मुगल काल: प्रमुख पहलू

यूपीएससी सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के लिए मुगल काल के महत्वपूर्ण विषयों पर वर्णनात्मक टिप्पणियाँ।

1. पानीपत का प्रथम युद्ध (1526 ई.)

परिस्थितियाँ: दिल्ली सल्तनत पर इब्राहिम लोदी का शासन था, जो अमीरों एवं सरदारों से उत्पन्न असंतोष के कारण कमजोर था। बाबर, जो फरगना का शासक था, ने भारत पर आक्रमण के लिए यह अनुकूल अवसर देखा।

कारण: बाबर की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा, भारत की धन-दौलत और इब्राहिम लोदी द्वारा दिए गए अपमान का बदला लेने का बहाना।

घटनाक्रम: 21 अप्रैल, 1526 को दिल्ली के उत्तर में पानीपत के मैदान में दोनों सेनाओं का आमना-सामना हुआ। इब्राहिम लोदी की सेना संख्या में बहुत बड़ी थी (लगभग 1,00,000 सैनिक), जबकि बाबर के पास मात्र 12,000 सैनिक थे। परन्तु बाबर ने दो नई सैन्य रणनीतियों का प्रयोग किया:

    • तुलगमा पद्धति: सेना को लचीले ढंग से बाएँ, दाएँ और केंद्र में विभाजित करना ताकि शत्रु को घेरा जा सके।

    • तोपखाना एवं बंदूकधारी पैदल सैनिक (रुमी पद्धति): बाबर ने तोपों को बैलगाड़ियों से बाँधकर एक सुरक्षित दीवार (तुर्की शैली) बना ली, जिसके पीछे से उसके तीरंदाज दुश्मन पर गोलीबारी करते थे। यह रणनीति निर्णायक सिद्ध हुई।

परिणाम: इब्राहिम लोदी मारा गया और उसकी सेना का सफाया हो गया। इस जीत ने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी और दिल्ली पर बाबर का अधिकार हो गया।

2. शेर शाह सूरी की उपलब्धियाँ

शेर शाह सूरी (1540-1545 ई.) ने हुमायूँ को पराजित करके एक संक्षिप्त किंतु अत्यंत प्रभावशाली शासन स्थापित किया। उसकी उपलब्धियाँ मुगलों के लिए एक मॉडल बनीं।

    • प्रशासनिक सुधार: केंद्रीकृत प्रशासनिक ढाँचा स्थापित किया। साम्राज्य को सरकार, परगना और गाँव में बाँटा।

    • राजस्व सुधार (राय टोडरमल का योगदान): भूमि की पैमाइश करवाई, उपज का 1/3 भाग नकद या kind में राजस्व निर्धारित किया (रैयतवाड़ी व्यवस्था का प्रारंभिक रूप)। पट्टा (किसान को भूमि का लेखा-जोखा) और कबूलियत (किसान की स्वीकृति) की प्रथा शुरू की।

    • सैन्य सुधार: सीधी भर्ती की, सैनिकों का निरीक्षण किया (दाग प्रथा) और उन्हें नकद वेतन दिया।

    • निर्माण कार्य: Grand Trunk Road (GT Road) जैसी सड़कों का जाल बिछाया, जो सोनारगाँव (बंगाल) से पेशावर (अब पाकिस्तान) तक जाती थी। सड़कों पर सराय (विश्रामगृह) बनवाए। रुपया नामक चाँदी का सिक्का चलाया जो ब्रिटिश काल तक प्रचलित रहा।

3. मुगल साम्राज्य का एकत्रीकरण

मुगल साम्राज्य का एकत्रीकरण एक क्रमिक प्रक्रिया थी जिसे बाबर ने शुरू किया, हुमायूँ ने जारी रखा (अंतराल के साथ), और अकबर ने पूरा किया।

    • बाबर (1526-1530): पानीपत के प्रथम युद्ध (1526) और खानवा के युद्ध (1527) के माध्यम से उत्तर भारत में अपनी शक्ति स्थापित की। उसने साम्राज्य की नींव रखी।

    • हुमायूँ (1530-1540, 1555-1556): उसे अपने भाइयों और शेर शाह सूरी जैसे विरोधियों से संघर्ष करना पड़ा। शेर शाह से हार के बाद उसने 15 वर्षों के निर्वासन के बाद 1555 में पुनः दिल्ली पर कब्जा किया, लेकिन जल्द ही उसकी मृत्यु हो गई। उसने साम्राज्य को बचाए रखने का प्रयास किया।

    • अकबर (1556-1605): वह वास्तविक एकत्रीकरणकर्ता था। पानीपत के द्वितीय युद्ध (1556) में हेमू को हराकर अपनी स्थिति मजबूत की। उसने गोंडवाना, मालवा, गुजरात, बंगाल, काबुल, कश्मीर, सिंध, ओडिशा, और दक्कन के कुछ हिस्सों को जीतकर एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया। उसकी धार्मिक सहिष्णुता और राजपूतों से वैवाहिक संबंधों की नीति ने साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान किया।

4. जागीरदारी एवं मनसबदारी व्यवस्था

अकबर ने शेर शाह के प्रशासनिक ढाँचे को अपनाया और उसे और विकसित किया।

मनसबदारी प्रणाली: यह एक सैन्य-प्रशासनिक व्यवस्था थी।

    • मनसबदार (पदाधिकारी) को एक पद (मनसब) दिया जाता था, जो जात (अधिकारी का पद/वेतन) और सawar (घुड़सवार सैनिक रखने की संख्या) से निर्धारित होता था।

    • यह एक सैन्य और असैनिक पद दोनों था। मनसबदारों को नकद वेतन या जागीर आवंटित की जाती थी।

    • इस प्रणाली ने केंद्र के प्रति नौकरशाही की निष्ठा सुनिश्चित की और शासन का केन्द्रीकरण किया।

जागीरदारी प्रणाली:

    • जागीर, भूमि का वह टुकड़ा था जो मनसबदार को उसके वेतन के बदले में दिया जाता था।

    • जागीरदार अपनी जागीर से भू-राजस्व एकत्र करने का अधिकारी था, जिसे उसे अपना वेतन और सैनिकों का खर्च चलाना होता था।

    • जागीर हस्तांतरणीय थी, अर्थात सम्राट किसी भी समय जागीरदार को एक जागीर से दूसरी जागीर पर स्थानांतरित कर सकता था। इससे जागीरदार के स्थानीय होने और विद्रोह की संभावना कम हो जाती थी।

5. अकबर की धार्मिक एवं राजपूत नीति

धर्म नीति: अकबर सहिष्णु और समन्वयवादी था।

    • उसने सुलह-ए-कुल (सर्वधर्म समभाव) की नीति अपनाई।

    • जजिया कर (1579) और तीर्थयात्रा कर हटा दिया।

    • फतेहपुर सीकरी में इबादतखाना (प्रार्थना-गृह) बनवाया, जहाँ विभिन्न धर्मों (हिन्दू, ईसाई, जोरोस्ट्रियन, जैन, सूफी) के विद्वानों से चर्चा होती थी।

    • 1582 में दीन-ए-इलाही नामक एक सार्वभौमिक नए धर्म की घोषणा की, जो विभिन्न धर्मों का मिश्रण था। यह एक व्यक्तिगत पंथ था और इसे ज्यादा अनुयायी नहीं मिले।

राजपूत नीति: अकबर ने राजपूतों को विरोधी नहीं, बल्कि सहयोगी बनाया।

    • वैवाहिक गठजोड़: उसने आमेर के राजा भारमल की पुत्री से विवाह किया, जो उसकी प्रमुख पत्नी और जहाँगीर की माँ मारियम-उज-जमानी बनी। इसने मुगल-राजपूत संबंधों में एक नई शुरुआत की।

    • राजपूत शासकों को उच्च पद और जागीरें दी गईं। मानसिंह, टोडरमल, राजा भगवान दास जैसे राजपूत मुगल दरबार के प्रमुख सदस्य बने।

    • केवल मेवाड़ (राणा प्रताप) ने अधीनता स्वीकार नहीं की और हल्दीघाटी के युद्ध (1576) में अकबर का सामना किया।

    • इस नीति ने मुगल साम्राज्य को एक राष्ट्रीय साम्राज्य का चरित्र प्रदान किया और इसकी नींव मजबूत हुई।

6. औरंगजेब की धार्मिक एवं राजपूत नीति

अकबर की नीतियों के विपरीत, औरंगजेब (1658-1707) एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था।

धर्म नीति:

    • उसने 1679 में जजिया कर फिर से लागू किया, जिससे हिन्दू जनता में रोष फैला।

    • हिन्दू मंदिरों को तोड़ने की नीति अपनाई (जैसे काशी विश्वनाथ, केशवराय मथुरा)।

    • हिन्दुओं पर शराब, सती प्रथा और जुआ बंदी जैसे प्रतिबंध लगाए (हालाँकि सती पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं था)।

    • दरबार में हिन्दू त्योहारों और संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया।

    • इन कार्यों ने बड़े पैमाने पर असंतोष पैदा किया और साम्राज्य की एकता को कमजोर किया।

राजपूत नीति:

    • प्रारंभ में संबंध सामान्य थे, लेकिन मारवाड़ और मेवाड़ के मामले में हस्तक्षेप ने तनाव पैदा किया।

    • मारवाड़ के महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद, औरंगजेब ने उसके उत्तराधिकारी की अनदेखी करके मारवाड़ पर कब्जा करने की कोशिश की। इसके विरोध में राजपूतों ने विद्रोह कर दिया।

    • मेवाड़ के राणा राज सिंह ने भी औरंगजेब की नीतियों का विरोध किया।

    • परिणामस्वरूप, औरंगजेब को लंबे और खर्चीले राजपूत युद्धों (1679-1707) में उलझना पड़ा, जिसने मुगल संसाधनों को नष्ट कर दिया और दक्कन में मराठों के उदय के दौरान उत्तर को कमजोर कर दिया।

7. मुगल स्थापत्य एवं चित्रकारी

स्थापत्य कला: मुगल वास्तुकला फारसी, भारतीय और केन्द्रीय एशियाई शैलियों का सुंदर मिश्रण है।

    • बाबर & हुमायूँ: बाबर ने कुछ मस्जिदें बनवाईं। हुमायूँ का मकबरा (दिल्ली) भारत में प्रथम प्रमुख चारबाग शैली का उदाहरण है, जिसे हुमायूँ की पत्नी हमीदा बानो बेगम ने बनवाया था।

    • अकबर: शैली में भव्यता और हिन्दू-इस्लामिक संश्लेषण। प्रमुख उदाहरण: आगरा का किला, फतेहपुर सीकरी (बुलंद दरवाजा, जामा मस्जिद, पंच महल, दीवान-ए-खास), हुमायूँ का मकबरा।

    • जहाँगीर: अकबर के मकबरे (सिकंदरा) और इतिमाद-उद-दौला के मकबरे (आगरा) का निर्माण, जिसमें पिएत्रा ड्यूरा (बहुमूल्य पत्थरों की जड़ाई) की सुंदर कारीगरी देखने को मिलती है।

    • शाहजहाँ: मुगल वास्तुकला का स्वर्ण युग। सफेद संगमरमर का भरपूर उपयोग। प्रमुख रचनाएँ: ताजमहल (आगरा), लाल किला (दिल्ली), जामा मस्जिद (दिल्ली), मोती मस्जिद (आगरा)।

    • औरंगजेब: निर्माण कार्यों में गिरावट। बीबी का मकबरा (औरंगाबाद) और मोती मस्जिद (लाल किला, दिल्ली) प्रमुख हैं।

चित्रकारी (पेंटिंग):

    • फारसी शैली से शुरुआत, धीरे-धीरे भारतीय तत्वों का समावेश हुआ।

    • अकबर ने मुगल चित्रकला का विकास किया। उसने एक विशाल पेंटिंग विभाग की स्थापना की। प्रमुख कृतियाँ: तुजुक-ए-बाबरी, अकबरनामा की पांडुलिपियों की सुंदर सचित्र व्याख्या।

    • जहाँगीर चित्रकला का संरक्षक था। उसके काल में चित्रकला परवान पर चढ़ी। प्रकृति चित्रण, पक्षियों-जानवरों के चित्र और व्यक्तिगत चित्रण (Portraiture) इस युग की विशेषता थी। प्रसिद्ध चित्रकार: उस्ताद मंसूर (पक्षी-चित्रकार), अबुल हसन।

    • शाहजहाँ के काल में चित्रकला और भी परिष्कृत हुई, लेकिन इसमें कल्पनाशीलता की कमी आने लगी।

    • औरंगजेब ने चित्रकला को प्रोत्साहन नहीं दिया, जिससे कलाकार दूसरे दरबारों में चले गए और प्रांतीय शैलियों (जैसे राजपूत, पहाड़ी) का विकास हुआ।

8. मुगल काल के दौरान आर्थिक स्थिति

मुगल काल में भारत एक समृद्ध अर्थव्यवस्था वाला देश था।

    • कृषि: अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि थी। रबी और खरीफ की फसलें उगाई जाती थीं। नहरों और कुओं द्वारा सिंचाई की जाती थी। मुख्य फसलें: गेहूँ, चावल, जौ, दालें, कपास, नील, गन्ना।

    • उद्योग एवं शिल्प: हस्तशिल्प उद्योग उन्नत अवस्था में थे। भारत वस्त्र (मलमल, रेशम, जरी), चीनी मिट्टी के बर्तन, धातु की वस्तुएँ, जहाज निर्माण, और हथियारों के लिए प्रसिद्ध था। ये उद्योग कारखानों (कार्यशालाओं) में संचालित होते थे।

    • व्यापार:
        • आंतरिक व्यापार: सड़कों (जैसे GT Road) और जलमार्गों के जाल के कारण सुगम था। मुख्य व्यापारिक केंद्र: आगरा, लाहौर, अहमदाबाद, सूरत, दिल्ली, मुर्शिदाबाद।
        • विदेशी व्यापार: फलता-फूलता रहा। भारत मसालों, वस्त्रों, नील, शोरा आदि का निर्यात करता था और बहुमूल्य धातुओं (सोना-चाँदी), रेशम, घोड़ों, चीन के बर्तनों आदि का आयात करता था। यूरोपीय कंपनियों (ईस्ट इंडिया कंपनी, VOC) के आगमन से व्यापार में वृद्धि हुई।

    • मुद्रा प्रणाली: सोने, चाँदी और ताँबे के सिक्के प्रचलन में थे। मुगल सिक्के अपनी शुद्धता और कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध थे। शेर शाह के रुपए और मोहर को अकबर ने जारी रखा।

    • सामाजिक-आर्थिक असमानता: समाज के शीर्ष पर अमीर जमींदार और व्यापारी थे, जबकि ग्रामीण किसान और शिल्पकार गरीबी में जीवन यापन करते थे। राजस्व का बोझ आम जनता पर अधिक था।
JPSC MAINS PAPER 3/History Chapter – 1 #18