झारखण्ड का इतिहास: जनजातीय संघर्ष और राष्ट्रवादी आंदोलन

1. परिचय: ‘जंगल-जमीन-जन’ का क्षेत्र

झारखंड, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘वनों की भूमि’, भारत के पूर्वी भाग में स्थित एक राज्य है। यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से अपनी समृद्ध खनिज संपदा, सघन वनों और विविध आदिवासी संस्कृतियों के लिए जाना जाता रहा है। इसका इतिहास मुख्यतः दो प्रमुख संघर्षों के इर्द-गिर्द घूमता है:

  1. जनजातीय संघर्ष: अपनी पहचान, स्वायत्तता, जमीन और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार के लिए सदियों से चला आ रहा संघर्ष।
  2. राष्ट्रवादी संघर्ष: ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में इस क्षेत्र का योगदान।

यह दोनों संघर्ष कई बार एक-दूसरे में समाहित भी हो गए।

2. प्रारंभिक जनजातीय विद्रोह (कोल विद्रोह)

झारखंड के इतिहास में जनजातीय विद्रोहों की एक लंबी और गौरवशाली परंपरा रही है।

  • 1780-1785: तिलका माँझी का विद्रोह – यह ब्रिटिश शासन और जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह माना जाता है। तिलका माँझी ने आदिवासियों को एकजुट करके अंग्रेजों के खिलाफ armed संघर्ष छेड़ा। उन्हें 1785 में पकड़कर public में फाँसी पर लटका दिया गया।
  • 1831-1832: कोल विद्रोह – यह विद्रोह मुंडा और हो जनजातियों द्वारा बाहरी ‘दिकू’ (गैर-आदिवासियों) के शोषण, जमीन की बेदखली और अन्यायपूर्ण कर व्यवस्था के खिलाफ था। इस विद्रोह ने ब्रिटिश प्रशासन को हिलाकर रख दिया था।

3. 19वीं सदी के प्रमुख आदिवासी आंदोलन

  • 1855-1856: संथाल हुल – यह भारतीय इतिहास के सबसे बड़े आदिवासी विद्रोहों में से एक था। सिदो, कान्हू, चाँद और भैरव मुर्मू के नेतृत्व में संथालों ने अंग्रेजों, जमींदारों और साहूकारों के खिलाब बगावत का बिगुल फूंका। ‘हुल’ शब्द का अर्थ है ‘क्रांति’। इसकी व्यापकता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने ‘संथाल परगना’ को स्थापित किया, लेकिन यह विद्रोह आदिवासी अस्मिता के संघर्ष का प्रतीक बन गया।
  • 1869-1870: खेरवार / भोगता विद्रोह
  • 1874-1901: बिरसा मुंडा और उलगुलान (मुंडा विद्रोह) – यह झारखंड के जनजातीय संघर्ष का सबसे चमकदार अध्याय है। बिरसा मुंडा ने न केवल ब्रिटिश शासन बल्कि जमींदारी प्रथा और ईसाई मिशनरियों के प्रभाव के खिलाफ एक सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व किया। उनका उद्देश्य ‘बिरसाइत’ (एक सर्वशक्तिमान ईश्वर में विश्वास) के तहत एक ‘मुंडा राज’ की स्थापना करना था। ‘उलगुलान’ का अर्थ है ‘महान विद्रोह’। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट, 1908 (CNT Act) बनाया, जिसने आदिवासियों की जमीन की रक्षा की।

4. राष्ट्रवादी संघर्ष में योगदान

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में झारखंड की भूमिका महत्वपूर्ण रही।

  • 1857 का विद्रोह: झारखंड के कई हिस्सों में स्थानीय नेताओं, जमींदारों और आदिवासियों ने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ बगावत में हिस्सा लिया।
  • राष्ट्रीय आंदोलनों में भागीदारी: असहयोग आंदोलन (1920-22), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में झारखंड के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
  • स्थानीय नेतृत्व: इस क्षेय ने कई प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी दिए, जैसे –
    • पंडित रघुनाथ शर्मा: 1942 के आंदोलन में प्रमुख भूमिका।
    • देशबंधु दासगुप्ता: कम्युनिस्ट नेता जिन्होंने मजदूरों और किसानों को संगठित किया।
    • यदुंदन सिंह, शेख भिखारी, नीलांबर-पीतांबर: अन्य प्रमुख नाम जिन्होंने colonial शासन के खिलाफ संघर्ष किया।
  • टाना भगत आंदोलन (1914-1920): यह एक सामाजिक-धार्मिक आंदोलन के रूप में शुरू हुआ, लेकिन बाद में इसने गांधीजी के अहिंसक असहयोग के सिद्धांतों को अपनाते हुए एक राष्ट्रवादी चरित्र धारण कर लिया। टाना भगतों ने कर नहीं दिए और सरकारी काम में असहयोग किया।

5. स्वतंत्रता के बाद का संघर्ष और अलग राज्य की मांग

1947 में देश की आजादी के बाद भी झारखंड के जनजातीय संघर्ष का अंत नहीं हुआ। आदिवासियों को लगा कि उनके संसाधनों का शोषन जारी है और उनकी पहचान खतरे में है। इसने एक अलग ‘झारखंड राज्य’ के लिए आंदोलन को जन्म दिया।

  • झारखंड पार्टी का गठन (1949): जयपाल सिंह मुंडा के नेतृत्व में गठित इस पार्टी ने अलग राज्य की मांग को एक राजनीतिक आवाज दी।
  • झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और अन्य संगठन: 1970 और 1980 के दशक में बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन और ए. के. रॉय जैसे नेताओं ने इस आंदोलन को नई ऊर्जा दी।
  • आदिवासी अस्मिता, संसाधनों पर अधिकार और विकास के सवाल इस आंदोलन के केंद्र में थे।

6. निष्कर्ष: एक सतत संघर्ष की विरासत

झारखंड का जनजातीय संघर्ष ने न केवल स्थानीय पहचान को बचाए रखा बल्कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद को चुनौती देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्रवादी संघर्ष में इसकी भागीदारी राष्ट्रीय मुख्यधारा की कथा का एक अभिन्न अंग है। 15 नवंबर, 2000 को झारखंड के गठन के साथ यह संघर्ष एक मुकाम पर पहुँचा, लेकिन आज भी जमीन, जल, जंगल और विकास के अधिकार को लेकर चुनौतियाँ बनी हुई हैं। झारखंड का इतिहास हमें सिखाता है कि क्षेत्रीय आकांक्षाएँ और राष्ट्रवाद एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं।


महत्वपूर्ण तथ्य:

  • तिलका माँझी को ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम शहीद’ माना जाता है।
  • बिरसा मुंडा की जन्मतिथि (15 नवंबर) को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
  • CNT Act और SPT Act (संथाल परगना टेनेंसी एक्ट) आज भी झारखंड में जमीन हस्तांतरण को विनियमित करते हैं।
  • झारखंड आंदोलन ‘क्षेत्रवाद’ बनाम ‘राष्ट्रवाद’ और ‘विकास’ बनाम ‘विस्थापन’ जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक केस स्टडी है।
JPSC MAINS PAPER 3/History Chapter – 1 #32