संविधान के आपातकालीन उपबंध: अवधारणा एवं विशेषताएँ

भारतीय संविधान के भाग XVIII में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन उपबंधों का वर्णन किया गया है। ये उपबंध केंद्र सरकार को अत्यंत चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में देश की एकता, अखंडता, सुरक्षा और लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए विशेष शक्तियाँ प्रदान करते हैं। इनकी अवधारणा भारत के संविधान निर्माताओं द्वारा घोर संकट की स्थिति से निपटने के लिए एक सुरक्षा वाल्व (Safety Valve) के रूप में की गई थी।

आपातकाल की अवधारणा

आपातकाल का तात्पर्य ऐसी असाधारण परिस्थिति से है जहाँ देश की सुरक्षा, शांति और स्थिरता खतरे में होती है। ऐसी स्थिति में संविधान के सामान्य प्रावधानों के स्थान पर विशेष प्रावधान लागू हो जाते हैं, जिससे केंद्र सरकार अधिक शक्तिशाली हो जाती है और राज्यों की शक्तियाँ सीमित हो जाती हैं। यह प्रावधान संघीय ढाँचे को एकात्मक (Unitary) में बदल देता है। इसकी प्रेरणा भारत सरकार अधिनियम, 1935 से ली गई है।

आपातकाल के प्रकार एवं उनकी मुख्य विशेषताएँ

1. राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)

आधार: युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह (44वें संविधान संशोधन द्वारा ‘आंतरिक अशांति’ के स्थान पर इस शब्द को रखा गया) के कारण उत्पन्न खतरा।

मुख्य विशेषताएँ:

  • इसकी घोषणा राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, लेकिन केवल मंत्रिमंडल के लिखित सुझाव पर।
  • घोषणा संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखी जाएगी और एक माह के भीतर दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत (सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत + उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों का 2/3 बहुमत) से अनुमोदित होनी आवश्यक है।
  • यह छह महीने की अवधि के लिए लागू रहती है और संसद के अनुमोदन से प्रत्येक छह महीने के लिए अनिश्चित काल तक बढ़ाई जा सकती है।
  • इसके लागू होने पर:
    • केंद्र, राज्यों के विषयों पर भी कानून बना सकता है।
    • राज्यों की कार्यपालिका शक्तियाँ केंद्र के अधीन हो जाती हैं।
    • संसद, राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।
    • मौलिक अधिकारों का अनुच्छेद 19 स्वतः निलंबित हो जाता है (44वें संशोधन के बाद केवल ‘युद्ध’ या ‘बाह्य आक्रमण’ की स्थिति में)। अनुच्छेद 20 और 21 के अधिकार निलंबित नहीं होते।
  • इसे लोकसभा के साधारण बहुमत द्वारा प्रस्ताव पारित करके या राष्ट्रपति को लिखित सुझाव देकर कभी भी वापस लिया जा सकता है।

2. राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता (राष्ट्रपति शासन) (अनुच्छेद 356)

आधार: यदि राष्ट्रपति को किसी राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट या किसी अन्य सूत्र से यह समाधान हो जाए कि उस राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है।

मुख्य विशेषताएँ:

  • राष्ट्रपति की घोषणा को दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा साधारण बहुमत से अनुमोदित होना आवश्यक है।
  • यह छह महीने के लिए लागू रहती है और अधिकतम तीन वर्ष तक (प्रत्येक छह महीने के लिए संसद के अनुमोदन से) बढ़ाई जा सकती है।
  • इसके लागू होने पर:
    • राज्य की विधान सभा निलंबित या भंग की जा सकती है।
    • राज्य का शासन राष्ट्रपति द्वारा चलाया जाता है, जो आमतौर पर राज्यपाल के माध्यम से कार्य करता है।
    • राज्य की कार्यपालिका शक्ति केंद्र में निहित हो जाती है।
    • राज्य के विधानमंडल के अधिकार संसद को प्राप्त हो जाते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने एस. आर. बोम्मई मामले (1994) में इसके दुरुपयोग पर अंकुश लगाते हुए कहा कि राष्ट्रपति की घोषणा न्यायिक समीक्षा के दायरे में आएगी।

3. वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)

आधार: यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाए कि भारत या उसके किसी भू-भाग की वित्तीय स्थिरता या साख को खतरा उत्पन्न हो गया है।

मुख्य विशेषताएँ:

  • इसकी घोषणा को दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा साधारण बहुमत से अनुमोदित किया जाना चाहिए।
  • इसके लागू होने पर:
    • केंद्र, राज्यों को वित्तीय संसाधनों के वितरण संबंधी आदेश जारी कर सकता है।
    • राष्ट्रपति, राज्यों में सार्वजनिक सेवकों के वेतन और भत्तों में कटौती का आदेश दे सकता है, जिसमें उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी शामिल हैं।
    • केंद्र, राज्य सरकारों को वित्तीय अनुशासन के निर्देश जारी कर सकता है।
  • भारत में अब तक वित्तीय आपातकाल की घोषणा कभी नहीं की गई है।

आलोचनात्मक विश्लेषण / महत्व

  • केंद्र की शक्तियों में अत्यधिक वृद्धि: आपातकाल संघीय ढाँचे को पूर्णतः एकात्मक बना देता है, जिसकी डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने ‘राज्यों के विनाश की तैयारी’ के रूप में आलोचना की थी।
  • मौलिक अधिकारों का निलंबन: यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों, विशेषकर अनुच्छेद 19 को प्रभावित करता है, जो लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है।
  • दुरुपयोग की संभावना: अनुच्छेद 356 का राजनीतिक दलों द्वारा अपने विरोधी दलों की राज्य सरकारों को बर्खास्त करने के लिए दुरुपयोग किया गया है।
  • सुरक्षा वाल्व: इसके बावजूद, ये प्रावधान देश की अखंडता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए एक आवश्यक सुरक्षा तंत्र प्रदान करते हैं।
  • न्यायिक हस्तक्षेप: बोम्मई मामले जैसे ऐतिहासिक निर्णयों के बाद न्यायपालिका ने इन शक्तियों पर संवैधानिक अंकुश लगाया है, जिससे मनमाने दुरुपयोग पर रोक लगी है।

निष्कर्षतः, आपातकालीन उपबंध भारतीय संविधान की एक शक्तिशाली एवं संवेदनशील विशेषता हैं। इनका उपयोग उत्तरदायित्वपूर्ण और राजनीतिक संयम के साथ किया जाना चाहिए, ताकि लोकतंत्र और संघवाद के मूलभूत सिद्धांतों का संरक्षण सुनिश्चित हो सके।

JPSC MAINS PAPER 4/polity Chapter – 1 #10