।

वर्तमान समय में भारत की 6 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त है।

शास्त्रीय भाषा

वर्ष 

1

तमिल

2004

2

संस्कृत

2005

3

तेलुगू

2008

4

कन्नड़

2008

5

मलयालम

2013

6

ओडिया

2014

तमिल 

  • द्रविड़ भाषा परिवार
  • 2004 ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा प्रदान किया गया है। 
  • तमिल भाषा में रचित सर्वाधिक प्राचीन साहित्यसंगम साहित्य है। 

संस्कृत

  • हिंद-आर्य भाषा परिवार से संबंधित है। 
  • ‘ऋग्वेद’ को संस्कृत में रचित प्राचीनतम ग्रंथ माना जाता है। 
  • 2005 शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया। 

तेलुगू

  • द्रविड़ भाषा परिवार 
  • आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की राजभाषा है। 
  • तेलुगू भाषा के कुछ शब्द पहली बार पहली सदी में हाल द्वारा रचित ‘गाथासप्तशती’ में मिलते हैं। 
  • 2008 – में शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया।

कन्नड़

  • द्रविड भाषा परिवार 
  • आरंभिक कन्नड़ भाषा का लिखित रूप 450 ई. में हेलेविड नामक स्थान से प्राप्त शिलालेख में मिला है। 
  • कन्नड़ भाषा का सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ-  ‘कविराजमार्ग’ है।
  • 2008शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया।

मलयालम

  • द्रविड़ भाषा परिवार की एक प्रमुख भाषा
  • मलयालम भाषा का आदिकाव्य –   ‘रामचरितम्‘(12वीं सदी में लिखित )
  • 2013शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया। 

ओडिया

  • 8वीं अनुसूची में सम्मिलित
  • ओडिशा राज्य में बोली जाने वाली भाषा 
  • ओडिया एक आर्य भाषा है
  • ओड़िया भाषा के प्रथम महाकवि  सरला दास थे। 
    • रचना ‘चंडी पुराण’ एवं ‘बिलंका रामायण’ 
  • 20 फरवरी, 2014 – ओडिया भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला ।

भारतीय भाषाओं के लिये संवैधानिक प्रावधान

  • संविधान के भाग 17 में 4 अध्याय हैं
    • संघ की भाषा 
    • प्रादेशिक भाषाओं
    • उच्चतम न्यायालय की भाषा 
    • उच्च न्यायालयों  की भाषा
  • ये चारों अध्याय अनुच्छेद 343 से 351 के अंतर्गत समाहित हैं। 
  • अनुच्छेद 120 – संसद की भाषा के संबंध में विवरण
  • अनुच्छेद 210 – विधान मंडल के संबंध में विवरण

अनुच्छेद 120(1) 

  • संसद में कार्य हिंदी या अंग्रेज़ी में किया जाएगा।
  • यदि कोई व्यक्ति हिंदी में या अंग्रेज़ी में विचार प्रकट करने में असमर्थ है
    • लोक सभा का अध्यक्ष अथवा राज्य सभा का सभापति उसे अपनी मातृभाषा में बोलने की अनुमति दे सकता है। 

अनुच्छेद 120(2) 

  • जब तक संसद विधि द्वारा कोई उपबंध न करे, तब तक संविधान के आरंभ से 15 वर्ष की अवधि समाप्त होने के पश्चात् ‘या अंग्रेजी में’ वाला अंश नहीं रहेगा” अर्थात् 26 जनवरी, 1965 से संसद का कार्य केवल हिंदी में होगा। 

 

अनुच्छेद 210

  • राज्य के विधान मंडल में कार्य राज्य की राज्यभाषा या राजभाषाओं में या हिंदी में या अंग्रेजी में किया जाएगा। 
  • विधान सभा का अध्यक्ष या विधान परिषद का सभापति अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति ऐसे किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में बोलने की अनुमति दे सकता है । 

अनुच्छेद 343

  • संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी
  • संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिये प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
  • शासकीय प्रयोजनों के लिये अंग्रेजी भाषा का प्रयोग 15 वर्षों तक होता रहेगा। 

अनुच्छेद 344

  • संविधान के आरंभ के 5 वर्ष बादराष्ट्रपति एक आयोग का गठन करेगा जो हिंदी के प्रयोग के विस्तार पर अपना सुझाव देगा
  • इसी प्रकार का आयोग संविधान के आरंभ से 10 वर्षों के बाद भी गठित किया जाएगा। 
  • आयोग की सिफारिश पर संसद की एक विशेष समिति राष्ट्रपति को राय देगी। 
  • राष्ट्रपति पूरी रिपोर्ट या उसके कुछ अंशों को लागू करने के लिये निर्देश जारी कर सकेगा। 

अनुच्छेद 345

  • किसी राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली या किन्हीं अन्य भाषाओं को या हिंदी को शासकीय प्रयोजनों के लिये स्वीकार कर सकेगा। 
  • यदि किसी राज्य का विधान-मंडल ऐसा नहीं कर पाएगा तो अंग्रेजी भाषा का प्रयोग यथावत् किया जाता रहेगा। 

अनुच्छेद 346

  • संघ के द्वारा निर्धारित भाषा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच तथा किसी राज्य और संघ की सरकार के बीच पत्राचार आदि की भाषा राजभाषा होगी। 

अनुच्छेद 347

  • राष्ट्रपति यह निर्देश दे सकेगा कि राज्य में बोली जाने वाली भाषा को उस पूरे राज्य में या राज्य के किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिये जो वह विनिर्दिष्ट करे, शासकीय मान्यता दी जाए। 

 अनुच्छेद 348

  • जब तक संसदकोई और उपबंध न करे, तब तक उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेज़ी में ही होंगी। 
  • इसके अतिरिक्त, निम्नलिखित विषय के प्राधिकृत पाठ अंग्रेज़ी में होंगे
    • संसद या किसी राज्य के विधानमंडल के सभी विधेयक या उनके प्रस्तावित संशोधन। 
    • संसद या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा पारित सभी अधिनियम
    •  राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा जारी किये गए अध्यादेश 
  • इसी अनुच्छेद में यह भी स्पष्ट किया गया है कि किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाही के लिये हिंदी भाषा या उस राज्य में मान्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा, पर यह बात उस न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय, डिक्री या आदेश पर लागू नहीं होगी। 
  • अनुच्छेद 349 
    • संसद को राजभाषा से संबंधित कोई विधेयक या संशोधन करने से पूर्व राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी लेनी पड़ेगी और राष्ट्रपति आयोग की सिफारिशों और उन सिफारिशों पर गठित रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात् ही अपनी मंजूरी देगा अन्यथा नहीं। 
  • अनुच्छेद 350(क) 
    • भाषायी आधार पर अल्पसंख्यक वर्गों के लिए राष्ट्रपति एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति करेगा जो इन वर्गों से संबंधित विषयों पर उनके हितों की रक्षा के उपाय करेगा। 
    • अल्पसंख्यक बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में दिये जाने की सुविधा प्रदान की जाएगी। 
  • अनुच्छेद 351 
    • “संघ का यह कर्त्तव्य है कि वह हिंदी भाषा का विकास करें।

वर्तमान में भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाएँ 

मान्यता प्राप्त वर्ष 

भाषा

जिस राज्य में बोली जाती है 

1950

असमिया 

असम

बांग्ला 

पश्चिम बंगाल

गुजराती

गुजरात

हिंदी

उत्तर भारत के अधिकांश भागों में

कश्मीरी

जम्मू और कश्मीर

कन्नड़

कर्नाटक

मलयालम

केरल

मराठी

महाराष्ट्र

ओडिया

ओडिशा

पंजाबी 

पंजाब, चंडीगढ़

संस्कृत

तमिल

तमिलनाडु, पुदुच्चेरी

तेलुगू

तेलंगाना, आंध्र प्रदेश

उर्दू

उत्तर भारत, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश

1967(1) 

21st Amd

सिंधी

गुजरात, राजस्थान तथा महाराष्ट्र के कु क्षेत्रों में

1992(3)

71st amd

नेपाली

सिक्किम और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से में 

कोंकणी

गोवा और कर्नाटक के कुछ हिस्से

मणिपुरी

मणिपुर

2003(4)

92nd Amd

बोडो

असम, पश्चिम बंगाल

डोगरी

जम्मू, हिमाचल प्रदेश

संथाली

झारखंड, बिहार एवं पश्चिम बंगाल केकुछ क्षेत्रों में (संथाल जनजाति द्वारा बोली जाने वाली भाषा)  

मैथिली

बिहार के कुछ हिस्से में

भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाएँ

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 344(1) तथा अनुच्छेद 351 में संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल भाषाओं की चर्चा की गई है। 

संविधान की 8वीं अनुसूची में कुल 22 भाषाएँ सम्मिलित हैं।

संविधान के प्रारंभ में 14 भाषाएँ ही 8वीं अनुसूची में सम्मिलित थीं

हिंदी, संस्कृत, उर्दू,बांग्ला,असमिया, 

पंजाबी, गुजराती,मराठी, कश्मीरी, 

ओड़िया,तमिल,तेलुगू,कन्नड़, मलयालम,

21वें संविधान संशोधन (1967)-1 नई भाषा 

सिंधी

71वें संविधान संशोधन (1992)-3 नई भाषा

नेपाली, कोंकणी एवं मणिपुरी

92वें संविधान संशोधन (2003)- 4 नई भाषा

बोडो, डोगरी, मैथिली एवं संथाली

जनगणना में भाषायी स्थिति

  • वर्ष 2001 की जनगणना में 10,000 से ज़्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली 122 भाषाओं तथा 234 मातृभाषाओं को अधिसूचित किया गया। 

2011 जनगणना पर जारी आंकड़ो के अनुसार 

  • भारत की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा  – हिंदी 
  • हिंदी को मातृभाषा के रूप में बोलने वालों की संख्या 43.63% है। 
    1. हिंदी(43.63%)
    2. बंगाली 
    3. मराठी
    4. तेलुगु
    5. तमिल
    6. गुजराती 
    7. उर्दू 
  • संस्कृत आठवीं अनुसूची में सबसे कम बोली जाने वाली भाषा है। 
  • गैर अनुसूचित भाषाओं में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा
    • भीली (1.04 करोड़ लोग) 
    • गोंडी (29 लाख लोग)

 मातृभाषा क्या है ? 

  • मातृभाषा व्यक्ति की मां द्वारा बचपन में बोली जाने वाली भाषा या जहां व्यक्ति की मां की मृत्यु शिशुता में हो जाती है, तो मुख्य रूप से बचपन के दौरान व्यक्ति के घर में बोली जाती है।
  • पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार
    • भारत में लगभग 780 मातृभाषाएँ तथा लगभग 66 लिपियाँ हैं। 
    • अरुणाचल प्रदेश में सर्वाधिक 90 भाषाएँ तथा पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक 9 लिपियाँ प्रचलन में हैं।
भारतीय भाषाएं एवं लिपियां