परिचय

वायुमंडल के अध्ययन में तापमान एक महत्वपूर्ण तत्व है। तापमान के वितरण और इसके स्वरूप का अध्ययन जलवायु विज्ञान का आधार है। तापमान का वितरण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है – क्षैतिज वितरण और लंबवत वितरण। इसके अलावा, तापमान व्युत्क्रमण एक विशेष वायुमंडलीय स्थिति है जिसका पर्यावरण और मौसम पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

तापमान का क्षैतिज वितरण

तापमान का क्षैतिज वितरण पृथ्वी की सतह पर विभिन्न स्थानों पर तापमान के वितरण को संदर्भित करता है। यह वितरण अक्षांश, स्थल और जल का वितरण, महासागरीय धाराएँ, पवनें, ऊँचाई, महाद्वीपों का विस्तार आदि कारकों से प्रभावित होता है।

क्षैतिज वितरण को प्रभावित करने वाले कारक

  • अक्षांश: विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर तापमान कम होता जाता है क्योंकि सूर्य की किरणों का कोण बदलता है।
  • सागर तल से ऊँचाई: ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान घटता है (सामान्य तापमान पतन दर)।
  • स्थल और जल का वितरण: स्थलीय भाग जल्दी गर्म और जल्दी ठंडे होते हैं, जबकि जलीय भाग धीरे-धीरे गर्म और ठंडे होते हैं।
  • महासागरीय धाराएँ: गर्म धाराएँ तटीय क्षेत्रों के तापमान को बढ़ाती हैं जबकि ठंडी धाराएँ तापमान कम करती हैं।
  • प्रचलित पवनें: समुद्र से आने वाली पवनें तटीय क्षेत्रों का तापमान सम बनाए रखती हैं।
  • महाद्वीपीय विस्तार: महाद्वीपों के आंतरिक भागों में तापान्तर अधिक होता है।

तापमान के क्षैतिज वितरण के प्रतिरूप

विश्व के तापमान वितरण को समझने के लिए समताप रेखाओं (Isotherms) का उपयोग किया जाता है। समताप रेखाएँ समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली कल्पित रेखाएँ हैं। इनके अध्ययन से पता चलता है कि:

  • समताप रेखाएँ सामान्यतः पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली होती हैं।
  • विषुवत रेखा के निकट तापमान अधिक और ध्रुवों की ओर कम होता जाता है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ अधिक टेढ़ी-मेढ़ी हैं क्योंकि यहाँ अधिक स्थलीय भाग है।
  • ठंडे महाद्वीपों के ऊपर समताप रेखाएँ ध्रुवों की ओर मुड़ जाती हैं जबकि गर्म महासागरों के ऊपर विषुवत रेखा की ओर।

तापमान का लंबवत वितरण

तापमान का लंबवत वितरण वायुमंडल में ऊँचाई के साथ तापमान में होने वाले परिवर्तन को संदर्भित करता है। सामान्यतः ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान घटता है, जिसे “सामान्य तापमान पतन दर” कहते हैं। यह दर प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर लगभग 1°C होती है।

वायुमंडलीय स्तर और तापमान प्रसार

वायुमंडल को तापमान वितरण के आधार पर पाँच प्रमुख परतों में बाँटा गया है:

  1. क्षोभमंडल (Troposphere):
    • यह वायुमंडल की सबसे निचली परत है जिसमें मौसमी घटनाएँ घटित होती हैं।
    • इसकी ऊँचाई विषुवत रेखा पर 18 किमी और ध्रुवों पर 8 किमी होती है।
    • इसमें ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान घटता है (6.5°C प्रति किमी)।
    • इसके ऊपरी सीमा को “क्षोभसीमा” (Tropopause) कहते हैं जहाँ तापमान स्थिर रहता है।
  2. समताप मंडल (Stratosphere):
    • क्षोभसीमा से 50 किमी की ऊँचाई तक विस्तृत।
    • इस परत में ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान बढ़ता है क्योंकि ओजोन परत सौरिक विकिरण को सोखती है।
    • इसकी ऊपरी सीमा को “समताप सीमा” (Stratopause) कहते हैं।
  3. मध्यमंडल (Mesosphere):
    • 50 किमी से 80 किमी की ऊँचाई तक विस्तृत।
    • इसमें ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान फिर से घटने लगता है।
    • यह वायुमंडल की सबसे ठंडी परत है (-90°C तक)।
    • इसकी ऊपरी सीमा को “मध्य सीमा” (Mesopause) कहते हैं।
  4. आयनमंडल (Ionosphere/Thermosphere):
    • 80 किमी से 400 किमी तक विस्तृत।
    • इसमें ऊँचाई के साथ तापमान तेजी से बढ़ता है (1000°C तक)।
    • इस परत में वायु अत्यंत विरल होती है और अणु आयनित होते हैं।
  5. बाह्यमंडल (Exosphere):
    • वायुमंडल की सबसे बाहरी परत जहाँ से गैसें अंतरिक्ष में विसरित होती हैं।

तापमान व्युत्क्रमण

सामान्य परिस्थितियों में ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान घटता है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान बढ़ने लगता है। इस घटना को “तापमान व्युत्क्रमण” (Temperature Inversion) कहते हैं। यह स्थिति सामान्य तापमान पतन दर के विपरीत होती है।

तापमान व्युत्क्रमण के प्रकार

  1. विकिरणीय व्युत्क्रमण (Radiation Inversion):
    • यह सबसे सामान्य प्रकार का व्युत्क्रमण है जो रात के समय साफ आकाश और शांत हवा की स्थिति में होता है।
    • पृथ्वी की सतह से तीव्र विकिरण के कारण सतह के निकट की वायु ठंडी हो जाती है जबकि ऊपरी वायु अपेक्षाकृत गर्म रहती है।
    • यह व्युत्क्रमण सर्दियों की लंबी रातों में अधिक स्पष्ट होता है।
  2. अधिवेशनीय व्युत्क्रमण (Advectional Inversion):
    • जब गर्म वायु राशि ठंडे स्थलीय भाग या जलीय भाग के ऊपर से गुजरती है तो निचली परतें ठंडी हो जाती हैं जबकि ऊपरी परतें गर्म रहती हैं।
    • समुद्र तटीय क्षेत्रों में यह व्युत्क्रमण आम है।
  3. उच्चावच व्युत्क्रमण (Relief/Topographic Inversion):
    • पहाड़ी क्षेत्रों में घाटियों में ठंडी हवा जमा हो जाती है जबकि ऊपरी ढलानों पर गर्म हवा रहती है।
    • इससे घाटी की तली में व्युत्क्रमण की स्थिति उत्पन्न होती है।
  4. अवरोही व्युत्क्रमण (Subsidence Inversion):
    • उच्च दाब क्षेत्रों में वायु नीचे उतरती है और संपीडित होकर गर्म हो जाती है।
    • यह गर्म वायु ऊपर जमा हो जाती है जबकि निचली वायु ठंडी रहती है।
    • यह व्युत्क्रमण महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर常见 है।
  5. म frontal व्युत्क्रमण (Frontal Inversion):
    • जब गर्म वायु राशि ठंडी वायु राशि के ऊपर चढ़ जाती है तो दोनों के मध्य एक व्युत्क्रमण परत बन जाती है।

तापमान व्युत्क्रमण के प्रभाव

  • प्रदूषण: व्युत्क्रमण वायु प्रदूषण को बढ़ावा देता है क्योंकि ठंडी हवा के ऊपर गर्म हवा की परत प्रदूषकों को नीचे फँसा लेती है, जिससे smog (धूम-कोहरा) की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • कृषि: व्युत्क्रमण के कारण पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है जो फसलों को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • मौसम: व्युत्क्रमण बादलों के निर्माण और कोहरे को प्रभावित करता है।
  • ध्वनि और रेडियो तरंगें: व्युत्क्रमण की स्थिति में ध्वनि और रेडियो तरंगों का अपवर्तन होता है, जिससे दूर की आवाजें सुनाई देती हैं और रेडियो प्रसारण दूर तक पहुँचता है।

निष्कर्ष

तापमान का क्षैतिज और लंबवत वितरण वायुमंडलीय प्रक्रियाओं को समझने का आधार है। जहाँ क्षैतिज वितरण भौगोलिक विविधता को दर्शाता है, वहीं लंबवत वितरण वायुमंडल की संरचना और व्यवहार को प्रभावित करता है। तापमान व्युत्क्रमण एक विशेष परिस्थिति है जो मौसम, पर्यावरण और मानव जीवन को गहराई से प्रभावित करती है। इन घटनाओं का अध्ययन जलवायु परिवर्तन, कृषि, शहरी नियोजन और पर्यावरण प्रबंधन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

JPSC MAINS PAPER 3/Geography Chapter – 6