झारखण्ड का इतिहास: सदान अवधारणा एवं नागपुरी भाषा का उद्भव

परिचय

झारखण्ड, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘वनों का भूभाग’ है, भारत का एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी एक विशिष्ट सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक पहचान रही है। यहाँ के मूल निवासी, जिन्हें सामूहिक रूप से ‘आदिवासी’ कहा जाता है, के साथ-साथ एक और महत्वपूर्ण सामाजिक समूह रहा है – सदान। सदान लोगों की पहचान और उनकी बोली नागपुरी (जिसे सादरी या सदानी भी कहा जाता है) का उद्भव झारखण्ड के इतिहास को समझने की कुंजी है।

सदान (Sadan) की अवधारणा: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

‘सदान’ शब्द का प्रयोग झारखण्ड के उस गैर-आदिवासी (नॉन-ट्राइबल) समुदाय के लिए किया जाता है जो क्षेत्र के मूल निवासी हैं और जिनकी पहचान स्थानीय संस्कृति, भाषा और इतिहास से गहरे जुड़ी हुई है।

  1. मूल एवं उत्पत्ति: ऐतिहासिक मान्यता है कि सदान लोग मुख्यतः उन प्रवासियों के वंशज हैं जो मध्यकालीन काल में (विशेषकर 12वीं से 16वीं शताब्दी के दौरान) उत्तरी भारत (मुख्यतः मगध और मिथिला क्षेत्र) से छोटानागपुर के पठारी इलाकों में आकर बसे।
  2. सामाजिक संरचना में भूमिका: ये प्रवासी मुख्यतः किसान, शिल्पी और व्यापारी थे। उन्होंने इस क्षेत्र में कृषि के नए तरीके, नए शिल्प कौशल और व्यापारिक नेटवर्क विकसित किए। समय के साथ, उन्होंने स्थानीय आदिवासी समुदायों (जैसे मुंडा, उरांव, खड़िया आदि) के साथ सांस्कृतिक एवं सामाजिक समन्वय स्थापित किया।
  3. आदिवासियों से अंतर: यद्यपि सदान भी क्षेत्र के मूल निवासी हैं, परंतु उनकी सामाजिक संरचना, रीति-रिवाज़ और धार्मिक प्रथाएँ उत्तरी भारतीय हिंदू समाज से अधिक मेल खाती हैं, जबकि आदिवासी समुदायों की अपनी एक पृथक पारंपरिक belief system (जैसे सरना धर्म) है।
  4. छोटानागपुर की सामंती व्यवस्था: ब्रिटिश काल में, सदान समुदाय के कुछ लोग जमींदार (नागवंशी, मुंडा, खरवार आदि) बने और उन्होंने स्थानीय प्रशासनिक ढाँचे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने कभी-कभी आदिवासियों के साथ उनके संबंधों में तनाव भी पैदा किया।

नागपुरी भाषा का उद्भव एवं विकास

नागपुरी भाषा सदान समुदाय की मुख्य भाषा है और झारखण्ड की सांस्कृतिक पहचान का एक प्रमुख स्तंभ।

  1. भाषाई परिवार: नागपुरी एक इंडो-आर्यन भाषा है। यह मागधी प्राकृत (पूर्वी इंडो-आर्यन भाषाओं की जननी) से उत्पन्न बिहारी भाषा समूह की सदस्य है। यह मैथिली, भोजपुरी और मगही की ही तरह की एक विशिष्ट बोली/भाषा है।
  2. नामकरण: इस भाषा का नाम ‘नागपुरी’ छोटानागपुर क्षेत्र के नाम पर पड़ा। इसे ऐतिहासिक रूप से ‘सादरी‘ या ‘सदानी‘ के नाम से भी जाना जाता था, जो इसके सदान लोगों से संबंध को दर्शाता है।
  3. एक Lingua Franca के रूप में भूमिका: झारखण्ड में विविध आदिवासी समुदायों की अपनी मातृभाषाएँ (जैसे मुंडारी, हो, संथाली, कुड़ुख़ आदि) हैं। नागपुरी ने इन विविध समुदायों के बीच संवाद का माध्यम (lingua franca) बनकर एक सामाजिक-सांस्कृतिक सेतु का कार्य किया।
  4. साहित्यिक परंपरा: नागपुरी की एक समृद्ध मौखिक साहित्यिक परंपरा रही है, जिसमें लोक गीत (जैसे जनानी झुमर, दोमकच), लोककथाएँ और महाकाव्य शामिल हैं। आधुनिक काल में इसने लिखित साहित्य भी विकसित किया है।
  5. राज्य की द्वितीय राजभाषा: झारखण्ड के गठन (2000) के बाद, नागपुरी को 2011 में राज्य की द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया गया। भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में इसे शामिल करने की मांग लंबे समय से उठती रही है।

निष्कर्ष: ऐतिहासिक महत्व

सदान अवधारणा और नागपुरी भाषा का उद्भव झारखण्ड के इतिहास की निम्नलिखित जटिलताओं को उजागर करता है:

  • बहु-सांस्कृतिक समन्वय: यह दर्शाता है कि झारखण्ड का इतिहास केवल ‘आदिवासी बनाम बाहरी’ का विवाद नहीं है, बल्कि इसमें विभिन्न मूल निवासी समूहों के बीच सह-अस्तित्व, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और कभी-कभी संघर्ष की एक लंबी गाथा शामिल है।
  • क्षेत्रीय पहचान का निर्माण: नागपुरी भाषा ने छोटानागपुर क्षेत्र की एक साझा क्षेत्रीय पहचान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो विविध जनजातीय पहचानों के पार जाकर एक समग्र ‘झारखंडी’ अस्मिता का आधार बनी।
  • राज्य निर्माण आंदोलन: झारखण्ड राज्य के गठन के आंदोलन में सदान समुदाय और नागपुरी भाषा-भाषी लोगों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो इस बात का प्रमाण है कि यह आंदोलन केवल जनजातीय हितों तक सीमित नहीं था, बल्कि एक व्यापक क्षेत्रीय अभियान था।

अतः, झारखण्ड के इतिहास और समकालीन सामाजिक ताने-बाने को समझने के लिए सदान समुदाय और नागपुरी भाषा के ऐतिहासिक विकास एवं योगदान को समझना अत्यावश्यक है।

JPSC MAINS PAPER 3/History Chapter – 1 #31