जिला प्रशासन का उद्भव और विकास

जिला प्रशासन भारत में शासन की रीढ़ की हड्डी है। इसकी संरचना और कार्यप्रणाली का ऐतिहासिक विकास बहुत ही रोचक रहा है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • मौर्य एवं गुप्त काल: प्रांतों (भुक्ति), जिलों (विषय) और गाँवों (ग्राम) में विभाजित एक केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था अस्तित्व में थी। ‘राजुक’ नामक अधिकारी भू-राजस्व एकत्र करने और कानून व्यवस्था बनाए रखने का काम करते थे।

  • मुगल काल: साम्राज्य ‘सूबों’ (प्रांतों) में बंटा था, जो ‘सरकारों’ (जिलों) में और सरकारें ‘परगनों’ में विभाजित थीं। ‘फौजदार’ सैन्य और कानून व्यवस्था के प्रमुख होते थे, जबकि ‘आमिल’ या ‘करोड़ी’ राजस्व एकत्र करने का काम करते थे। यहीं से राजस्व और कानून व्यवस्था के कार्यों के बीच अंतर की नींव पड़ी।

  • ब्रिटिश काल: जिला प्रशासन की आधुनिक अवधारणा का उद्भव ब्रिटिश शासन काल में हुआ।

    • लॉर्ड कार्नवालिस (1793): इन्हें ‘भारत में जिला कलेक्टर प्रथा का जनक’ माना जाता है। उन्होंने ‘जिला कलेक्टर’ के पद की स्थापना की, जो भू-राजस्व एकत्र करने का प्रमुख अधिकारी था। न्यायिक शक्तियाँ भी इन्हें प्राप्त थीं।

    • इंडियन काउंसिल एक्ट, 1861: इस अधिनियम ने पहली बार कार्यपालिका और न्यायपालिका के पृथक्करण का सिद्धांत स्थापित किया। हालाँकि, जिला स्तर पर यह पृथक्करण तुरंत पूर्ण रूप से लागू नहीं हुआ।

    • भारत सरकार अधिनियम, 1919 एवं 1935: इन अधिनियमों के तहत प्रशासनिक सुधार हुए और प्रांतीय स्वायत्तता बढ़ी, जिसका सीधा प्रभाव जिला प्रशासन पर पड़ा।

स्वतंत्रता के बाद का विकास

भारत के संविधान ने जिला प्रशासन की इस संस्था को बरकरार रखा। राज्य सरकारों के अधीन जिला प्रशासन, केंद्र और राज्य की नीतियों को जमीन पर उतारने वाली प्राथमिक इकाई बनी रही। समय के साथ इसकी भूमिका में विस्तार हुआ है।


जिला मजिस्ट्रेट और जिलाधीश के कार्यालय

जिले में राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व दो प्रमुख अधिकारी करते हैं: जिलाधीश (District Collector/DM) और पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police/SP)। यहाँ जिलाधीश/कलेक्टर के कार्यालय पर ध्यान केंद्रित है।

  • जिलाधीश (District Magistrate/DM): यह पद जिले में कानून व्यवस्था (Law and Order) के रख-रखाव की जिम्मेदारी संभालता है। DM को संदेह के आधार पर गिरफ्तारी, हिरासत, जमानत, और निवारक नजरबंदी (जैसे CrPC की धारा 144, 107, 110, 133 आदि) से संबंधित विशेष अधिकार प्राप्त हैं।

  • जिला कलेक्टर (District Collector): यह पद मुख्य रूप से भू-राजस्व (Land Revenue) के प्रशासन, संग्रह, और भू-अभिलेखों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार है। इनका कार्य राजस्व न्यायालय के रूप में भी होता है।

  • एक ही अधिकारी, दो भूमिकाएँ: भारत के अधिकांश जिलों में, एक ही अधिकारी (IAS अधिकारी) जिलाधीश (DM) और जिला कलेक्टर (Collector) दोनों की भूमिका निभाता है। इस प्रकार, वह ‘जिला मजिस्ट्रेट और जिलाधीश’ (DM) के रूप में जाना जाता है। उसका कार्यालय जिला प्रशासन का केंद्रीय तंत्र है।


जिला कलेक्टर की परिवर्तित होती भूमिका

समय के साथ, जिला कलेक्टर की भूमिका एक मुख्यतः ‘राजस्व संग्रहकर्ता’ और ‘कानून व्यवस्था प्रबंधक’ से विस्तारित होकर एक ‘समन्वयक’, ‘विकास प्रबंधक’ और ‘जिले का मुख्य कार्यकारी अधिकारी’ बन गई है।

  1. राजस्व प्रशासन से विकास प्रशासन की ओर: भू-राजस्व का महत्व कम होने के साथ ही कलेक्टर का ध्यान गरीबी उन्मूलन, ग्रामीण विकास, रोजगार गारंटी योजनाओं (मनरेगा), सामाजिक सुरक्षा पेंशन आदि के कार्यान्वयन पर केंद्रित हुआ है।

  2. आपदा प्रबंधन: कलेक्टर जिले में आपदा प्रबंधन का नोडल अधिकारी है। बाढ़, सूखा, महामारी (जैसे COVID-19) जैसी आपदाओं के दौरान राहत और बचाव कार्यों का समन्वय उसकी प्रमुख जिम्मेदारी है।

  3. चुनाव प्रबंधन: जिले में होने वाले सभी चुनावों (लोकसभा, विधानसभा, नगर निकाय) के संचालन की जिम्मेदारी मुख्य रूप से DM की होती है, जो रिटर्निंग ऑफिसर के रूप में कार्य करता है।

  4. समन्वय का केंद्र: कलेक्टर जिले के विभिन्न विभागों (पुलिस, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, आदि) के कार्यों में समन्वय स्थापित करता है। वह जिला स्तरीय समितियों की अध्यक्षता करता है।

  5. ग्रामीण एवं नगरीय स्थानीय निकायों के साथ समन्वय: पंचायती राज संस्थाओं और नगर निगम/पालिकाओं के साथ कार्य करना तथा उनके कार्यों में सहयोग देना अब कलेक्टर की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।


न्यायपालिका के पृथक्करण का जिला प्रशासन पर प्रभाव

भारतीय संविधान ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के पृथक्करण के सिद्धांत को अपनाया है। इसका जिला प्रशासन पर गहरा प्रभाव पड़ा है।

  1. कार्यपालिका मजिस्ट्रेट बनाम न्यायिक मजिस्ट्रेट:

  • पहले: जिला कलेक्टर के पास व्यापक न्यायिक शक्तियाँ थीं। वह एक कार्यपालिका अधिकारी होने के साथ-साथ एक न्यायिक मजिस्ट्रेट भी था।
  • अब: न्यायिक शक्तियों का हस्तांतरण न्यायिक मजिस्ट्रेटों (Judicial Magistrates) को कर दिया गया है, जो सीधे उच्च न्यायालय के अधीन होते हैं। DM अब एक कार्यपालिका मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate) है।
  1. शक्तियों में परिवर्तन:

  • कार्यपालिका मजिस्ट्रेट के पास अब मुख्य रूप से प्रशासनिक और निवारक (Preventive) शक्तियाँ हैं (जैसे CrPC की धारा 107, 108, 109, 110, 133, 144)। इनका उद्देश्य शांति बनाए रखना और संभावित अपराधों को रोकना है।
  • दंडात्मक (Punitive) शक्तियाँ (जैसे मुकदमों का संचालन और सजा सुनाना) अब मुख्य रूप से न्यायिक मजिस्ट्रेटों के पास हैं।
  1. सकारात्मक प्रभाव:

  • न्यायिक स्वतंत्रता: इस पृथक्करण ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया है।
  • शक्तियों का विभाजन: इससे शक्तियों का केंद्रीकरण एक व्यक्ति के पास नहीं रहा, जिससे तानाशाही पर अंकुश लगा।
  • विशेषज्ञता: न्यायिक कार्य अब कानून के विशेषज्ञ (न्यायाधीश) करते हैं, न कि प्रशासनिक अधिकारी।
  1. चुनौतियाँ:

  • कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच कभी-कभी समन्वय की कमी देखी जाती है।
  • निवारक शक्तियों के दुरुपयोग की आशंका बनी रहती है।

जिला प्रशासन के कार्य, अवधारणा और मुख्य विशेषताएँ

मुख्य कार्य

  1. कानून व्यवस्था का रखरखाव: शांति, सद्भाव और सार्वजनिक शांति बनाए रखना।
  2. राजस्व प्रशासन: भू-राजस्व का आकलन और संग्रह, भू-अभिलेखों का रखरखाव।
  3. विकासात्मक कार्य: केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न विकास योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों का कार्यान्वयन।
  4. न्यायिक कार्य (सीमित): कार्यपालिका मजिस्ट्रेट के रूप में निवारक और प्रशासनिक कार्य करना।
  5. आपदा प्रबंधन: आपदा के दौरान राहत और पुनर्वास कार्यों का समन्वय।
  6. चुनाव प्रशासन: निर्वाचन प्रक्रिया का निष्पक्ष और स्वतंत्र संचालन।
  7. समन्वय: जिले के सभी विभागों के कार्यों में समन्वय स्थापित करना।

अवधारणा

जिला प्रशासन की केंद्रीय अवधारणा राज्य सरकार की नीतियों और कानूनों को जमीनी स्तर (Grassroot Level) पर लागू करने वाली एक एकीकृत कमान (Unified Command) structure की है। यह नागरिकों और सरकार के बीच की प्राथमिक कड़ी है।

मुख्य विशेषताएँ

  1. एकीकृत नेतृत्व: जिलाधीश/कलेक्टर जिले का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी होता है।
  2. बहु-उद्देशीय इकाई: यह विविध प्रकार के कार्य करती है – शांति बनाए रखना, राजस्व संग्रह करना, विकास करना।
  3. क्षेत्रीय प्रशासन: यह एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र (जिले) तक सीमित होता है।
  4. लचीलापन: समय और आवश्यकतानुसार इसकी भूमिका और कार्यों में परिवर्तन होता रहा है।
  5. जनता के साथ सीधा संपर्क: यह सरकार का वह चेहरा है जिससे आम नागरिक सबसे अधिक interact करता है।

निष्कर्ष

जिला प्रशासन एक गतिशील संस्था है जो औपनिवेशिक आवश्यकताओं से उत्पन्न हुई लेकिन स्वतंत्र भारत की लोकतांत्रिक, विकासोन्मुखी और जन-केंद्रित आकांक्षाओं के अनुरूप ढल गई। न्यायपालिका के पृथक्करण ने इसे और अधिक जवाबदेह बनाया है। भले ही इसकी भूमिका समय के साथ बदली है, लेकिन शासन व्यवस्था में इसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है।

JPSC MAINS PAPER 4/PublicAdministration Chapter – 1 #5