मध्यकालः नई इस्लामिक संस्कृति का आगमन

मध्यकालीन भारत में तुर्की, फारसी, मंगोल एवं अफगान शासकों के आगमन के साथ ही इस्लामिक संस्कृति का प्रवेश हुआ। यह एक ऐसी संस्कृति थी जो मूल रूप से भिन्न थी, किंतु भारत में आकर इसने यहाँ की स्थानीय परम्पराओं से समन्वय स्थापित किया। इस समन्वय का प्रमुख प्रतिफलन इंडो-इस्लामिक स्थापत्य कला एवं हिंदी-उर्दू जैसी नई भाषाओं के विकास के रूप में हुआ।

1. इंडो-इस्लामिक स्थापत्य कला (Indo-Islamic Architecture)

यह वह स्थापत्य शैली है जिसमें भारतीय एवं इस्लामिक स्थापत्य कला के तत्वों का सम्मिश्रण हुआ। यह केवल नकल नहीं, बल्कि एक नवीन एवं अनूठी शैली की सृष्टि थी।

प्रमुख विशेषताएँ:

  • मेहराब (Arches) एवं गुम्बद (Domes): इस्लामिक स्थापत्य की यह प्रमुख विशेषता भारतीय इमारतों में दिखाई देने लगी।
  • मीनार (Minarets): ऊँची मीनारों का निर्माण, जैसे कुतुब मीनार।
  • जालीदार खिड़कियाँ (Latticework/Jalis): ज्यामितीय डिजाइनों वाली पत्थर की जालियाँ, जो प्रकाश और हवा के आवागमन के साथ-साथ गोपनीयता भी प्रदान करती थीं।
  • चारबाग शैली (Charbagh Style): उद्यानों को चार समान भागों में बाँटने की फारसी शैली, जैसे ताजमहल के आस-पास का बगीचा।
  • जल का प्रयोग (Use of Water): इमारतों के सामने हौज, फव्वारे एवं नहरों का निर्माण।
  • सजावट (Decoration): इस्लाम में मूर्तियों के प्रयोग पर प्रतिबंध होने के कारण, सजावट के लिए ज्यामितीय डिजाइन (Geometry), अरबesque पैटर्न, और सुलेख (Calligraphy) का प्रयोग किया गया।

विकास के चरण एवं उदाहरण:

  • दिल्ली सल्तनत काल (12वीं – 16वीं शताब्दी):
    • कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद: भारत की पहली मस्जिद, जहाँ हिन्दू मंदिरों की सामग्री का पुनः प्रयोग देखने को मिलता है।
    • कुतुब मीनार: ईंटों से निर्मित विश्व की सबसे ऊँची मीनार, जिसके निचले भाग में हिन्दू शैली के अलंकरण हैं।
    • अलाई दरवाजा: सच्चे मेहराब और गुम्बद का पहला उदाहरण।
    • तुगलकाबाद का किला: तुगलक वास्तुकला, जो अधिक कार्यात्मक और कम सजावटी थी।
  • मुगल काल (16वीं – 18वीं शताब्दी): इंडो-इस्लामिक स्थापत्य का स्वर्ण युग।
    • हुमायूँ का मकबरा, दिल्ली: प्रथम बड़े पैमाने पर बना चारबाग शैली वाला मकबरा।
    • फतेहपुर सीकरी: बुलंद दरवाजा, जामा मस्जिद, पंचमहल। लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग।
    • ताजमहल, आगरा: सफेद संगमरमर से निर्मित, इंडो-इस्लामिक कला का शिखर। इसमें फारसी, तुर्की, भारतीय एवं इस्लामिक शैलियों का अद्भुत समन्वय है।
    • लाल किला, दिल्ली एवं आगरा का किला: सिविल और सैन्य स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने।
  • प्रांतीय शैलियाँ (जैसे बंगाल, बिजापुर, गुजरात): इन क्षेत्रों की स्थानीय शैलियों (छत, सामग्री) का इस्लामिक डिजाइनों के साथ समन्वय हुआ।
भारतीय तत्व इस्लामिक तत्व समन्वित तत्व (इंडो-इस्लामिक)
शिखर, कोष्ठक मेहराब, गुम्बद, मीनार लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर
मूर्ति अलंकरण ज्यामितीय डिजाइन एवं सुलेख जालीदार खिड़कियाँ (जाली)
मंदिर स्थापत्य मस्जिद/मकबरा स्थापत्य चारबाग शैली में भारतीय वनस्पतियों का प्रयोग

2. हिंदी एवं उर्दू भाषाओं का विकास

संस्कृति के समन्वय का दूसरा बड़ा क्षेत्र भाषा और साहित्य का था। फारसी (दरबारी भाषा) और संस्कृत/स्थानीय अपभ्रंश भाषाओं के परस्पर मेल से नई भाषाओं का जन्म हुआ।

हिंदी का विकास:

  • उत्पत्ति: हिंदी की जड़ें शौरसेनी अपभ्रंश (खड़ी बोली) में हैं।
  • प्रभाव: इस पर संस्कृत का गहरा प्रभाव रहा और बाद में अरबी-फारसी शब्दों का भी समावेश हुआ।
  • साहित्यिक विकास:
    • अमीर खुसरो (13वीं-14वीं शताब्दी) ने अपनी रचनाओं में ‘हिंदवी’ शब्द का प्रयोग किया और इसे साहित्यिक रूप देने का प्रयास किया।
    • कबीर, सूर, तुलसी, मीरा जैसे भक्ति आंदोलन के संत-कवियों ने जनसामान्य की भाषा (अवधी, ब्रजभाषा) में रचना करके हिंदी को समृद्ध किया। तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ (अवधी) एवं सूरदास के ‘सूरसागar’ (ब्रजभाषा) का योगदान अतुलनीय है।

उर्दू का विकास:

  • उत्पत्ति: उर्दू का जन्म दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों की खड़ी बोली से हुआ।
  • प्रभाव: यह मूल रूप से एक भारतीय भाषा है, जिसकी व्याकरणिक संरचना हिंदी के समान है, किंतु इसकी शब्दावली (Vocabulary) मुख्यतः अरबी-फारसी से ली गई है। इसकी लिपि फारसी-अरबी है।
  • नामकरण: ‘उर्दू’ शब्द तुर्की भाषा के शब्द ‘Ordu’ (शिविर/लश्कर) से बना है, जिसका अर्थ है ‘शाही खेमे की भाषा’।
  • साहित्यिक विकास:
    • दक्कनी उर्दू (बीजापुर, गोलकुंडा) में 15वीं-16वीं शताब्दी में ही साहित्य रचना प्रारंभ हो गई थी।
    • 18वीं शताब्दी में दिल्ली और लखनऊ उर्दू साहित्य के प्रमुख केंद्र बने।
    • मीर तकी मीर, मिर्जा ग़ालिब, दाग देहलवी जैसे कवियों ने उर्दू ग़ज़ल को शिखर पर पहुँचाया।

हिंदी और उर्दू: समानताएँ एवं अंतर

  • समानता: दोनों की व्याकरणिक संरचना (Grammar) और क्रिया प्रयोग लगभग एक समान है। दोनों का जन्म एक ही स्रोत (खड़ी बोली) से हुआ था।
  • अंतर:
    • शब्दावली: हिंदी संस्कृत से अधिक शब्द लेती है, जबकि उर्दू अरबी-फारसी से।
    • लिपि: हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है, जबकि उर्दू फारसी-अरबी लिपि में।
    • सांस्कृतिक संदर्भ: हिंदी साहित्य में हिन्दू दर्शन और संस्कृति के संदर्भ अधिक मिलते हैं, जबकि उर्दू साहित्य में इस्लामिक संस्कृति और फारसी परंपरा के।

निष्कर्ष

मध्यकालीन भारत में हुए सांस्कृतिक समन्वय ने एक समृद्ध और मिश्रित विरासत का सृजन किया। इंडो-इस्लामिक स्थापत्य कला ने दुनिया को ताजमहल जैसे अजूबे दिए, तो भाषाई समन्वय ने हिंदी-उर्दू जैसी जुड़वाँ भाषाओं को जन्म दिया, जो आज भी भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक एकता और विविधता की मिसाल हैं।

JPSC MAINS PAPER 3/History Chapter – 1 #17