भारतीय संविधान की प्रस्तावना: धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक एवं समाजवादी शब्दावली तथा इसके पीछे का दर्शन

भारतीय संविधान की प्रस्तावना संविधान का आधारसूत्र (Basic Philosophy) एवं आदर्श प्रस्तुत करती है। यह संविधान निर्माताओं के दृष्टिकोण, आकांक्षाओं तथा मूल्यों को दर्शाती है। मूल प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्द 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा जोड़े गए। ये शब्द भारतीय गणराज्य की प्रकृति को स्पष्ट करते हैं।

1. प्रस्तावना में निहित मुख्य शब्दावली और उनका दर्शन

(क) धर्मनिरपेक्ष (Secular)

अर्थ: भारतीय संदर्भ में ‘धर्मनिरपेक्ष’ का तात्पर्य सर्वधर्म समभाव (Equal Respect for all Religions) से है। इसका अर्थ यह नहीं है कि राज्य का कोई धर्म नहीं है, बल्कि यह है कि राज्य सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहेगा और किसी भी धर्म के साथ पक्षपात नहीं करेगा।

प्रस्तावना में स्थान: प्रस्तावना में यह शब्द इस बात का द्योतक है कि भारत एक ऐसा राज्य है जहाँ सभी नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने, उसका प्रचार-प्रसार करने और उपासना करने की स्वतंत्रता है। राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है और वह धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा, लेकिन साथ ही सामाजिक कुरीतियों एवं धार्मिक असमानता को दूर करने की जिम्मेदारी भी उसकी है।

पीछे का दर्शन:

  • भारत की सांस्कृतिक विविधता और बहुलवादी सामाजिक संरचना को मान्यता देना।
  • सर्वधर्म समभाव की प्राचीन भारतीय परंपरा को संवैधानिक स्वरूप प्रदान करना।
  • धर्म के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करना और एक धर्मनिरपेक्ष नागरिक समाज (Secular Civil Society) का निर्माण करना।
  • न्यायालयों ने (एस.आर. बोम्मई केस, 1994) इसे संविधान की ‘मूल संरचना’ (Basic Structure) घोषित किया है।

(ख) लोकतान्त्रिक (Democratic)

अर्थ: ‘लोकतांत्रिक’ शब्द से तात्पर्य है कि भारत में शासन की सर्वोच्च सत्ता जनता में निहित है और शासन जनता के प्रति उत्तरदायी है। यह केवल एक राजनीतिक व्यवस्था (Political Democracy) ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था (Social & Economic Democracy) भी है।

प्रस्तावना में स्थान: प्रस्तावना में ‘लोकतंत्रात्मक’ शब्द का प्रयोग इस व्यापक अर्थ में किया गया है। इसमें नागरिकों को राजनीतिक अधिकार (मतदान, चुनाव लड़ना) के साथ-साथ सामाजिक न्याय और आर्थिक भागीदारी सुनिश्चित करने का आदर्श निहित है।

पीछे का दर्शन:

  • जनता को सरकार चुनने और बदलने का अधिकार।
  • वयस्क मताधिकार, नियमित चुनाव, और बहुमत के शासन का सिद्धांत।
  • मौलिक अधिकार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और कानून का शासन जैसी संस्थाओं के माध्यम से लोकतंत्र को सुरक्षित करना।
  • शासन में जनभागीदारी को बढ़ावा देना (पंचायती राज व्यवस्था इसका उदाहरण है)।

(ग) समाजवादी (Socialist)

अर्थ: भारतीय संदर्भ में ‘समाजवादी’ शब्द का अर्थ पूंजीवादी या साम्यवादी (Communist) मॉडल से भिन्न है। यहाँ ‘गांधीवादी’ या ‘लोकतांत्रिक समाजवाद’ (Democratic Socialism) की अवधारणा है, जिसका उद्देश्य आर्थिक न्याय और सामाजिक समानता स्थापित करना है, लेकिन लोकतांत्रिक तरीकों और संवैधानिक ढाँचे के भीतर।

प्रस्तावना में स्थान: इसका उद्देश्य धन, उत्पादन और संसाधनों का संकेन्द्रण रोकना और समाज के कमजोर वर्गों के लिए जीवन के बेहतर स्तर को सुनिश्चित करना है।

पीछे का दर्शन:

  • आर्थिक असमानता को कम करना और सामाजिक-आर्थिक न्याय प्राप्त करना।
  • राज्य का यह दायित्व है कि वह उत्पादन के साधनों के स्वामित्व और नियंत्रण को इस प्रकार व्यवस्थित करे कि वह सामान्य हित के विरुद्ध न जाए।
  • नीति-निर्देशक सिद्धांत (अनुच्छेद 38, 39, 41, 43, आदि) इसी समाजवादी दर्शन को क्रियान्वित करने के मार्गदर्शक सिद्धांत हैं।
  • यह एक ‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ (Mixed Economy) के मॉडल का समर्थन करता है, जहाँ सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र साथ-साथ कार्य करते हैं।

2. समग्र दर्शन एवं निष्कर्ष

प्रस्तावना में वर्णित ये तीनों शब्द एक-दूसरे से पूर्णतः अंतर्संबंधित हैं। भारत का लोकतंत्र तभी सार्थक हो सकता है जब वह समाजवादी लक्ष्यों को प्राप्त करे और सभी नागरिकों को बिना किसी धार्मिक भेदभाव के उसका लाभ मिले। इसी प्रकार, एक समाजवादी व्यवस्था लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से ही स्थापित की जानी है, न कि सत्तावादी तरीकों से।

इन शब्दों के पीछे का मूल दर्शन सामाजिक क्रांति (Social Revolution) का है। संविधान निर्माता एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते थे जो न केवल औपनिवेशिक शासन से मुक्त हो, बल्कि सामाजिक-आर्थिक रूप से न्यायसंगत, राजनीतिक रूप से सहभागी और धार्मिक-सांस्कृतिक रूप से सहिष्णु भी हो। प्रस्तावना में ‘न्याय’ (सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक), ‘स्वतंत्रता’, ‘समता’ और ‘बंधुत्व’ जैसे शब्द इसी व्यापक सामाजिक परिवर्तन के लक्ष्यों को दर्शाते हैं, जिनकी प्राप्ति के लिए ‘धर्मनिरपेक्ष’, ‘लोकतान्त्रिक’ और ‘समाजवादी’ राष्ट्र का ढाँचा आवश्यक माना गया है।

JPSC MAINS PAPER 4/polity Chapter – 1