उपधातु (Metalloid) : 

  • जो तत्व धातु और अधातु दोनों के गुण प्रदर्शित करते हैं, उन्हें उपधातु या Metalloid कहा जाता है ।
  • आवर्त सारणी में इनकी स्थिति धातुओं और अधातुओं के मध्य में है ।
  • उपधातुओं की संख्या 7 है, जो इस प्रकार है—
    • (1) बोरोन (B)
    • (2) सिलिकन (Si)
    • (3) जर्मेनियम (Ge)
    • (4) आर्सेनिक (As)
    • (5) एन्टिमनी (Sb )
    • ( 6 ) टेलेरियम (Te)
    • ( 7 ) पोलोनियम (Po) 

बोरोन (Boron) :

  • बोरोन के यौगिक B2O3 का उपयोग बोरिक एसिड नामक दवा बनाने में, कांच उद्योग में, प्रयोगशाला में बोरेक्स बीड टेस्ट आदि में होता है ।
  • बोरोन का उपयोग अकार्बनिक ग्रेफाइट, अकार्बनिक बेंजीन तथा बोरिक एसिड (H3BO3 ) बनाने में होता है ।
  • बोरिक एसिड का उपयोग एन्टीसेप्टिक दवा के निर्माण में होता है ।
  • यह कांच उद्योग में भी व्यवहृत होता है ।
  • इसका उपयोग खाद्य-पदार्थों के परिरक्षण में होता है | 

एन्टिमनी (Antimony ) :

  • एन्टिमनी (Sb) के यौगिक एन्टिमनी सल्फाइड (Sb2S3 ) का उपयोग दियासलाई की तिली के सिरे पर लगने वाले ज्वलनशील पदार्थ के रूप में होता है । 

जर्मेनियम ( Germenium) :

  • जर्मेनियम (Ge) का उपयोग ट्रांजिस्टर बनाने में होता है ।
  • जर्मेनियम का उपयोग फोटो इलेक्ट्रिक सेल (Photo Electric Cell) में होता है।
  • सोलर सेल में जर्मेनियम, सीजियम आदि का प्रयोग होता है। 

पोलोनियम (Polonium) :

  • पोलोनियम (Po) के सर्वाधिक संख्या में समस्थानिक (27) पाये जाते हैं। 
  • पोलोनियम प्रथम मानव निर्मित तत्व (First Man Made Element) हैं । 

आर्सेनिक (Arsenic ) :

  • कम्प्यूटर चिप्स (Computer Chips) के उत्पादन में गैलियम आर्सेनाइड नामक नवीनतम पदार्थ का प्रयोग किया जा रहा है ।
  • गैलियम आर्सेनाइड अर्द्धचालक की भाँति व्यवहार करता है । 

अकार्बनिक रसायन की प्रमुख घटनाएँ 

अपरूपता (Allotropy) :

  • किसी तत्व के दो या दो से अधिक रूप उस तत्व के अपरूप (Allotrops) कहलाते हैं तथा किसी तत्व का एक से अधिक रूपों में विद्यमान होना अपरूपता कहलाता है ।
  • कार्बन के अपरूप : हीरा, ग्रेफाइट, काष्ठ चारकोल, बोन चारकोल, रक्त चारकोल आदि ।
  • फॉस्फोरस के अपरूप : पीला फॉस्फोरस, लाल फॉस्फोरस, काला- फॉस्फोरस, स्कार्लेट फॉस्फोरस आदि ।
  • ऑक्सीजन के अपरूप : ऑक्सीजन एवं ओजोन
  • सल्फर के अपरूप : रॉम्बिक सल्फर, मोनोक्लाइनिक सल्फर, एमारफस सल्फर, कोलाइडी सल्फर, प्लास्टिक सल्फर आदि । 

स्फुरण (Phosphorescence) :

  • कुछ पदार्थों को सूर्य के प्रकाश में रखने के बाद तथा प्रकाश -से हटाये जाने के बाद भी उससे विकिरण उत्सर्जित होती रहती है । इस घटना को स्फुरण कहते हैं। जैसे- कैल्सियम सल्फाइड 

प्रतिदीप्ति (Flourescence) :

  • कुछ पदार्थों में दृश्य प्रकाश को अवशोषित करने से उनके इलेक्ट्रॉन उत्तेजित अवस्था में आ जाते हैं ।
  • कुछ समय पश्चात जब इलेक्ट्रॉन मूल अवस्था में आते हैं, तो विभिन्न तरंगदैर्ध्य के विकिरण उत्सर्जित होते हैं । इस क्रिया को प्रतिदीप्ति कहते हैं । 

उत्फुल्लन (Efflorescence) :

  • कुछ लवणों में क्रिस्टलन जल अधिक होता है और जब इन्हें वायु में रख दिया जाता है, तो क्रिस्टल में से जलवाष्प बनकर उड़ जाता है और वह क्रिस्टल चूर्ण में परिणत हो जाता है। इसी क्रिया को उत्फुल्लन कहते हैं, जैसे – Na2SO4.10H2O,  

उर्ध्वपातन (Sublimation) :

  • उर्ध्वपातन वह क्रिया है, जिसमें ठोस पदार्थ गर्म किये जाने पर बिना द्रव अवस्था में बदले गैसीय अवस्था में परिणत हो जाते हैं और फिर ठंडा किये जाने पर गैसीय अवस्था से बिना द्रव अवस्था में बदले ठोस अवस्था में परिणत हो जाते हैं।
  • बेंज़ोइक अम्ल, ऐन्थ्रासीन, नेप्थलीन, ऐन्थ्राक्वीनोन, कपूर, अमोनियम क्लोराइड इत्यादि का शुद्धीकरण इसी विधि द्वारा होता है । 

समस्थानिक (Isotopes ) :

  • वैसे तत्व जिनकी परमाणु संख्या समान, परन्तु परमाणु भार भिन्न-भिन्न होती है, समस्थानिक कहलाते हैं,
  • जैसे— हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक हैं— प्रोटियम  ,ड्यूटेरियम ट्राइटियम

समभारिक (Isobar) :

  • ऐसे परमाणु जिनके परमाणु क्रमांक भिन्न-भिन्न होते हैं, परन्तु परमाणु द्रव्यमान समान होते हैं, समभारिक कहलाते है ।
  • उदाहरणार्थ- आर्गन (Ar40) पोटैशियम (, K40 ) तथा कैल्सियम (18 Ca40 ) समभारिक हैं । 

संक्षारण (Corrosion) :

  • धातु- सतह जब जल, वायु अथवा आस-पास के अन्य किसी पदार्थ से प्रभावित होती है, तो इसको धातु का संक्षारित होना कहते हैं तथा इस परिघटना को संक्षारण कहते हैं। सोना (Au) और चांदी (Ag) जैसी धातुएँ सगुगमतापूर्वक संक्षारित नहीं होती हैं, वहीं तांबा, लोहा जैसी धातुएँ आसानी से संक्षारित हो जाती हैं । 

आघातवर्ध्यता (Maleability) :

  • आघातवर्ध्यता से तात्पर्य धातुओं के उस गुणधर्म से है, जिसके अंतर्गत उन्हें पीट-पीट कर उनकी पतली चादरें बनायी जा सकती हों । धातुएँ आघातवर्ध्यनीयता का गुण प्रदर्शित करते हैं । (अपवाद – पारा) सोना, और चांदी सर्वाधिक आघातवर्ध्यनीय धातुएँ हैं । 

तन्यता (Ductility)

  • (तन्यता से (तात्पर्य धातुओं के उस गुणधर्म से है, जिसके अंतर्गत उन्हें पतले तार में परिणत किया जा सकता है। सभी धातुएँ एकसमान तन्य नहीं होती हैं। सोना और चांदी सर्वाधिक तन्य धातुएँ हैं। 1 ग्राम सोने से लगभग 2 किमी० लंबी तार बना सकती है ।

भौतिक परिवर्तन (Physical Change ) :

  • वह परिवर्तन जो पदार्थ के अणु की रचना को बिना बदले ही पदार्थ के कुछ विशिष्ट गुणों जैसे—अवस्था, आकार, विद्युतीय गुण इत्यादि को बदल देती है, भौतिक परिवर्तन कहलाता है । दूसरे शब्दों में, भौतिक परिवर्तन में पदार्थ की आकृति एवं भौतिक अवस्था में तो परिवर्तन होता है, परन्तु कोई नया पदार्थ नहीं बनता है, जैसे- जल का जमकर बर्फ बनना, चीनी का जल में विलयन, नमक का जल में विलयन, स्प्रिंग का खींचना, बादलों का बनना, बर्फ का पिघलना, जल का वाष्प में परिवर्तित होना आदि । 

रासायनिक परिवर्तन (Chemical Change) :

  • वह परिवर्तन जो पदार्थ के अणु की रचना को बदलकर पदार्थ के कुछ विशिष्ट गुणों को बदल देता है, रासायनिक परिवर्तन कहलाता है । रासायनिक परिवर्तन के फलस्वरूप नए अणुओं की रचना होती है । दूसरे शब्दों में, रासायनिक परिवर्तन के पश्चात एक नया पदार्थ बनता है, जिसका गुणधर्म मूल पदार्थ से पूर्णतया भिन्न होता है। रासायनिक परिवर्तन के पश्चात बने पदार्थ को मूल पदार्थ में पुनः परिवर्तित नहीं किया जा सकता है, जैसे—मैग्नीशियम के तार का जलना, मोमबत्ती का जलना, दूध से दही बनना, लोहे में जंग लगना, लौह-चूर्ण को गंधक के साथ गर्म करना, जल में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर हाइड्रोजन व ऑक्सीजन का प्राप्त होना, अगरबत्ती का जलना, आटा से रोटी का बनना आदि । 

जस्तीकरण ( Galvanization) :

  • लोहा को गलित जस्ता में डुबा देने से लोहा पर जस्ता की एक परत चढ़ जाती है । इस क्रिया को जस्तीकरण कहते हैं । जस्ते की परत लोहे को ढँककर उसे नम जल के संपर्क में नहीं आने देती है, जिस कारण लोहे पर जंग नहीं लग पाता है । यही कारण है कि लोहा का जस्तीकरण किया जाता है । 

परमाणुकता (Atomicity) :

  • किसी तत्व के एक अणु में उपस्थित परमाणुओं की संख्या को परमाणुकता कहते हैं । सल्फर के एक अणु में सल्फर के 8 परमाणु रहते हैं, अतः इसकी परमाणुकता 8 है । 

उत्प्रेरण (Catalysis) :

  • ऐसे रासायनिक पदार्थ जो अपनी उपस्थिति मात्र से किसी रासायनिक अभिक्रिया के वेग को परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं तथा स्वयं अभिक्रिया के अंत में रासायनिक रूप से अप्रभावित रहते हैं, उत्प्रेरक (Catalyst) कहलाते हैं तथा यह क्रिया उत्प्रेरण कहलाती है । किसी पदार्थ की उपस्थिति मात्र से रासायनिक अभिक्रिया के वेग में होने वाले परिवर्तन की पुष्टि सर्वप्रथम बर्जीलियस ने 1835 में की। अतः उठप्रेरक की खोज का श्रेय बर्जीलियस को जाता है । उदाहरण के लिए, यदि पोटैशियम क्लोरेट (KCIO 3 ) को बहुत अधिक ताप पर गर्म किया जाए, तो इससे ऑक्सीजन गैस अत्यन्त धीरे-धीरे निकलती है । परन्तु यदि इसके साथ थोड़ी मात्रा मैंगनीज डाइऑक्साइड (MnO2) को मिला दी जाए, तो इससे कम ताप पर ही तीव्र गति से एवं पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन गैस निकलती है । अभिक्रिया के अंत में मैंगनीज डाइऑक्साइड के रासायनिक संरचना या गुण-धर्म में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है। अतः MnO2 इस अभिक्रिया में एक उत्प्रेरक की भाँति कार्य करता है । 

कुछ 

2KClO3 

MnO, 

→ 2KC1 + 3O,↑ + [MnO2] 

1STEP 

प्रदार्थ ऐसे होते हैं, जिनकी उपस्थिति मात्र से किसी उत्प्रेरक की उत्प्रेरण शक्ति बढ़ जाती है, परन्तु ऐसे पदार्थ स्वयं उत्प्रेरक का कार्य नहीं करते। ऐसे पदार्थ को उत्प्रेरकवर्द्धक कहते हैं । 

उत्प्रेरक के प्रकार : 

  • धनात्मक उत्प्रेरक (Positive Catalyst) : जो  अभिक्रिया के वेग को बढ़ाते हैं । 
  • ऋणात्मक उत्प्रेरक (Negative Catalyst) : जो अभिक्रिया के वेग को घटाते हैं। 
  • स्व-उत्प्रेरक (Auto Catalyst) : जब किसी रासायनिक अभिक्रिया के दौरान बना कोई उत्पाद उसी रासायनिक अभिक्रिया के लिए उत्प्रेरक का कार्य करने लगता है, तो उसे स्व-उत्प्रेरक कहते हैं ।
  • प्रेरित उत्प्रेरक ( Induced Catalyst) : जब एक रासायनिक अभिक्रिया का उत्पादक दूसरी रासायनिक अभिक्रिया के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है, तो ऐसे उत्प्रेरक को प्रेरित उत्प्रेरक कहते हैं ।

उत्प्रेरण के प्रकार : 

  • समांगी उत्प्रेरण (Homogeneous Catalysis) : उत्प्रेरक तथा अभिकारक एक ही प्रावस्था में रहते हैं
  • विषमांगी उत्प्रेरण (Heterogeneous Catalysis) : त्प्रेरक तथा अभिकारक भिन्न-भिन्न प्रावस्था में रहते हैं ।

उत्प्रेरक विष (Catalytic poison ) :

  • जो पदार्थ स्वयं किसी उत्प्रेरक की उत्प्रेरण क्षमता को कम या नष्ट कर देते हैं, उन्हें उत्प्रेरक विष कहते 1 

संदमक (Inhibitors) :

  • वे पदार्थ जो किसी रासायनिक अभिक्रिया के वेग को कम कर देते हैं, संदमक कहलाते हैं । 

उत्प्रेरकों के उपयोग : 

  • लौह-चूर्ण  : अमोनिया गैस बनाने की हैबर विधि में
  • प्लेटिनम चूर्ण : सल्फ्यूरिक अम्ल बनाने की सम्पर्क विधि में
  • नाइट्रोजन के ऑक्साइड : सल्फ्यूरिक अम्ल बनाने की सीस-कक्ष विधि में 
  • निकिल : वनस्पति तेलों से कृत्रिम घी बनाने में 
  • गर्म ऐलुमिना  : ऐल्कोहॉल से ईथर बनाने की विधि में 
  • क्यूप्रिक क्लोराइड : क्लोरीन गैस बनाने की डीकान विधि में 
  • पेप्सिन एन्जाइम :अमाशय में प्रोटीन को पेप्टाइड में अपघटित करने में
  • इरेप्सिन एन्जाइम :आंतों में प्रोटीनों को अमीनो अम्ल में अपघटित करने में
  • ट्रिप्सिन एन्जाइम : अग्न्याशय में प्रोटीन को अमीनो अम्ल में अपघटित करने में
  • टायलिन एन्जाइम : मानव- लार में स्टार्च को ग्लूकोज में परिवर्तित करने में
  • जाइमेज एन्जाइम : ग्लूकोज से एथिल ऐल्कोहॉल बनाने में
  • डाइस्टेज एन्जाइम : स्टार्च से माल्टोस के बनने में
  • माइकोडर्मी एसिटी : गन्ने की शुक्कर से सिरके के निर्माण में 
  • इन्वर्टेज एन्जाइम : गन्ने की शक्कर से ग्लूकोज व फ्रक्टोज बनाने में
  • लैक्टिक वैसिली :  दूध से लैक्टिक अम्ल बनने में 

 

एन्जाइम (Enzymes ) :

  • एन्जाइम प्रत्येक जीवित प्राणी को कोशिकाओं में उपस्थित होते हैं और जीवित शरीर में होने वाली विभिन्न अभिक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।
  • एन्जाइम को जीव रासायनिक उत्प्रेरक भी कहते हैं ।
  • ये प्रोटीन के समान संकीर्ण पदार्थ होते हैं ।
  • ये सम्पर्क उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं और उच्च कार्बनिक पदार्थों की सरलतम पदार्थों में अपघटन क्रिया को उत्प्रेरित करते हैं ।
  • ये अत्यंत ही विशिष्ट होते हैं और एक एन्जाइम केवल एक ही क्रिया को संपादित करता है ।
  • इनकी क्रियाशीलता अधिक ताप ( 79°C) तथा विषैले पदार्थ की उपस्थिति में कम होती है या नष्ट हो जाती है ।
  • शरीर के ताप पर (20°C से 39°C) यह सबसे अच्छा काम करता है ।
  • अभिक्रियास्वरूप पदार्थों के एकत्रित हो जाने की क्रिया धीमी पड़ जाती है या नष्ट हो जाती है ।

Metalloid and Alloy