भारत पर अरबों का आक्रमण: कारण, प्रभाव और परिणाम

भारत पर अरबों का आक्रमण भारतीय इतिहास की एक निर्णायक घटना थी, जिसने देश के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव छोड़ा। यह केवल एक सैन्य अभियान नहीं, बल्कि दो महान सभ्यताओं के मध्य एक सांस्कृतिक मुठभेड़ का प्रारंभ बिंदु था।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

7वीं शताब्दी में अरब में इस्लाम के उदय के पश्चात अरब साम्राज्य का तीव्र विस्तार हुआ। खलीफाओं के नेतृत्व में अरब सेनाएँ पश्चिम में उत्तरी अफ्रीका और पूर्व में फारस तक फैल गईं। 642 ई. में नहावंद की लड़ाई में सासानी साम्राज्य (फारस) की पराजय के बाद अरबों की नज़र सिंध (वर्तमान पाकिस्तान और भारत का western part) की समृद्ध भूमि पर पड़ी।

आक्रमण के प्रमुख कारण

  1. आर्थिक कारण: सिंध और भारत की अपार धन-संपदा, व्यापारिक केंद्रों पर नियंत्रण, और समुद्री मार्गों की सुरक्षा अरबों के लिए प्रमुख आकर्षण थे।
  2. धार्मिक उत्साह: इस्लाम के प्रसार (दा’वा) की भावना और ‘गैर-मुसलमान’ क्षेत्रों (दार उल-हर्ब) को ‘इस्लामिक क्षेत्र’ (दार उल-इस्लाम) में बदलने की इच्छा।
  3. राजनीतिक कारण: सिंध के शासक दाहिर से बदला लेने का प्रयास। कथित तौर पर सिंध के कुछ समुद्री डाकुओं (जैसे कि देवल के डाकू) ने अरब जहाजों को लूटा था और उनमें स्त्रियों और बच्चों को बंदी बनाया था। खलीफा के लिए यह एक प्रतिष्ठा का मामला बन गया।
  4. रणनीतिक सुरक्षा: विस्तारवादी नीति के तहत पूर्वी सीमाओं को सुरक्षित करना।

मुहम्मद बिन कासिम का आक्रमण (712 ई.)

इराक के गवर्नर अल-हज्जाज ने अपने 17 वर्षीय दामाद मुहम्मद बिन कासिम को एक विशाल सेना के साथ सिंध पर आक्रमण के लिए भेजा।

  • देवल का किला: बिन कासिम ने सबसे पहले देवल के किले पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया।
  • निर्णायक युद्ध: दाहिर की सेना से उसका सामना हुआ। निर्णायक युद्ध रावर (वर्तमान में पाकिस्तान में) के near हुआ, जहाँ राजा दाहिर वीरगति को प्राप्त हुए।
  • ब्राह्मणाबाद और मुल्तान की विजय: दाहिर की मृत्यु के बाद, बिन कासिम ने ब्राह्मणाबाद और अंततः मुल्तान पर अधिकार कर लिया।

आक्रमण के तात्कालिक परिणाम

  • सिंध और मुल्तान में अरब सत्ता की स्थापना: ये क्षेत्र उमय्यद खिलाफत का एक प्रांत बन गए।
  • भारत में इस्लाम की पहली जड़: यह पहली बार था जब इस्लाम भारतीय उपमहाद्वीप में स्थापित हुआ।
  • व्यापारिक संपर्कों में वृद्धि: अरब और भारत के बीच व्यापारिक संबंध मजबूत हुए।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: अरब विद्वानों ने भारतीय गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा और दर्शन सीखा। दशमलव प्रणाली और ‘0’ (शून्य) की अवधारणा अरबों के माध्यम से यूरोप पहुँची।
  • सीमित प्रभाव: अरबों का प्रभाव मुख्य रूप से सिंध और मुल्तान तक ही सीमित रहा। वे पंजाब और अन्य आंतरिक क्षेत्रों में स्थायी रूप से विस्तार नहीं कर सके। प्रतिहार, गुर्जर-प्रतिहार और राष्ट्रकूट जैसी शक्तिशाली राजपूत शक्तियों ने उनके आगे रुकावट खड़ी कर दी।

दीर्घकालिक प्रभाव एवं महत्व

  • भविष्य के आक्रमणों के लिए मार्ग: अरब आक्रमण ने भारत की दुर्बलताओं (राजनीतिक विखंडन, आपसी फूट) को उजागर किया, जिसने बाद में तुर्की आक्रमणकारियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
  • नई प्रशासनिक प्रणाली: अरबों ने ‘इक्ता’ प्रणाली (सैन्य सेवा के बदले भूमि अनुदान) की शुरुआत की, जिसे बाद के मुस्लिम शासकों ने अपनाया।
  • सांस्कृतिक संश्लेषण: इस्लाम और हिंदू धर्म के बीच पहली निरंतर बातचीत शुरू हुई, जिससे सूफीवाद और भक्ति आंदोलन जैसी syncretic traditions को बल मिला।
  • वास्तुकला: मस्जिदों और मकबरों जैसी नई Islamic स्थापत्य शैलियों का परिचय हुआ, जिसमें स्थानीय शैलियों का मिश्रण देखने को मिला।
  • सैन्य प्रौद्योगिकी: अरबों ने भारत में घोड़े की नई नस्लें और सैन्य उपकरण लाए।

निष्कर्ष

712 ई. में मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में अरबों का आक्रमण एक isolated घटना नहीं थी। इसने भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत की। यद्यपि उनका राजनीतिक प्रभाव सीमित था, किंतु उनके द्वारा प्रारंभ किया गया सांस्कृतिक, बौद्धिक और आर्थिक आदान-प्रदान शताब्दियों तक जारी रहा और भारत के बहुलवादी और समन्वयवादी चरित्र के निर्माण में एक महत्वपूर्ण अध्याय साबित हुआ।

JPSC MAINS PAPER 3/History Chapter – 12