हर्षवर्धन: उत्तरी भारत का अंतिम महान हिन्दू शासक एवं उसके काल की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ

परिचय: 606 ई. से 647 ई. तक शासन करने वाले सम्राट हर्षवर्धन को उत्तरी भारत के अंतिम महान हिन्दू सम्राट के रूप में जाना जाता है। थानेश्वर (वर्तमान हरियाणा) के पुष्यभूति वंश से संबंधित हर्ष ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की जिसकी राजधानी कन्नौज थी। उसका शासनकाल केवल एक सैन्य और राजनीतिक उत्कर्ष का ही नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी काल था।

हर्षवर्धन के काल की प्रमुख सांस्कृतिक उपलब्धियाँ

1. साहित्यिक उन्नति एवं संरक्षण

    • हर्ष स्वयं एक विद्वान लेखक: हर्षवर्धन स्वयं एक प्रतिभाशाली साहित्यकार थे। उन्होंने संस्कृत भाषा में तीन नाटकों की रचना की – ‘नागानंद’, ‘रत्नावली’ और ‘प्रियदर्शिका’। ‘नागानंद’ बोधिसत्व के जातक की कथा पर आधारित है, जो हर्ष की बौद्ध धर्म के प्रति आस्था को दर्शाता है, जबकि अन्य दो प्रेम प्रधान हास्य नाटक (प्रकरण) हैं।

    • राज्याश्रय: हर्ष ने विद्वानों को अपने दरबार में संरक्षण प्रदान किया। उसके दरबार के सबसे प्रसिद्ध विद्वान थे – बाणभट्ट, जिन्होंने हर्ष के आधिकारिक जीवन-चरित ‘हर्षचरित’ और एक अद्वितीय गद्य-काव्य ‘कादम्बरी’ की रचना की।

    • चीनी यात्री ह्वेनसांग का योगदान: हर्ष के दरबार में लंबे समय तक रहे चीनी यात्री ह्वेनसांग (युआन च्वांग) ने ‘सि-यू-की’ (रिकॉर्ड ऑफ वेस्टर्न वर्ल्ड) नामक एक विस्तृत यात्रा वृत्तांत लिखा। यह ग्रंथ हर्षकालीन भारत के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन पर अमूल्य जानकारी का स्रोत है।

2. धार्मिक सहिष्णुता एवं संगोष्ठियाँ

    • सर्वधर्म समभाव: हर्ष व्यक्तिगत रूप से शैव धर्मानुयायी था, किंतु बाद में वह महायान बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुआ। फिर भी, उसने अपने साम्राज्य में सभी धर्मों के प्रति उदारता का भाव बनाए रखा।

    • धार्मिक सम्मेलन: हर्ष ने नियमित रूप से बड़े पैमाने पर धार्मिक सम्मेलनों (सभाओं) का आयोजन किया। सबसे प्रसिद्ध कन्नौज का सम्मेलन (643 ई.) था, जिसमें ह्वेनसांग ने महायान बौद्ध धर्म के दर्शन पर व्याख्यान दिया और एक बौद्ध मठ की स्थापना की गई।

    • प्रयाग का कumbh मेला: हर्ष ने प्रयाग (इलाहाबाद) में प्रत्येक 5 वर्ष (कुछ स्रोतों के अनुसार 6 वर्ष) के अंतराल पर एक महान धार्मिक सभा (महामोक्ष परिषद) का आयोजन शुरू किया, जिसमें वह अपनी संपू्न्न आय दान में दे देता था। यह परंपरा आधुनिक कumbh मेले की पूर्ववर्ती मानी जाती है।

3. शिक्षा का प्रसार

हर्ष के काल में शिक्षा को बहुत महत्व दिया जाता था। नालंदा विश्वविद्यालय इस समय अपने चरमोत्कर्ष पर था और ह्वेनसांग जैसे विदेशी छात्र यहाँ अध्ययन के लिए आते थे। हर्ष नालंदा का एक उदार संरक्षक था और उसने विश्वविद्यालय को दान दिया तथा उसकी समृद्धि में योगदान दिया।

4. कला एवं वास्तुकला

    • हर्षकालीन स्थापत्य कला के उदाहरण अब बहुत कम बचे हैं, क्योंकि अधिकांश इमारतें काष्ठ निर्मित थीं।

    • ह्वेनसांग के विवरणों से पता चलता है कि उसने कन्नौज में कई मठों, स्तूपों और विहारों का निर्माण करवाया।

    • मूर्तिकला में गुप्तकालीन शैली की निरंतरता देखी जा सकती है, जिसमें कोमलता और सूक्ष्मता के गुण विद्यमान थे।

निष्कर्ष

हर्षवर्धन का शासनकाल प्राचीन भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम chapter है। उसने एक ऐसा वातावरण निर्मित किया जहाँ साहित्य, कला, धर्म और दर्शन पनप सके। हालाँकि उसकी मृत्यु के बाद उत्तरी भारत में एकता विघटित हो गई और कोई केंद्रीय शक्ति नहीं उभरी, किंतु उसके द्वारा प्रदत्त सांस्कृतिक विरासत ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया। वह वास्तव में उत्तरी भारत के अंतिम महान हिन्दू सम्राट थे, जिन्होंने गुप्त साम्राज्य की सांस्कृतिक परंपराओं को आगे बढ़ाया और एक समन्वयवादी सभ्यता का निर्माण किया।

JPSC MAINS PAPER 3/History Chapter – 9