पोषक पदार्थ (Nutrients)
- पोषक पदार्थ – जीवों में विभिन्न प्रकार के जैविक कार्यों के संचालन एवं सम्पादन के लिए आवश्यक होते हैं।
- पोषण – विधि जिससे जीव पोषक तत्वों को ग्रहण कर उसका उपयोग करते हैं।
पोषण के प्रकार (Types fo nutrition) :
- भोजन की प्रकृति तथा उसे उपयोग करने के तरीके के आधार पर जन्तुओं में निम्नलिखित तीन प्रकार के पोषण पाये जाते हैं। ये हैं
- 1. पूर्णभोजी पोषण (Holozoic nutrition)
- 2. परजीवी पोषण (Parasitic nutrition)
- 3. मृतोपजीवी पोषण (Saprozoic nutrition)
पूर्णभोजी पोषण (Holozoic nutrition) :
- होलोजोइक (Holozoic) शब्द दो ग्रीक शब्दों होलो (Holo) और जोइक (Zoic) के मिलने से बना है।
- Holo = Complete + Zoic = animal like
- वैसा पोषण जिसमें प्राणी अपना भोजन ठोस या तरल के रूप में जन्तुओं के भोजन ग्रहण करने की विधि द्वारा ग्रहण करते हैं, पूर्णभोजी पोषण या प्राणीसम पोषण कहलाता है।
- वैसे जीव जिनमें इस विधि द्वारा पोषण होता है, प्राणी समभोजी कहलाते हैं।
- समभोजी पोषण – जन्तुओं का लक्षण (अमीबा, मेढ़क, मनुष्य आदि में)
- यह चार प्रकार के होते हैं
- (i) शाकाहारी (Herbivorous) :
- (ii) मांसाहारी (Carnivorous) :
- (iii) सर्वाहारी (Omnivorous) : पौधों और जन्तुओं दोनों को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। जैसे—मानव ।
- (iv) अपमार्जक (Scavengers) : जन्तु जो मृत जन्तुओं को अपने भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं।
- मरे हुए जन्तुओं को खाने की प्रक्रिया को अपमार्जन (Scavenging) कहते हैं। जैसे—सियार, लकड़बग्धा, गिद्ध, चील आदि ।
- अपमार्जक मृत जन्तुओं का भक्षण कर उन्हें सड़ने से बचाते हैं और इस प्रकार वातावरण को शुद्ध रखने में मदद करते हैं।
2. परजीवी पोषण (Parasitic nutrition) :
- पारासाइट = Para+ Sitos से बना है।
- Para का अर्थ – ‘पास’, ‘बगल’ में
- Sitos का अर्थ – पोषण (Nutrition)
- ऐसे जीवों का भोजन अन्य प्राणी के शरीर में मौजूद कार्बनिक पदार्थ होता है।
- परजीवी (Parasite)- अन्य प्राणी के शरीर से भोजन ग्रहण करते है
- पोषी (Hosts) – जिस जीव के शरीर से परजीवी अपना भोजन प्राप्त करते हैं
- कवक, जीवाणु, कुछ पौधों जैसे अमरबेल तथा कई जन्तुओं जैसे – गोलकृमि, हुकवर्म, टेपवर्म (फीताकृमि), एण्ट अमीबा हिस्टोलीटिका, मलेरिया परजीवी (Plasmodium) आदि में पाया जाता है।
3. मृतोपजीवी पोषण (Saprozoic nutrition) :
- इस प्रकार के पोषण में जीव मृत जन्तुओं और पौधों के शरीर से अपना भोजन अवशोषित करते हैं।
- कवक (Fungi)
- जीवाणु (Bacteria)
- प्रोटोजोआ
- मृतजीवी को अपघटक (Decomposer) भी कहा जाता है
- क्योंकि ये जटिल अणुओं का विघटन करते हैं।
- मृतोपजीवी की उपस्थिति से पृथ्वी मृत पदार्थों के ढेर से बची रहती है।
- मृतोपजीवी सड़ते हुए कार्बनिक पदार्थों को सरल अणुओं में विघटित कर उन्हें पर्यावरण में छोड़ देते हैं।
- हरे पेड़-पौधे पर्यावरण से इन पदार्थों को ग्रहण कर भोजन का निर्माण करते हैं।
प्राणीसम पोषण के महत्वपूर्ण चरण : प्राणीसम पोषण के निम्नलिखित महत्वपूर्ण चरण हैं
- 1. अन्तर्ग्रहण (Ingestion) : भोजन को शरीर के भीतर (आहारनाल में) पहुँचाने की प्रक्रिया
- 2. पाचन (Digestion) : अघुलनशील भोजन अणुओं काघुलनशील अणुओं में निम्नीकरण
- 3. अवशोषण (Absorption) : कोशिकाओं द्वारा पचे हुए भोजन को अपने भीतर सोख लेने की प्रक्रिया
- 4. स्वांगीकरण (Assimilation) : कोशिकाओं के भीतर पचे हुए भोजन से नए जीवद्रव्य के संश्लेषण की प्रक्रिया
- 5. बहिष्करण (Ejection) : मल के रूप में अनपचे भोजन के गुदा (Anus) द्वारा शरीर से बाहर त्याग करने की प्रक्रिया
भोजन और उसके अवयव
- अकार्बनिक पदार्थ – जल, खनिज-लवण
- कार्बनिक पदार्थ – कार्बोहाइड्रेट,वसा ,प्रोटीन, विटामिन
- ऊर्जा प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थ
- कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates)
- वसा (Fats)
- शरीर निर्माण करने वाले खाद्य पदार्थ
- प्रोटीन (Proteins)
- उपापचीय क्रियावो का नियंत्रण करने वाले खाद्य पदार्थ
- खनिज-लवण (Mineral Salts)
- विटामिन (Vitamins) तथा
- जल (Water)
कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate) :
- ऊर्जा प्रदान करने वाले पदार्थ /कार्बोहाइड्रेट ऊर्जा का प्रमुख स्रोत
- शरीर की कुल ऊर्जा आवश्यकता की 50-79% मात्रा की पूर्ति
- 1 ग्राम ग्लूकोज – 4.2 किलो कैलोरी (kcal) ऊर्जा
- कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन (CHO) होते हैं।
- CHO- 1 : 2 : 1 के अनुपात में होता है।
- आधारभूत सूत्र (CH2O) होता है।
- कार्बोहाइड्रेट पचने के पश्चात ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाते हैं
- ग्लूकोज ऑक्सीजन के द्वारा ऑक्सीकृत होकर शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
- कार्बोहाइड्रेट के स्रोत
- चावल, गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ, शक्कर, गुड़, शहद, सूखे फल, अंजीर, दूध, पके फल, आलू, शकरकन्द, चुकन्दर, रसीले फल, गन्ना, शलजम, केला, अरबी, माँस आदि
- कार्बोहाइड्रेट के प्रकार : तीन प्रकार
- मोनोसैकेराइडस (Monosaccharides):
- डाइसैकेराइड (Disaccharides) :
- पॉलीसैकेराइड्स (Polysaccharides) :
(a) मोनोसैकेराइडस (Monosaccharides):
- सभी कार्बोहाइड्रेट्स में सबसे अधिक सरल
- आधारभूत सूत्र : (CH2O)n
- मोनोसैकेराइड्स के कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं
- ट्रायोस (Triose) जैसे- ग्लिसरैल्डिहाइड (Glyceraldehyde)
- टेट्रोस (Tetrose) जैसे- इरेथ्रोस (Erthrose)
- हेक्सोज (Hexose) जैसे- Glucose, Fructose, Glactose
(b) डाइसैकेराइड (Disaccharides) :
- मोनोसैकेराइड के दो अणुओं से मिलकर बना होता है।
- आधारभूत सूत्र – C12H22O11
- डाइसैकैराइड्स के प्रमुख उदाहरण – Sucrose, Maltose, Lactose आदि
(c) पॉलीसैकेराइड्स (Polysaccharides) :
- अनेक मोनोसैकैराइड्स अणुओं के मिलने से
- आधारभूत सूत्र – C6H11O5)n
- ये जल में अघुलनशील होते हैं।
- यह मुख्यतः पौधों में पाया जाता है।
- यह जल अपघटन (Hydrolysis) द्वारा Glucose में विघटित हो जाता है।
- इस प्रकार ये ऊर्जा उत्पादन के लिए ‘संग्रहीत ईंधन’ का कार्य करते हैं ।
- पॉलीसैकेराइड्स के प्रमुख उदाहरण
- मण्ड (स्टार्च)
- ग्लाइकोजेन
- सेल्यूलोज (Cellulose)
- काइटिन (Chitin)
कार्बोहाइड्रेट के कार्य :
- 1. ये शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाले मुख्य स्रोत होते हैं।
- 2. ये मण्ड के रूप में ‘संचित ईंधन’ का कार्य करते हैं।
- 3. यह वसा में बदलकर संचित भोजन का कार्य करते हैं।
- 4. यह DNA तथा RNA का घटक होता है।
- 5. ये शर्कराओं के रूप में ऊर्जा उत्पादन के लिए ईंधन का काम करते हैं।
- 6. ये प्रोटीन को शरीर के निर्माणकारी कार्यों के लिए सुरक्षित रखते हैं।
- 7. शरीर में वसा के उपयोग के लिए यह अत्यंत आवश्यक है।
कार्बोहाइड्रेट की कमी या अधिकता से होने वाले विकार :
- कार्बोहाइड्रेट की अधिकता से शरीर के वजन में वृद्धि होती है तथा मोटापा से सम्बन्धित रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
- कार्बोहाइड्रेट की कमी होने से शरीर का वजन कम हो जाता है, कार्य करने की क्षमता घट जाती है तथा शरीर में ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु प्रोटीन प्रयुक्त होने लगती है जिससे यकृत एवं नाड़ी संस्थान के क्रियाकलापों में शिथिलता आ जाती है।
2. प्रोटीन (Proteins) :
- प्रोटीन अत्यन्त जटिल नाइटोजन यक्त पदार्थ है जिसकी रचना लगभग 20 ऐमीनो अम्लों (Amino acids) के भिन्न-भिन्न संयोगों से होती है।
- ये ऐमीनो अम्ल शरीर के उचित पोषण के लिए नितांत ही आवश्यक है।
- प्रोटीन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जे० बर्जीलियस (1938 ई०) ने किया था।
- प्रोटीन मानव शरीर का केवल संरचनात्मक पदार्थ ही नहीं है, वरन यह अन्य प्रकार्यों को भी सम्पन्न करते हैं।
- मानव शरीर का लगभग 15% भाग प्रोटीन से बना होता है।
- प्रोटीन शारीरिक वृद्धि एवं प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक है।
- भोजन में इनकी कमी से शारीरिक एवं मानसिक वृद्धि रुक जाती है।
- प्रोटीन की कमी से शिशुओं में सूखा रोग (मेरास्मस) तथा क्वाशियोरकॉर नामक रोग हो जाता है।
प्रोटीन के प्रकार :प्रोटीन सामान्यतः तीन प्रकार के होते हैं
(a) सरल प्रोटीन (Simple protein) :
- ऐसे प्रोटीन जो केवल एमीनों अम्लों से बने होते हैं, सरल प्रोटीन कहलाते हैं। जैसे—एल्ब्यूमिन, एल्ब्यूमिनाएड, ग्लोब्यूलिन आदि।
(b) संयुग्मी प्रोटीन (Conjugated protein) :
- ऐसा प्रोटीन जिनका संयोजन प्रोटीन के अतिरिक्त अन्य किसी अणु से भी रहता है, संयुग्मी प्रोटीन कहलाता है। जैसे-न्यूक्लियोप्रोटीन, ग्लाइकोप्रोटीन, फॉस्फोप्रोटीन आदि।
(c) व्युत्पन्न प्रोटीन (Derived protein) :
- वैसे प्रोटीन जो प्राकृतिक प्रोटीन के आंशिक जलीय अपघटन से प्राप्त होते हैं, व्युत्पन्न प्रोटीन कहलाते हैं।
प्रोटीन के कार्य :
- 1. यह कोशिकाओं की वृद्धि एवं मरम्मत करती है।
- 2. अनेक जटिल प्रोटीन मेटाबोलिक प्रक्रियाओं में एन्जाइम का कार्य करते हैं ।
- 3. कुछ प्रोटीन हार्मोन के संश्लेषण में भाग लेते हैं।
- 4. हीमोग्लोबिन के रूप में यह शरीर में गैसीय संवहन का कार्य करता है।
- 5. यह एन्टीबॉडीज के रूप में शरीर की सुरक्षा करता है।
- प्रोटीन के स्रोत : प्रोटीन के प्रमुख स्रोत दूध, अण्डा, कली, बादाम, दाल, सोयाबीन, पनीर, माँस, मछली, अण्डे की जर्दी आदि हैं।
प्रोटीन के प्रकार
एन्जाइम
- जैव उत्प्रेरक, शरीर में लगातार होने वाली जैव रासायनिक प्रक्रियाओं में सहायता करता है।
परिवहन प्रोटीन
- यह रक्त में विभिन्न पदार्थों को विभिन्न ऊतकों तक ले जाता है।
संकुचनशील प्रोटीन
- यह गति तथा चलन के लिए मांसपेशियों का संकुचन करता है ।
हॉर्मोन
- कुछ हार्मोन प्रोटीन होते हैं। ये हॉमोन अनेक शारीरिक प्रकार्य को नियंत्रित करते हैं।
संरचनात्मक प्रोटीन
- ये कोशिकाओं तथा ऊतकों में संरचनात्मक भाग बनाते हैं।
रक्षात्मक प्रोटीन
- यह संक्रमण से लड़ने में मदद करता है। जैसे—प्रतिजैविक।
3. वसा (Fats) :
- वसा शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाला प्रमुख खाद्य पदार्थ होता है।
- वसा के अणु ग्लिसरॉल तथा वसा अम्ल के संयोग से बनते हैं।
- कार्बोहाइड्रेट की तरह वसा भी कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के यौगिक हैं परन्तु इसमें कार्बोहाइड्रेट की तुलना में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है।
- यह जल में अघुलनशील होता है लेकिन यह कार्बनिक घोलकों में घुलनशील होता है। क्षार द्वारा इसका पायसीकरण (Emulsification) हो सकता है।
- वसा के प्रकार : वसा को उनके स्रोत के आधार पर दो प्रमुख वर्गों में बाँटा जा सकता है
- 1. जन्तु वसा
- 2. वनस्पति वसा
- जन्तु वसा दूध, पनीर, अण्डा तथा मछली में पाया जाता है जबकि वनस्पति वसा वनस्पति तेलों में उपलब्ध होता है।
- वनस्पति तेल अखरोट, बादाम, मूंगफली, नारियल, सरसों, तिल, सूरजमुखी इत्यादि से प्राप्त होते हैं।
- वसा सामान्यतः 20°C ताप पर ठोस अवस्था में होते हैं, परन्तु यदि वे इस ताप पर द्रव अवस्था में हों, तो उन्हें तेल (Oil) कहते हैं।
वसा अम्ल दो प्रकार के होते हैं
- संतृप्त
- असंतृप्त
- असंतृप्त वसा अम्ल, मछली के तेल तथा वनस्पति तेलों में मिलते हैं।
- नारियल का तेल एवं ताड़ का तेल (Palm Oil) संतृप्ततेलों के उदाहरण हैं।
- अधिकतर असंतृप्त वसा जन्तु वसा होते हैं। यह सामान्य ताप पर ठोस होता है। जैसे—मक्खन (Butter)।
- एक ग्राम वसा से 9.3 kcal ऊर्जा मुक्त होती है।
- सामान्यतः एक वयस्क व्यक्ति को 20-30% ऊर्जा वसा से प्राप्त होनी चाहिए।
- मनुष्य के आहार में मक्खन तथा घी जैसे संतृप्त वसा की मात्रा कम होनी चाहिए क्योंकि संतृप्त वसा आसानी से कोलेस्टेरॉल में परिवर्तित हो जाती है। इससे धमनी कठिन्य (Arteriosclerosis), उच्च रक्तचाप, तथा हृदय सम्बन्धी विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
वसा के कार्य :
- (a) वसा ठोस रूप में शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है।
- (b) यह त्वचा के नीचे जमा होकर शरीर के ताप को बाहर निकलने से रोकती है।
- (c) यह खाद्य पदार्थ में स्वाद उत्पन्न करती है तथा आहार को रुचिकर बनाती है।
- (d) यह शरीर के विभिन्न अंगों को चोटों से बचाती है।
- (e) यह प्रोटीन के स्थान पर शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है।
वसा के स्रोत :
- वसा का मुख्य स्रोत दूध, माँस, मछली, मक्खन, मूंगफली का तेल, घी आदि है।
- वसा की कमी से होने वाले विकार : मानव शरीर में वसा की कमी से त्वचा रूखी हो जाती है, वजन में ह्रास होता है तथा शरीर का विकास अवरुद्ध हो जाता है। वसा की अधिकता से शरीर स्थूल हो जाता है, जिससे हृदय सम्बन्धी रोग, उच्च रक्त चाप इत्यादि हो जाता है।
4. विटामिन (Vitamins) :
- विटामिन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सी फंक द्वारा 1911 ई० में किया गया।
- इसका नामकरण अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार किया गया है। जैसे—A, B, C, D, E, K आदि ।
- मानव शरीर में इस कार्बनिक पदार्थ की आवश्यकता कम मात्रा में होती है। विटामिन खाद्य पदार्थों से प्राप्त होते हैं तथा इनकी कमी से कुछ रोग हो जाते हैं। विटामिन विभिन्न उपापचयी क्रियाओं (Metabolic activities) का नियंत्रण करते हैं।
विटामिन के प्रकार :
विलेयता के आधार पर विटामिनों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है
- 1. जल में घुलनशील विटामिन- BC
- 2. वसा में घुलनशील विटामिन- ADEK
विटामिनों का संश्लेषण मानव शरीर की कोशिकाओं द्वारा नहीं हो सकता एवं इसकी पूर्ति विटामिनयुक्त खाद्य पदार्थ से होती है।
विटामिन A (Retinol) :
- इसका रासायनिक नाम ऐक्सेरोफाईटॉल (Axerophytol) तथा अणसत्र C20H29 OH है।
- यह विटामिन वसा में घुलनशील होता है।
- यह विटामिन शरीर की वृद्धि में सहायता करता है तथा शरीर के उपकला ऊतकों को स्वस्थ बनाए रखता है।
- इसकी कमी होने-से- श्वास नली और पाचन नाल की उपकलाएँ-रुग्ण हो जाती हैं।
- इसके अतिरिक्त रतौंधी (Nyctalapia), आँखों का शुष्क होना, कॉर्निया में श्वेत फुल्ली पड़ना तथा दृष्टि का समाप्त हो -जाना इत्यादि रोग भी होता है।
- हरी पत्तीदार सब्जियाँ, गाज़र, मछली यकृत तेल, कलेजी (यकृत), अण्डे की जर्दी, दूध, पनीर आदि विटामिन-A के मुख्य स्रोत हैं।
- 13-15 वर्ष की आयु के बालक तथा बालिकाओं को इसकी दैनिक आवश्यकता 60 mg होती है।
विटामिन B समूह (Vitamin B complex) :
- यह जल में घुलनशील 11 प्रकार के विटामिनों का समूह है।
- इस विटामिन में नाइट्रोजन पाया जाता है।
विटामिन B1 (Thymine) :
- इस विटामिन का रासायनिक नाम थायमिन है।
- यह जल में घुलनशील होता है।
- मानव शरीर में इसकी कमी से बेरी-बेरी (Beri-Beri) नामक रोग हो जाता है।
- खमीर, गाजर, गेहूँ, चावल, दूध, समुद्री भोजन, सोयाबीन, साबुत अन्न, हरी सब्जिया आदि विटामिन B, के मुख्य स्रोत हैं।
विटामिन B2, (Riboflavin) :
- इस विटामिन का रासायनिक नाम राइवोफ्लेविन है ।
- यह जल में घुलनशील विटामिन है।
- यह कार्बोहाइडेट तथा अन्य पदार्थों के उपापचय में भाग लता है।
- कमी से शरीर के भार में कमी आ जाती है। साथ ही साथ ओठ, जिह्वा तथा त्वचा में रूखापन आ जाता है।
- दूध, मटर, सेम, यीस्ट, माँस, अण्डा, हरी पत्तेदार सब्जियाँ इत्यादि विटामिन B, के प्रमुख स्रोत हैं।
विटामिन B5. (Niacin) :
- इस विटामिन का रासायनिक नाम नियासिन है।
- यह जल में घुलनशील विटामिन है।
- शरीर में इसकी कमी से पेलाग्रा (Pellagra) नामक रोग हो जाता है तथा मानसिक विकास एवं पाचन क्रिया में खराबी हो जाती है।
- अंकुरित गेहूँ, आलू, अनाज की बाहरी परत, बादाम, टमाटर, पत्तेदार सब्जियाँ आदि इस विटामिन के प्रमुख स्रोत हैं।
विटामिन B6, (Pyridoxine) :
- इस विटामिन का रासायनिक नाम पायरीडॉक्सिन है ।
- यह जल में घुलनशील विटामिन है।
- इसकी कमी होने से शारीरिक वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है और व्यक्ति अरक्तता का शिकार हो जाता है।
- हरी सब्जियाँ, माँस, कलेजी इत्यादि इसके प्रमुख स्रोत हैं।
विटामिन B7, (Biotin) :
- इस विटामिन का रासायनिक नाम बायोटिन है।
- यह मुख्य रूप से ताजे फलों, हरी सब्जियों, यकृत (लीवर), दूध, अण्डा, यीस्ट, सम्पूर्ण अनाज तथा दाल में पाया जाता है।
- यह वसा अम्ल के संश्लेषण के लिए आवश्यक है।
- यह पायरूवेट को ऑक्जेलोएसिटेट में रूपांतरित करने का कार्य करता है।
- इसकी कमी से त्वचा शल्की, मांसपेशियों में दर्द, कमजोरी, भूख में कमी तथा रक्त शून्यता होती है।
विटामिन B9, (Folic acid) :
- इसका रासायनिक नाम फोलिक अम्ल है।
- यह हरी पत्तीदार सब्जियों, केला, संतरा, लीवर, यीस्ट, अण्डा, सेम आदि में पाया जाता है ।
- इसका संश्लेषण कोलोन में बैक्टीरिया द्वारा भी होता है।
- इसकी कमी से रक्त अल्पता (Anaemia), पचे हुए भोजन के अवशोषण में कमी, RBC की परिपक्वता में कमी तथा मुँह में अल्सर जैसी बीमारियाँ होती है।
विटामिन B12(Cyanocobalamine):
- इस विटामिन का रासायनिक नाम साएनोकोबालामिन है।
- यह जल में घुलनशील विटामिन है।
- इस विटामिन में कोबाल्ट धातु उपस्थित होता है।
- यह विटामिन रक्त की उत्पत्ति में सहायक होता है। यह लाल रक्त कणों (RBC) की परिपक्वता के लिए आवश्यक प्रोटीन का संश्लेषण करता है।
- मानव शरीर में इसकी कमी से अरक्तता रोग हो जाता है।
- इसकी अधिक कमी होने की स्थिति में शरीर मेंneurological defects आ जाता है।
- माँस, कलेजी, दूध आदि इस विटामिन के प्रमुख स्रोत हैं।
विटामिन-C (Ascorbic acid) :
- इस विटामिन का रासायनिक नाम एस्कॉर्बिक एसिड है।
- इसका रासायनिक सूत्र C6H8O6 है ।
- यह जल में विलेय विटामिन है।
- मानव शरीर में इस विटामिन की कमी होने से स्कर्वी (Scurvy) नामक रोग हो जाता है।
- खट्टे रसदार फल (नीबू, सन्तरा, मुसम्मी आदि), चीकू, आँवला, टमाटर, पत्तेदार सब्जियाँ अंकुरित अनाज आदि विटामिन C के प्रमुख स्रोत हैं।
विटामिन D (Calciferol):
- इस विटामिन का रासायनिक नाम कैल्सिफेरॉल है।
- यह वसा में विलेय विटामिन है।
- यह विटामिन हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में सहायक होता है।
- यह गर्भ में पल रहे बच्चे के शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता है।
- मानव शरीर में इसकी कमी होने से बच्चों में रिकेटस (Rickets) तथा प्रौढ़ों में ऑस्टियोमलेशिया (Osteiomalasia) नामक रोग हो जाता है।
- रिकेट्स को ‘सूखा रोग’ के नाम से भी जाना जाता है।
- सूर्य की किरणें (U.V.Ravs) त्वचा में उपस्थित इर्गेस्टीरॉल को विटामिन D में परिवर्तित कर देती है।
- यह विटामिन मक्खन, घी, अण्डे, मछली के तेल आदि में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
विटामिन E (Tocopherol):
- इस विटामिन का रासायनिक नाम टोकोफेरॉल है।
- यह वसा में विलेय विटामिन है।
- इस विटामिन को प्रजनन विटामिन भी कहते हैं क्योंकि यह जनन क्रियाओं के लिए आवश्यक होता है।
- इसके अभाव में मनुष्य नपुंसक हो जाता है और उसकी प्रजनन शक्ति क्षीण हो जाती है।
- यह अंकुरित दानों जैसे—गेहूँ, चना, मटर, हरी पत्तेदार सब्जियों तथा माँस में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
विटामिन-K(Piloquilone) :
- इस विटामिन का रासायनिक नाम-फिलोक्विलोन है।
- यह रक्तस्रावरोधी विटामिन है जो यकृत में प्रोथाम्बिन (Prothombin) के निर्माण के लिए आवश्यक है।
- मानव शरीर में इस विटामिन की कमी होने से रक्त का थक्का (Blood clotting) नहीं बनता
- यह हरी पत्तेदार सब्जियों, टमाटर, इत्यादि में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
विटामिन के कार्य :
- 1. उपापचय क्रिया में विटामिन आवश्यक सहकारी है।
- 2. विटामिन विभिन्न ऑक्सीकारी एन्जाइम के भागों के रूप में विशिष्ट प्रोटीनों का संयोजन करते हैं।
- 3. इनका सम्बन्ध शरीर में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के भंजन से होता है।
- 4. ये उपापचय के अंतिम उत्पाद के रूप में ऊर्जा, कार्बन डाइऑक्साइड व जल का मोचन करते हैं।
5. खनिज लवण (Mineral-salts):
- खनिज लवण अकार्बनिक पदार्थ हैं। मानव शरीर में कम-से-कम 29 तत्व पाए जाते हैं।
- यद्यपि खनिज से ऊर्जा प्राप्त नहीं होती है, परन्तु इनकी आवश्यकता शरीर की विभिन्न अभिक्रियाओं के लिए होती है।
खनिज लवण के कार्य :
- 1. लवणों के आयनों के कारण जीवद्रव्य में विद्युत चालकता होती है। इसी से जीवद्रव्य में संवेदनशीलता होती है।
- 2. अनेक रासायनिक प्रतिक्रियाओं में आयन बंधकों का कार्य करते हैं।
- 3. कई ऊतक, रक्त, हड्डियों, दाँतों आदि की रचना में ये भाग लेते हैं।
- 4. हृदय स्पंदन चेता संवाहन, पेशी संकुचन आदि में ये महत्वपूर्ण भाग लेते हैं।
मानव शरीर के लिए आवश्यक खनिज :
(i) सोडियम :
- यह मुख्ततः कोशिका बाहय द्रव में धनायन के रूप में होता है तथा यह निम्नलिखित कार्यों से सम्बद्ध होता है
- (a) पेशियों का संकुचन
- (b) तंत्रिका तंतु में तंत्रिका आवेग का संचरण तथा
- (c) शरीर में धनात्मक विद्युत अपघट्य संतुलन बनाए रखना
- (d) यह रक्त दाब नियंत्रित रखने में सहायक होता है।
- स्रोत : सोडियम का मुख्य स्रोत साधारण नमक, मछली, अण्डे, माँस, दूध आदि हैं।
- दैनिक आवश्यकता : 2.5g प्रतिदिन
(ii) पोटैशियम :
- यह सामान्यतः कोशिका द्रव्य में धनायन के रूप में पाया जाता है । यह लगभग सभी खाद्य पदार्थों में उपस्थित रहता है। यह निम्न अभिक्रियाओं के लिए आवश्यक है
- (a) कोशिका में होने वाली अनेक अभिक्रियाएँ
- (b) पेशीय संकुचन
- (c) तंत्रिका आवेग-का-संचरण
- (d) शरीर में विद्युत अपघट्य संतुलन को बनाए रखना
(iii) कैल्सियम :
- यह विटामिन D के साथ हड्डियों तथा दाँतों को दृढ़ता प्रदान करता है।
- यह रुधिर के स्कन्दन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह पेशीय संकुचन प्रक्रिया से सम्बद्ध होता है। यह पनीर, दूध, अण्डे, हरी सब्जियाँ, साबुत अन्न, चना, रागी, मछली, कसावा आदि में मुख्य रूप से पाया जाता है।
- मनुष्य के लिए कैल्सियम की दैनिक आवश्यकता लगभग 1.2 g है।
(iv) फॉस्फोरस :
- यह कैल्सियम से सम्बद्ध होकर दाँतों तथा हड्डियों को दृढ़ता प्रदान करता है।
- यह वसा एवं कार्बोहाइड्रेट के पाचन में सहायता करता है।
- हड्डियों के विकास के लिए फॉस्फोरस अत्यन्त आवश्यक है। दुध, पनीर, हरी पत्तेदार साल बाजरा, रागी, जई, आँटा, कलेजी, गुर्दे आदि फॉस्फोरस प्राप्ति के मुख्य स्रोत है।
- मानव के लिए इसकी दैनिक आवश्यकता लगभग 1.2 g है।
(v) लौह :
- लोहा लाल रुधिर कणिकाओं (RBC) में हीमोग्लोबिन के बनने के लिए आवश्यक है। दूसरे शब्दों में, लौह लवण से रक्त का हीमोग्लोबिन बनता है जो शरीर में ऑक्सीजन का संवाहक है ।
- लोहे की कमी के परिणामस्वरूप रक्त की यह क्षमता कम हो जाती है. जिसे अरक्तता कहते हैं।
- लौह लवण की कमी अधिकांशतया बालकों तथा महिलाओं में पायी जाती है। इसकी कमी से शरीर में क्षीणता आती है तथा अत्यधिक थकान महसूस होती है।
- अरक्तता की तीव्र अवस्था में आँखों के सामने अँधेरा छा जाना, चक्कर आना, भूख नहीं लगना इत्यादि लक्षण पाये जाते हैं।
- यकृत लौह का सर्वोत्तम स्रोत है। इसके अतिरिक्त अण्डा, पालक, मेथी, अनाज, मेवे इत्यादि में भी लौह तत्व पाया जाता है।
- एक वयस्क व्यक्ति को एक दिन में लगभग 20 mg लोहा आवश्यक होता है।
- लोहा ऊतक ऑक्सीकरण के लिए भी आवश्यक है।
(vi) आयोडीन :
- यह थॉयरायड ग्रन्थि द्वारा स्रावित थॉयरॉक्सिन (Thyroxine) हार्मोन के संश्लेषण के लिए आवश्यक है।
- इसकी कमी से घेघा या गलगण्ड (Goitre) नामक हीनताजन्य रोग हो जाता है।
- गलगण्ड के बाद क्रेटनिज्म (Cretnism) की अवस्था आती है जिससे प्रभावित व्यक्ति में शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होने लगता है। इससे उसका तंत्रिका तंत्र भी प्रभावित होता है।
- आयोडीन का मुख्य स्रोत समुद्री मछली, समुद्री भोजन, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, आयोडीन युक्त नमक आदि हैं।
6. जल (Water):
- मानव शरीर के भार का लगभग 65-75% भाग जल होता है।
- उल्टी (वमन) तथा अतिसार से मानव शरीर में जल की कमी हो जाती है। इस अवस्था को निर्जलीकरण (Dehydration) कहते हैं। निर्जलीकरण से मनुष्य की मृत्यु तक हो सकती है।
- जल मानव शरीर के ताप को स्वेदन (पसीना) तथा वाष्पन द्वारा नियंत्रित रखता है।
- यह शरीर के अपशिष्ट पदार्थों के उत्सर्जन का महत्वपूर्ण माध्यम है।
- सामान्यतः वयस्क व्यक्ति को औसतन 4-5 लीटर जल प्रतिदिन पीना चाहिए।
रेशे(Fibers)
- ये बिना बच्चे भोजन को शरीर से बाहर निकालने में सहायक होते हैं
सन्तुलित आहार (Balanced diet):
- वह आहार जिसमें शरीर की वृद्धि एवं स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक सभी पोषक पदार्थ एवं तत्त्व निश्चित अनुपात में उपस्थित हों, सन्तुलित आहार कहलाता है।
- यह व्यक्ति की आयु, लिंग, स्वास्थ्य एवं व्यवसाय पर निर्भर करता है।
- सामान्यतः एक सामान्य कार्य करने वाले औसत युवा मनुष्य को 3000 से 3500 कैलोरी ऊर्जा उत्पन्न करने लायक भोजन की आवश्यकता होती है।
- यह ऊर्जा प्राप्त करने के लिए भोजन में लगभग 90 ग्राम प्रोटीन, 400 से 500 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 50 से 70 ग्राम वसा तथा अन्य आवश्यक तत्त्वों का होना आवश्यक है।
- बाल्यावस्था में जब वृद्धि तेज होती है तब अपेक्षाकृत अधिक भोजन की आवश्यकता होती है। जबकि प्रौढ़ावस्था में अपेक्षाकृत कम भोजन की आवश्यकता होती है।
- पुरुष और बालकों को स्त्रियों तथा बालिकाओं की तुलना में अधिक भोजन चाहिए।
- इसी प्रकार शीतकाल या ठण्डी जलवायु में ग्रीष्मकाल या गर्म जलवायु की तुलना में अधिक भोजन की आवश्यकता होती है।
- जो व्यक्ति अधिक परिश्रम करते हैं और सक्रिय जीवन व्यतीत करते हैं, उनके भोजन की मात्रा अधिक होनी चाहिए।
अल्पपोषण (Undernutrition) :
- लम्बी अवधि तक भोजन की मात्रा कम लेने से उत्पन्न स्थिति को अल्प पोषण कहते हैं।
अतिशय पोषण (overnutrition) :
- लम्बी अवधि तक अत्यधिक भोजन लेने से उत्पन्न स्थिति को अतिशय पोषण कहते हैं। इसके परिणामस्वरूप मोटापा, धमनी काठिन्य रक्त सम्बन्धी विकार, मधुमेह आदि हो जाते हैं।
असन्तुलित आहार (Unbalanced diet) :
- जब आहार में कुछ पोषक अधिक मात्रा में तथा कुछ अन्य पोषक नगण्य मात्रा में उपस्थित रहते हैं तब ऐसा आहार असंतुलित आहार कहलाता है।
विशिष्ट पोषक तत्त्व की कमी :
- आहार में किसी पोषक विशेष की कमी अथवा अभाव होने विशिष्ट हीनताजन्य विकार उत्पन्न हो जाते है।