1. चोल वंश: एक परिचय (Chola Dynasty: An Introduction)
चोल साम्राज्य दक्षिण भारत के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले और सबसे प्रभावशाली राजवंशों में से एक था। इसका उदय 9वीं शताब्दी में विजयालय चोल के साथ हुआ और इसने 13वीं शताब्दी तक शासन किया। अपने चरम पर, चोल साम्राज्य ने दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों पर अधिकार कर लिया था और इसकी शक्ति दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैली हुई थी।
2. दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में नौवहन गतिविधियाँ एवं नौसैनिक विस्तार (Naval Activities and Maritime Expansion in Southeast Asia)
चोल शासक महान नौसैनिक शक्ति थे। उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप की पहली स्थायी नौसेना का गठन किया। उनकी नौवहन गतिविधियों के मुख्य पहलू थे:
- व्यापारिक वर्चस्व: चोलों ने बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर में व्यापार मार्गों पर नियंत्रण स्थापित किया। वे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों जैसे श्रीविजय साम्राज्य (सुमात्रा, जावा, मलय प्रायद्वीप), थाईलैंड, और कंबोडिया के साथ सक्रिय व्यापार करते थे।
- नौसैनिक अभियान: राजेंद्र चोल प्रथम के शासनकाल में चोलों की नौसैनिक शक्ति चरम पर थी। उन्होंने 1025 ई. में श्रीविजय साम्राज्य के विरुद्ध एक महत्वपूर्ण नौसैनिक अभियान चलाया। इस अभियान का उद्देश्य व्यापारिक मार्गों पर कब्जा करना और क्षेत्र में चोल प्रभुत्व स्थापित करना था।
- सांस्कृतिक प्रसार: इन नौवहन गतिविधियों के माध्यम से ही भारतीय संस्कृति, धर्म (विशेषकर हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म), भाषा (संस्कृत और तमिल), लिपि, और कला का दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में प्रसार हुआ।
3. सांस्कृतिक उपलब्धियाँ (Cultural Achievements)
चोल काल को तमिल संस्कृति का स्वर्ण युग माना जाता है।
- साहित्य: तमिल साहित्य इस काल में फला-फूला। तमिल कवि संत (नयनार और आलवार) की रचनाएँ इसी काल की देन हैं। प्रसिद्ध तमिल रामायण ‘कम्ब रामायणम‘ की रचना कम्बन नामक कवि ने चोल शासनकाल में ही की थी।
- भाषा का विकास: तमिल भाषा ने अपना शास्त्रीय रूप प्राप्त किया और प्रशासन की मुख्य भाषा बनी।
- धर्म: चोल शासक शैव मत के अनुयायी थे, लेकिन उन्होंने वैष्णव मत और अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णुता का भाव दिखाया। मंदिर न केवल धार्मिक केंद्र थे बल्कि सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों के केंद्र भी थे।
4. कला एवं स्थापत्य (Art and Architecture)
चोलों की सबसे स्थायी और शानदार विरासत उनकी कला और स्थापत्य है। चोल स्थापत्य कला द्रविड़ शैली का शिखर है।
- मंदिर स्थापत्य: चोलों ने भव्य पत्थर के मंदिरों का निर्माण करवाया। इन मंदिरों की विशेषताएँ हैं:
- गर्भगृह (गर्भगृह)
- मंडप (सभा हॉल)
- विमान (गर्भगृह के ऊपर बना ऊँचा और पिरामिडनुमा शिखर)
- गोपुरम (प्रवेश द्वार पर बना विशाल और अलंकृत टॉवर) – हालाँकि यह विशेषता बाद के विजयनगर काल में और विकसित हुई।
- प्रमुख मंदिर:
- बृहदेश्वर मंदिर (थंजावुर): राजराजा चोल प्रथम द्वारा 1010 ई. में निर्मित। इसके विमान की ऊँचाई लगभग 66 मीटर है और यह उस समय दुनिया की सबसे ऊँची संरचनाओं में से एक था।
- गंगईकोंडचोलपुरम मंदिर: राजेंद्र चोल प्रथम द्वारा निर्मित, जो थंजावुर मंदिर के समान है लेकिन आकार में थोड़ा छोटा है।
- ऐरावतेश्वर मंदिर (दारासुरम): राजराजा चोल द्वितीय द्वारा निर्मित, यह मंदिर अपनी जटिल नक्काशी और मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है।
- मूर्तिकला: चोल काल की कांस्य मूर्तियाँ विश्व-प्रसिद्ध हैं। इनकी ‘नटराज‘ (नृत्य करते हुए शिव) की मूर्तियाँ कला का उत्कृष्ट नमूना हैं। इन मूर्तियों का निर्माण ‘मोम ढलाई विधि (Lost-Wax Process)‘ द्वारा किया गया था। ये मूर्तियाँ भारतीय दर्शन और कलात्मक उत्कृष्टता का अद्भुत संगम हैं।
Key Facts
- प्रमुख शासक: विजयालय (संस्थापक), आदित्य प्रथम, परांतक प्रथम, राजराजा चोल प्रथम, राजेंद्र चोल प्रथम, कुलोत्तुंग प्रथम।
- प्रशासन: अत्यंत केंद्रीकृत और कुशल प्रशासनिक व्यवस्था। उर (गाँव सभा) स्थानीय स्वशासन की इकाई थी।
- अर्थव्यवस्था: कृषि, व्यापार और हस्तशिल्प पर आधारित। सिंचाई के लिए बड़े पैमाने पर जलाशयों (एरी) का निर्माण करवाया गया।
- विरासत: चोलों द्वारा बनाए गए महान मंदिर समूह – ‘ग्रेट लिविंग चोल टेम्पल्स’ – को UNESCO द्वारा एक विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।