पल्लवों की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
पल्लव वंश (6वीं से 9वीं शताब्दी ई.) दक्षिण भारत का एक प्रमुख राजवंश था, जिसने विशेषकर कला, स्थापत्य, धर्म तथा साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उनकी सांस्कृतिक उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:
1. स्थापत्य एवं वास्तुकला
- पल्लव शासक द्रविड़ शैली वास्तुकला के प्रणेता माने जाते हैं।
- महाबलीपुरम (ममल्लपुरम) में निर्मित रथ मंदिर (पंचरथ) उनके शिल्पकौशल का अद्भुत उदाहरण हैं।
- कैलाशनाथ मंदिर (कांचीपुरम) पल्लवकालीन पत्थर से बने भव्य मंदिर का प्रतीक है।
- रथ मंदिर, मंडप (गुफा मंदिर) और शैल-मंदिर – पल्लव वास्तुकला की तीन प्रमुख विशेषताएँ थीं।
2. मूर्तिकला
- शैल-मंदिरों और गुफाओं की दीवारों पर उत्कीर्ण मूर्तियाँ अत्यंत जीवंत और यथार्थवादी थीं।
- महाबलीपुरम का गंगावतरण (अर्जुन तपस्या) विश्व की सबसे बड़ी शैल-उत्कीर्ण रचना मानी जाती है।
- उनकी मूर्तियों में धार्मिक भाव, सौंदर्यबोध और गतिशीलता का अद्भुत संगम मिलता है।
3. धर्म और दर्शन
- पल्लव काल में वैष्णव और शैव धर्म का उत्थान हुआ।
- इस काल में भक्ति आंदोलन को प्रोत्साहन मिला। आलवार और नयनार संत इसी युग में सक्रिय थे।
- बौद्ध और जैन धर्म को भी संरक्षण मिला, किंतु मंदिर स्थापत्य मुख्यतः वैष्णव-शैव प्रभावी रहा।
4. साहित्य
- संस्कृत और तमिल साहित्य का विकास पल्लव शासन में हुआ।
- दार्शनिक और धार्मिक ग्रंथों की रचना के साथ-साथ शिलालेखों एवं अभिलेखों की भाषा भी संस्कृत रही।
- तमिल भाषा में भक्ति काव्य (नायनार व आलवार) का उद्भव इसी काल में हुआ।
5. शिक्षा एवं विद्या
- कांचीपुरम को पल्लव काल में विद्या का प्रमुख केंद्र माना जाता था।
- यहाँ बौद्ध, जैन और हिंदू तीनों परंपराओं की शिक्षा का प्रसार हुआ।
- विदेशों से छात्र और विद्वान अध्ययन हेतु कांचीपुरम आते थे।
निष्कर्ष
पल्लवों की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ भारतीय कला और स्थापत्य को नई दिशा देने वाली थीं। महाबलीपुरम के मंदिर, मूर्तिकला तथा कांचीपुरम की विद्या-परंपरा आज भी उनकी सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।