सूर्यताप और पृथ्वी का ऊष्मा बजट
पृथ्वी पर जीवन के लिए ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत सूर्य है। सूर्य से प्राप्त होने वाली इस ऊर्जा को ‘सूर्यताप‘ (Insolation) कहा जाता है। पृथ्वी की सतह और वायुमंडल द्वारा इस ऊर्जा के अवशोषण, परावर्तन और विकिरण की समग्र प्रक्रिया ‘पृथ्वी का ऊष्मा बजट‘ (Earth’s Heat Budget) कहलाती है। यह बजट पृथ्वी के तापमान को स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सूर्यताप (Insolation)
सूर्यताप (इनकमिंग सोलर रेडिएशन) पृथ्वी द्वारा प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा है। इसे वाट प्रति वर्ग मीटर (W/m²) में मापा जाता है। पृथ्वी के वायुमंडल की बाहरी सीमा पर सूर्यताप का औसत मान लगभग 1366 वाट प्रति वर्ग मीटर है, जिसे ‘सौर स्थिरांक‘ (Solar Constant) कहते हैं।
सूर्यताप को प्रभावित करने वाले कारक
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- सूर्य की किरणों का कोण (Angle of Sun’s Rays): सूर्य की किरणें जहाँ लंबवत ( perpendicular) पड़ती हैं, वहाँ अधिक ऊष्मा प्राप्त होती है (जैसे विषुवत रेखा पर)। जहाँ तिरछी पड़ती हैं, वहाँ ऊष्मा कम प्राप्त होती है (जैसे ध्रुवों पर)।
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- दिन की अवधि (Length of the Day): जिस क्षेत्र में दिन जितना लंबा होगा, उसे उतना ही अधिक सूर्यताप प्राप्त होगा।
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- वायुमंडलीय दशाएँ (Atmospheric Conditions): वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प, धूलकण, ओज़ोन, बादल आदि सूर्यताप का एक भाग अवशोषित, परावर्तित और प्रकीर्णित (scatter) कर देते हैं।
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- पृथ्वी की सूर्य से दूरी (Distance from the Sun): पृथ्वी की कक्षीय गति के कारण यह दूरी वर्ष भर बदलती रहती है, जिसका सूर्यताप पर थोड़ा प्रभाव पड़ता है।
पृथ्वी का ऊष्मा बजट (Earth’s Heat Budget)
पृथ्वी का ऊष्मा बजट एक संतुलन की स्थिति है, जहाँ पृथ्वी द्वारा प्राप्त सौर ऊर्जा और अंतरिक्ष में विकिरित होने वाली ऊर्जा लगभग बराबर होती है। यदि यह संतुलन बिगड़ता है, तो पृथ्वी या तो लगातार गर्म या लगातार ठंडी होती जाएगी। इसे ‘ऊष्मा संतुलन‘ (Heat Balance) भी कहते हैं।
ऊष्मा बजट के घटक (100 इकाई सूर्यताप के आधार पर)
मान लें कि पृथ्वी पर आने वाली कुल सौर ऊर्जा 100 इकाई है। इसका वितरण निम्नलिखित प्रकार से होता है:
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- परावर्तन और प्रकीर्णन (Reflection & Scattering – 35 इकाई):
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- वायुमंडल (बादल, धूल, गैसें) द्वारा: 27 इकाई सीधे अंतरिक्ष में परावर्तित कर दी जाती है।
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- पृथ्वी की सतह द्वारा: 8 इकाई परावर्तित होकर वायुमंडल से टकराती है और अंतरिक्ष में चली जाती है। इसे ‘पृथ्वी की एल्बिडो‘ (Albedo) कहते हैं।
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- परावर्तन और प्रकीर्णन (Reflection & Scattering – 35 इकाई):
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- वायुमंडल द्वारा अवशोषण (Absorption by Atmosphere – 14 इकाई): वायुमंडल में मौजूद ओज़ोन, जलवाष्प, CO₂ और धूलकण सीधे 14 इकाई ऊर्जा अवशोषित कर लेते हैं।
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- पृथ्वी की सतह द्वारा अवशोषण (Absorption by Earth’s Surface – 51 इकाई): शेष 51 इकाई ऊर्जा पृथ्वी की सतह (भूमि और जल) द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। यही ऊर्जा पृथ्वी को गर्म करती है, वायुमंडल को गर्म करती है और जल चक्र चलाती है।
ऊर्जा का पुनः विकिरण (Outgoing Longwave Radiation)
पृथ्वी की सतह द्वारा अवशोषित 51 इकाई ऊर्जा अंततः वापस अंतरिक्ष में भेज दी जाती है। यह प्रक्रिया दो तरह से होती है:
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- प्रत्यक्ष विकिरण (Direct Radiation): पृथ्वी की सतह सीधे ही 6 इकाई ऊर्जा दीर्घ तरंगदैर्ध्य विकिरण (Longwave Radiation) के रूप में अंतरिक्ष में विकिरित कर देती है।
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- वायुमंडलीय विकिरण (Atmospheric Radiation – 45 इकाई): यह सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
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- पृथ्वी की सतह संवहन (convection), संचालन (conduction) और गुप्त ऊष्मा (latent heat) के माध्यम से 45 इकाई ऊर्जा वायुमंडल को गर्म करती है।
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- गर्म हुआ वायुमंडल फिर इस 45 इकाई ऊर्जा को दीर्घ तरंगदैर्ध्य विकिरण के रूप में अंतरिक्ष में विकिरित कर देता है।
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- वायुमंडलीय विकिरण (Atmospheric Radiation – 45 इकाई): यह सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
इस प्रकार, कुल आने वाली ऊर्जा (100 इकाई) = जाने वाली ऊर्जा (35 इकाई परावर्तन + 14 इकाई वायुमंडलीय अवशोषण का विकिरण + 51 इकाई पृथ्वी द्वारा अवशोषित ऊर्जा का विकिरण) के बराबर हो जाती है।

महत्व
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- जलवायु नियंत्रण: ऊष्मा बजट पृथ्वी के औसत तापमान (लगभग 15°C) को स्थिर रखता है, जिससे जीवन संभव है।
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- मौसमी चक्र: वायुमंडलीय परिसंचरण, पवनें, महासागरीय धाराएँ और जल चक्र सभी ऊष्मा बजट द्वारा संचालित होते हैं।
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- जलवायु परिवर्तन: ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती सांद्रता वायुमंडल द्वारा अवशोषित होने वाली ऊर्जा की मात्रा (14 इकाई) बढ़ा देती है, जिससे ऊष्मा बजट का संतुलन बिगड़ता है और वैश्विक तापमान में वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) होती है।
निष्कर्षतः, सूर्यताप और ऊष्मा बजट पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के मूलभूत सिद्धांत हैं। इनकी समझ वायुमंडलीय घटनाओं, महासागरीय प्रक्रियाओं और मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के अध्ययन के लिए अत्यंत आवश्यक है।