लोक सेवाएं
- सरदार वल्लभ भाई पटेल को अखिल भारतीय सेवाओं का जनक’ कहा जाता है।
सेवाओं का वर्गीकरण
- भारत में लोक सेवाओं (असैन्य अथवा सरकारी) को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-
- अखिल भारतीय सेवाएं
- केंद्रीय सेवाएं
- राज्य सेवाएं
अखिल भारतीय सेवाएं
- अखिल भारतीय सेवाएं वे सेवाएं हैं, जो राज्य व केंद्र सरकारों में समान होती है। वर्तमान में तीन अखिल भारतीय सेवाएं हैं:
- 1. भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस)
- 2. भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस)
- 3. भारतीय वन सेवा (आईएफएस)
- 1947 में भारतीय सिविल सेवा (ICS) का स्थान IAS ने और भारतीय पुलिस (IP) का स्थान IPS ने ले लिया और संविधान में इनको अखिल भारतीय सेवाओं के रूप में मान्यता दी गई।
- सन 1966 में भारतीय वन सेवा की तीसरी भाखिल भारतीय सेवा के रूप में स्थापना की गई।
अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951
- केंद्र को राज्य सरकारों से परामर्श करके अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्यों की भर्ती व सेवा शर्तों के लिए नियम बनाने के लिए प्राधिकृत करता है।
- इन सेवाओं के सदस्यों की भर्ती और प्रशिक्षण केंद्र सरकार करती है परंतु वे कार्य करने हेतु विभिन्न राज्यों में भेज दिए जाते हैं।
- अखिल भारतीय सेवाएं संयुक्त रूप से केंद्र व राज्य सरकारों दारा नियंत्रित होती है।
- इन अधिकारियों के विरुद्ध कोई भी अनुशासनात्मक कार्यवाही (शास्त्रियों का आरोपण) केवल केंद्र सरकार द्वारा की सकती है।
- समूह क तथा समूह ख में राजपत्रित अधिकारी व समूह ग और समूह घ में गैर-राजपत्रित अधिकारी होते हैं।
- अखिल भारतीय सेवा अधिनियम के अंतर्गत IAS, IPS तथा IFS कैडर के 33 प्रतिशत या एक-तिहाई पद पदोन्नति द्वारा भरे जाएँगे।
- ये पद राज्य सेवाओं के पदाधिकारियों द्वारा चयन समिति की अनुशंसाओं द्वारा भरे जाएँगे जो इसी उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा गठित की जाती है। इस समिति के अध्यक्ष संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अथवा सदस्य होते हैं।
संवैधानिक उपबंध
- संविधान के भाग XIV में अनुच्छेद 308 से 314 में, अखिल भारतीय सेवाओं, राज्य सेवाओं व केंद्रीय सेवाओं से संबंधित उपबंध किए गए हैं।
- अनुच्छेद 308 यह स्पष्ट करता है कि ये उपबंध जम्मू कश्मीर राज्य के लिए लागू नहीं हैं।
कार्यकाल
- अनुच्छेद 310 के अनुसार, अखिल भारतीय सेवा के सरकारी पदों पर आसीन व्यक्ति राष्ट्रपति के प्रसाद-प्रर्यन्त अपने पद पर बने रहेंगे।
- राज्य की लोक सेवाओं से संबद्ध सदस्य अथवा राज्य के अधीन सिविल पदों पर आसीन व्यक्ति, राज्य के राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त अपने पदों पर बने रहेंगे।
3. लोकसेवकों के लिए संरक्षण उपाय
- अनुच्छेद 311 उपर्युक्त प्रसाद पर्यन्त सिद्धांत पद पर दो प्रतिबंध लगाता है। अन्य शब्दों में, यह सिद्धांत लोक सेवकों को उनके पदों से इच्छानुसार हटाने से रोकने के संबंध में दो संरक्षण प्रदान करता है।
- (अ) किसी लोक सेवक को उसके अधीनस्थ अधिकारी (जो उसके द्वारा नियुक्त किया गया हो) द्वारा बर्खास्त अथवा हटाया नहीं जा सकता है।
- (ब) किसी लोक सेवक को केवल ऐसी जांच के उपरांत ही बर्खास्त, अथवा हटाया अथवा पदाअवनत किया जा सकता है जिसमें उस पर लगाए गए आरोपों की सूचना उसे दी जाएगी तथा इन आरोपों की सुनवाई के लिए उसे पर्याप्त अवसर दिया जाएगा।
अखिल भारतीय सेवाएं
अखिल भारतीय सेवाओं के संबंध में अनुच्छेद 312 में निम्नलिखित उपबंध किए गए हैं:
- यदि राज्यसभा एक प्रस्ताव पारित कर एक नवीन अखिल भारतीय सेवा (अखिल भारतीय न्यायिक सेवा सहित) का सृजन कर सकती है।
- ऐसे किसी संकल्प का राज्यसभा में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित होना आवश्यक है।
- अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के अंतर्गत कोई भी पद जिला न्यायाधीश से कमतर नहीं होने चाहिए।
- इस सेवा का सृजन करने वाली विधि को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन नहीं माना जाएगा।
यद्यपि 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 में अखिल भारतीय न्याययिक सेवाओं के सृजन के लिए उपबंध किया गया परंतु अब तक ऐसी कोई विधि तैयार नहीं की गई है।